Wednesday 5 March 2014

दो कवितायें.....

शब्द सागर


शब्दों के सागर में नाव डाल रखी है
दुम दबाए बैठना
सिखाया गया नहीं कभी
अब हाथ पैर तो मारने ही हैं
क्योंकि रुकना इस समंदर में
मौत को आमंत्रण होगा

अब चीर कर नीर को
आगे बढ़ना है
हों झंझावात चाहे जितने
इसीलिए शब्दों के शिखर
की तलाश जारी है
इस जहां में
सिरमौर बनने की खातिर
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यात्रा

दुनिया को समझने की फिराक में
निकला हूं
पहुंचूंगा कहां कुछ पता नहीं
रास्ता तो शायद मिल भी जाए
लेकिन क्या मंजिल सिमटेगी हथेलियों में

कोशिशों के पुलिंदे साथ हैं
क्या उस पुलिंदे में चाभी छुपी है
उस खास दरवाजे की
जिसे सब खोलने में लगे हैं
पक्का यकीं है मुझे
तुम सब भी
मिलोगे  
उसी खास दरवाजे के पास



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