Monday 30 September 2013

सात समंदर


सात समंदर अब सात कदम दूर


आज के मॉडर्न होते इस परिवेश में हाई क्लास फैमिली हों या मीडिल क्लास फैमिली सभी अपने बच्चों को विदेश में शिक्षा के लिए भेजना चाहते हैं। और यह अब तो एक शगल बन चुका है। दरअसल, ऐसा इसलिए है क्योंकि अब विदेश में शिक्षा पाना पहले जितना कठिन नहीं रहा है। क्योंकि अब स्टूडेंट्स के लिए कई तरह की स्कॉलरशिप चलाई जा रही जिसके जरिए स्टूडेंट्स विदेश में आसानी से अपनी पढ़ाई पूरी कर सकते हैं। इसके साथ ही एजूकेशन लोन का प्रॉस्ोस भी पहले से कहीं ज्यादा आसान और सुगम हो गया है। भारत में यूं तो लगभग चार सौ से ज्यादा विश्वविद्यालय शिक्षा प्रदान करने के काम में लगे हुए हैं लेकिन जब क्वॉलिटी एजुकेशन की बात आती है तो हमारे यहां आईआईटी और आईआईएम जैसे चुनिदा संस्थान ही विश्वस्तरीय सूची में स्थान बना पाते हैं। इन्हीं वजहों से प्रतिभाशाली भारतीय छात्र अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों के नामचीन शिक्षा संस्थानों में पढèने के लिए लालायित रहते हैं।

बदल रहा है ट्रेंड

देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए बढ़ रही प्रतियोगिता और कम सीटों की वजह से कई घराने अपने छात्रों को फॉरेन में एजूकेशन के लिए भ्ोज रहे हैं। जहां आज स्ट्रांग बैकग्राउंड के स्टूडेंट फॉरेन एजूकेशन के लिए फार्म भर रहे हैं तो वहीं लोवर बैकग्राउंड के स्टूडेंट भी अपनी काबिलियत के दम पर विदेशी यूनिवर्सिटीज में दाखिला पा रहे हैं। विश्ोषज्ञों के अनुमान के अनुसार हर साल लगभग डेढ़ लाख भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ाई करने के लिए फॉर्म भरते हैं और इनमें से अकेले अमेरिका में ही हर साल लगभग 25 हजार छात्र पढèने जाते हैं। विदेशों में पढ़ाई के प्रति भारतीय छात्रों में काफी क्रेज है। इस साल अमेरिका में जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या एक लाख के आंकड़े को पार कर गई। अमेरिका पढ़ाई के लिहाज से भारतीयों का हमेशा से ही पसंदीदा स्थान है और उसके बाद ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा, सिगापुर आदि का स्थान आता है।

विदेशी संस्थान में एंट्री

यदि आप प्रतिभावान हैं, कड़ी मेहनत कर सकते हैं और अपने को नए माहौल में ढाल सकते हैं तो विदेश में पढèने के लिए तैयार हो सकते हैं। इसके लिए आपको प्रवेश लेने से दो साल पहले तैयारी शुरू करनी होगी। इसका पहला चरण है आप जिस विषय की पढ़ाई करना चाहते हैं, उसके बारे में पता करें कि वह पढ़ाई किस देश में किस भाषा में उपलब्ध है। अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम में होती है, इसलिए आपको चिता करने की जरूरत नहीं है। यदि आप चीन, रूस और जर्मनी जैसे देशों में पढèने के इच्छुक हैं तो आपको इस मसले पर ध्यानपूर्वक गौर करना पड़ेगा। विषय का चुनाव करने के बाद आपको अपनी प्राथमिकता के हिसाब से विभिन्न विश्वविद्यालयों की सूची तैयार करनी होगी। इसके लिए आप विश्वविद्यालयों के विवरण इंटरनेट पर इनके वेबसाइट से हासिल कर सकते हैं।

विदेश में पढ़ाई का आकर्षण

विदेश में पढाई और आंखों में कॉर्पोरेट वर्ल्ड का ऊंचा ओहदा, हर छात्र का सपना होता है। खासकर अमेरिका, यूके, फ्रांस, कनाडा, जापान जैसे किसी देश से पढ़ाई करने के बाद न केवल एक्सपोजर मिलता है, बल्कि बड़ी व मल्टीनेशनल कंपनियों में आसानी से नौकरी भी मिल जाती है। लेकिन विदेश में पढ़ाई करने के लिए आपको टीओईएफएल, आईईएलटीएस, जीएमएटी, जीआरई जैसे एग्जाम्स को क्वालीफाई करना इंपार्टेंट होता है।

किस देश में कौन-सा टेस्ट

यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के शैक्षणिक संस्थानों में एडमिशन के लिए टॉफेल, जीआरई, जीमैट और एसएटी के स्कोर वैलिड हैं। वहीं दूसरी तरफ यूके के संस्थानों में एडमीशन के लिए जीसीई क्लियर करना पड़ता है। कनाडा, आयरलैंड व न्यूजीलैंड जैसे देशों में पढ़ने के लिए टॉफेल या आईईएलटीएस पर्याप्त है। आप ऑस्ट्रेलिया की तरफ रुख करने की सोच रहे हैं, तो यहां के लगभग सभी शैक्षणिक संस्थानों में आईईएलटीएस क्वालीफाई कैंडीडेट वैलिड होते हैं।
कुछ अहम जानकारियां
हालांकि यह प्रासेस जितना सरल दिखता है उतना होता नहीं। फॉरेन एजूकेशन के लिए आपका पूरी तरह से हर मायने में प्रिपेयर होना बेहद जरूरी होता है। मसलन किसी भी परिस्थित में कांफीडेंट रहना, फिजिकली और मेंटली फिट होना भी अपने आप में अहम होता है।


 

Sunday 29 September 2013

हमारे राधाकृष्णन



डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन


भारत के तमिलनाडु में चेन्नई के पास एक छोटे से गांव तिरूतनी में सन् 1888 को एक गरीब ब्राहमण परिवार में हुआ था। विद्बान और दार्शनिक डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन बचपन से ही मेधावी थे। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली रामास्वामी था और माता का नाम सीताम्मा था। इनके पिता राजस्व विभाग में कार्यरत थ्ो। राधाकृष्णन के पांच भाई और एक बहन थी। माना जाता है कि राधाकृष्णन के पुरखे सर्वपल्ली नामक ग्राम के रहने वाले थ्ो। इसीलिए उन्होने अपने ग्राम को सदैव याद रखने के लिए नाम के आगे सर्वपल्ली प्रयोग करना शुरू किया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विवाह अति सुंदर व सुशील ब्राहम्ण कन्या शिवकामु के साथ संपन्न हुआ था। राधाकृष्णन के परिवार में पांच पुत्र व एक पुत्री थी। 

प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा

डॉ. राधाकृष्णन की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा वेल्लूर के एक क्रिश्चियन स्कूल में हुई थी। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. की डिग्री प्रा’ की। सन् 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हो गए। इसके बाद वे प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। 12 वर्ष की छोटी उम्र में ही राधाकृष्णन ने बाईबिल के कई अध्यायों को याद कर लिया था। इसके लिए उन्हें उनका पहला 'विश्ोष योग्यता सम्मान’ प्रदान किया गया था। उन्होनें मैट्रिक की प्ररीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी। राधाकृष्णन की प्रतिभा के कारण उन्हें मद्रास स्कू ल द्बारा छात्रवृत्ति भी प्रदान की गई थी। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अनोखी प्रतिभा के धनी व उच्च कोटि के छात्र थ्ो। 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का व्यक्तित्व

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बचपन की पढ़ाई-लिखाई एक क्रिश्चियन स्कूल में हुई थी, और उस समय पश्चिमी जीवन मूल्यों को विद्यार्थियों में गहरे तक स्थापित किया जाता था। यही कारण है कि क्रिश्चियन संस्थाओं में अध्ययन करते हुए राधाकृष्णन के जीवन में उच्च गुण समाहित हो गए। और वह परंपरागत तौर पर ना सोच कर व्यहारिकता की ओर उन्मुख हो गए थे। शिक्षा के प्रति रुझान ने उन्हें एक मजबूत व्यक्तित्व प्रदान किया था। डॉ.राधाकृष्णन बहुआयामी प्रतिभा के धनी होने के साथ ही देश की संस्कृति को प्यार करने वाले व्यक्ति भी थे।

सीधा-सरल चरित्र

डॉ. राधाकृष्णन अपने राष्ट्रप्रेम के लिए प्रसिद्ध थे। वे छल कपट से कोसों दूर थे। अहंकार तो उनमें नाम मात्र भी न था। उनका व्यक्तित्व व चरित्र बेहद सीधा और सरल था। वो जमीनी बातों पर ज्यादा गौर करते थ्ो। उनका कहना था कि ''चिड़िया की तरह हवा में उड़ना और मछली की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें मनुष्य की तरह जमीन पर चलना सीखना है। 'मानवता की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने यह भी कहा, 'मानव का दानव बन जाना, उसकी पराजय है, मानव का महामानव होना उसका एक चमत्कार है और मानव का मानव होना उसकी विजय है’। वह अपनी संस्कृति और कला से लगाव रखने वाले ऐसे महान आध्यात्मिक राजनेता थे जो सभी धर्मावलम्बियों के प्रति गहरा आदर भाव रखते थे। 

जिम्मदारियां व पद्भार

सन् 1949 से सन 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। भारत रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका भारी योगदान माना जाता है। सन् 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया। 13 मई, 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के द्बितीय राष्ट्रपति बने। सन् 1967 तक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने देश की अमूल्य सेवा की। डॉ. राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे। वे जीवनभर अपने आप को शिक्षक मानते रहे। उन्होंने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया। 

डॉ. राधाकृष्णन को दिए गए सम्मान

शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक डॉ. राधाकृष्णन को देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। कई भारतीय विश्वविद्यालयों की तरह कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी अपनी अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया। विभिन्न महत्वपूर्ण उपाधियों पर रहते हुए भी उनका सदैव अपने विद्यार्थियों और संपर्क में आए लोगों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाने की ओर रहता था। राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्बारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई संप्रदाय के व्यक्ति थे। उन्हें आज भी शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता है।

डॉ. राधाकृष्णन का निधन

शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने वाले इस महापुरूष को वृद्धावस्था के दौरान बीमारी ने अपने चंगुल में जकड़ लिया। 17 अप्रैल, 1975 को 88 वर्ष की उम्र में इस महान दार्शनिक,लेखक , शिक्षाविद ने इस नश्वर संसार को अलविदा कह दिया।





 

Tuesday 24 September 2013

वो कॉलेज के दिन



वो कॉलेज के दिन और एप्रिशिऐशन का चस्का



आजकल मेरे कॉलेज का माहौल बड़ा ही खुशनुमा है। यूं भी मौसम केंचुली छोड़ रहा है। मतलब मौसम न गर्मी का है और न ही सर्दी का। कैंपस में गार्डनर ने तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूलों के गमले लाइन से सजा रखे हैं। यहां मौजूद वॉटरफॉल के आसपास लाइन से खड़े पेड़ों की पत्तियां रोज ओस की बूंदो से नहाई मिलती हैं और मुस्काते हुए अपनी ओर रिझाने का पूरा प्रयास करती हुई जान पड़ती हैं। यहां सबकुछ बड़ा ही प्लीजेंट है। और हो भी क्यूं न? हमारे ग्रुप ने एक खूबसूरत एक्टीविटी जो चला रखी है। हार्ट-टू-हार्ट एप्रिशिएशन की।
इस एक्टीविटी के तहत फ्रेसर्स यानी जूनियर्स से फेंडली बिहैव करना, उन्हें एप्रिशिएट करना और उन्हें उनके अपने स्कूल ज्ौसा एटमॉफियर अवेलेबल करवाना है। ताकि उनके अंदर भरे गए सीनियर्स की कठोरता व रैगिंग के भूत को ईजली भगाया जा सके। जिससे हम एक डरविहीन और संकोचरहित और जिंदादिल पढ़ाई के माहौल को जिंदा कर सकें। वहीं कुछ सीनियर्स यानी मेरे बैचमेट्स को डर है कि कहीं जूनियर हमारी उदारता का फायदा न उठाएं और सीनियस- जूनियर के बीच के दायरे को भूलकर इनडिसिप्लिंड या बेलगाम न हो जाएं। खैर इन सब कांफ्लिक्ट और शंषय के बीच हार्ट-टू-हार्ट एप्रिशिएशन एक्टिविटी पुरजोर तरीके से लागू हो चुकी है। हमसभी अपने सीनियर होने का फर्ज बखूबी अदा करने की हर पल कोशिश कर रहे हैं।
बहरहाल मॉर्निंग विश्ोज की म्यूजिकल ध्वनि के साथ जब जोरदार मगर पूरी तरह से इनडिसिप्लिंड आवाज सुनाई देती है तो पता चल जाता है कि अंडरग्रेजुएट के फ्रेश बैच ने कॉलेज कॉरीडोर में इंट्री ले ली है। इनकी कैजुअल-फार्मल एक्टीविटीज से कैंपस गुलजार हो चुका है। हमें पता है स्कू ली जीवन से नए-नए आजाद हुए परिंदे रोके न रुकेंगे, पूरे कैंपस में फुदकेंगे, उछलेंगे और हर कोना छान मारेंगे, नए अड्डे ढूूढेंगे, बैचमेट व टीर्चस के उल्टे-पुल्टे नामकरण करेंगे। और हां सीनियर्स से बचने-कन्नी काटने की व्यर्थ कोशिश्ों भी करेंगे। इसके इतर इनके दिमाग में अपनी बॉडी इमेज के प्रति कई निगेटिविटीज भी होंगी, जैसे मेरी हाइट कुछ ज्यादा ही कम है, नाक कुछ लंबी ज्यादा है और वेट तो बहुत ही ज्यादा है। साथ ही कुछ उलझनें भी होंगी मसलन सब्जेक्ट इतने टफ क्यूं हैं, टीचर्स सिर्फ होशियार बच्चों पर ही ज्यादा ध्यान क्यूं देते हैं? पहले-पहले टेस्ट में मार्क्स कैस्ो आएंगे और हमारा करिअर कैसा होगा।
इन सबसे अलग बर्निंग इश्यू होगा 'ओह माई गॉड’ मेरे पास कुछ अच्छा पहनने के लिए नहीं है, या फिर मेरी पसंद आजकल किसी और को भी पसंद आने लगी है। कुछ भी हो इन सब के बीच मस्ती तो फुलऑन रहेगी।
मुझे खूब अच्छे से याद है। जब नए-नए हम कॉलेज में दाखिल हुए थ्ो। हमें हुक्म मिला था कि 'तेरे नाम’ वाली जुल्फों को कटाकर 'आनंद’ वाले राजेश खन्ना की हेयर स्टाइल एडॉप्ट कर लें उसके साथ ही शरीर पर डेली प्रेश की हुई सफेद शर्ट व काली पैंट पहनी जाए, पैरों में लेदर के ब्लैक पॉलिश किए हुए शूज हों। कुलमिलाकर मजमून यह था कि शटरडे को भी फुल्ली मेंटेन व ड्रेस्डअप होकर रेगुलर क्लासेस अटेंड करने आना था। कितना बोरिंग व तुगलकी फरमान लगा था उस समय हम सबको। लेकिन आज मालूम पड़ता है कि वह कोई तुगलकी फरमान नहीं बल्कि हमें नेक व जेंटलमैन बनाने की इक हसीन कोशिश थी। और भी कई हुक्म थ्ो जिन्हें यहां श्ोयर करना मुनासिब नहीं समझता।
छात्र जीवन की बात हो रही हो और हमें गुरुजनों की याद न आए तो लानत है हम पर। तो यह लानत न लेत्ो हुए हम अपने गुरुजनों को लपेटे में ले ही लेते हैं। यार एक बात समझ नहीं आती टीचर्स प्रजाति पता नहीं छात्रों से चाहती क्या है? आखिर इन टीचर्स को डील कैसे किया जाए? एक असाइनमेंट खत्म नहीं होता कि दूसरा थमा देते हैं। अभी दूसरा अधूरा ही होता कि तीसरा दे देते और वह अभी शुरू भी न हो पाता कि तभी टेस्ट लेने का बिगुल बजा देते और हद तो तब हो जाती जब प्रैक्टिकल व प्रजेंटेशन का बोझ भी थोप देते। पता नहीं कौन सी खुन्नस रखते हैं?
स्टूडेंट्स के मन में टीचर्स के लिए अक्सर ही उपरोक्त बातें बार-बार कुलांचें मारती रहती हैं। वहीं टीचर्स इन सबसे बेफिक्र। कभी- कभी उन्हें एप्रिशिएट करने के बजाए डीमोरालाइज कर देते हैं। जो कि निसंदेह बर्बर है। अगर टीचर्स युवा अंतर्मन में झाँक कर उनका स्ट्रेस समझकर, अपने मन की गांठे खोल कर सब्जेक्ट के माध्यम से बांडिंग करें तो जरूर आईडियल स्टूडेंट्स ही पाएंगे। साथ ही उनके अच्छे काम के लिए उन्हें एप्रिशिएट करने की भी जरूरत होती है।
अकसर देखा गया है कि हम तारीफ करने के मामले में बड़े ही कंजूस होते हैं और किसी की तारीफ करने से भी बचते हैं। इससे भी मजेदार बात ये है कि हम अपनी तारीफ,बड़ाई अच्छाई सुनना तो चाहते हैं पर दूसरों की करने से कतराते हैं। हम भूल जाते हैं कि तारीफ दूर पहाड़ से पुकारे गए 'आई लव यू’ की तरह है, जो हमारे पास ईको होकर और भी जोर से लौट आती है। ऐसा माना जाता है कि एप्रिशिएशन से लोग बेहतर फील करते हैं। एप्रिशिएशन में इतनी ताकत होती है कि निगेटिव चींजे भी पॉजिटिव हो जाती है।
तो क्या सोच रहे हैं? आप भी तय कीजिए कि आप हर रोज किसी न किसी को एप्रिशिएट जरूर करेंगे और कोई न हो तो आप खुद को ही एप्रिशिएट कर लेंगे। जिस तरह औरों की तारीफ उनको मोटीवेट करती है उसी तरह खुद की तारीफ भी हमारा मोरल बूस्ट करती है। और हां किसी को एप्रिशिएट करने के लिए किसी भारी-भरकम रिसोर्सेज जुटाने की जरूरत नहीं होती है सिर्फ छोटे- छोटे शब्द या फिर आपकी मुस्कान भी आपके इमोशंस को कन्वे करने के लिए काफी है।
बस अपना दिल खोलिए और देखिए सामने वाला कैस्ो फूला नहीं समाता। कहा तो ये भी जाता है कि लोगों में तारीफ की भूख खाने से भी ज्यादा होती है। ये एक ऐसी कला है जो आपके लिए फ्रें ड्स और फॉलोवर्स बनाती है और लाईफ को बनाती है जस्नेबहार।।

 

 

 

कॉलेज की मखमली यादों की इन लाइनों को मैने साल 2०12 के नवंबर महीने की सरमायी सर्दी की एक सुबह कानपुर के महाराणा प्रताप कॉलेज की कैफेटेरिया के बगल में बने वॉटरफ ॉल के पुल पर ब्ौठकर पूरा किया था। और आज आप सभी से शेयर कर रहा हूं।

कॉलेज के वो दिन कितने हसीन और कौतूहल से लबालब भरे थ्ो। आज कॉलेज से निकलकर वो दिन, वो मस्ती-बेफिक्री और खूबसूरत पलों को बहुत मिस कर रहा हूं। लव यू एमपीएसवीएस।।

 


Saturday 21 September 2013

आओ तुम भी डिजिटल हो जाओ


डिजिटल हैबिट्स का दीवाना यंगिस्तान

आजकल युवाओं को गैजेट मनिया नाम का रोग लग चुका है। गैजेट मनिया मतलब नई टेक्नोलाजी के गैजेट्स के प्रयोग के प्रति हद से ज्यादा पागलपन। भावी युवा पीढ़ी रोज-रोज नई तकनीकी से रूबरू हो रही है। युवा आज पहले से ज्यादा टेक सेवी होता जा रहा है। इसका कारण सिर्फ कम समय में अपनी रोजाना बढ़ रही महत्वाकांछाओं को पूरा करने की मानसिकता भर है। टीसीएस सर्वे 2०12-13 के अनुसार भारत की माडर्न युवा पीढèी अपनी पहले की पीढèी को काफी पीछे छोड़ते हुये फेसबुक और ट्वीटर, याहू, जीमेल, गूगल प्लस जैसे सोशल नेटवर्क्स को संचार साधन के रूप में उपयोग कर रही है।

14 भारतीय शहरों के लगभग 17,5०० हाईस्कूल विद्यार्थियों पर किए गए टीसीएस सर्वे यह साफ करता है कि स्मार्ट डिवाइसेज एवं ऑनलाइन एक्सेस के अभूतपूर्व स्तर ने इस पीढèी को बहुत अधिक संपर्कशील बना दिया है। इससे इनके एक-दूसरे से किए जाने वाले संचार के तरीकों में बड़ा बदलाव हो रहा है, साथ ही साथ इससे इनके शैक्षणिक एवं सामाजिक जीवन दोनो में कायापलट होने लगा है।

स्कूल से सामाजिकता की ओर बढèते कदम
चार में से लगभग तीन विद्यार्थी इंटरनेट को एक्सेस करने का मुख्य कारण स्कूल से संबंधित कार्यों को बताते हैं। इसके बाद वे इसका उपयोग अपने मित्रों के साथ चैटिंग करने/संपर्क करने के लिये करते हैं। जबकि 62 प्रतिशत ईमेल को प्राथमिकता देते हैं।

नेट के प्रयोग में बढ़ोत्तरी
लगभग 84 प्रतिशत विद्यार्थी अब घर से इंटरनेट का प्रयोग करने लगे हैं। ऑनलाइन एक्सेस प्वाइंट के रूप में साइबर कैफे के इस्तेमाल में चौंकाने वाली गिरावट देखी गयी है। माडर्न होते यूथ के लिये अपने साथियों से संपर्क करने का पहला और पसंदीदा तरीका फेसबुक जैसा सामाजिक नेटवर्क है। 92 प्रतिशत युवा इस सामाजिक मंच को प्राथमिकता देते हैं।

स्पीड को इंपार्टेंस
हाइस्कूल स्तर के प्रत्येक 1० विद्यार्थियों में से लगभग 7 के पास मोबाइल फोन है, तथा लगभग 2० प्रतिशत विद्यार्थी मोबाइल फोंस का इस्तेमाल इंटरनेट को एक्सेस करने के लिये करते हैं।
लेकिन अब टैबलेट भी पीछे नहीं है इसका इस्तेमाल भी बढ़ा है। लगभग 19 प्रतिशत युवा इस नए डिवाइस का इस्तेमाल सिर्फ फास्ट स्पीड के कारण कर रहे हैं।

कालिग के बजाय चैटिंग
भारत की शहरी युवा पीढèी वायस काल के विकल्प के रूप में अब टेक्स्टिंग और चैटिंग को अपनाने लगी है। लगभग 74 प्रतिशत युवा अधिकांश संपकरें के लिये फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, जबकि 54 प्रतिशत इसके लिये एसएमएस का इस्तेमाल करते हैं। जबकि वायस काल्स के मामले में सिर्फ 44 प्रतिशत युवा ही इस्तेमाल करते हैं।

टैबलेट्स की दीवानगी
माडर्न युवा पीढèी टैबलेट्स का प्रयोग करने में आगे है। इस पीढèी में इस गैजट का इस्तेमाल तेजी से बढè रहा है। इस वर्ष देश में 38 प्रतिशत युवा इस डिवाइस के यूजर बने हैं।

ब्रांड की डिमांड
इस पीढèी में ब्रांड के प्रति आकर्षण पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ा है। शीर्ष मोबाइल/टैबलेट ब्रांड्स मेट्रो और मिनी मेट्रो दोनो शहरों के युवाओं की इच्छा के दायरे में आने लगे हैं। जहां सैमसंग (48.28 प्रतिशत), नोकिया (46.46 प्रतिशत), एप्पल (39.56 प्रतिशत) एवं एचटीसी (36.54 प्रतिशत) में प्रयोग किया जा रहा है।
आईटी में करिअर बनाने की होड़
यह पीढèी अब पहले से कहीं अधिक जागरूक है। वह अपने भविष्य की नौकरियों के प्रति बहुत स्पष्ट विचार रखती है। युवा पीढèी में आज भी आईटी एक पसंदीदा करिअर है। इसके बाद इंजीनियरिंग एवं मेडिकल का स्थान है। जबकि मीडिया/मनोरंजन शहरी युवाओं के पसंदीदा करिअर के रु प में उभरा है।

इंपार्टेंट फैक्ट्स
देश के 7० प्रतिशत विद्यार्थी स्मार्ट फोंस के मालिक
चार में से तीन छात्र इंटरनेट का उपयोग स्कूल से संबंधित कार्य के लिये करते हैं
84 प्रतिशत युवा घर से इंटरनेट को एक्सेस करते हैं
5० प्रतिशत से अधिक युवा एंड्राएड-पॅवर स्मार्ट डिवाइस का उपयोग करने लगे हैं

विश्ोषज्ञों की राय
टीसीएस के निदेशक श्री एन. चंद्रशेखरन के अनुसार 'वर्तमान समय में शहरी स्कूली विद्यार्थी स्मार्ट डिवाइसेज की उपलब्धता के साथ ऑनलाइन एक्सेस का लाभ उठाने लगे हैं। यह बहुत ही संपर्कशील पीढèी है, जो इंटरनेट की पावर का इस्तेमाल शिक्षा के साथ ही साथ सामाजिक नेटवर्क्स के साथ जुड़ने एवं सही ग्रुप्स को डेवलेप कर रही है। इससे इस पीढèी के लिये दिलचस्प कॅरियर निमार्ण के रास्ते खुल रहे हैं।




 

Tuesday 17 September 2013

डिजिटल हुआ यंगिस्तान


आजकल युवाओं को गैजेट मनिया नाम का रोग लग चुका है। गैजेट मनिया मतलब नई टेक्नोलाजी के गैजेट्स के प्रयोग के प्रति हद से ज्यादा पागलपन। भावी युवा पीढ़ी रोज-रोज नई तकनीकी से रूबरू हो रही है। युवा आज पहले से ज्यादा टेक सेवी होता जा रहा है। इसका कारण सिर्फ कम समय में अपनी रोजाना बढ़ रही महत्वाकांछाओं को पूरा करने की मानसिकता भर है। टीसीएस सर्वे 2०12-13 के अनुसार भारत की माडर्न युवा पीढèी अपनी पहले की पीढèी को काफी पीछे छोड़ते हुये फेसबुक और ट्वीटर, याहू, जीमेल, गूगल प्लस जैसे सोशल नेटवर्क्स को संचार साधन के रूप में उपयोग कर रही है।
14 भारतीय शहरों के लगभग 17,5०० हाईस्कूल विद्यार्थियों पर किए गए टीसीएस सर्वे यह साफ करता है कि स्मार्ट डिवाइसेज एवं ऑनलाइन एक्सेस के अभूतपूर्व स्तर ने इस पीढèी को बहुत अधिक संपर्कशील बना दिया है। इससे इनके एक-दूसरे से किए जाने वाले संचार के तरीकों में बड़ा बदलाव हो रहा है, साथ ही साथ इससे इनके शैक्षणिक एवं सामाजिक जीवन दोनो में कायापलट होने लगा है।

 

Friday 13 September 2013

दैत्याकार शिकारी डायनासोर






डायनासोर हमेशा से ही मानव जाति के लिए जिज्ञासा और कौतूहल का विषय रहे हैं। इनके अस्तित्व को जीव विज्ञानियों ने कभी नकारा नहीं है। समय-समय पर वैज्ञानिकों को मिले इनके जीवाश्म धरती पर इनके अस्तित्व को पुख्ता करते हंै। डायनासोर देखने में बेहद खूंखार, बड़े से बड़े जीव को भी अपने पंजों में दबाकर उड़ने की ताकत रखने वाले दैत्याकार डायनासोर की कल्पना आज भी हमारे शरीर में सिहरन पैदा कर देती है।
डायनासोर का मतलब होता है दैत्याकार छिपकली। ये छिपकली और मगरमच्छ कुल के जीव थे। करीब 25 करोड़ वर्ष पूर्व जिसे जुरासिक काल कहा जाता है। 6 करोड़ वर्ष पूर्व क्रेटेशियस काल के बीच पृथ्वी पर इनका ही साम्राज्य माना जाता था। उस काल में इनकी कई प्रजातियां पृथ्वी पर पाई जाती थीं। इनकी कुछ ऐसी प्रजातियां भी थीं, जो पक्षियों के समान उड़ती थीं। ये सभी डायनासोर सरिसृप समूह के जीव थे। इनमें कुछ छोटे डायनासोर थ्ो जिनकी लंबाई 4 से 5 फीट थी। तो कुछ विशालकाय 5० से 6० फीट लंबे थे।


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