Tuesday 14 January 2014

फकीरों का सेनापति


उड़िया साहित्य का सेनापति

ओड़िसा आधुनिक साहित्य में फकीर मोहन सेनापति 'कथा-सम्राट्’ के रूप में आज भी प्रसिद्ध हैं। भारतीय साहित्य खासकर कहानी एवं उपन्यास रचना में उनकी विशिष्ट पहचान रही है।
फकीर मोहन सेनापति का जन्म ओडिèशा के बालेश्वर जिले के मल्लिकाशपुर गांव में, 13 जनवरी 1843 में हुआ था। इनकी लेखनी से भारतीय साहित्य के क्षेत्र में एक विशेष क्रांति आई और एक नए युग का उदय हुआ।
बचपन में ही उनके पिता-माता के आकस्मिक निधन के बाद इनका लालन-पालन इनकी दादी ने किया बचपने में इनका नाम ब्रजमोहन था। भोजन की तलाश के लिए फकीर का चोला भी पहनना पड़ा और गांव-गांव भिक्षा मांग कर गुजारा करते। हालांकि इस बीच उन्होनें गांव की ही पाठशाला से शुरुआती शिक्षा भी प्रा’ की। फकीरी चोले के कारण इन्हें फकीर मोहन के नाम से पुकारा जाने लगा। यूं तो फकीर मोहन का बचपन काफी गुरबत में बीता। लेकिन इस बीच उन्होंने स्कूल जाना बंद नहीं किया और अपने ज्ञान को निरंतर प्रयासो से बढ़ाते रहे।

'हार’ से इंकार

फकीर मोहन बचपन से ही बेहद तेज और कुशाग्र बुद्धि के थ्ो। वे किसी भी कार्य को अधूरा नहीं छोड़ते थ्ो, फिर वह चाहें कितना ही कठिन क्यों न हो। उनके समकालीन लेखकों ने उनके बारे में लिखा है कि वह कभी न हार मानने वाले व्यक्ति थ्ो। उन्हें ओड़िया भाषा में बेहद दिलचस्पी थी। गांव की पाठशाला में पढ़कर उन्होंने व्यक्तिगत रूप से अध्ययन जारी रखा और ओड़िया साहित्य को नवजीवन देने की ओर निरंतर कदम बढ़ाते गए। अपनी चेष्टा और दृढ़ मनोबल से उन्होंने कई भाषाओं और ग्रंथों का अध्ययन कर अधिक ज्ञान प्राप्त किया। फकीर मोहन की प्रतिभा के कारण उन्हें बालेश्वर मिशन स्कूल में प्रधान शिक्षक के तौर पर नियुक्त किया गया। वे धीरे-धीरे अपनी भाषा में पकड़ मजबूत करते हुए साहित्य में नाम कमाने लगे।

 

महान अनुवादक

अंग्रेजी शासन के समय बालेश्वर के जिलाधीश बड़े साहित्यप्रेमी थे। उनको पढ़ाने के लिए संस्कृत, बंगाली और ओड़िया भाषाओं के एक ज्ञानी पंडित की आवश्यकता होने पर फकीर मोहन ने उन्हें ज्ञान प्रदान किया। भाषाओं के ज्ञान की महत्वाकांक्षा ने फकीर मोहन को एक महान साहित्यकार बनाकर प्रतिष्ठित किया। महामुनि व्यास-कृत संस्कृत 'महाभारत’ ग्रन्थ को ओड़िआ में अनुवाद करने के कारण फकीरमोहन 'सेनापति व्यासकवि’ नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होनें रामायण, गीता, उपनिषद जैसे ग्रंथों का भी ओड़िआनुवाद किया है। वे एक कहानीकार, उपन्यासकार, कवि एवं अनुवादक के रूप में लोकप्रिय रहे हैं ।

शब्दों का शिखर

फकीरमोहन प्रथम ओड़िआ साहित्यकार थ्ो, जिनकी कहानियों और उपन्यासों में उस समय प्रचलित कुरीतियों जैसे अंधविश्वास, कुसंस्कार, दुर्बलों के प्रति धनियों का अन्याय-अत्याचार, बालाविवाह चरित्रों को प्रमुखता से दर्शाया गया है। उनकी लिखी कहानियों में 'रेवती’, 'पैटेंट मेडिसिन, 'डाक-मुंशी’, 'सभ्य जमींदार’ आज भी लोकप्रिय हैं। उनकी पहली कहानी 'रेवती’ थी। इसमें फकीर मोहन ने तत्कालीन समाज में नारी-शिक्षा और उनके उत्थान जैसे विषयों को उजागर करती है। 'पैटेंट मेडिसिन’ कहानी के नायक मद्यप स्वामी चंद्रमणिबाबू को सही रास्ते में लाने के लिए पत्नी ने झाडू का इस्तेमाल किया। वहीं 'डाक-मुंशी’ में एक अंग्रेजी-पढ़े युवक और वृद्ध-बीमार ग्रामीण पिता के पारिवारिक रिश्तों को दर्शाती कहानी है। इसके अलावा भी फकीर मोहन सेनापति ने शब्दों का विशाल शिखर तय किया और चोटी पर विराजमान हुए।
 

एक जैसे प्रेमचंद और मोहन

हिंदी साहित्य में जो स्थान महान कथ सम्राद मुंशी प्रेमचंद का है, वही स्थान ओड़िया साहित्य में फकीर मोहन सेनापति का भी माना जाता है। इनकी कहानियों के चरित्र और स्तिथियां लगभग एक समान ही मिलती हैं। दोना ही कथासम्राटों का जीवन लगभग एक जैसा ही बीता। दोनों गांव और गरीब परिवार में जन्मे थे। दुख-जञ्जाल संघर्षों से भरा था दोनों का जीवन। किसानों की दुर्दशा दूर करने में दोनों की लेखनी हमेश आगे रही। प्रेमचंद का किसान 'होरी’ और फकीर मोहन का 'भगिआ’, इन दोनों में अनेक समानताएं दिखाई पड़ती हैं। भारतीय साहित्य जगत में फकीरमोहन एवं प्रेमचंद हमेशा के लिए अमर हैं।


मोहन के जीवन-काल में अनेक जंजाल और संघर्ष आए। परंतु वे अविचलित होकर सब झेल गए। सबल आशावादी होकर उन्होंने अपना जीवन निर्वाह किया। बालेश्वर में उनका गृह-उद्यान शांति-कानन आज भी साहित्यप्रेमियों के लिए किसी पवित्र स्थल से कम नहीं है।

कालजयी रचनाएं

  देश के प्रतिष्ठित अख़बार में प्रकाशित हो चुका लेख
उनके उपन्यासों में ‘छमाण आठ गुण्ठ’, ‘मामुँ’, ‘प्रायश्चित्त’, 'लछमा’, आदि प्रमुख हैं । प्रसिद्ध उपन्यास ‘छ माण आठ गुण्ठ’ ओड़िआ सिनेमा के रूप में लोकप्रिय बन चुका है । नारी-पात्रों के मार्मिक चित्रण करने में भी फकीरमोहन की निपुणता प्रशंसनीय है । 'रेवती', 'राण्डिपुअ अनन्ता' प्रमुख कुछ कहानियाँ भी दूरदर्शन में प्रसारित हुई हैं । उनकी रचनाओं में विषयवस्तु, चरित्रचित्रण, भावनात्मक विश्लेषण एवं वर्णन-चातुरी अत्यन्त आकर्षणीय हैं । भाव और भाषा का उत्तम समन्वय परिलक्षित होता है ।

कवि के रूप में उन्होंने 'अबसर-बासरे', 'बौद्धावतार काव्य' आदि लिखे, जिसमें कवि की भावात्मकता एवं कलात्मकता का रम्य रूप दृश्यमान होता है । 'उत्कलभ्रमणं' काव्य में हास्य-व्यंग्य वर्णन सहित ओड़िशा के तत्‍कालीन साहित्य-साधकों की बहुत उत्साहभरी प्रशंसा की है । 'आत्मजीवनचरित' में उन्होंने अपने संघर्षमय जीवन की विशद अवतारणा की है । 'संवादबाहिनी' और 'बोधदायिनी' पत्रिकाओं के प्रकाशन की दिशा में ओड़िआ सांस्कृतिक संग्राम के एक प्रवीण सेनापति रहे ।
वास्तव में फकीरमोहन थे एक युगप्रवर्त्तक, समाज-संस्कारक, जनजीवन के यथार्थ चित्रकार, नवीनता के वार्त्तावह और कथासाहित्य के उन्नायक ।

आधुनिक ओड़िआ कथासाहित्य के जनक फकीरमोहन सेनापति के जीवन और रचनाओं के बारे में अब तक बहुत शोधग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं । फकीरमोहन के महनीय नाम के सम्मानार्थ बालेश्वर में प्रतिष्ठित हैं 'फकीरमोहन स्वयंशासित महाविद्यालय' एवं 'फकीरमोहन विश्वविद्यालय है




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