कोई बता दे मुल्क का ये हाल क्यूं है
हरी-भरी ज़मीं आखिर लाल क्यूं है
महंगाई पर कब तक रोयेंगे हम
सीमा पर कब तक लाल खोएंगे हम।
महंगाई की ये शक्ल अजीब सी है
बात सिर्फ तेल और रुपये की नहीं है
बदल रहा है फ़िज़ा-ओ-मंज़र मुल्क का
शहीद की मां इसबार रोई नहीं है।
देश में झूठों का नया अभ्यारण्य खुला है
रेडियो पे सुनो सरहद पे फिर सैनिक मरा है
कुछ एंकर हिन्दू-मुस्लिम में उलझा के रखे हैं
उनसे कोई पूछ ले, क्या ईमान अभी ज़िंदा है ?
- रिज़वान नूर खान
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