Monday 18 December 2017

महान क्रांतिकारी चे ग्वेरा का अंतिम पत्र



9 अक्टुबर,1967 को बोलिविया में अर्नेस्टो चे ग्वेरा की हत्या कर दी गई। इस काम को अमेरिकी ग्रीन बेरेट से प्रशिक्षण हासिल करने वाले बोलिविया के सैनिक और सीआईए एजेंटों ने अंजाम दिया। चे के सम्मान में हम चे की ओर से फिदेल कास्त्रो को लिखे मशहूर फेयरवेल लेटर को पब्लिश कर रहे हैं। इस पत्र को 3 अक्टुबर, 1965 को फिदेल कास्त्रो ने चे की पत्नी और बच्चों की उपस्थिति में टेलीविजन पर पढ़ा था।


फिदेल,
इस वक्त मुझे कई लम्हे याद आ रहे हैं। मारिया एंटोनिया के घर पर आपसे मिलना और फिर मुझे क्यूबा आने का आपका निमंत्रण.. उसके बाद तैयारियों से जुड़े तनाव के क्षण, आज वो सब मेरे स्मृति पटल पर नांच रहे हैं।

एक दिन पूछा गया था कि हमें मृत्यु के लिए किसे जिम्मेदार मानना चाहिए। इस सवाल के जवाब में जब हम तथ्यों के तह में गए तो वास्तविकता ने हम सबको प्रभावित किया। हमने अच्छी तरह समझा कि सच्चा क्रांतिकारी वही है जो मृत्यु को गले लगाता है, और क्रान्ति में वही जीतता है या मृत्यु को प्राप्त होता है, यदि वह वास्तविक है। कई साथी विजय-मार्ग पर वीर-गति को प्राप्त हुए।

आज प्रत्येक वस्तु कम नाटकीय लगती है क्योंकि अब हम पहले से ज्यादा परिपक्व हैं। लेकिन तथ्य दोहराए जा रहे हैं। मैं अनुभव करता हूं कि मैं अपने कर्तव्य के उस हिस्से को पूरा कर चुका हूं, जिसने मुझे क्यूबाई क्रांति से उसी के क्षेत्र में बांध रखा था और अब मैं आपसे, अपने साथियों से, अपने लोगों से जो कि मेरे भी अपने सगे हैं, सभी से विदा लेता हूं।

मैं पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व में अपनी स्थिति, मंत्री और मेजर का पद और अपनी क्यूबाई नागरिकता को त्यागने की घोषणा करता हूं। अब कोई विधि नियम मुझे क्यूबा से नहीं बांधता। अब केवल वे ही बंधन हैं जो दूसरी प्रकृति के हैं और जो तोड़े नहीं जा सकते है बाकी पदों को तो तोड़ा और छोडा जा सकता है।

अपने अतीत को याद करते हुए मेरा विश्वास है कि मैने जहां तक संभव हुआ गौरव और निष्ठा के साथ क्रांतिकारी विजयों को संगठति करने में भरपूर योगदान किया है। मेरी गंभीर असफलता यही थी कि सारी माइस्त्रा की शुरुआती मुलाकात में मैने आप पर विश्वास नहीं किया था। मै नेता तथा क्रांतिकारी के रुप में आपके गुणों को तत्काल नहीं समझ पाया।

मैंने एक शानदार जीवन बिताया है । आपके साथ उस गौरव का अनुभव किया है जो कैरीबियन संकट के समय हमारी जनता के उन शानदार लेकिन तनावपूर्ण दिनों से जुड़ी है। आप जैसे तेज बुद्धि वाले राजनीतिज्ञ बहुत कम हैं। मुझे इस बात पर नाज है कि मैं बेहिचक आपके पदचिन्हों पर चला। आपकी चिंतनपद्धति को अपनाया और खतरों तथा सिद्धान्तों के विषय में आपके दृष्टिकोण को वास्तविक रुप में समझा।

संसार के अन्य राष्ट्र भी मुझसे ऐसे ही नम्र प्रयत्नों की मांग कर रहे हैं । मैं उस कार्य को करना चाहता हुं,जो क्यूबा के प्रधान होने के उत्तरदायित्व के कारण आपके लिए निषिद्ध हैं। और अब समय आ गया है जब हमें एक दूसरे से विदा ले लेनी चाहिए।

मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं यह सब प्रसन्नता और दुख के मिलेजुले भावों के साथ कर रहा हूं। मैं यहां अपने सृजक की पवित्रतम आशाओं और प्रियजनों को छोड़ रहा हूं। मैं उस जनता को छोड़ रहा हूं,जिसने अपने पुत्र की तरह मेरा स्वागत किया । इस बात से मुझे गहरी पीडा हो रही है। मैं संघर्ष के अग्रिम स्थलों में उस विश्वास को ले जा रहा हूं,जो मैनें आपसे सीखा। जहां कहीं भी हो—मैं साम्राज्यवाद के विरुद्ध लडने के लिए अपनी जनता के अदम्य क्रांतिकारी उत्साह और पवित्र कर्तव्य भावना को अपने साथ ले जा रहा हूं। यह सोचकर मुझे प्रसन्न्ता होती है और विछोह की गहरी पीडा को झेलने का साहस भी मिलता है।

मैं एक बार फिर से घोषित करता हूं कि मैने क्यूबा को अपने उत्तरदायित्व से मुक्त कर दिया है। केवल एक बात को छोडकर जो उसके उदाहरण से ही पैदा होती है। यदि मेरा अंतिम क्षण मुझे किसी और आकाश के नीचे पाता है तो अंतिम विचार इस जनता और खास तौर पर आपके संबंध में होगा। मैं आपकी शिक्षा और आपके उदाहरण के लिए कृतज्ञ हूं और अपने कार्यों के अंतिम परिणामों को लेकर विश्वासपात्र बनने का प्रयास करता रहूंगा।

मैं क्रातिं के लिए विदेशी नीति से जुड़ा माना जाता हूं। और मैं उसे जारी रखूंगा। मैं जहां भी रहूंगा एक क्यूबाई क्रांतिकारी के उत्तरदायित्व को अनुभव करता रहूंगा और उसी के मुताबिक व्यवहार करुंगा। मुझे इस बात का कोई मलाल नहीं है कि मैं अपने बच्चों और पत्नी के लिए कोई संपति नहीं छोड रहा हूं। मुझे खुशी है कि ऐसा हुआ। मैं उनके लिए कोई मांग नहीं करता,क्योंकि मैं जानता हूं कि उनके जरूरी खर्च और शिक्षा की व्यवस्था राज्य करेगा।

मैं आपसे और अपनी जनता से बहुत कुछ कहना चाहूंगा। लेकिन मुझे लगता है कि यह सब अनावश्यक है। मैं जो कुछ कहना चाहता हूं,शब्द उसे अभिव्यक्त करने में असमर्थ हैं और मैं नहीं सोचता कि बेकार की मुहावरेबाजी का कोई मूल्य है।

सदा विजय के मार्ग पर ! या तो देश या मौत!

पूरे क्रांतिकारी भावना के साथ मैं आपको गले लगाता हूं

-चे
अप्रैल,1965

Sunday 24 September 2017

तस्वीर के बहाने बाघुपर का दशहरा मेला

बाघपुर चौराहे पर बाबा खाद भंडार के सामने दुकान में पंचर बनाता मिस्त्री

मित्रों, चार साल पहले एक तस्वीर गूगल पर मिली थी। ये बाघुपर चौराहे की तस्वीर थी। स्कूल से छूटने के बाद कुछ छात्र बस/टेंपो के इंतजार में साइकिल पंचर वाले की दुकान पर खड़े हैं। ये दुकान बाबा खाद भंडार के ठीक सामने सड़क के उस पार है। 

खालीपन में छात्र यहां साइकिल की मरम्मत कर रहे मिस्त्री को गौर से देख रहे हैं। उसके काम को समझने का प्रयास कर रहे हैं, और मिस्त्री अपने काम की तल्लीनता में व्यस्त है। उसे फिक्र नहीं कौन उसके पास है। कितनी निगाहें  उसकी कारीगरी का नमूना देख रही हैं। काम कोई भी हो कलात्मकता और मेहनत का मेल उसे प्रचलित और लुभावना बना देता है।

दरअसल, हमारे यहां का ये अतिव्यस्त माना जाने वाला चौराहा है। कानपुर से 13 किलोमीटर पश्चिम की ओर शिवली रोड पर मिश्रित आबादी वाला बाघुपर कस्बा बसा हुआ है। जब मैं बाघपुर इंटर कॉलेज का छात्र था तब चौराहा बहुत विकसित नहीं था। गिनती की दुकानें थीं। अब काफी कुछ बदल गया है। चौराहे पर कई मार्केट बना दी गई हैं। छोटा और संकरा चौराहा काफी बड़ा हो गया है। यहां एक एटीएम भी है। लेकिन, एक-आध बार छोड़ दूं तो मुझे यहां से करेंसी नहीं मिली।

शायद बैँको को लगता होगा कि देहात क्षेत्र की वजह से यहां एटीएम का इस्तेमाल ज्यादा नहीं होता है। उनका सोचना कहीं तक सही है। लेकिन मेरे जैसे कई युवा जब भी अपने काम से छुट्टी लेकर गांव पहुंचते हैं तो उन्हें इस एटीएम पर बड़ा नाज होता है, और बाघपुर के विकसित होने का प्रमाण दिखाई देता है, लेकिन यह प्रमाण बहुत देर तक नहीं ठहरता। जैसे ही एटीम में प्रवेश किया और खाली हाथ लौटे तो कस्बे के अधूरे विकास की कहानी दिमाग में दौड़ जाती है।

कस्बे का एकमात्र बैंक ऑफ बड़ौदा ग्राहकों से भरा रहता है। मैं समझता हूं इस बैंक पर तकरीबन तीन दर्जन से अधिक गांवों की एक लाख से ज्यादा आबादी निर्भर है। यहां का ये इकलौता बैंक है। बैंक में ज्यादातर ग्रामीणों के खाते हैं। भीड़ और अव्यवस्था के चलते मैं यहां अपना खाता खुलवाने की हिम्मत नहीं जुटा सका। हालांकि, मेरे परिवार के अधकांश खाते इसी बैंक में हैं। इस के चलते कभी-कभार यहां जाना पड़ जाता है तो लंबी लाइन और समय अधिक लगने पर एक और बैंक की जरूरत महसूस होने लगती है।

दर्जनों गांवों से जुड़ा यह छोटा कस्बा कई बड़े जिलों, शहरों के लिए रास्ता देता है। यहां से आप पश्चिम की ओर चलेंगे तो औरैया, इटावा, कन्नौज होते हुए राजधानी दिल्ली तक पहुंच जाएंगे। यदि आप पूर्व की ओर चलते हैं  तो कानपुर शहर, फतेहपुर, बांदा, इलाहाबाद, पटना तक पहुंच जाएंगे। यहां से प्रदेश की राजधानी लखनऊ तकरीबन सौ किलोमीटर दूर है।

यहां का सबसे बड़ा पर्व विजयदशमी है। इस दौरान यहां 15 दिनों का लोकप्रिय मेला लगता है। इस दौरान भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़े विभिन्न पड़ावों को बड़ी खूबसूरती से दिखाया जाता है। रामलीला कमेटी बाघुपर की ओर आयोजित इस समारोह में बड़ी संख्या में युवा, बुजुर्ग, महिलाएं विभिन्न तरीके से योगदान देते हैं।

मेला देखने के लिए सैकड़ों गांवों के लोग रोजाना यहां आते हैं। दोपहर बाद रात करीब दस बजे तक रामलीला का मंचन किया जाता है। इसके बाद रात में कृष्ण लीला का आयोजन चलता है। बाद के दिनों में नाटक और नृत्य से जुड़े कार्यक्रम भी चलते हैं। रावण वध से तीसरे दिन राज्य स्तरीय इनामी दंगल का आयोजन होता है। इसमें प्रदेश समेत पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, दिल्ली समेत कई राज्यों के पहलवान अपनी ताकत और दांवपेच का प्रदर्शन करते हैं।

विजेता और उपविजेता पहलवान को नकद राशि देकर सम्मानित किया जाता है। मेले के अंतिम दिनों का यह सबसे लोकप्रिय आयोजन माना जाता है। रावण वध वाले दिन के बाद सबसे ज्यादा भीड़ दंगल के दिन ही होती है। इस दिन से महिलाओं की असल खरीदारी भी शुरू होती है। अगले तीन-चार दिनों तक दुकानकारों की बंपरी बिक्री होती है।

मेले की खास बात है कि यहां आने वाले दुकानदारों से किसी तरह का किराया आदि नहीं वसूला जाता है। यही वजह है कि हर साल यहां बड़ी संख्या में दुकानदार आते हैं। महिलाओं से जुड़ी वस्तुएं बेचने और खरीदने के लिए अलग गैलरी बनाई जाती है। ऐसा महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से किया जाता है। आपसी मेलजोल-भाईचारे की वजह से सभी जाति-धर्मों के लोग दिल खोलकर मेले में हिस्सा लेते हैं।

अगर आप कानपुर या इसके आसपास के जिलों के रहने वाले हैं तो मेला देखने अवश्य जाएं। यहां आपको अलग ही अनुभूति होगी। सांस्कृतिक और पारंपरिक लोक कलाएं देखने को मिलेंगी। ग्रामीण परिवेश निश्चित ही आपको आकर्षित करेगा। 

Monday 18 September 2017

तुम्हारे लिए



तुम्हें तो पंख मिले हैं फितरतन
जाओ न उड़ो तुम भी
कहो कि मेरा है आकाश

क्यों
आखिर क्यों चाहिए तुम्हें
उतनी ही हवा
जितनी उसकी बांहों के घेरे में है

क्यों है जमीन उतनी ही तुम्हारी
जहां तक वह पीपल घनेरा है
सुनी नहीं बहस तुमने टीवी पर
बिन ब्याही भी पूरी है औरत

क्या बैर है तुम्हारा उन सहेलियों से
जिनके पर्स में रखी माचिस
कहीं भी और कभी भी
चिंगारी फेंकने के लिए रहती है तैयार

बताओ आखिर
क्या मतलब है इसका
कि एक आईना भी नहीं है तुम्हारे पास
सिर्फ उसका अक्श छोड़कर

उसी में देखती हो संवरती हो
और कुछ वक्त बाद टूटकर बिखरती हो
अब संभल जाओ, खड़ी हो जाओ
क्योंकि नोच रहे हैं तुम्हें

तुम्हारा ये भोलापन ये सोखी अदा
डुबा देगी संसार
नतीजतन
भटक जाएंगे कई गूढ़ विचार

सुर्ख कपोल बिखेर रहे लालिमा
उफ ये जिंदादिल रुखसार
तुम्हारी जान नहीं लेगा, मरूंगा मैं
तलबगारी है तुमसे, भुगतना तो होगा

कब तक झुठलाओगी खुद को
हक जानकर भी अनजान हो
अभी नहीं तो कभी नहीं
पहचान लो खुद को, जाओ, दौड़ो
मलिका बनो दुनिया जहान की।

Saturday 16 September 2017

जब आपका हक छीना जाएगा, आप भी रोहिंग्या बन जाएंगे

दर्द: हिंसा के बाद अपने बच्चों और परिवार के साथ पलायन करता रोहिंग्या।

रोहिंग्या के जरिए लोग अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। ज्यादातर इस मुद्दे को हिंदू-मुस्लिम से जोड़कर देख रहे हैं। यही वजह है कि लोग बिना तह तक जाए, रोहिंग्या को आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा और आतंकवादी बताने से भी नहीं चूक रहे हैं। कई लोगों को मालूम तक नहीं है कि मसला क्या है, बस वे अपनी प्रतिक्रिया दिया जा रहे हैं। सोशल साइट्स पर रोहिंग्या मुसलमान ट्रोल हो रहा है। 

मेरे एक फेसबुक दोस्त हैं, वो तो रोहिंग्या पर इतने हमलावर हैं कि उन्हें अपशब्द कहने तक से पीछे नहीं हटते हैं। ऐसे में मैनें उनसे पूछ लिया कि बताइए रोहिंग्या कब से म्यांमार में रह रहे हैं और उन्हें किसने बसाया था। आप उन्हें किस आधार पर गलत मान रहे हैं तो वे जवाब न दे सके। बस इससे कश्मीर मुद्दा जोड़ते हुए हिंदू बनाम मुसलमान तक सीमित रह गए।

इसलिए यहां बताना चाहता हूं कि म्यांमार के रखाइन प्रांत में हिंसा के हालात क्यों हैं। क्या वजह है कि खून-खराबा हो रहा है। अगर, इंसानियत और मानवता को केंद्र में रखा जाए तो मुझे लगता है आप रोहिंग्या के आतंकवाद से जुड़े होने के आरोपों को सही नहीं मानेंगे। रोहिंग्या को बांग्लादेश से म्यांमार आया बताया जा रहा है। लेकिन ये सच नहीं है।

रोहिंग्या 1400 ईं से म्यांमार तबके बर्मा में रहते आ रहे हैं। उस वक्त राजा नारामीखला ने रोहिंग्या मुसलमानों को बसाया और अपने दरबार में सलाहकार समेत महत्वपूर्ण पदों पर आसीन किया। नागरिकता दी। समय बदला, राजे-रजवाड़े खत्म होने लगे, राजवंश समाप्त हुआ और अंग्रेजों ने बर्मा पर अधिकार कर लिया। तबसे बर्मा को आजाद करने के लिए आंदोलन और लड़ाइयां लड़ी जा रही हैं। 1948 में बर्मा को आजाद कराने में इन रोहिंग्या ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आजादी के बाद म्यांमार पर सैन्य शासन हावी रहा और 1982 में म्यांमार सरकार ने कानून में संशोधन करते हुए इनकी नागरिकता छीन ली। तब से आज तक रोहिंग्या अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। बौद्धों ने इन्हें कभी नहीं अपनाया। बहुतायत में होने के कारण बौद्ध रोहिंग्या पर हमलावर बने रहे। संयुक्त राष्ट्र में लंबे समय से इनकी नागरिकता को लेकर म्यांमार पर दबाव बनाया जाता रहा है। चुनाव जीतने की लालसा ने सरकार को बहुसंख्यक बौद्धों की ओर झुकाए रखा।

नतीजतन, रोहिंग्या के कुछ नौजवान अपनी नागरिकता, हक और सुविधाएं पाने के लिए मैदान में कूद पड़े। क्रांतिकारी रूप अपना लिया। संगठन बना लिया। तो सेना हमलावर हो गई। मासूमों की जान ली गई, युवतियों-महिलाओं की आबरू लूट ली गई। सेना का विरोध किया तो इन्हें आतंकवाद से जोड़ दिया गया।

बहरहाल, आंकड़े बताते हैं कि 700 ईं. से म्यांमार में रह रहे रोहिंग्या को चरमपंथियों ने बांग्लादेशी बता दिया। जबकि बांग्लादेश का उदय कब हुआ ये तो हर जानकार हिंदुस्तानी जानता होगा। संयुक्त राष्ट के कई विद्धानों का मानना है कि रोहिंग्या पर लगातार हुए अत्याचारों के चलते वे बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान में शरण लेने को मजबूर हुए।

यहां मामला हिंदू बनाम मुसलमान का नहीं होना चाहिए। बल्कि मानवता पर केंद्रित हो तो लोग मामले को ज्यादा सटीक समझ सकेंगे। संयुक्त राष्ट्र समेत तमाम देश मानते हैं कि म्यांमार सरकार को रोहिंग्या को नागरिकता देनी चाहिए। इसके लिए भारत का दबाव बनाना आवश्यक है। मेरा मानना भी यही है कि वे म्यांमार में दशकों, पीढि़यों से रहते आ रहे हैं, उन्हें जाति विशेष से न जोड़कर नागरिकता समेत सभी मूल अधिकारी दिए जाएं। म्यांमार सरकार कुछ भी कहे, रोहिंग्या को नागरिकता देनी ही होगी।

एक बड़े अर्थशास्त्री हैं, वे बताते हैं कि जब भी आपकी स्वतंत्रता और अधिकार छीने जाएंगे आप मुखर होंगे, विरोध करेंगे। अपने स्तर से उसे पाने का प्रयत्न करेंगे। उदाहरण देखिए, पीढ़ियों से एक मकान आपका है। आपके बाबा, पिता के बाद अब आप भी उसमें रहते हैं। लेकिन एकाएक सरकार या कुछ लोग इसे अपना बताकर आपको बेदखल करने लगते हैं तो आपपे क्या गुजरती है। इसे वो भुक्तभोगी ही समझ सकता है। ऐसे में यदि आपके परिवार को नुकसाना पहुंचाया जाए तो आप हमलावर होंगे। अपनी संपत्ति और हक पाने के लिए लड़ेंगे, कुछ ताकतवर लोगों का साथ लेंगे। बस यहीं आप सरकार और उन लोगों के लिए महाविरोधी साबित हो जाएंगे। नतीजा ये होगा कि आप अलग-अलग संबोधनों से जाने जाएंगे।

Friday 15 September 2017

बकरीद की छुट्टी

बकरीद की छुट्टी
---------------


तुम्हें उदास नहीं देखना चाहता
पर क्या करूं इत्तिला तो करनी ही है

मन में विचार कौंध रहे हैं
पर काबू नहीं कर पा रहा

अभी अभी मेल पर तार मिला है
पर लिखा पढ़कर भी सच नहीं मान पा रहा

दफ्तर की डेस्क पर हूं, मन उदास हो चूका है
पर संयम बनाये रखने की कवायद जारी है

कंप्यूटर के कीबोर्ड पर हाथ फर्राटा भरते हैं
पर मोबाइल पर आज उंगलियां जड़ हैं

जनता हूं जज़्बातों की जंग जीत नहीं पाउंगा
पर तुम्हें लिख रहा हूं ये खत, उदास मत होना

बकरीद की छुट्टी कैंसिल हो गई है
पर वादा रहा जल्दी आऊंगा।।

Sunday 10 September 2017

मलाला के अनुरोध पर रोहिंग्या संघर्ष पर विराम

नोबल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई 

म्यांमार सेना और अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) के बीच करीब 15 दिनों से चल रही जंग शनिवार को खत्म करने का ऐलान किया गया है। रोहिंग्या मुसलमानों के हक के लिए लड़ने वाली साल्वेशन आर्मी ने  एक महीने के लिए एकतरफा संघर्ष विराम की घोषणा की है। 

माना जा रहा है कि नोबल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई के निर्दोष लोगों की हत्याओं पर दुख जताने और हिंसा थमने के अनुरोध पर रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के प्रमुख अताउल्लाह अबू अम्मार जुनूनी ने ये कदम उठाया है। वहीं, कुछ जानकारों का मानना है कि आतंकी संगठन ने म्यांमार के हिंसाग्रस्त प्रांत रखाइन में सहायता समूहों द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों को मदद पहुंचाने के लिए यह कदम उठाया है। 

पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई ने म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ जारी हिंसा पर 4 सितंबर को बयान दिया था। इसमें मलाला ने कहा था कि जब भी वह म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की पीड़ा की खबरें देखती हैं तो वह अंदर से दुखी हो जाती हैं। मलाला ने अपने बयान में आगे लिखा, ‘हिंसा थमनी चाहिए। मैंने म्यांमार के सुरक्षाबलों द्वारा मारे गए छोटे बच्चे की एक तस्वीर देखी। इन बच्चों ने किसी पर हमला नहीं किया था लेकिन इन्हें बेघर कर दिया गया। अगर इनका घर म्यांमार नहीं है तो ये पीढ़ियों से कहां रह रहे थे?’


दुनिया में सबसे ज्यादा जुल्म रोहिंग्या पर
कहा जाता है कि दुनिया में रोहिंग्या मुसलमान ऐसा अल्पसंख्यक समुदाय है जिस पर सबसे ज़्यादा ज़ुल्म हो रहा है। इसका ताजा उदाहरण म्यांमार हिंसा है। म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है। म्यांमार में एक अनुमान के मुताबिक़ 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं। इन मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इनकार कर दिया है। हालांकि ये म्यामांर में पीढ़ियों से रह रहे हैं। 

बौद्ध और रोहिंग्या के बीच लंबे समय से हक और अधिकारों के लिए खूनी संघर्ष चल रहा है। रोहिंग्या मुसलमानों को व्यापक पैमाने पर भेदभाव और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है। यही वजह है कि रखाइन प्रांत में 2012 से सांप्रदायिक हिंसा जारी है। सयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक इस हिंसा में बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई हैं और एक लाख से ज्यादा लोग बेघर हो चुके हैं। बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान आज भी जर्जर कैंपो में रह रहे हैं। 
हिंसाग्रस्त रखाइन प्रांत से घर छोड़कर जाते रोहिंग्या मुसलमान

म्यांमार सरकार से हक मांगने पर मिली गोली 
म्यांमार सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। ऐसे प्रतिबंधों में आवागमन, मेडिकल सुविधा, शिक्षा और अन्य सुविधाएं शामिल हैं। रोहिंग्या मुसलमानों के अधिकारों के लिए लड़ रहे रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) संगठन को म्यांमार सरकार आतंकवादी मानती है। ऐसे में म्यांमार सेना और रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के बीच लड़ाई छिड़ी हुई है। 

25 अगस्त को रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी के सशस्त्र लड़ाकों ने तीस पुलिस चौकियों और एक सैन्य ठिकाने पर हमला कर दिया। इसके बाद म्यामांर की सेना ने रोहिंग्या आर्मी के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। इसका परिणाम ये हुआ कि रखाइन प्रांत में सेना ने मुसलमानों को बेघर करना शुरू कर दिया। महिलाओं और मासूमों के साथ ज्यादती की गई। इसका फायदा उठाकर बौद्ध रोहिंग्या के घरों में आग लगा रहे हैं। 

करीब तीन लाख रोहिंग्या मुसलमानों पर बर्बरता करने के आरोप म्यांमार सेना पर लगाए गए हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक हिंसाग्रस्त रखाइन प्रांत से किसी तरह बचकर रोहिंग्या मुसलमान भागकर पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण ले रहे हैं। रखाइन के विभिन्न हिस्सों में भी करीब तीस हजार रोहिंग्या बेघर हो गए हैं। 

रखाइन प्रांत में मार्च करते म्यांमार सेना के जवान

कौन है आराकान रोहिंग्या रक्षा सेना
आराकान रोहिंग्या रक्षा सेना म्यांमार के उत्तरी सूबे रख़ाइन में सक्रिय एक सशस्त्र संगठन है। ये संगठन रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय संकट समूह (आईसीजी) के मुताबिक इस संगठन की अगुवाई अताउल्लाह अबू अम्मार जुनूनी कर रहा है। अताउल्लाह वीडियो संदेशों के जरिए रखाइन में अपने संगठन की गतिविधियों के बारे में बताता रहता है। 

मार्च में अताउल्लाह ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि रोहिंग्या मुसलमानों के लिए उनकी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक म्यांमार की नेता आंग सान सू की उन्हें बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाती हैं। अताउल्लाह विदेशी इस्लामी आतंकियों से संबंध रखने के आरोपों से इनकार करते हैं। अताउल्लाह का कहना है कि उनकी लड़ाई देश के बौद्ध बहुमत के दमन के खिलाफ है।

उन्होंने कहा, अगर हमें हमारे हक नहीं मिलते और अगर इस लड़ाई में लाखों रोहिंग्या मुसलमानों की जान चली जाती है तो हम मरते दम तक तानाशाह सैनिक सरकार के खिलाफ लड़ते रहेंगे। हम रात के वक्त रोशनी नहीं जला सकते। हम दिन के वक्त एक जगह से दूसरे जगह नहीं जा सकते। हर जगह नाकाबंदी है। जिंदगी जीने का ये तो कोई तरीका नहीं है।"

स्रोत: डिफरेंट वेबसाइट्स

Saturday 9 September 2017

खूबसरती में भारत का नंबर कौन सा यहां जानिए

दुनिया के सबसे खूबसूरत देशों में भारत

जैसलमेर में शानदार इतिहास की गवाही देता मोहनगढ़ का किला

भारत को खूबसूरती का राजा माना जाता है। यहीं जन्नत यानी कश्मीर है। इसीलिए कश्मीर को धरती का स्वर्ग भी कहा जाता है। कश्मीर के श्रीनगर की खूबसूरत घाटियां, चमकती हुई झीलें, ऊंचे पहाड़ और सुंदर दृश्य देखने लायक हैं। यहां डल झील में शिकारे पर घूमना किसी जन्नत जैसा अहसास देता है। दुनिया भर के देशों में खूबसूरती के मामले में भारत 13वें नंबर पर है। 

ब्रिटेन की फेमस ट्रैवल गाइड मैगजीन ‘रफ गाइड’ ने 20 सबसे खूबसूरत देशों की लिस्ट जारी की है। स्विट्जरलैंड और फिनलैंड जैसे यूरोपियन देशों को पीछे छोड़ते हुए इंडिया ने 13वां नंबर हासिल किया है। मैगजीन में इंडिया को अपने कल्चर की वजह से ‘दुनिया का खूबसूरत देश बताया गया है।’ मैग्जीन ने पाठकों के वोटों के आधार पर यह रेटिंग दी है। मैगजीन ने रीडर्स को हिस्टॉरिकल और नेचुरल ब्यूटी वाले देशों के आधार पर वोटिंग का ऑप्शन दिया था। टॉप-20 ब्यूटिफुल कंट्रीज में सिर्फ तीन एशियाई देशों को जगह मिली है, जिसमें 6वें पर इंडोनेशिया और 20वें नंबर पर वियतनाम शामिल है।

स्कॉटलैंड को पहला, कनाडा को दूसरा और न्यूजीलैंड तीसरे नंबर पर
स्कॉटलैंड को दुनिया के सबसे खूबसूरत देशों की लिस्ट में पहले नंबर पर रखा गया है। वहीं, कनाडा और न्यूजीलैंड सेकेंड और थर्ड नं. पर हैं। जबिक टॉप-20 की लिस्ट में इंग्लैंड 7वें और वेल्स 10वें नंबर पर है। ‘विजिट स्कॉटलैंड’ के चीफ एग्जीक्यूटिव मैल्कम रफहेड के मुताबिक, देश को ट्रैवल मैगजीन में पहला नंबर मिलना कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। क्योंकि, यहां की नेचुरल और हिस्टॉरिकल ब्यूटी ट्रेवलर्स को हमेशा से पसंद आती रही है। स्कॉटलैंड की ‘ग्लेन को’ साइट विजिटर्स की सबसे पसंदीदा जगह है। ये वोल्कैनिक साइट (ज्वालामुखी) साइंटिफिक रिसर्च के लिए भी चर्चा में बनी रहती है। इसके अलावा राजधानी एडि्नबरा का हिस्टॉरिकल मोन्यूमेंट ‘एडि्नबरा कैसल’ भी लोगों के बीच काफी फेमस है। कनाडा को दूसरा और न्यूजीलैंड को तीसरा स्थान मिला है। 


भारत में कई ऐसे स्थान, शहर हैं जो बेहद खूबसूरत हैं। यहां प्रकृति खूब मेहरबान हुई है। यही वजह है कि साल भर यहां देश और विदेश से पर्यटक सैरसपाटा करने आते रहते हैं। तो देश के इन स्थानों के बारे में भी जानिए-
मेघालय के पहाड़ और झील

मेघालय
अगर आप अपने परिवार के साथ घूमने जाना चाहते हैं तो आप मेघालय जा सकते हैं. मेघालय की राजधानी शिलॉंन्ग भी काफी खूबसूरत है. कहा जाता है कि यहां की पहाड़ियां स्कॉटलैंड की याद दिलाती हैं और इसीलिए उसे भारत का स्कॉटलैंड भी कहा जाता है. इसके अलावा यहां घूमने के लिए वॉर्ड लेक, एलिफेंट फॉल और लेडी हैदरी पार्क भी हैं जो खासे मशहूर हैं। 

कुर्ग
भारत के दक्षिण में स्थित कुर्ग खूबसूरती भी किसी जन्नत से कम नहीं है।  यह एक छोटा और खूबसूरत शहर है। यहां के खूबसूरत बाग, कॉफी की खुशबू और दूर-दूर तक हरियाली हर किसी को आकर्षित करती है। यहां ट्रेकिंग, बोटिंग और राफ्टिंग का मजा भी लिया जा सकता है।

गोवा
गोवा के खूबसूरत बीचों के बारे में कौन नहीं जानता। देश में घूमने जाने के लिए यह एक अच्छी जगह है। यहां शाम के समय बीच पर समय बिताना बहुत काफी अच्छा अहसास है। गोवा जाने पर सभी बीचों के अलावा दूधसागर फॉल्स भी घूमने जा सकते हैं। 

कसोल
हिमाचल प्रदेश का गांव कसोल अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। अपनी खूबसूरती और शांति के चलते ये गांव इजरायली के लोगों की पसंद बना हुआ है। यहां इजरायल से इतने लोग आते हैं कि यहां के रेस्टोरेंट में इजरायली खाना भी आसानी से मिल जाता है। कसोल को छोटा इजरायल भी कहा जाता है। 

अलेप्पी की नहर में हाउसबोट का खूबसूरत नजारा

अलेप्पी
केरल के सबसे पसंदीदा जगहों में से एक है अलेप्पी। यहां खूबसूरत नहरें, बीच और जंगल हैं। यह इतना खूबसूरत है कि इसे पूर्व का वेनिस भी कहा जाता है। यहां हाउसबोट में भी घूमा जा सकता है। यहां साक्षारतादर काफी ज्यादा है। इतना ही नहीं यह देश की सबसे साफ जगहों में भी शामिल रह चुका है। 

लक्षद्वीप
लक्षद्वीप भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित राज्य है जहां बहुत से बीच हैं, जहां पानी में नीला और हरा रंग नजर आता है वहीं बीच पर सफेद रंग की रेत है. लक्षद्वीप द्वीप की उत्तपत्ति प्राचीनकाल में हुए ज्वालामुखीय विस्फोट से निकले लावा से हुई है।

दार्जिलिंग
पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग हिल स्टेशन हमेशा से टूरिस्टों को आकर्षित करता रहा है. यहां के चाय के बागानों में घूमना यहां आए टूरिस्ट काफी पसंद करते हैं. तो अगर आप कहीं घूमने जाने के बारे में सोच रहे हैं तो आप यहां जा सकते हैं। 

पुड्डुचेरी
घूमने जाने के लिए पुड्डुचेरी भी एक अच्छी जगह है। यहां फ्रांस की झलक नजर आती है। यहां के घरों की बनावट भी फ्रांस के घरों की तरह लगती है। यहां तमिल, तेलेगु और मलयालम भाषा ज्यादा बोली जाती है। यहां घूमने के लिए बहुत से बीच भी हैं।

Wednesday 23 August 2017

भगवान से नहीं शैवाल से हुआ था प्राणियों का जन्म



मेलबर्न के वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को सुलझा लिया है कि प्राणी सबसे पहले धरती पर कैसे आए थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया में सबसे पहले शैवाल का जन्म हुआ और इसी से प्राणियों का उदय हुआ। ऑस्ट्रेलियन नैशनल यूनिवसर्टिी के शोधकर्ताओं ने मध्य ऑस्ट्रेलिया की प्राचीन अवसादी चट्टानों का विश्लेषण किया और पता लगाया कि प्राणियों का विकास 65 करोड़ साल पहले शैवाल के उदय के साथ शुरू हुआ। 

एएनयू के असोसिएट प्रफेसर जोशेन ब्रोक्स ने कहा, 'हमने इन चट्टानों को पीस कर चूर्ण बना दिया और प्राचीन जीवों के अणुओं को इसमें से निकाल लिया।' उन्होंने कहा कि शैवाल के उदय ने पृथ्वी के इतिहास में सबसे गहन पारिस्थितिकी क्रांतियों को शुरू किया। इसके बिना इंसान और अन्य प्राणियों का अस्तित्व न होता। 

नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुए इस शोध का नेतृत्व करने वाले ब्रोक्स ने बताया, 'ये मॉलिक्यूल्स बताते हैं कि 65 करोड़ साल पहले धरती बहुत दिलचस्प हो गई थी। यह इकोसिस्टम की क्रांति थी, यह शैवाल का उदय था।' उन्होंने कहा कि शैवाल का उदय पृथ्वी के इतिहास के सबसे बड़ी पारिस्थितिक क्रांतियों में से एक था जिनके बिना इंसान और बाकी जानवरों का वजूद नहीं होता।

समुद्र में पोषक तत्वों के उच्च स्तर और अनुकूल वैश्विक तापमान ने शैवाल बनने के लिए पृथ्वी पर संपूर्ण परिस्थितियां पैदा कर दीं। ब्रोक्स ने बताया, 'भोजन के तल पर इन बड़ी पोषक रचनाओं ने जटिल पारिस्थितिक तंत्रों को ऊर्जा प्रदान की जहां बड़े और जटिल जानवर, जिनमें शुरुआती इंसान भी शामिल थे, पनप सकते थे।' ब्रोक्स के सहयोगी ऐंबर जेरेट ने बताया, 'इन चट्टानों में हमने आणविक जीवाश्म की खोज की है। हमें जल्द ही पत चल गया कि हमने यह बड़ी खोज कर ली है कि पूरी धरती के ठंडे होने का इसकी जटिल और लंबी जिंदगी से सीधा संबंध है।'

मुल्क