Saturday 8 March 2014

चालबाज दुनिया में 'मास्टरनी’

'महा-मास्टरनी'

उसे दुनियादारी नहीं पता थी

मौत का मर्सिया पढ़ना उसे नहीं आता था
लेकिन वक्त ने उसको
सिखा दिया सबकुछ
वह भी जो उसे आता था
और वह भी जिससे उसका साबका न था
उन दिनों उस पर वो सब गुजरा
जो उसे कभी कुबूल न था

ये जालिम वक्त
शिला के भी टुकड़े कर देता है
और पानी के वजूद को भी मटमैला
लेकिन अब
वक्त की धार में पैनापन
शायद ज्यादा था
या था ही नहीं
यहां अब सबकुछ उल्टा चल रहा था
दुनिया की नजरों में
लेकिन ये तब उल्टा नहीं था
जब यह उसके साथ घटित हो रहा था

अब मजबूती ने मुट्ठी को
कसकर भींच रखा था
क्योंकि वक्त तो उल्टे का था ना
अब सबके साथ उल्टा होगा सिर्फ उसके सिवा
क्योंकि
वक्त टुकड़ों का गठजोड़ कर चुका था
अब तो वह
चुड़ैल हो चुकी थी
अब हर वो शब्द उसके लिए था
जिन्हें प्रबुद्ध समाज के लोग
अपनी जुबां पर कम
लेकिन दिमाग में हमेशा रखते हैं

मेरी नजरों में तो वह महा-मास्टरनी थी
क्योंकि उसने उन सबको पछाड़ा था
जो खुद को
मालिक समझ बैठे थे
दुनियाभर की 'नारी जाति’ का ।।


 

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