Tuesday 31 July 2018

बकरी और अबरार का दर्द

बकरियां बुरी तरह डरी हुई हैं। अभी रात के दो बज रहे हैं। उनके शोर से घर के सभी लोग जग गए हैं। मुहल्ले में भी जनसर हो गई। पहले बड़ी वाली बकरी ही चिल्ला रही थी, धीरे धीरे पांचों बकरियां शोर करने लगीं। मैं इस्माइल के घर में हूं। उसके घर के बरोठे का ये नजारा वाकई में सबके लिए चौकाने वाला है। लेकिन कोई समझ कुछ नहीं पा रहा है। उसके अब्बा (बाबा) जग तो गए हैं लेकिन मच्छरदानी से बाहर नहीं निकलना चाहते। दरअसल बरोठे में जहां बकरियां बंधीं हैं वहां मच्छर कुछ ज्यादा हैं। वे चारपाई से ही सबको हांक रहे हैं, सब अपने-अपने घर जाओ, भीड़ मत बढ़ाओ। बकरियां अपने आप चुप हो जाएंगी। उनकी ऐसी बेरुखी से कुछ लोग जा चुके हैं, कुछ जा रहे हैं।


बकरियों का यूं चिल्लाना अबरार से सहन नहीं हो रहा। इससे पहले उसने अपनी बकरियों को यूं सहमते नहीं देखा। वही तो है जो बकरियों को खेतों में चराने ले जाता है। वह आठ साल का है। बकरियां उसे बहुत प्यारी हैं। एकतरह से बकरियां उसकी दोस्त हैं। स्कूल से आते ही कडुए तेल से चुपड़ी और बुकनू लगी रोटी ले वह उन्हें चराने चल देता है। मुहल्ले के लोग उसे नन्हा बरेदी कहते हैं। ग्रामीण इलाकों में बकरियां पालने वाले को बरेदी कहा जाता है। बकरियां अभी भी सहज नहीं हुई हैं। अबरार सुबक रहा है। उसने सभी बकरियों के नाम रखे हैं। जो सफेद-काली है उसे चितकबरी, जो लाल-काली है उसे लालमनी और छोटी वाली बकरी को वह छुनिया बुलाता है। इसी तरह बाकी बकरियों के भी नाम रखे हैं। छुनिया बाकी बकरियों की तरह नहीं चिल्ला रही बस बीच-बीच म्हे कर देती है। पर इस म्हे में दर्द बहुत है। छुनिया गर्भ से है, कुछ ही महीनों में वह भी मां का सुख भोगेगी। अबरार की सुबकन मुझसे नहीं देखी जा रही। बाकी लोग भी द्रवित हैं।

सुनातर या बरजतिया देख लिया होगा तभी चिल्ला रही हैं, अभी चुप हो जाएंगी, सोओ जाके सब लोग बतंघड़ न बनाओ, मंझली चच्ची गुस्से में सबसे बोलीं और दांत में दुपट्टा दबाके सोने चली गईं। सुनातर और बरजतिया सापों को कहा जाता है। सुनातर को सुनाई नहीं देता और बरजतिया काफी बड़ा होता है, तेज भागता है। गांवों में अक्सर ये सांप देखे जाते हैं, लेकिन वे बिरले ही लोगों को काटते हैं। वे चूहों के शिकार के लिए घरों में आ जाते हैं। ज्यादातर भूसा वाली कुठरिया में लकड़ी या कंडों के बीच छिप जाते हैं।

इस बीच राजू चाचा बोले चिटकान्हा हुई सकत है। धत्त झटिहा सार, भाग हेन ते बड़ा आओ बतावन चिटकान्हा हुई सकत है। अब्बा के अईसे गरियाने से राजू चाचा सकपका गए और धीरे से वहां से खिसक लिए। अब्बा मुहल्ले भर के अब्बा हैं, वे सब पे अपना हक जताते हैं। इसलिए उन्हें ज्यादातर लोग अब्बा ही कहते हैं। अब्बा का पारा गरम देख सब बगलें झांकने लगे और जाने को हुए कि तभी हवा का तेज झोंका आया और किवाड़े के बगल में ताक पर जल रहे चराग को बुझा गया। अब बरोठे में घुप्प अंधेरा हो गया। बकरियां जो थोड़ा सा चुप हुईं थीं अब फिर से चिल्लाने लगीं। अब्बा पहले से ही गुस्साए थे अंधियारा होने पर और तेजी से चिल्लाए, चराग कौन जलाएगा।

रहमान आंगन की तरफ भागा और चारपाई में बिछे बिस्तर में माचिस टटोलने लगा। चूल्हे के पास देख जा के वहीं रखी है माचिस, अम्मा ने जोर से कहा। रहमान ने चूल्हे के पास, पखिया और खाना रखने वाली दीवार में बनी टीपारी में
माचिस ढूंढी पर न मिली। बाहर जा मेरे बिस्तर में सिरहाने रखे कुर्ते में माचिस है ले के आ, अब्बा ने गरजते हुए कहा। रहमान ने कुर्ते से माचिस निकाल ली। उसने साथ में बालक बंडल से चार ठो बीड़ी भी निकालकर जेब में छिपा लीं। रहमान 15 बरस का है। गांव के अधिकांश किशोरवय लड़के बीड़ी और स्वागत तम्बाकू खाने लगे हैं। कुछ वक्त पहले गांव के भोला और महेश अपने पापा की बीड़ी चुराकर फूंकते पकड़े गए थे तो बहुत मार पड़ी थी। तब से सब नशा-पत्ती से दूर थे। लेकिन अब के छिटांक-छिटांक भर के लड़के चौधरी और पॉवर गुटखा भी खाते हैं, लेकिन छिप-छिपाकर। दांत लाल हो गए हैं, उन्हें साफ करने के लिए एक-एक घंटे तक नीम की दातून घिसते हैं। ज्यादातर नदिया किनारे बीड़ी पीने जाते हैं। कई सुबह शौच से पहले बीड़ी पीते हैं। बीड़ी नहीं मिलती तो उनका पेट साफ नहीं होता है। गांव के ज्यादातर मर्द नदी किनारे खुले में शौच करने जाते हैं। युवाओं की संख्या इनमें ज्यादा है। किसी-किसी के घर में ही शौचालय है।

अब्बा ने झिड़कते हुए रहमान के हाथ से माचिस छीनी और चराग जलाया। अभी एक मिनट भी न हुआ था कि चराग मद्धम होते हुए बुझने लगा। उन्होंने चराग हिलाया तो उसमें तेल खत्म हो गया था। अब वे फिर चिल्लाये, कोई काम ढंग से नहीं हो पाता है। न जाने का करेंगे सब। अब्बा और चिल्लाते इससे पहले ही अम्मा बोल पड़ीं- मिट्टी का तेल खत्म हो गया है। अबकी महीने में कोटेदार ने दुई लीटर तेल ही दिया था। एक चराग आप छपरा तरे रखते हो, दूसरा चूल्हे के पास रहता है जो बाद में रहमान और अबरार पढ़ने के लिए उठा ले जाते हैं और तीसरा बरोठे में बकरियों के पास जलता है, तीन ही चराग तो हैं घर में। इतना कहते-कहते अम्मा झुंझला गईं और आंगन में बिछी चारपाई पर जाके धम्म से बैठ गईं। ये सुनकर अब्बा का चेहरा और तमतमा गया। बोले-पब्लिक के लिए साला आता 5 लीटर तेल है पर मिलता 3 लीटर ही है, उसमें भी किसी-किसी महीने तो कोटेदार तेल गोल कर जाता है। अबकी तो दुई लीटर ही दिया हरामखोर ने। राशन के भी यही हाल हैं। मनमर्जी चल रही है सबकी। सब खुदै को अधिकारी और नेता समझते हैं। अईसे ही रहा तो अबकी साली सरकार बदलीही जाएगी।
अब्बा चराग जलाओ, रहमान ने धीरे से कहा। अब्बा ने रहमान के लाये चराग को जलाया।

बकरियां अब पहले से थोड़ा शांत थीं पर पूरी तरह नहीं। एक चुप होती तो दूसरी चिल्लाने लगती। मैं आंगन में पड़ी चारपाई में जा के पसर गया। सुबह के चार बजे गए थे। आसमान का कालापन कम हो रहा था। तारे अब कम गाढ़े दिख रहे थे। शंकर जी के मंदिर की घंटियां भी बजनी शुरू हो गईं थीं। आरती का समय हो गया था। मैं कब सो गया पता ही नहीं चला।
सुबह आंख खुली तो मैं उठा और बरोठे में गया जहां बकरियां बंधीं थीं, वहां एक भी बकरी नहीं थी। कोने में ढेर सारी राख फैली थी। मैं आंगन में फिर लौटा और चच्ची के कमरे की तरफ आवाज लगाई, पर कोई नहीं बोला। पास गया तो देखा दरवाजे पर कुंडी लगी हुई थी। पूरे घर में सन्नाटा पसरा था। मैं चारपाई में फिर बैठ गया। तभी बाहर से जोर-जोर से आवाजें आने लगीं तो बाहर की तरफ भागा और सीधे बाहर चउरा पर पहुंच गया। वहां लोगों की भीड़ लगी थी। रहमान, अब्बा, अम्मा, राजू चाचा और गांव भर के लोग जुट थे। एक किनारे अबरार बैठे रो रहा था उसके पास ही खून बिखरा पड़ा था। पास पहुंचा तो मैं अवाक रह गया। मुझे देख अबरार मुझसे चिपट गया और जोर-जोर से रोने लगा। पास में ही उसकी सबसे प्यारी बकरी छुनिया मरी पड़ी थी। उसके मुंह से झाग निकला हुआ था। बगल में उसका भ्रूण भी पड़ा था। राजू चाचा ने बताया किसी ने अब्बा से दुश्मनी निकालने के लिए रात में छुनिया के पेट में लात-घूंसे चलाये और कोई देख पाए इससे पहले ही भाग निकला। बाहर रास्ते की तरफ सो रहे चम्पू ने रात में बरोठे से निकल भागकर जाते एक आदमी को देखा था पर अंधेरा होने की वजह से वह पहचान नहीं पाया। चम्पू ने भी मुझसे इस बात की तस्दीक की। डॉक्टर साहब बता गए थे कि छुनिया को घास में मिलाकर जहर भी खिलाया गया।

घर वाले, मुहल्ले वाले सब गुस्से में हैं। हमारी तो किसी से दुश्मनी भी नहीं, कोई बेजुबानों से कैसे रंजिश निकाल सकता है, अम्मा रो रोकर कह रही हैं। अब्बा उन्हें ढांढस बंधा रहे हैं। बाकी बकरियां सदमे में हैं। किसी ने घास तक नहीं खाई है, वे पागुर तक नहीं कर रहीं हैं। घनघोर शोक में हैं वो। अबरार अभी भी मुझसे लिपटा हुआ है, उसके आंसुओं से मेरे पेट के पास की शर्ट गीली हो चुकी है। बाकी बची बकरियों और अबरार का दर्द एक है। उसे कोई नहीं समझ पाएगा। ये पीड़ा असहनीय है। पुलिस मामले की पड़ताल करने के लिए एक हजार रुपये मांग रही है। चउरे का माहौल शोकाकुल है। आज घर में खाना नहीं बनेगा।

नोट- ये कहानी सत्य घटना से प्रेरित है। इसे काल्पनिक समझने की चेस्टा न करें।

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