Saturday 16 September 2017

जब आपका हक छीना जाएगा, आप भी रोहिंग्या बन जाएंगे

दर्द: हिंसा के बाद अपने बच्चों और परिवार के साथ पलायन करता रोहिंग्या।

रोहिंग्या के जरिए लोग अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। ज्यादातर इस मुद्दे को हिंदू-मुस्लिम से जोड़कर देख रहे हैं। यही वजह है कि लोग बिना तह तक जाए, रोहिंग्या को आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा और आतंकवादी बताने से भी नहीं चूक रहे हैं। कई लोगों को मालूम तक नहीं है कि मसला क्या है, बस वे अपनी प्रतिक्रिया दिया जा रहे हैं। सोशल साइट्स पर रोहिंग्या मुसलमान ट्रोल हो रहा है। 

मेरे एक फेसबुक दोस्त हैं, वो तो रोहिंग्या पर इतने हमलावर हैं कि उन्हें अपशब्द कहने तक से पीछे नहीं हटते हैं। ऐसे में मैनें उनसे पूछ लिया कि बताइए रोहिंग्या कब से म्यांमार में रह रहे हैं और उन्हें किसने बसाया था। आप उन्हें किस आधार पर गलत मान रहे हैं तो वे जवाब न दे सके। बस इससे कश्मीर मुद्दा जोड़ते हुए हिंदू बनाम मुसलमान तक सीमित रह गए।

इसलिए यहां बताना चाहता हूं कि म्यांमार के रखाइन प्रांत में हिंसा के हालात क्यों हैं। क्या वजह है कि खून-खराबा हो रहा है। अगर, इंसानियत और मानवता को केंद्र में रखा जाए तो मुझे लगता है आप रोहिंग्या के आतंकवाद से जुड़े होने के आरोपों को सही नहीं मानेंगे। रोहिंग्या को बांग्लादेश से म्यांमार आया बताया जा रहा है। लेकिन ये सच नहीं है।

रोहिंग्या 1400 ईं से म्यांमार तबके बर्मा में रहते आ रहे हैं। उस वक्त राजा नारामीखला ने रोहिंग्या मुसलमानों को बसाया और अपने दरबार में सलाहकार समेत महत्वपूर्ण पदों पर आसीन किया। नागरिकता दी। समय बदला, राजे-रजवाड़े खत्म होने लगे, राजवंश समाप्त हुआ और अंग्रेजों ने बर्मा पर अधिकार कर लिया। तबसे बर्मा को आजाद करने के लिए आंदोलन और लड़ाइयां लड़ी जा रही हैं। 1948 में बर्मा को आजाद कराने में इन रोहिंग्या ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आजादी के बाद म्यांमार पर सैन्य शासन हावी रहा और 1982 में म्यांमार सरकार ने कानून में संशोधन करते हुए इनकी नागरिकता छीन ली। तब से आज तक रोहिंग्या अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। बौद्धों ने इन्हें कभी नहीं अपनाया। बहुतायत में होने के कारण बौद्ध रोहिंग्या पर हमलावर बने रहे। संयुक्त राष्ट्र में लंबे समय से इनकी नागरिकता को लेकर म्यांमार पर दबाव बनाया जाता रहा है। चुनाव जीतने की लालसा ने सरकार को बहुसंख्यक बौद्धों की ओर झुकाए रखा।

नतीजतन, रोहिंग्या के कुछ नौजवान अपनी नागरिकता, हक और सुविधाएं पाने के लिए मैदान में कूद पड़े। क्रांतिकारी रूप अपना लिया। संगठन बना लिया। तो सेना हमलावर हो गई। मासूमों की जान ली गई, युवतियों-महिलाओं की आबरू लूट ली गई। सेना का विरोध किया तो इन्हें आतंकवाद से जोड़ दिया गया।

बहरहाल, आंकड़े बताते हैं कि 700 ईं. से म्यांमार में रह रहे रोहिंग्या को चरमपंथियों ने बांग्लादेशी बता दिया। जबकि बांग्लादेश का उदय कब हुआ ये तो हर जानकार हिंदुस्तानी जानता होगा। संयुक्त राष्ट के कई विद्धानों का मानना है कि रोहिंग्या पर लगातार हुए अत्याचारों के चलते वे बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान में शरण लेने को मजबूर हुए।

यहां मामला हिंदू बनाम मुसलमान का नहीं होना चाहिए। बल्कि मानवता पर केंद्रित हो तो लोग मामले को ज्यादा सटीक समझ सकेंगे। संयुक्त राष्ट्र समेत तमाम देश मानते हैं कि म्यांमार सरकार को रोहिंग्या को नागरिकता देनी चाहिए। इसके लिए भारत का दबाव बनाना आवश्यक है। मेरा मानना भी यही है कि वे म्यांमार में दशकों, पीढि़यों से रहते आ रहे हैं, उन्हें जाति विशेष से न जोड़कर नागरिकता समेत सभी मूल अधिकारी दिए जाएं। म्यांमार सरकार कुछ भी कहे, रोहिंग्या को नागरिकता देनी ही होगी।

एक बड़े अर्थशास्त्री हैं, वे बताते हैं कि जब भी आपकी स्वतंत्रता और अधिकार छीने जाएंगे आप मुखर होंगे, विरोध करेंगे। अपने स्तर से उसे पाने का प्रयत्न करेंगे। उदाहरण देखिए, पीढ़ियों से एक मकान आपका है। आपके बाबा, पिता के बाद अब आप भी उसमें रहते हैं। लेकिन एकाएक सरकार या कुछ लोग इसे अपना बताकर आपको बेदखल करने लगते हैं तो आपपे क्या गुजरती है। इसे वो भुक्तभोगी ही समझ सकता है। ऐसे में यदि आपके परिवार को नुकसाना पहुंचाया जाए तो आप हमलावर होंगे। अपनी संपत्ति और हक पाने के लिए लड़ेंगे, कुछ ताकतवर लोगों का साथ लेंगे। बस यहीं आप सरकार और उन लोगों के लिए महाविरोधी साबित हो जाएंगे। नतीजा ये होगा कि आप अलग-अलग संबोधनों से जाने जाएंगे।

No comments:

Post a Comment

मुल्क