Wednesday 12 February 2014

आखिरी किस्त.....(अ लव स्टोरी)

इंतजार कॉफी का

पार्ट टू

.................................उस दिन फिर किसी काम में तबियत न लगी विजेंद्र की। कब दिन के सारे काम खत्म किए, कब खाना खाया, कब रात के कपड़े बदले और कब बिस्तर में समा गया। वक्त का हिसाग-किताब बाकी दिनों की तरह अब उसके पास न था।

अब उसे कमरे की से झूलता सालों पुराना पंखा नया-नया लग रहा था, बातों की जगह खामोशी सुकून देने लगी थी, बिस्तर भी बड़ा आरामदेह लग रहा था। प्लास्टिक का अधभरा जग भरा-भरा व उसका पानी अनायस ही जुबान को मीठा लगने लगा था। टूटी खिड़की के परदे दिलकश व सुकून भरे महसूस हो रहेथ्ो।
आज से पहले इससे ज्यादा खूबसूरत उसे उसका घर कभी नहीं लगा था। सिर्फ एक। हां सिर्फ एक झलक इस सबका कारण थी।
और आज पूरे डेढ़ साल हो चुके हैं उस घटना को। लेकिन मामला जस का तस बना हुआ है। वह उसके बारे में सोचता रहता है। उसे रमा हंसमुख आर मिलनसार दिखती है। और उसे उसमें ढेर-ढेर खूबियां नजर आती हैं। वह उसे नजर भर देखना चाहता है, बस देखते रहना चाहता है, उसे छूना चाहता है, उसका स्पर्श पाना चाहता है। वह उसे बताना चाहता है कि वह उसे कितना प्यार करता है और कितनी बार दिल केअरमां शब्दों की शक्ल लेकर कागज पर उतरे, कांटेक्ट नं. भी लिखा, यहां तक कि इमेल एड्रेस भी लिखा देने के लिए। मगर हर बार उस कागज को फाड़ देता, फिर लिखता और फिर फाड़ता।


पर जब वह विजेंद्र के सामने होती तब वह हड़बड़ा जाता और व्यस्त होने का या यूं कहें उसको न जानने का ढोंग करने लगता। लेकिन जब वह उसके सामने से हट जाती तब अफसोस करता और खुद पर झल्लाता। उसे दूर से ही देर तक अपलक ताकता रहता। लेकिन सच्चाई यही है कि वह रमा से बेपनाह मुहब्बत करता है। वह उसे जताना चाहता है कि उसे जानना चाहिए कि वह उसे क्यूं हमेशा पागलों की तरह ताकता रहता है। और शायद रमा भी ऐसा ही कुछ महसूस करती है या शायद नहीं भी।
मैने विजेंद्र को कई बार समझाया कि वह रमा से बात करे, अपने दिल का हाल कह सुनाए। यहां तक कि उसे डर या संकोच लगे तो मैं उससे उसके बारे में बात करने की कोशिश कर सकता हूं। लेकिन अफ सोस पता नहीं उसे किस बात का डर है। शायद उसे खो देने का। पर जब अभी तक कुछ पाया ही नहीं तो फिर खोने का डर कैसा? अब उसकी समझ में यह बात आ जाए तो बात की बात न बन जाए। लेकिन अगर इसी तरह देवदास बना रहा तो बिना कुछ पाए ही सगकुकछ खोने का दर्द जरूर दिल के दस्तरख्वानों में महसूस करेगा।
मेरे समझाने के तरीके ने असर दिखा दिया था। लेकिन ये क्या ? उसने रमा से बात तो नहीं कि उल्टे पापा से डिक्कस कर बैठा कि वह रमा को पसंद करता है और उसे कॉफी पिलाने ले जाना चाहता है। उससे शादी की बात करना चाहता है, लेकिन लाख चाहकर भी वह उससे कैफैटेरिया चलने को पूछ नहीं पाया। क्योंकि उसे डर कि कहीं वह मना न कर दे।
जवाब में पापा ने समझाते हुए कहा था। बेटा किसी से प्यार करना अच्छी बात है उसे जाकर बता देना और भी अच्छी बात है लेकिन बिना उसे जाने, बिना उससे पूछे किसी निर्णय तक पहुंचना बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं। अगर तुम जैसा तुम समझते हो वैसा है तो एकपल भी गंवाए बिना उससे पूछो कि वह तुम्हारे बारे में क्या सोचती है और यह निर्णय उसे ही तय करने दो।
और आज हम दोनो यानी मैं और विजेंद्र, कॉलेज गेट के कुछ पहले ही, चिलचिलाती धूप में इस कंक्रीट की रोड पर उसके आने का और कैफेटेरिया की कॉफी शॉप के ओपेन हो जाने को इंतजार कर रहे हैं।
बारिश अभी-अभी बरस कर थमी है। फिर पता नहीं धूप शरीर को इतना जला क्यूं रही है, सूर्य इतना तेज और गर्म क्यूं लग रहा है। आसपास मौजूद पेड़ों ने शायद अनिश्चित भविष्य के डर को भांप कर अपने पंखों को सिकोड़ लिया है। हवा का रुख और मिजाज कुछ समझ नहीं आ रहा है। और सामने हमेशा व्यस्त रहने वाली जीटी रोड आज कुछ ज्यादा ही शांत दिख रही है। वक्त तो जैसे थम सा गया हो महसूस हो रहा है
मौसम हमारे पक्ष में या विपक्ष में , ये तो आने वाला वक्त में ही पता चलेगा।
इंतजार......इंतजार होगा या लख्तेजिगर का दीदार।


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साथियो यह प्रेमकहानी मैने अपने कॉलेज के बेफिक्री भरे दिनों में लिखी थी। इसका ऑडियो वर्जन कॉलेज में काफी पॉपुलर हो चुका है और अब बारी है रिटेन वर्जन की। इसलिए बिना किसी तामझाम के इसे शेयर कर रहा हूं।

नोट- 

यह प्रेमकहानी सच्ची घटना पर आधारित है और इसके पात्र व लोकेशन काल्पनिक न होकर पूरी तरह सत्य हैं।

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