Monday 18 September 2017

तुम्हारे लिए



तुम्हें तो पंख मिले हैं फितरतन
जाओ न उड़ो तुम भी
कहो कि मेरा है आकाश

क्यों
आखिर क्यों चाहिए तुम्हें
उतनी ही हवा
जितनी उसकी बांहों के घेरे में है

क्यों है जमीन उतनी ही तुम्हारी
जहां तक वह पीपल घनेरा है
सुनी नहीं बहस तुमने टीवी पर
बिन ब्याही भी पूरी है औरत

क्या बैर है तुम्हारा उन सहेलियों से
जिनके पर्स में रखी माचिस
कहीं भी और कभी भी
चिंगारी फेंकने के लिए रहती है तैयार

बताओ आखिर
क्या मतलब है इसका
कि एक आईना भी नहीं है तुम्हारे पास
सिर्फ उसका अक्श छोड़कर

उसी में देखती हो संवरती हो
और कुछ वक्त बाद टूटकर बिखरती हो
अब संभल जाओ, खड़ी हो जाओ
क्योंकि नोच रहे हैं तुम्हें

तुम्हारा ये भोलापन ये सोखी अदा
डुबा देगी संसार
नतीजतन
भटक जाएंगे कई गूढ़ विचार

सुर्ख कपोल बिखेर रहे लालिमा
उफ ये जिंदादिल रुखसार
तुम्हारी जान नहीं लेगा, मरूंगा मैं
तलबगारी है तुमसे, भुगतना तो होगा

कब तक झुठलाओगी खुद को
हक जानकर भी अनजान हो
अभी नहीं तो कभी नहीं
पहचान लो खुद को, जाओ, दौड़ो
मलिका बनो दुनिया जहान की।

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