Sunday 14 August 2016

अंग्रेजों के खिलाफ दिया 'न देंगे पाई न देंगे भाई' का नारा

आजादी की अलख जगाने झांसी के टोड़ी गांव आए थे सुभाष

देश के अमर सपूतों में झांसी जनपद के वीरों का नाम हमेशा के लिए दर्ज है। यहां के गरौठा तहसील का सिमरधा गांव अंग्रेजों का विरोध करने के लिए इतिहास में दर्ज है। द्वितीय विश्व युद्घ के दौरान जब अंग्रेजों ने युद्ध लड़ने के लिए हर घर से एक व्यक्ति और चंदा में धनराशि मांगी थी तो पूरा गांव एक जुट हो गया था तथा न तो अपने घर का सदस्य दिया था और न ही धन।

न देंगे पाई न देंगे भाई का नारा लगाकर अंग्रेजी हुकुमत को ललकारने वाले ऐतिहासिक गांव सिमरधा केे लोग आज भी अपने पूर्वजों की राष्ट्र भक्ति को याद कर गौरवान्वित हो जाते हैं। गरौठा कस्बे के रहने वाले और अमर उजाला के स्‍थानीय संवाददाता बालादीन राठौर बताते हैं कि अंग्रेजों के कहर बरपाने के वाद भी इस गांव के लोग झुके नहीं। पूरे गांव के लोगों ने एकजुट होकर आंदोलन कर दिया। जब देश आजाद हुआ तो सिमरधा को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गांव का नाम तो दिया गया, पर दस्तावेजों में इसे दर्ज नहीं किया गया। इतना ही नहीं आजाद भारत की सरकार इन क्रांतिकारियों के सम्मान में गांव में एक स्मारक भी नहीं बना सकी। सिमरधा गांव के सभी क्रांतिकारी दिवंगत हो चुके हैं।

इनके परिवारों के लिए शासन प्रशासन ने ऐसे कोई संसाधन उपलव्ध नही कराए हैं जिससे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवारों का भरण पोषण हो सके। द्वितीय विश्व युद्घ के दौरान अंग्रेज सरकार ने फरमान जारी किया था कि भारत के सभी परिवारों से एक एक व्यक्ति को जंग लड़ने के लिए ले जाएंगे तथा इसके अलावा इस परिवार से चंदा भी लिया जाएगा। अंग्रेजों के डर से जहां कई गांव के लोग आदेश मानने को मजबूर हो गए थे, लेकिन गरौठा तहसील क्षेत्र के ग्राम सिमरधा के लोगों ने अंग्रेजों के सामने झुुकने से साफ इंकार कर दिया था। 11 जनवरी 1945 को गांव के लोगों ने बैजनाथ तिवारी, शालिगराम तिवारी, गेंदालाल पटैरिया, झुडनलाल चौबे, मुन्नीलाल मिश्रा, काशी प्रसाद द्विवेदी, सीताराम त्रिपाठी, स्वामी प्रसाद राजपूत, मंगन लाल अहिरवार, रामसुमरन मिश्रा, रामसेवक रिछारिया, बाबू सिंह, विद्याधर त्रिपाठी, राजाराम शर्मा रमपुरा, प्रभुदयाल दर्जी गुढा, तीरथ राय मिश्रा, परशुराम , मूलचंद्र, सुंदर लाल, मलखान, ठाकुर दास ने पूरे गांव को एकजुट करके विरोध शुुरू कर दिया था।

सिमरधा में विरोध के स्वर उठते ही अंग्रेजों को पसीना छूट गया। यहां से चिंगारी पूरे देश में फैलने की आशंका के चलते अंग्रेजों ने इस आंदोलन का दमन करने की जिम्मेदारी तत्कालीन तहसीलदार बृजविहारी सक्सेना को दी। तहसीलदार के निर्देश पर पुलिस ने आंदोलनकारियों पर कहर बरपाना शुरू कर दिया। इस हमले से आजादी के दीवाने जख्मी तो हो गए, लेकिन झुके नहीं। तहसीलदार ने गांव के सभी जानवर अपने कब्जे में लेकर 11 क्रांतिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया था। इस मुकदमे में सभी ग्रामीणों को छह साल की सजा व साढे़ सात सौ रुपये जुर्माना हुआ था। सिमरधावासियों पर हुए अत्याचार की जानकारी जैसे ही महात्मा गांधी को लगी तो वह विचलित हो गए। बापू के नेतृत्व में गांव के लोगों ने तहसीलदार बृजविहारी सक्सेना के खिलाफ मुंसिफ मजिस्ट्रेट झांसी की अदालत में मुकदमा दर्ज कराया था। बाद में देश आजाद होने के बाद इस मुकदमे में ग्रामवासियों की जीत हुई ओर तत्कालीन तहसीलदार पर दो सौ रुपये का जुर्माना हुआ था, लेकिन जब फैसला हुआ तब तक तहसीलदार का निधन हो चुका था। तत्कालीन जिलाधिकारी सतीश चंद्र मृतक तहसीलदार के बच्चों को साथ लेकर सिमरधा गांव आए और ग्रामीणों से क्षमा याचना की तो गांव के लोगों ने बच्चो के हित में जुर्माना माफ कर दिया था।



तिरंगा के लिए दे दी थी जान
आजादी की लड़ाई के हर आंदोलन में सिमरधा गांव के लोग आगे रहे। 1941 मे गांव क्रे क्रांतिकारियों ने महात्मा गांधी के आह्वान पर सत्याग्रह किया था। इस पर गांव के ग्यारह लोगों को जेल यात्रा करनी पड़ी थी। इतना ही नहीं वर्ष 1930 में सिमरधा गांव के बैजनाथ राजपूत, चन्दू रंगरेज, रज्जू रंगरेज ने मऊरानीपुर के तहसील कार्यालय में अंग्रेजी हुकुमत की आंखों में धूल झोंकते हुए तिरंगा झंडा फहरा दिया था। अंग्रेज सिपाहियों ने तीनों लोगों को पकड़कर उनकी पिटाई कर दी थी। अंग्रेजों द्वारा की गई पिटाई में रज्जू एवं चन्दू रंगरेज की मौके पर मौत हो गई थी, जबकि बैजनाथ राजूपत गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

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