Saturday 13 August 2016

आजादी की अलख जगाने झांसी के टोड़ी गांव आए थे सुभाष


 झांसी आए थे सुभाष्‍ा चंद्र बोस

देश की आजादी में झांसी जनपद का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता है। यहां के लोगों ने 1857 के संग्राम में बढ़चढ़ कर भाग लिया। स्वंतंत्रता आंदोलन की अगुवा रही झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को यहां के लोग देवी के समान पूजते हैं। रानी के आह्वान पर यहां के गांवों में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बज गया  था प्रत्येक ग्रामीण हर तरीके से अपना योगदान आजादी के लिए देने में जुट गया।

मोंठ कस्बे के रहने वाले और अमर उजाला के संवाददाता अरविंद दुबे बताते हैं कि आजादी की लड़ाई में मोंठ क्षेत्र के लोगों ने भी क्रांतिकारियों का कदम से कदम मिलाकर साथ दिया। वह बताते हैं कि कस्बे के पास का गांव टोड़ी उन दिनों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का प्रमुख केंद्र बना हुआ था। यहां के लोगों के मन में आजादी के लिए उफान और अंग्रेजों के खिलाफ भडकी ज्वाला देखकर आजाद हिंद फौज के मुखिया सुभाष चंद्र बोस ने यहां के लोगों से मुलाकात कर बैठक की थी। उसी दौरान एक भवन तैयार किया गया था जो आज भी आजाद हिंद फौज की यादों को ताजा करता है।

सुभाष चन्द्र बोस का सानिध्य पाकर यहां के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों से लोहा लिया। मोंठ से करीब पांच किमी दूर ग्राम टोड़ी के पास स्थित सेवरा पहाड़ पर क्रांतिकारियों का अड्डा रहा। ग्राम टोड़ी में आंदोलन से जुड़े लोगों का आना-जाना रहता था। बम बनाये जाते थे और क्रांतिकारियों को यहीं से असलहों की सप्लाई की जाती थी। क्रांतिकारियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले यहां के उन शहीदों को लोग आज भी श्रद्घा के साथ नमन करते हैं जिन्होंने आजादी के लड़ाई में क्रांतिकारियों का साथ देकर इस क्षेत्र का गौरव बढ़ाया था। मुख्य रुप से ग्राम के प्रकाश चन्द्र गुप्ता, गोवर्धनदास योगी, वृंदावन माते, मेघराज यादव क्रांतिकारियों का सहयोग करते थे।

अंग्रेजी शासनकाल में किसी स्थान पर रैली या पंचायत करने की अनुमति नहीं थी। ग्राम टोड़ी में 26 फरवरी 1940 में गांव में एक किसान पंचायत हुई थी इसमें आजाद हिन्द फौज के संस्थापक सुभाषचन्द्र बोस टोड़ी गांव आए थे और किसानों के साथ बैठक की थी। चूंकि अंग्रेज सरकार की निगाह इस किसान पंचायत पर लगी थी और सरकारी मुलाजिम पल-पल की खबर रख रहे थे, इसलिए उन्होंने गांव में एक क्रांतिकारी रखसू अहिरवार, जिसने अपनी एक हेक्टेयर जमीन उस समय पंचायत भवन के निर्माण के लिए दान में दी थी। सुभाष चन्द्र बोस के दो दिवसीय प्रवास के दौरान 27 फरवरी को रखसू अहिरवार द्वारा दी गयी जमीन पर सुभाषचन्द्र बोस ने विजयलक्ष्मी पंडित के नाम पर एक किसान भवन की नींव रखी थी, जिसे बाद में किसान पंचायत भवन के रुप में मान्यता दी गयी और उसका निर्माण कराया गया।

सुभाष चन्द्र बोस के आने के बाद अंग्रेजों ने इस क्षेत्र के लोगों पर खास नजर रखना शुरु कर दिया था। ग्रामीणों की एक-एक गतिविधियों पर नजर रखी जाने लगी थी, लेकिन क्रांतिकारियों के कदम से कदम मिलाकर चलने वाले गुमनाम शहीद प्रकाशचन्द्र गुप्ता, रखसू अहिरवार, मदनमोहन लिटोरिया, नारायण सिंह सेठ, गोवर्धनदास योगी, वृंदावन माते, मेघराज यादव ने छापा मार युद्घ जारी रखा। बम बारुद हरीलाल कुशवाहा के मकान में बनाया जाता था। बारुद और बमों को छिपाने के लिये सेवरा पहाड़ की छोटी-छोटी गुफाओं का प्रयोग किया जाता था। देश आजाद होने के बाद यहां के कुछ ही लोगों का नाम स्वतंत्रता सेनानी की सूची में आ सका। बाकी अन्य लोग जिन्होंने तन-मन-धन देश की आजादी के लिये न्यौछावर किया, वो गुमनामी के अंधेरे में चले गए।

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