Thursday 23 January 2014

'नेताजी'

एक था जुझारू 'नेता’


यूं तो देश ने कई महान रणबांकुरों को जन्म दिया। लेकिन इन रणबांकुरों में से एक था जुझारू , लगनशील, कभी न हार मानने वाला दयावाल सुभाष चंद्र बोस। नेता जी सुभाष चंद्र का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक खुशहाल बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और मां का नाम 'प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। सुभाष अपेन 14 भाई-बहनों में से नौवीं संतान थे।

अव्वल दर्जे के छात्र

नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में प्रा’ की। आगे की पढ़ाई के लिए सुभाष को कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला करवाया गया। सुभाष चंद्र शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि के समझदार और अद्बितीय प्रतिभा के धनी थ्ो। शिक्षा के प्रति अधिक लगाव को देखकर उनके पिता ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में एडमिशन करवाया। वहां के परीक्षाफल में सुभाष सभी बच्चों में श्रेष्ठ आए।
 

जझारू व्यक्तित्व

सुभाष अपने समय के प्रतिभा संपन्न छात्रों की श्रेणी में गिने जाते थ्ो। सुभाष का मानना था कि अगर आपन्ो किसी कार्य की शुरूआत की है तो उसे खत्म करने से पहले सांस मत लो। बोस की भारतीय प्रशासनिक सेवा में रूचि को देखकर परिवार ने बोस को इंग्लैंड के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी भेज दिया। यूं तो अंग्रेजी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन होता था, लेकिन सुभाष के जुझारू व्यक्तित्व ने इस भ्रांति को भी तोड़ दिया। सुभाष के अथक प्रयासों के तहत वे सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थ्ो।

दयावान चरित्र

सुभाषचंद्र बचपन से ही बेहद दयावान थ्ो। उनसे लोंगों की बेबसी और दुख देखा नहीं जाता था। सुभाष के घर से उनके कॉलेज की दूरी 3 किलोमीटर थी। जो पैसे उन्हें खर्च के लिए मिलते थे उनमें उनका बस का किराया भी शामिल था। उस बुढ़िया की मदद हो सके, इसीलिए वह पैदल कॉलेज जाने लगे और किराए के बचे हुए पैसे वह बुढ़िया को देने लगे। साथ ही वह अपने दोपहर का खाना भी उस बुढ़िया को दे दिया करते थ्ो।
सुभाष का मानना था कि यदि हमारे समाज में एक भी व्यक्ति ऐसा है जो अपनी बेसिक जरूरतों को पूरा नहीं सकता तो मुझे सुखी जीवन जीने का कोई अधिकार नहीं है।

राजनीति में कदम

उन दिनों गांधीजी ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था। देशबंधु चितरंजनदास इस आंदोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे। स्वतंत्रता की अलख लिए सुभाष इस आंदोलन में शामिल हो गए। उसके बाद सन् 1922 में दासबाबू की स्वराज पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर कोलकाता महापालिका का चुनाव जीत लिया। दासबाबू कोलकाता के महापौर बने और सुभाष को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया गया। बहुत जल्द ही सुभाष देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए।
कारावास बना दूसरा घर
पूरी तरह से सक्रिय राजनीति में आने से पहले नेताजी ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया। वह कई साल तक यूरोप में रहे। उसी दौरान आस्ट्रियन युवती से विवाह भी रचाया। अपने जीवनकाल में सुभाष को पहली बार 16 जुलाई 1921 को जन भावना भड़काने के आरोप में जेल भ्ोजा गया। इसके बाद तो कारावास जैस्ो सुभाष का दूसरा घर बन गया। वह अपने जीवन काल में देश की खातिर तकरीबन 11 बार जेल गए।
 

आजाद फौज का गठन

अपन्ो उठापठक भरे राजनीतिक जीवन में लोगों ने सुभाष को नया नाम दिया नेताजी। सुभाष ने सशक्त क्रांति द्बारा भारत को अंगेजों के चंगुल से स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आजाद हिंद फौज की स्थापना की। नेताजी अपनी आजाद हिद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुंचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, ’’तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’’ दिया।
18 अगस्त 1945 को टोक्यो जाते समय ताइवान के पास नेताजी की मौत हवाई दुर्घटना में हो गई, लेकिन आजतक उनका शव नहीं मिल सका। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है।




 

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