Saturday 12 April 2014

मुहब्बत


डिब्बे का दर्द

तुम्हारे जाने के बाद से ही
खुद को डिब्बा बना लिया

उस डिब्बे में रखकर यादें सारी
मैंने खुद को डुबो लिया

अधूरा खत लगता है सब
इसकी स्याही खुद को बना दिया

बारिश में चलता हूं जब-जब
तुझमें तब-तब खुद को घुला दिया

बूंदे तो पसंद थी बेपनाह तुझे
मैने बारिश में घर बना लिया

जहां छोड़ा था तुमने उस दिन
अब वहां से हिलना ही छोड़ दिया

तुम तो जमी रही पत्थर बनके
पत्थर में लोगों ने मुझे भी घुसा दिया

आते हैं लोग फूल डालने कब्र पे तुम्हारी
भूलकर मेरी कब्र पे डालना शुरू किया

 

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