Sunday 10 September 2017

मलाला के अनुरोध पर रोहिंग्या संघर्ष पर विराम

नोबल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई 

म्यांमार सेना और अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) के बीच करीब 15 दिनों से चल रही जंग शनिवार को खत्म करने का ऐलान किया गया है। रोहिंग्या मुसलमानों के हक के लिए लड़ने वाली साल्वेशन आर्मी ने  एक महीने के लिए एकतरफा संघर्ष विराम की घोषणा की है। 

माना जा रहा है कि नोबल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई के निर्दोष लोगों की हत्याओं पर दुख जताने और हिंसा थमने के अनुरोध पर रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के प्रमुख अताउल्लाह अबू अम्मार जुनूनी ने ये कदम उठाया है। वहीं, कुछ जानकारों का मानना है कि आतंकी संगठन ने म्यांमार के हिंसाग्रस्त प्रांत रखाइन में सहायता समूहों द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों को मदद पहुंचाने के लिए यह कदम उठाया है। 

पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई ने म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ जारी हिंसा पर 4 सितंबर को बयान दिया था। इसमें मलाला ने कहा था कि जब भी वह म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की पीड़ा की खबरें देखती हैं तो वह अंदर से दुखी हो जाती हैं। मलाला ने अपने बयान में आगे लिखा, ‘हिंसा थमनी चाहिए। मैंने म्यांमार के सुरक्षाबलों द्वारा मारे गए छोटे बच्चे की एक तस्वीर देखी। इन बच्चों ने किसी पर हमला नहीं किया था लेकिन इन्हें बेघर कर दिया गया। अगर इनका घर म्यांमार नहीं है तो ये पीढ़ियों से कहां रह रहे थे?’


दुनिया में सबसे ज्यादा जुल्म रोहिंग्या पर
कहा जाता है कि दुनिया में रोहिंग्या मुसलमान ऐसा अल्पसंख्यक समुदाय है जिस पर सबसे ज़्यादा ज़ुल्म हो रहा है। इसका ताजा उदाहरण म्यांमार हिंसा है। म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है। म्यांमार में एक अनुमान के मुताबिक़ 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं। इन मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। हालांकि ये म्यामांर में पीढ़ियों से रह रहे हैं। 

बौद्ध और रोहिंग्या के बीच लंबे समय से हक और अधिकारों के लिए खूनी संघर्ष चल रहा है। रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है। यही वजह है कि रखाइन प्रांत में 2012 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है। सयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और एक लाख से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं। बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान आज भी जर्जर कैंपो में रह रहे हैं। 
हिंसाग्रस्त रखाइन प्रांत से घर छोड़कर जाते रोहिंग्या मुसलमान

म्यांमार सरकार से हक मांगने पर मिली गोली 
म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। ऐसे प्रतिबंधों में आवागमन, मेडिकल सुविधा, शिक्षा और अन्य सुविधाएं शामिल हैं। रोहिंग्या मुसलमानों के अधिकारों के लिए लड़ रहे रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) संगठन को म्यांमार सरकार आतंकवादी मानती है। ऐसे में म्यांमार सेना और रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के बीच लड़ाई छिड़ी हुई है। 

25 अगस्त को रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के सशस्त्र लड़ाकों ने तीस पुलिस चौकियों और एक सैन्य ठिकाने पर हमला कर दिया। इसके बाद म्यामांर की सेना ने रोहिंग्या आर्मी के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। इसका परिणाम ये हुआ कि रखाइन प्रांत में सेना ने मुसलमानों को बेघर करना शुरू कर दिया। महिलाओं और मासूमों के साथ ज्यादती की गई। इसका फायदा उठाकर बौद्ध रोहिंग्या के घरों में आग लगा रहे हैं। 

करीब तीन लाख रोहिंग्या मुसलमानों पर बर्बरता करने के आरोप म्यांमार सेना पर लगाए गए हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक हिंसाग्रस्त रखाइन प्रांत से किसी तरह बचकर रोहिंग्या मुसलमान भागकर पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण ले रहे हैं। रखाइन के विभिन्न हिस्सों में भी करीब तीस हजार रोहिंग्या बेघर हो गए हैं। 

रखाइन प्रांत में मार्च करते म्यांमार सेना के जवान

कौन है आराकान रोहिंग्या रक्षा सेना
आराकान रोहिंग्या रक्षा सेना म्यांमार के उत्तरी सूबे रख़ाइन में सक्रिय एक सशस्त्र संगठन है। ये संगठन रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय संकट समूह (आईसीजी) के मुताबिक इस संगठन की अगुवाई अताउल्लाह अबू अम्मार जुनूनी कर रहा है। अताउल्लाह वीडियो संदेशों के जरिए रखाइन में अपने संगठन की गतिविधियों के बारे में बताता रहता है। 

मार्च में अताउल्लाह ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि रोहिंग्या मुसलमानों के लिए उनकी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक म्यांमार की नेता आंग सान सू की उन्हें बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाती हैं। अताउल्लाह विदेशी इस्लामी आतंकियों से संबंध रखने के आरोपों से इनकार करते हैं। अताउल्लाह का कहना है कि उनकी लड़ाई देश के बौद्ध बहुमत के दमन के खिलाफ है।

उन्होंने कहा, अगर हमें हमारे हक नहीं मिलते और अगर इस लड़ाई में लाखों रोहिंग्या मुसलमानों की जान चली जाती है तो हम मरते दम तक तानाशाह सैनिक सरकार के खिलाफ लड़ते रहेंगे। हम रात के वक्त रोशनी नहीं जला सकते। हम दिन के वक्त एक जगह से दूसरे जगह नहीं जा सकते। हर जगह नाकाबंदी है। जिंदगी जीने का ये तो कोई तरीका नहीं है।"

स्रोत: डिफरेंट वेबसाइट्स

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