Tuesday 31 December 2013

बचा लो इन्हें .....

                            देश के प्रतिष्ठित अख़बार में प्रकाशित हो चुका लेख


विलुप्त हो रहे प्रकृति के प्रहरी

प्रकृति के प्रहरी माने जाने वाले जीव आज मनुष्य की गलतियों का खामियाजा अपने अस्तित्व को गंवाकर भुगत रहे हैं। दुनियाभर में फैली खूबसूरत और खतरनाक जीवों की विभिन्न प्रजातियों का जीवन संकट में है। तमाम शोधों में पाया गया है कि इनके विलु’ होने का कारण ग्लोबल वार्मिंग, बदलती जीवनश्ौली, कीटनाशक, दवाइयों व केमिकल्स का प्रयोग इनके जीवन को प्रभावित कर रहा है। 5 अक्टूबर 1948 को स्थापित की गई आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑन नेचर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्तनपायी जीवों की 397 प्रजातियां, पक्षियों की 1232, सरीसृपों की 46०, मछलियों की 2546 और कीट-पतंगों की 59, 353 प्रजातियां पाई जाती हैं। इसके अलावा भारत में तकरीबन 18,664 तरह के पेड़-पौधों की शरण स्थली माना गया है।
लेकिन अब इन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। मौजूदा समय में देश में 84 राष्ट्रीय उद्यान और 447 अभ्यारण्य जीवों को संरक्षित करने के लिए बनाउ गए हैं। जानते हैं कुछ प्रमुख विलुप्त जीवों के बारे में।

बाघ - 

भारत का राष्ट्रीय पशु है। इसकी आठ प्रजातियों में रॉयल बंगाल टाइगर, देश के पश्चिमी हिस्से में पाया जाने वाला सबसे खतरनाक जीव माना जाता है। किसी समय अपनी चहलकदमी से पूरा जंगल हिलाने वाले इस वन्य जीव का अस्तित्व हिल चुका है। इस खूबसूरत जीव का जीवन खतरे में है। भारत में यह सबसे ज्यादा संकटग्रस्त प्रजातियों में गिना जाता है। देश में अब केवल 1411 बाघ ही बचे हैं। हालांकि अब इनकी संख्या में इजाफा हुआ है।

एशियाई शेर - 

एशियाई शेर प्रमुख रूप से गुजरात के गिर वनों में पाए जाते हैं। लेकिन अब इनकी संख्या में लगातार कमी हो रही है। गिर वन में अब करीब 411 शेर बचे हैं। पर्यावरण के विष्ौला होने व जल प्रदूषण और शिकार की वजह से यह खूबसूरत जीव अपने अस्तित्व को लेकर संकट में है।
गिद्ध- यह प्रमुख रूप से मृत-पशु के मांस पर निर्भर रहने वाला जीव है। इस जीव को प्रकृति का सफाईकमीã भी कहा जाता है। इसके विलुप्त होने का प्रमुख कारण पशुओं में प्रयोग की जाने वाली कई तरह की दवाओं को माना जा रहा है। देश में इनकी संख्या न के बराबर है। इस जीव को पूर्ण रूप से लुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में रखा गया है।

वेस्टर्न ट्रैगोपन- 

यह रंगबिरंगी और खूबसूरती पक्षी हिमालय के ठंडे और जंगली इलाकों में पाया जाता है। यह तीतर की दुर्लभ प्रजाति है, जिसका जीवन समाप्ति की ओर है। इसके लुप्त होने का कारण जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है।
स्नो लेपर्ड- हिमालयन तेंदुआ यह अत्यंत चंचल और फु र्तीला, बिल्ली की प्रजाति का प्राणी है। यह हिमालय की ऊचाईयों में ठंडे-जंगली इलाकों में पाया जाता है। इसके अंगों की कीमत अतंर्राष्ट्रीय बाजार में करोणों होने के कारण इसका चोरी छिपे शिकार किया जाता है, जिस कारण यह भी विलुप्त जीवों की श्रेणी में शामिल है।

रेड पांडा - 

यह अत्यंत खूबसूरत स्तनपायी प्राणी पूर्वी हिमालय के जंगलों में पाया जाता है। जंगलों के लगातार कटने के कारण इसके निवास क्ष्ोत्र की कमी के कारण यह अपने जीवन को लेकर संकट में है।
सुनहरा लंगूर। देश में यंू तो बंदरों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। इन्हीं में से एक है सुनहरा लंगूर। इसका निवास क्ष्ोत्र ब्रह्मपुत्र नदी के आसपास स्थित वन हैं। वनों के कटाव के चलते इनकी संख्या तेजी से घट रही है।
इंडियन एलीफैंट- भारतीय हाथी को राजाओं की सवारी माना गया है। इसलिए यह राष्ट्रीय विरासत पशुओं की श्रेणी में सबसे आगे है। हाथी दांत के लिये चोरी छिपे शिकार और निवास क्ष्ोत्र के नष्ट होने के कारण यह जीव अपने जीवन को लेकर संकटग्रस्त।

इंडियन वन हार्न रीनो- 

एक सींग वाला गेंडा अपनी प्रजातियों में सबसे हिंसक माना जाता है। इसका निवास क्ष्ोत्र गंगा के मैदानी-जंगली इलाके हैं। हालांकि अब यह सिर्फ चिड़ियाघरों में ही देखे जाते हैं। एक सींग की वजह से इसके अत्याधिक शिकार और प्राकृतिक परिवर्तन के कारण ये समाप्ति की ओर हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में अब सिर्फ 21०० गैंडे ही बचे हैं।

स्वैंप डीर- 

यह हिरण प्रमुख रूप से घने व दलदली इलाकों में रहने के कारण प्रसिद्ध है। यह प्रमुख तौर से भारत और नेपाल में पाया जाता है। बदलते पर्यावरण और घटते निवास क्ष्ोत्रों की वजह से इसका जीवन संकट में है।
ओलिव राइडल टर्टल- यह अपनी प्रजाति का अनोखा और सबसे छोटा क छुआ है। यह भारत के पूर्वी तटों प्रमुख रूप से ओड़िशा तट पर भारी संख्या में पाए जाते हैं और प्रजनन करते हैं। प्रजनन स्थलों की संख्या में कमी और समुद्री जल के प्रदूषति होने के कारण इनकी आबादी खत्म हो रही है।

इसके अलावा आर्इयूसीएन की रेड लिस्ट में कई और जीव प्रजातियों को शामिल किया गया है। ब्लैक नेक्ड क्रेन, डोडो, यात्री कबूतर, टाइरानोसारस, कैरेबियन मॉन्क सील, वन कछुए, ब्राजील के मरगैनसर, घडिèयाल, नीला व्हेल, विशालकाय पांडा, बर्फीला तेंदुआ, क्राउंड सालिटरी ईगल, ब्लू-बिल्ड डक, सॉलिटरी ईगल, स्माल-क्लाड औटर, मेंड वुल्फ, चित्तीदार मैना, गौरैया आदि प्रमुख हैं।




Friday 27 December 2013

दिल मे समाये ग़ालिब


जाग रहा है गजलकार


हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश प दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमां, लेकिन फिर भी कम निकले

हजारों-लाखों श्ोर लिखने और इससे भी ज्यादा दिलों पर काबिज रहने वाले मिर्जा गालिब उर्फ असदउल्ला खां का जन्म उनके ननिहाल आगरा में 27 दिसंबर, 1797 ई. को हुआ था। इनके पिता फौजी में नौकरी करते थ्ो। जब ये पांच साल के थे, तभी पिता का देहांत हो गया था। पिता के बाद चाचा नसरुल्ला बेग खां ने इनकी देखरेख का जिम्मा संभाला। नसरुल्ला बेग आगरा के सूबेदार थे, पर जब लॉर्ड लेक ने मराठों को हराकर आगरा पर अधिकार कर लिया तब पद भी छूट गया। हालांकि बाद में दो परगना लॉर्ड लेक द्बारा इन्हें दे दिए गए।

प्रारंभिक शिक्षा

गालिब की प्रारंभिक शिक्षा के बारे मे कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन गालिब के अनुसार उन्होने ११ वर्ष की अवस्था से ही उर्दू एवं फारसी मे गद्य तथा पद्य लिखने आरंभ कर दिया था। उन्होने अधिकतर फारसी और उर्दू मे पारंपरिक भक्ति और सौंदर्य रस पर रचनाएं लिखी जो गजल मे लिखी हुई है। उन्होंने फारसी और उर्दू दोनो में गीत काव्य की रोमांटिक शैली में लिखा जिसे गजल के तौर पर जाना जाता है।

बालविवाह

गालिब बचपन से ही पढ़ने-लिखने में होनहार थ्ो। उस समय बाल विवाह का प्रचलन था। इसके चलते गालिब का 13 वर्ष की आयु में उमराव बेगम से विवाह कर दिया गया। विवाह के बाद वह दिल्ली आ गए, जहां उनकी तमाम उम्र बीती।

 प्रतिभा के धनी

गालिब बचपन से ही मेहनती और होनहार थ्ो। उसी समय मुल्ला अब्दुस्समद ईरान से घूमते-फिरते आगरा आए और गालिब के यहां डेरा जमाया। वह ईरान के एक प्रतिष्ठित और वैभव संपन्न व्यक्ति थे। फारसी और अरबी भाषा का उन्हें बहुत अच्छा ज्ञान था। उस समय मिर्जा 14 वर्ष के थे और फारसी में उन्होंने अपनी योग्यता प्रा
प्त कर ली थी। अब्दुस्समद गालिब की प्रतिभा से चकित थ्ो। उन्होंने गालिब को दो वर्ष तक फारसी भाषा और काव्य की बारीकियों का ज्ञान प्रदान किया। उन्होंने अपनी सारी विद्याओं में गालिब को पारंगत कर दिया। उनका मानना था कि मेहनत से कोई भी व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है।

संगत का असर

गालिब में प्रेरणा जगाने का कार्य शिक्षा से भी ज्यादा उस वातावरण ने किया, जो इनके इर्द-गिदã था। जिस मुहल्ले में वह रहते थे, उसे गुलाबखाना कहा जाता था। जो उस जमाने में फारसी भाषा की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। वहां एक-से-एक विद्बान रहते थ्ो। उन सबकी संगत का असर गालिब पर भी पड़ा। 24-25 वर्ष की उम्र में गालिब पर प्यार का रंग चढ़ गया। जो इनके बचपन की शौकिया श्ोरो-शायरी को विस्तृत कर परवान चढ़ा गया।
प्रतिष्ठित अख़बार में प्रकाशित हो चुका लेख

गुरबत में कटे दिन

विवाह के बाद गालिब की आर्थिक कठिनाइयां बढ़ती ही गईं। आगरा, ननिहाल में इनके दिन आराम व रईसीयत से बीतते थे। 1822 ई. में ब्रिटिश सरकार एवं अलवर दरबार की स्वीकृति से नवाब अहमदबख्श खां ने अपनी जायदाद का बंटवारा किया जिसमें फीरोजपुर की गद्दी पर उनके बड़े लड़के शम्सुद्दीन अहमद खां बैठे और लोहारू की जागीरें उनके दोनों छोटे बेटों को मिली। इस बंटवारे से गालिब भी प्रभावित हुए। शम्सुद्दीन द्बारा उनकी पेंशन अटका दी गई।

 दिल में समाई दिल्ली

गालिब के ससुर इलाहीबख्श खां न केवल वैभवशाली, धर्मनिष्ठ व अच्छे कवि भी थे। विवाह के दो-तीन वर्ष बाद ही गालिब स्थायी रूप से दिल्ली आ गए और उनके जीवन का अधिकांश भाग दिल्ली में ही गुजरा। बाद के समय में गालिब शहंशाह बहादुर शाह जफर द्बतीय के यहां रहने लगे। उन्हें बादशाह ने अपने बड़े पुत्र फखरुद्दीन का शिक्षक भी नियुक्त कर दिया।

शाही खिताब

सन् 185० मे शहंशाह बहादुर शाह जफर द्बतीय ने मिर्जा गालिब को ’’दबीर-उल-मुल्क’’ और ’’नज्म-उद-दौला’’ के खिताब से नवाजा। बाद मे उन्हे ’’मिर्जा नोशा’’ के खिताब भी मिला।




मिर्ज़ा ग़ालिब


जाग रहा है गजलकार

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमां, लेकिन फिर भी कम निकले

हजारों-लाखों शेर लिखने और इससे भी ज्यादा दिलों पर काबिज रहने वाले मिर्जा गालिब उर्फ असदउल्ला खां का जन्म उनके ननिहाल आगरा में 27 दिसंबर, 1797 ई. को हुआ था। इनके पिता फौजी में नौकरी करते थ्ो। जब ये पांच साल के थे, तभी पिता का देहांत हो गया था। पिता के बाद चाचा नसरुल्ला बेग खां ने इनकी देखरेख का जिम्मा संभाला। नसरुल्ला बेग आगरा के सूबेदार थे, पर जब लॉर्ड लेक ने मराठों को हराकर आगरा पर अधिकार कर लिया तब पद भी छूट गया। हालांकि बाद में दो परगना लॉर्ड लेक द्बारा इन्हें दे दिए गए।

हॉट डेस्टीनेशन न्यूजीलैंड

स्टडी का हॉट डेस्टीनेशन न्यूजीलैंड

अब्रॉड स्टडी के मामले में भारतीय छात्रों का मिजाज अब धीरे धीरे बदलता जा रहा है। पहले ज्यादातर छात्र अमेरिका की ओर रुख करते थे, लेकिन अब न्यूजीलैंड भी भारतीय छात्रों का पसंदीदा स्टडी डेस्टिनेशन बनता जा रहा है। इस खूबसूरत देश में विदेशी छात्रों के लिए पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था है। यहां के सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज में टूरिज्म, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, हॉस्पिटैलिटी, नîसग आदि से जुड़े सर्टिफिकेट व डिप्लोमा प्रोग्राम चलाए जाते हैं। खासबात यह है कि इनकी फीस भी अधिक नहीं होती है।
यह फीस एक वर्षीय डिप्लोमा प्रोग्राम के लिए बिल्कुल ठीक बैठती है। एक दूसरा आसान रास्ता सरकारी अनुदान प्राप्त पॉलिटेक्निक कॉलेज वेलिगटन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और क्राइस्टचर्च पॉलिटेक्निक ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के रूप में हैं। इसके अलावा, कुछ अच्छे प्राइवेट संस्थान भी यहां हंै, जिससे आप वोकेशनल कोर्स कर सकते हैं। नैटकोल भी एक ऐसी ही संस्था है, जो मल्टीमीडिया एवं एनिमेशन में एक जाना पहचान नाम है।
यदि आप न्यूजीलैंड से वोकेशनल कोर्स करना चाहते हैं, तो हम आपको कुछ ऐसे ही इंस्टीट्यूट के बारे में बता रहा है, जिनकी अपनी एक अलग खासियत है।


Saturday 21 December 2013

क्रांतिकारी सोहन

मुफलिसी में जन्मा क्रांतिकारी


बचपन तो वही होता है जो कंचे और अंटियों को जेबों में भरकर सो जाए, बचपन यानी जो पतंगों को बस्ते में छुपाकर लाए, बचपन मतलब जो मिट्टी को सानकर लड्डू बनाए। बचपन का तो मतलब ही यही होता है जो बड़ों की हर चीज को छुपकर आजमाए। ऐसा बचपन तो कुछ को ही मिलता है। इस सपनीले बचपन से इतर बचपन गुजरा अमृतसर की सरजमीं पर पैदा हुए महान क्रांतिकारी और संपादक सोहन सिंह का।


गुरबत भरा बचपन

सोहन सिंह बचपन से ही क्रांतिकारी स्वाभाव के थ्ो। उनमें देशभक्ति और जीवटता कूट-कूट कर भरी हुई थी। सोहन का जन्म 187० ई. में अमृतसर जिले के एक किसान करम सिंह के यहां हुआ था। एक वर्ष उम्र में ही सोहन के पिता का देहांत हो गया। मुफलिसी के उस दौर में मां रानी कौर ने उनका पालन-पोषण किया। सोहन सिंह बेहद मेहनती, कभी हार न मानने वाले व कई भाषाओं के ज्ञाता थ्ो। बचपन से उन्हें धार्मिक शिक्षा दी गई।

 

बाल विवाह

उस समय देश में बाल विवाह जैसी प्रथाएं प्रचलित थीं। इस प्रथा का शिकार सोहन सिह को भी बनना पड़ा और उनकी दस वर्ष उम्र में ही बिशन कौर के साथ विवाह कर दिया गया। बिशन कौर लाहौर के एक जमींदार कुशल सिह की पुत्री थीं। सोहन सिह ने सोलह वर्ष की उम्र में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। वे उर्दू और फारसी में दक्ष थे।


बुरी संगत का असर

कहा जाता है बुरी संगति का असर बुरा ही होता है। और यही हुआ सोहन सिंह के साथ। युवा होने पर सोहन सिह बुरे लोगों की संगत में पड़ गए। उन्होंने अपनी संपूर्ण पैतृक संपत्ति शराब पीने और अन्य कार्यों में गवां दी।
दरिद्रता के दिनों में उनके सभी साथियों ने साथ छोड़ दिया। विद्धानों का कहना है कि जब तक आपके पास धन है तब तक ही आप के दोस्त आपके साथ रहते हैं और धन समा’ होते ही वो भी आपका साथ छोड़ देते हैं। कुछ समय बाद सोहन का संपर्क बाबा केशवसिह से हुआ। उनसे मिलने के बाद ध्यान और योग के माध्यम से शराब व अन्य नश्ो की चीजों को पूरी तरह से छोड़ दिया।


जीविका की खोज
नेशनल दुनिया में प्रकाशित हो चुका लेख

शुरू से ही स्वाभिमानी सोहन ने अपनी आजीविका की खोज में और देश के विकास में योगदान देने की प्रेरणा लिए सन् 19०7 में अमेरिका जा पहुंचे। उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय व अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक सोहन के कानों तक भी पहुंच चुकी थी। वहां उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 2०० पंजाब निवासी वहां पहले से ही काम कर रहे थे। कम वेतन और विदेशियों द्बारा अपमान किए जाने से तिलमिलाए सोहन सिंह ने बगावत कर दी। उस बगावत के बाद सोहन का नाम बाबा सोहन सिंह भकना पड़ गया।


क्रांतिकारी संस्था का निर्माण

उस समय देश को आजाद कराने के लिए देश के रणबांकुरों में आजादी की चिंगारी सुलग चुकी थी। उन्होंने 'पैसिफिक कोस्ट हिन्दी एसोसिएशन' की स्थापना की। बाबा सोहन सिह उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने।

अखबार का संचालन

उस समय देश में लोगों का जागरूक करने का कोई कारगर साधन उपलब्ध नहीं था। अंग्रेजों की काली करतूतों को उजागर करने के लिए 'गदर' नाम के अखबार का प्रकाशन और संपादन किया। गदर की सफलता के बाद 'ऐलाने जंग, 'नया जमाना, जैसे प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी '.गदर पार्टी' कर दिया गया। '.गदर पार्टी, के तहत बाबा सोहन सिह ने क्रांतिकारियों को एकत्र करने व हथियारों को भारत भेजने की योजना में बढ़-चढ़कर भाग लिया।


आजीवन कारावास

क्रांतिकारी गतिविधियों में जुड़े होने और प्रथम लाहौर षड़यंत्र में शामिल होने की वजह से 13 अक्टूबर, 1914 को कलकत्ता से उन्हें गिरफ्तार कर लाहौर जेल भ्ोज दिया गया।
बाबा सोहन सिह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और उन्हें अंडमान की जेल भेज दिया गया। वहां से वे कोयंबटूर और भखदा जेल भेजे गए। उस समय यहां महात्मा गांधी भी बंद थे। फिर वे लाहौर जेल ले जाए गए। इस दौरान उन्होंने एक लंबे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया।
और आज के ही दिन यानी 2० दिसंबर, 1968 को महान क्रांतिकारी बाबा सोहन सिह भकना का देहांत हो गया।

Friday 20 December 2013

शार्ट कोर्सेस

शॉर्ट में छुपा लांग फ्यूचर

मॉडर्न होते परिवेश में वक्त की शार्टेज सभी के पास है। शायद इसी कमी को भांप कर आज के युवा जल्द ही आत्मनिर्भर होने के जतन करने में लगे हैं। और जो ऐसा नहीं कर रहे वो खुद को मॉर्डन होते इस समाज में पीछे कर रहे हैं। आज का युवा जागरूक हो रहा है। अब वे कॉलेज के साथ-साथ ऐसे कोर्स ढूंढते नजर आते हैं जिन्हें क्वालीफाई कर वे आसानी से पैसे कमा सकें। ऐसे ही कुछ नए शार्ट कोर्सेस आजकल चलन में हैं जिनमें वेब डिजाइनिंग, फोटोग्राफी, कंप्यूटर डिप्लोमा, वीडियो एडिटिंग और रेडियो जॉकी प्रमुख हैं। इनकी स्टडी ड्यूरेशन छह माह से एक साल तक है।
इस तरह के शॉर्ट कोर्सेस करने का फायदा यह है कि आपमें अलग तरह के कार्य को सुगमता पूर्वक कार्य करने की कला का विकास होता है और आप खुद को सैटिस्फाई भी कर पाते हैं। इसके साथ ही आप इस क्षेत्र में भी आसानी से अपने करिअर की राहें तलाश सकते हैं।


क्रांतिकारी संपादक

मुफलिसी में जन्मा क्रांतिकारी


बचपन तो वही होता है जो कंचे और अंटियों को जेबों में भरकर सो जाए, बचपन यानी जो पतंगों को बस्ते में छुपाकर लाए, बचपन मतलब जो मिट्टी को सानकर लड्डू बनाए। बचपन का तो मतलब ही यही होता है जो बड़ों की हर चीज को छुपकर आजमाए। ऐसा बचपन तो कुछ को ही मिलता है। इस सपनीले बचपन से इतर बचपन गुजरा अमृतसर की सरजमीं पर पैदा हुए महान क्रांतिकारी और संपादक सोहन सिंह का।


गुरबत भरा बचपन

सोहन सिंह बचपन से ही क्रांतिकारी स्वाभाव के थ्ो। उनमें देशभक्ति और जीवटता कूट-कूट कर भरी हुई थी। सोहन का जन्म 187० ई. में अमृतसर जिले के एक किसान करम सिंह के यहां हुआ था। एक वर्ष उम्र में ही सोहन के पिता का देहांत हो गया। मुफलिसी के उस दौर में मां रानी कौर ने उनका पालन-पोषण किया। सोहन सिंह बेहद मेहनती, कभी हार न मानने वाले व कई भाषाओं के ज्ञाता थ्ो। बचपन से उन्हें धार्मिक शिक्षा दी गई।

बाल विवाह

उस समय देश में बाल विवाह जैसी प्रथाएं प्रचलित थीं। इस प्रथा का शिकार सोहन सिह को भी बनना पड़ा और उनकी दस वर्ष उम्र में ही बिशन कौर के साथ विवाह कर दिया गया। बिशन कौर लाहौर के एक जमींदार कुशल सिह की पुत्री थीं। सोहन सिह ने सोलह वर्ष की उम्र में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। वे उर्दू और फारसी में दक्ष थे।


बुरी संगत का असर

कहा जाता है बुरी संगति का असर बुरा ही होता है। और यही हुआ सोहन सिंह के साथ। युवा होने पर सोहन सिह बुरे लोगों की संगत में पड़ गए। उन्होंने अपनी संपूर्ण पैतृक संपत्ति शराब पीने और अन्य कार्यों में गवां दी।
दरिद्रता के दिनों में उनके सभी साथियों ने साथ छोड़ दिया। विद्धानों का कहना है कि जब तक आपके पास धन है तब तक ही आप के दोस्त आपके साथ रहते हैं और धन समा’ होते ही वो भी आपका साथ छोड़ देते हैं। कुछ समय बाद सोहन का संपर्क बाबा केशवसिह से हुआ। उनसे मिलने के बाद ध्यान और योग के माध्यम से शराब व अन्य नश्ो की चीजों को पूरी तरह से छोड़ दिया।


जीविका की खोज

शुरू से ही स्वाभिमानी सोहन ने अपनी आजीविका की खोज में और देश के विकास में योगदान देने की प्रेरणा लिए सन् 19०7 में अमेरिका जा पहुंचे। उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय व अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक सोहन के कानों तक भी पहुंच चुकी थी। वहां उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 2०० पंजाब निवासी वहां पहले से ही काम कर रहे थे। कम वेतन और विदेशियों द्बारा अपमान किए जाने से तिलमिलाए सोहन सिंह ने बगावत कर दी। उस बगावत के बाद सोहन का नाम बाबा सोहन सिंह भकना पड़ गया।


क्रांतिकारी संस्था का निर्माण

उस समय देश को आजाद कराने के लिए देश के रणबांकुरों में आजादी की चिंगारी सुलग चुकी थी। उन्होंने 'पैसिफिक कोस्ट हिन्दी एसोसिएशन' की स्थापना की। बाबा सोहन सिह उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने।

अखबार का संचालन

उस समय देश में लोगों का जागरूक करने का कोई कारगर साधन उपलब्ध नहीं था। अंग्रेजों की काली करतूतों को उजागर करने के लिए 'गदर' नाम के अखबार का प्रकाशन और संपादन किया। गदर की सफलता के बाद 'ऐलाने जंग, 'नया जमाना, जैसे प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी '.गदर पार्टी' कर दिया गया। '.गदर पार्टी, के तहत बाबा सोहन सिह ने क्रांतिकारियों को एकत्र करने व हथियारों को भारत भेजने की योजना में बढ़-चढ़कर भाग लिया।


आजीवन कारावास

क्रांतिकारी गतिविधियों में जुड़े होने और प्रथम लाहौर षड़यंत्र में शामिल होने की वजह से 13 अक्टूबर, 1914 को कलकत्ता से उन्हें गिरफ्तार कर लाहौर जेल भ्ोज दिया गया।
बाबा सोहन सिह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और उन्हें अंडमान की जेल भेज दिया गया। वहां से वे कोयंबटूर और भखदा जेल भेजे गए। उस समय यहां महात्मा गांधी भी बंद थे। फिर वे लाहौर जेल ले जाए गए। इस दौरान उन्होंने एक लंबे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया।
और आज के ही दिन यानी 2० दिसंबर, 1968 को महान क्रांतिकारी बाबा सोहन सिह भकना का देहांत हो गया।




Sunday 15 December 2013

सिंगापुर से शिक्षा

सिंगापुर से सीखें कला के रंग


विदेश में हायर एजूकेशन कंप्लीट करने का सपना लगभग हर टैलेंटेड स्टूडेंट का होता है, लेकिन ये सपने कुछ के ही पूरे हो पाते हैं, क्योंकि जानकारी के अभाव में वह सही टाइम पर अपने भविष्य को लेकर संजोए गए सपने को पूरा करने के लिए इंपार्टेंट डाक्यूमेंट और प्रासेस का फालो नहीं कर पाते, जिस कारण उनके सपनों का आधार भी कमजोर हो जाता है। अगर आपका सपना भी है फारेन में एजूकेशन कंप्लीट करने का तो इसके लिए कमर कस लीजिए। आइए जानते हैं कैसे पाए सिंगापुर में हायर एजूकेशन।
सिगापुर गवर्नमेंट यहां की एजूकेशन सिस्टम को 'ग्लोबल बनाने के लिए सभी जरूरी प्रयास कर रही है। सिगापुर सिर्फ बिजनेस के लिहाज से ही नहीं, बल्कि एजुकेशन के मामले में भी दुनिया की बेस्ट कंट्री में गिना जाने लगा है। इकोनामी के स्टàांग होने के साथ ही यहां की एजूकेशन क्वालिटी और स्टडी सिस्टम भी बेहद मजबूत है। यहां का एंवायरमेंट भी भारतीय छात्रों के लिए काफी फैमिलियर है। यही रीजन है कि यहां आने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।

मूल्यांकन

निवेश से पहले मूल्यांकन जरूरी

हर कार्य की शुरुआत करने से पहले जरूरी होता है सही तरीके से उसकी प्लानिंग करना और उसके बाद उसका मूल्यांकन करना। अगर आप घर खरीदने जा रहे हैं तो यह बेहद जरूरी हो जाता है। मकान खरीदने से पहले आवश्यक है कि आप कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर गौर फरमाएं। जैसे मकान की लोकेेशन सही जगह है या नहीं। सिक्योरिटी, लिफ्ट, इंडीविजुअल कमरों की लंबाई और चौड़ाई, पार्किंग और सबसे जरूरी आपका अपार्टमेंट लीगल है या नहीं, आदि का विश्ोष ख्याल रखना होता है।


Saturday 9 November 2013

दीपावली के उपलक्ष्य पर


पिछली बार की तरह इस बार भी
झालरों के बीच से चेहरा चमकेगा
अकेले ही
दूजा कोई है नहीं न
इस भरे शहर में
लोगों की भीड़ तो ज्यादा है यहां
पर दिलों की भीड़ पर कफ्र्यू सा लगा हुआ है
कोशिश में हूं दीप जलाने की
पता नहीं झालर चमकना कब बंद जाए


Monday 4 November 2013

अवाज के जादूगर


एक समय ऐसा समय था जब पूरे देश में रेडियो का चलन था। हमेशा से रेडियो का आम इंसान की जिदगी में एक अहम स्थान था, और सेलिब्रेटी भी रेडियो से बड़े शौक से जुड़ते थे। फिर वह समय भी आया जब टीवी और इंटरनेट ने अपनी-अपनी पहचान बना ली। घरों में रेडियो की जगह टेलीविजन ने ले ली और रेडियो की लोकप्रियता घटने लगी।

रोमांचकारी कार्य

हर क्ष्ोत्र में एक समय ऐसा आता है जिसमें उसके प्रति बदलाव का नया दौर चलता है और उसमें नई -नई चीजों का जुड़ाव व अलगाव होता है, ठीक बिल्कुल ऐसा ही हुआ रेडियो इंडस्ट्री में भी हुआ। एफएम रेडियो के आगमन के साथ ही रेडियो में भी क्रांति आई। एफएम रेडियो ने लोगों की बदलती पसंद को जाना और पुराने ढररे के संगीत को बदलकर नये संगीत को नये तरीके से लोगों के सामने पेश किया। एफएम रेडियो में रेडियो जॉकी ने अपनी अलग और प्रभावी पहचान बनाई।
एक आरजे को लाइव प्रोग्राम के दौरान श्रोताओं से उनकी रुचि के अनुरूप बातें करनी होती हैं और उनकी पसंद का गीत भी सुनाना होता है। इसके अलावा सेलिब्रेटी से इंटरव्यू, नए कॉन्टेस्ट और म्यूजिक इंफोर्मेशन जैसी चीजें भी आरजे के कार्यों में प्रमुखता से शामिल होती है।

संगीत के साथ संभावनाओं का सागर

देश में 1०० से भी ज्यादा प्राइवेट एफएम रेडियो स्टेशन मौजूद हैं जबकि आने वाले समय भारत सरकार ने 5० से भी ज्यादा नये एफएम स्टेशंस व कम्यूनिटी रेडियो को चालू करने की योजना बनाई है, जोकि इस क्ष्ोत्र में अपार संभावनाओं के दरवाजे खुलने को तैयार हैं। आज स्थिति यह है कि मल्टीनेशनल कंपनी, बड़ी इंडस्ट्री से लेकर छोटे उद्योग भी एफएम रेडियो को अपने प्रचार का मुख्य जरिया माने जा रहे हैं। एफएम रेडियो के क्षेत्र में यह केवल शुरुआत है और इसमें अपार संभावनाएं हैं। संगीत में रुचि रखने वालों के लिए आरजे बनने के रास्ते खुले हैं।

 

Thursday 31 October 2013

फ्यूचर का इंश्योरंस

आज हर किसी को अपने ब्राइट फ्यूचर की चिंता सताती है। भविष्य में उनके पास पैसे रहेंगे या नहीं इस बात का डर लगभग हर व्यक्ति को होता है। इसलिए वहां जरूरत होती हैं इंश्योरेंस की। आज हर क्ष्ोत्र में हर किसी वस्तु का इश्योरेंस किया जा रहा है। क्योंकि हर व्यक्ति खुद को सिक्योर रखना चाहता है। इसी वजह से आज इंश्योरेंस का प्रोफेशन हर पल प्रगति कर रहा है। इस क्षेत्र में ट्रेंड प्रोफेशनल्स की बहुत मांग है।

 

केंचुली बदलता देश

केंचुली बदलता देश


आजकल मौसम अपनी केंचुली बदल रहा है
मैने सुन रखा है
बदलाव हमेशा कुछ न कुछ
अजीब हरकत करता है
क्या यह भी कुछ करेगा
यूं भी देश की रवानी
अपने वजूद
की पताका थामने को आतुर है

गर्म माहौल विदाई मांग रहा है
और सर्द हड्डियों में जगह
बनाने की कोशिश में है
सुना है देश की
हड्डियां शिला से भी मजबूत हैं
अगर यह सच है
तो फिर मैं सर्द क्यूं हो रहा हूं

काका से सुन रखा है
मर्द को दर्द नहीं होता
लेकिन सर्द को इससे क्या
देश भी तो मर्द है
फिर वह क्यूं सिसकियां लेता है
रात के साए में
उन वीरान सड़कों पर
जहां कभी भी आबरु लुट जाने का
संशय बरकरार रहता है

अब मेरा मन भी
मौसम की सुन रहा है
केंचुली बदलना चाहता है
क्यूंकि सर्द तो बेदर्द है
देश की शिला रूपी हड्डियों को
सर्द की मार से
रोकने के लिए
मेरे अकेले से सर्द शायद ही रुक जाए
रुक गई तो मैं सफल
नहीं तो तुम सफल
मुझे पता है तुम आओगे नहीं
भौंकोगे वहीं से
मीलों उछलोगे, फिर भी उछलोगे नहीं
आखिर तुम बेदर्द हो न
पर सर्द तो तुम्हारे वजूद को भी जर्द कर देगी
तब तो आओगे न
क्यूंकि इसबार सर्द नहीं मानने वाली !!

Saturday 26 October 2013

राइट योर ओन कैरियर


राईटिंग कई तरह की हो सकती है। यह क्रिएटिव या डायरेक्ट राइटिग भी हो सकती है। सच पूछिए, तो लिखने की कला हर किसी में नहीं होती है। और जिनमें लिखने की जिज्ञासा है या वे लिखने में हुनरमंद हैं, तो आज उनके लिए जॉब की कोई कमी भी नहीं है, क्योंकि आज कॉपी राइटिग, क्रिएटिव राइटिग, टेक्निकल राइटिग के क्षेत्र में लिखने में हुनरमंद लोगों की खूब डिमांड है।

 

Friday 25 October 2013

गांव नगर हो जाएगा


 गांव-नगर 

हम न जाने कब बच्चे से बड़े हो गए
मीठे दोस्तों के संग
गवांरपन में
कब सीधे हो गए
उन टेड़ी गलियों में
कुछ पता ही नहीं चला
जहां लुक्की-लइया, चोर-पुलिस
और दुनिया के सबसे मजे वाले खेल खेलते थे

कितना कुछ बदल गया है न
मुहल्ले की उस मठिया को छोड़कर
जहां प्रसाद लेते कम
और देते ज्यादा थे
इसी चक्कर में
देह को लाल होने में देर न लगी थी उस दिन
आज भी
पीठ पर पड़ी छुलछुली की
उन बरतों को महसूस कर रहा हूं

कल ही सरकारी मुलाजिम आया था
बोला अब गांव, गांव नहीं रहेगा
बनेगा नगर
बेहोश होना चाहता था
उसी पल
टूट कर बिखरना चाहता था
गांव वाले खुश थे
उन्हें विलासिता दिख रही थी
और मुझे विनाश
अब यहां भी
छेड़खानी होगी
हो सकता है बलात्कार भी हो जाए

अब तो अलमारियों में रिश्ते
सिसकियां भरेंगे
लाज चारों पायों पर
खड़ी हो नाचेगी
नगरों-शहरों का यही तो परिचय
हर जगह पाया है मैने

चउरा अब चारदीवारी में बदल जाएगा
खेत अपार्टमेंट की शक्लें
चड़ा लेंगे
डगर सड़क बन जाएगी
छोरी को लौंडिया बनते देर नहीं लगेगी
और उसके बाद
तो न जाने क्या-क्या
अब गांव नगर नहीं शहर बन जाएगा !!!!


Sunday 13 October 2013

बापू हमारे आंखों के प्यारे

एक मोहन जो बना महात्मा


सत्याग्रह, अहिसा और सादगी को मूल मंत्र मानने वाले महात्मा गांधी जी का आज जन्म दिन है। उन्होने देश के लिए बलिदान दिया। उनके आदर्शों से प्रभावित होकर रबिद्रनाथ टैगोर ने पहली बार उन्हें महात्मा के नाम से संबोधित किया। गांधी जी ने अपना जीवन सत्य की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया था। अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने स्वयं अपनी गलतियों पर प्रयोग करना प्रांरभ किया। अपने अनुभवों को उन्होंने अपनी आत्मकथा 'माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ’ में संकलित किया था।

शुरूआती जीवन और शिक्षा

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्तूबर सन 1869 को पोरबंदर (गुजरात) के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे। मोहनदास की मां पुतलीबाई का स्वभाव धार्मिक प्रवत्ति का था। गांधीजी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई। वह गणित विषय में बेहद कमजोर व शर्मील और एकांतप्रिय स्वाभाव के मगर गंभीर व्यक्ति त्व के पुरुष थ्ो।

नकल से घृणा

एक बार विद्यालय में घटी एक घटना ने यह संदेश अवश्य दे डाला कि निकट भविष्य में यह छात्र आगे जरूर जाएगा। घटना के अनुसार उस दिन स्कूल निरीक्षक विद्यालय में निरीक्षण के लिए आए हुए थे। कक्षा में उन्होंने छात्रों की 'स्पेलिग टेस्ट लेनी शुरू की। मोहनदास शब्द की स्पेलिग गलत लिख रहे थे, इसे कक्षाध्यापक ने संकेत से मोहनदास को कहा कि वह अपने पड़ोसी छात्र की स्लेट से नकल कर सही शब्द लिखें। उन्होंने नकल करने से इंकार कर दिया। क्योंकि वह को जीवन की प्रगति में बाधक मानते थ्ो।

पश्चाताप गलतियों की माफी है

वैसे तो मोहनदास आज्ञाकारी थे, पर उनकी दृष्टी में जो अनुचित था, उसे वे उचित नहीं मानते थे। बचपन में मोहनदास बुरी संगत के कारण अवगुणों में डूब गए। धूम्रपान और चोरी करने का भी अपराध किया। लेकिन बाद में गलती को स्वीकार करते हुए उन्होंने सारी बुरी आदतों से किनारा कर लिया। उनका मानना था कि अगर सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते।

बाल विवाह प्रगति में अवरोध

तेरह वर्ष की आयु में मोहनदास का विवाह कस्तूरबा से कर दिया गया। उस उम्र के लड़के के लिए शादी का अर्थ नए वत्र, फेरे लेना और साथ में खेलने तक ही सीमित था। लेकिन जल्द ही उन पर काम का प्रभाव पड़ा। शायद इसी कारण उनके मन में बाल-विवाह के प्रति कठोर विचारों का जन्म हुआ। उन्होनें बाल-विवाह को भारत की एक भीषण बुराई मानते थे। उनका मानना था कि बचपन में ही विवाह किए जाने से जीवन के प्रगति का पथ अवरोधों से भर जाता है। बाल विवाह भारत में रोकना बेहद जरूरी है।

मेरी देह देश की और देश मेरी देह का

गांधीजी ने हमेशा दूसरों के लिए ही संघर्ष किया। मानो उनका जीवन देश और देशवासियों के लिए ही बना था । इसी देश और उसके नागरिकों के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया। वे स्वयं को सेवक और लोगों का मित्र मानते थे। यह महामानव कभी किसी धर्म विशेष से नहीं बंधा शायद इसीलिए हर धर्म के लोग उनका आदर करते थे ।
वे जीवनभर सत्य और अहिसा के मार्ग पर चलते रहे। उनका मानना था कि कोई व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता। कर्म के आधार पर ही व्यक्ति महान बनता है। उन्होंने सत्य, प्रेम और अंहिसा के मार्ग पर चलकर यह संदेश दिया कि आदर्श जीवन ही व्यक्ति को महान बनाता है ।
मोहनदास से महात्मा और महात्मा से बापू बने उस शख्स ने यह सिद्ध कर दिखाया कि दृढ़ निश्चय, सच्ची लगन और अथक प्रयास से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।




Saturday 12 October 2013

अ लव स्टोरी


इंतजार कॉफी का

पार्ट वन

 

महाराणा कॉलेज कैंपस के सेंटर में हरियाली घास से भरे व महकते फूलों से घिरी हुई बनी कैंटीन के सेकेंड फ्लोर की साइड वाली खास सीट पर बैठा है विजेंद्र।

ठीक सामने कॉलेज का मेन गेट व डी ब्लॉक है, मतलब विजेंद्र का एग्जाम सेंटर। जब भी वह जल्दी आ जाता है तो यहां जरूर बैठता है। कभी- कभी तो सिर्फ दस मिनट के लिए ही, लेकिन आता जरूर है। यहां कोने की खास सीट पर बैठकर वह इत्मीनान से अपने एग्जाम सेंटर की इमारत को घूरता है ताकता है और दिमागी आंखों से क्लासरूम, कॉरीडोर, सीढ़ियां, स्टूडियो व लाईब्र्र्र्रेरी रूम देखता रहता है। जहां वो दोनो एक साथ हो जाते हैं। जो उन दोनो के बीच कभी नहीं होता। उन दोनो से मेरा मतलब है रमा और विजेंद्र। दो बिल्कु ल अलग तरह के विपरीत और अपरिचित से इंसान।

वह नाजुक सी दिखने वाली मगर चुलबुली लड़की, जिसे विजेंद्र हद से ज्यादा पसंद करता है। दोना एक साथ एग्जाम देते हैं, कभी- कभी अगल-बगल बैठते हैं तो कभी- कभी आगे-पीछे भी। वह दोनो फस्र्ट इयर से एक साथ एग्जाम देते आ रहे हैं।
जब पहली दफा हम दोनो ने उसे देखा था, वह सितंबर की उमस भरी मगर बारिश से भीगी दोपहर थी। पता नहीं उस दिन बारिश क्यों लगातार हो रही थी। बादल उमड़-घुमड़ कर बरस रहे थ्ो। मानो प्रेमी से बिछड़ी किसी बिरहन के बरसों के आंसू हों।

एग्जाम का पहला ही दिन था। क्लासरूम में कॉपियां बंट चुकी थी। लगभग सभी आंसरशीट पर लिखना भी शुरू कर चुके थ्ो। नम खुशबू के ताजा झोंके ने हौले से इंट्री ली थी क्लास में। मेरी और विजेंद्र की आंखें ऊपर को देखते हुए एक ही जगह पर टिकी थी। जैसे कोई दो ऐरो एक ही टारगेट पर निशाना साधे हों। दरअसल वह रमा ही थी। हम दोनो उसके भीगे हुए चेहरे की खूबसूरती को टकाटक देखे जा रहे थ्ो और वह एग्जामनर को लेट पर सफाई दे रही थी। उसके चेहरे व बालों से सरकती बूंदे मोतियों से कमतर नहीं लग रही थी। वह नाजुक भीगी-कांपती लड़की कब विजेंद्र के दिल को प्यार के नुकीले तीर से गहरे चीर गई, मुझे तो विजेंद्र के उसके साथ कॉफी पीने की चाहत बताने के बाद ही पता चल पाई।

अगर आप यह मानते हैं कि प्यार हो जाने के लिए इक छोटा सा लम्हा ही काफी होता है तो जनाब वह वही लम्हा था। जब रमा ने किसी साउथ की सुपरहिट फिल्मी स्टाइल में, नाजुक-भीगी, डरी-सहमी हिरोइन की तरह रोमांटिक इंट्री ली थी क्लासरूम में।

बस उसी पल मि. विजेंद्र का दिल श्ोयर मार्केट के सेंसेक्स की भांति धड़ाम......। मैं समझ चुका था कि यह अब उछाल तो भरेगा मगर विपक्ष से पॉजिटिव आंसर मिलने के बाद ही।
कुछ देर बाद मैने नजर आंसरशीट से उठाते हुए देखा तो मि. दिल ही दिल में अभी तक मुस्कुराए जा रहे थे। उसके चेहरे पर नमी तैर चुकी थी और आंखों में चमक के साथ खुशी साफ झलक रही थी। शायद उसे उस अनोखी अनुभूति का एहसास हो चुका था जिसे लोग इस दुनिया में जीने का मकसद समझते हैं।
                                 
                                                                                                                   जारी है..........

साथियो यह प्रेमकहानी मैने अपने कॉलेज के बेफिक्री भरे दिनों में लिखी थी। इसका ऑडियो वर्जन कॉलेज में काफी पॉपुलर हो चुका है और अब बारी है रिटेन वर्जन की। इसलिए बिना किसी तामझाम के इसे श्ोयर कर रहा हूं।

नोट- यह प्रेमकहानी सच्ची घटना पर आधारित है और इसके पात्र व लोकेशन काल्पनिक न होकर पूरी तरह सत्य हैं।



 

Thursday 10 October 2013

याद शहर



याद शहर


लंबा सफर है खर्चा होगा
इक खाता रख लो
पिछली बरसात का टूटा हुआ छाता रख लो।

मोजे दो जोड़ी रख लो
स्टेशन तक जाने वाली घोड़ी रख लो।
कुएं का पानी रख लो
कहानियों वाली नानी रख लो।

बिस्तरबंद रख लो
इक छोटा सा मसंद रख लो।
पुरानी आदतें रख लो
अंदर की जेबों में याद्दाश्तें रख लो। 

हल्दी रख लो
थोड़ा जल्दी रख लो।

अब्बू की सलाह रख लो
अम्मी की दुआएं रख लो।
निकलते वक्त हथ्ोली पे पैसे रखने वाली बुआ रख लो
दादी का प्यार रख लो।
आम का अचार रख लो
दादा की छड़ी रख लो
कमर पे लटकने वाली घड़ी रख लो।

टिकिट न हो तो बेटिकिट रख लो
मुसाफिरों की खिटखिट रख लो।
कानपुर की पुरवाई रख लो
तमाम रास्ते आती जम्हाई रख लो। 

भुसावल के केले रख लो
कनपुरिया चाट के ठेले रख लो।
लोग मिलेंगे अजीबो-गरीब
कभी आड़े रख लो
कभी टेढ़े रख लो।

थोड़ी घबड़ाहट रख लो
करीबियों की मुस्कुराहट रख लो।
कंपू को अलविदा कहने से पहले
चमनगंजी संकरी गलियां रख लो-चौड़े चौराहे रख लो।

फूलबाग की भीड़ रख लो
ठग्गू के लड्डू रख लो।
अपनी यांदे बटोर लो
जीवन का सार समेट लो
और आखिर में खुद को जिंदा रख लो।।

 

इन अल्फाजों के मालिक हेमंत चौहान हैं।

और शब्दों के बदलाव का जिम्मेवार रिजवान है।



Sunday 6 October 2013

फेसबुक की कहानी



हकीकत


जब धरती सारी सोती है
अंबर काला होता है
तब दूर कहीं इक कमरे में
दो नैनों में उजाला होता है।।

कोई लिखने को कुछ आता है
काई कमेंट लगा के जाता है

होते हैं सब साथ यहां पर
बातें ढेरों होती हैं
अपनी उसकी सबकी यहां पर
बातों का चिठ्ठा होता है।।


जिसको देखो लगा यहां पर
अपनी जुगत भिड़ाने को
बात बनी जब नहीं दिखी तो
लगा कोसने फेसबुक को।।

बना रहा जो ऑनलाइन यहां पर
वही तो पठ्ठा होता है

जब धरती सारी सोती
और अंबर काला होता है
तब दूर कहीं इक कमरे में
दो नैनो में उजाला होता है ।।

 

Monday 30 September 2013

सात समंदर


सात समंदर अब सात कदम दूर


आज के मॉडर्न होते इस परिवेश में हाई क्लास फैमिली हों या मीडिल क्लास फैमिली सभी अपने बच्चों को विदेश में शिक्षा के लिए भेजना चाहते हैं। और यह अब तो एक शगल बन चुका है। दरअसल, ऐसा इसलिए है क्योंकि अब विदेश में शिक्षा पाना पहले जितना कठिन नहीं रहा है। क्योंकि अब स्टूडेंट्स के लिए कई तरह की स्कॉलरशिप चलाई जा रही जिसके जरिए स्टूडेंट्स विदेश में आसानी से अपनी पढ़ाई पूरी कर सकते हैं। इसके साथ ही एजूकेशन लोन का प्रॉस्ोस भी पहले से कहीं ज्यादा आसान और सुगम हो गया है। भारत में यूं तो लगभग चार सौ से ज्यादा विश्वविद्यालय शिक्षा प्रदान करने के काम में लगे हुए हैं लेकिन जब क्वॉलिटी एजुकेशन की बात आती है तो हमारे यहां आईआईटी और आईआईएम जैसे चुनिदा संस्थान ही विश्वस्तरीय सूची में स्थान बना पाते हैं। इन्हीं वजहों से प्रतिभाशाली भारतीय छात्र अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों के नामचीन शिक्षा संस्थानों में पढèने के लिए लालायित रहते हैं।

बदल रहा है ट्रेंड

देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए बढ़ रही प्रतियोगिता और कम सीटों की वजह से कई घराने अपने छात्रों को फॉरेन में एजूकेशन के लिए भ्ोज रहे हैं। जहां आज स्ट्रांग बैकग्राउंड के स्टूडेंट फॉरेन एजूकेशन के लिए फार्म भर रहे हैं तो वहीं लोवर बैकग्राउंड के स्टूडेंट भी अपनी काबिलियत के दम पर विदेशी यूनिवर्सिटीज में दाखिला पा रहे हैं। विश्ोषज्ञों के अनुमान के अनुसार हर साल लगभग डेढ़ लाख भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ाई करने के लिए फॉर्म भरते हैं और इनमें से अकेले अमेरिका में ही हर साल लगभग 25 हजार छात्र पढèने जाते हैं। विदेशों में पढ़ाई के प्रति भारतीय छात्रों में काफी क्रेज है। इस साल अमेरिका में जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या एक लाख के आंकड़े को पार कर गई। अमेरिका पढ़ाई के लिहाज से भारतीयों का हमेशा से ही पसंदीदा स्थान है और उसके बाद ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा, सिगापुर आदि का स्थान आता है।

विदेशी संस्थान में एंट्री

यदि आप प्रतिभावान हैं, कड़ी मेहनत कर सकते हैं और अपने को नए माहौल में ढाल सकते हैं तो विदेश में पढèने के लिए तैयार हो सकते हैं। इसके लिए आपको प्रवेश लेने से दो साल पहले तैयारी शुरू करनी होगी। इसका पहला चरण है आप जिस विषय की पढ़ाई करना चाहते हैं, उसके बारे में पता करें कि वह पढ़ाई किस देश में किस भाषा में उपलब्ध है। अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम में होती है, इसलिए आपको चिता करने की जरूरत नहीं है। यदि आप चीन, रूस और जर्मनी जैसे देशों में पढèने के इच्छुक हैं तो आपको इस मसले पर ध्यानपूर्वक गौर करना पड़ेगा। विषय का चुनाव करने के बाद आपको अपनी प्राथमिकता के हिसाब से विभिन्न विश्वविद्यालयों की सूची तैयार करनी होगी। इसके लिए आप विश्वविद्यालयों के विवरण इंटरनेट पर इनके वेबसाइट से हासिल कर सकते हैं।

विदेश में पढ़ाई का आकर्षण

विदेश में पढाई और आंखों में कॉर्पोरेट वर्ल्ड का ऊंचा ओहदा, हर छात्र का सपना होता है। खासकर अमेरिका, यूके, फ्रांस, कनाडा, जापान जैसे किसी देश से पढ़ाई करने के बाद न केवल एक्सपोजर मिलता है, बल्कि बड़ी व मल्टीनेशनल कंपनियों में आसानी से नौकरी भी मिल जाती है। लेकिन विदेश में पढ़ाई करने के लिए आपको टीओईएफएल, आईईएलटीएस, जीएमएटी, जीआरई जैसे एग्जाम्स को क्वालीफाई करना इंपार्टेंट होता है।

किस देश में कौन-सा टेस्ट

यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के शैक्षणिक संस्थानों में एडमिशन के लिए टॉफेल, जीआरई, जीमैट और एसएटी के स्कोर वैलिड हैं। वहीं दूसरी तरफ यूके के संस्थानों में एडमीशन के लिए जीसीई क्लियर करना पड़ता है। कनाडा, आयरलैंड व न्यूजीलैंड जैसे देशों में पढ़ने के लिए टॉफेल या आईईएलटीएस पर्याप्त है। आप ऑस्ट्रेलिया की तरफ रुख करने की सोच रहे हैं, तो यहां के लगभग सभी शैक्षणिक संस्थानों में आईईएलटीएस क्वालीफाई कैंडीडेट वैलिड होते हैं।
कुछ अहम जानकारियां
हालांकि यह प्रासेस जितना सरल दिखता है उतना होता नहीं। फॉरेन एजूकेशन के लिए आपका पूरी तरह से हर मायने में प्रिपेयर होना बेहद जरूरी होता है। मसलन किसी भी परिस्थित में कांफीडेंट रहना, फिजिकली और मेंटली फिट होना भी अपने आप में अहम होता है।


 

Sunday 29 September 2013

हमारे राधाकृष्णन



डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन


भारत के तमिलनाडु में चेन्नई के पास एक छोटे से गांव तिरूतनी में सन् 1888 को एक गरीब ब्राहमण परिवार में हुआ था। विद्बान और दार्शनिक डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन बचपन से ही मेधावी थे। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली रामास्वामी था और माता का नाम सीताम्मा था। इनके पिता राजस्व विभाग में कार्यरत थ्ो। राधाकृष्णन के पांच भाई और एक बहन थी। माना जाता है कि राधाकृष्णन के पुरखे सर्वपल्ली नामक ग्राम के रहने वाले थ्ो। इसीलिए उन्होने अपने ग्राम को सदैव याद रखने के लिए नाम के आगे सर्वपल्ली प्रयोग करना शुरू किया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का विवाह अति सुंदर व सुशील ब्राहम्ण कन्या शिवकामु के साथ संपन्न हुआ था। राधाकृष्णन के परिवार में पांच पुत्र व एक पुत्री थी। 

प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा

डॉ. राधाकृष्णन की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा वेल्लूर के एक क्रिश्चियन स्कूल में हुई थी। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. की डिग्री प्रा’ की। सन् 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हो गए। इसके बाद वे प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। 12 वर्ष की छोटी उम्र में ही राधाकृष्णन ने बाईबिल के कई अध्यायों को याद कर लिया था। इसके लिए उन्हें उनका पहला 'विश्ोष योग्यता सम्मान’ प्रदान किया गया था। उन्होनें मैट्रिक की प्ररीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी। राधाकृष्णन की प्रतिभा के कारण उन्हें मद्रास स्कू ल द्बारा छात्रवृत्ति भी प्रदान की गई थी। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अनोखी प्रतिभा के धनी व उच्च कोटि के छात्र थ्ो। 

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का व्यक्तित्व

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की बचपन की पढ़ाई-लिखाई एक क्रिश्चियन स्कूल में हुई थी, और उस समय पश्चिमी जीवन मूल्यों को विद्यार्थियों में गहरे तक स्थापित किया जाता था। यही कारण है कि क्रिश्चियन संस्थाओं में अध्ययन करते हुए राधाकृष्णन के जीवन में उच्च गुण समाहित हो गए। और वह परंपरागत तौर पर ना सोच कर व्यहारिकता की ओर उन्मुख हो गए थे। शिक्षा के प्रति रुझान ने उन्हें एक मजबूत व्यक्तित्व प्रदान किया था। डॉ.राधाकृष्णन बहुआयामी प्रतिभा के धनी होने के साथ ही देश की संस्कृति को प्यार करने वाले व्यक्ति भी थे।

सीधा-सरल चरित्र

डॉ. राधाकृष्णन अपने राष्ट्रप्रेम के लिए प्रसिद्ध थे। वे छल कपट से कोसों दूर थे। अहंकार तो उनमें नाम मात्र भी न था। उनका व्यक्तित्व व चरित्र बेहद सीधा और सरल था। वो जमीनी बातों पर ज्यादा गौर करते थ्ो। उनका कहना था कि ''चिड़िया की तरह हवा में उड़ना और मछली की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें मनुष्य की तरह जमीन पर चलना सीखना है। 'मानवता की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने यह भी कहा, 'मानव का दानव बन जाना, उसकी पराजय है, मानव का महामानव होना उसका एक चमत्कार है और मानव का मानव होना उसकी विजय है’। वह अपनी संस्कृति और कला से लगाव रखने वाले ऐसे महान आध्यात्मिक राजनेता थे जो सभी धर्मावलम्बियों के प्रति गहरा आदर भाव रखते थे। 

जिम्मदारियां व पद्भार

सन् 1949 से सन 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। भारत रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका भारी योगदान माना जाता है। सन् 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया। 13 मई, 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के द्बितीय राष्ट्रपति बने। सन् 1967 तक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने देश की अमूल्य सेवा की। डॉ. राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे। वे जीवनभर अपने आप को शिक्षक मानते रहे। उन्होंने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया। 

डॉ. राधाकृष्णन को दिए गए सम्मान

शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक डॉ. राधाकृष्णन को देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। कई भारतीय विश्वविद्यालयों की तरह कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी अपनी अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया। विभिन्न महत्वपूर्ण उपाधियों पर रहते हुए भी उनका सदैव अपने विद्यार्थियों और संपर्क में आए लोगों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाने की ओर रहता था। राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्बारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई संप्रदाय के व्यक्ति थे। उन्हें आज भी शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता है।

डॉ. राधाकृष्णन का निधन

शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने वाले इस महापुरूष को वृद्धावस्था के दौरान बीमारी ने अपने चंगुल में जकड़ लिया। 17 अप्रैल, 1975 को 88 वर्ष की उम्र में इस महान दार्शनिक,लेखक , शिक्षाविद ने इस नश्वर संसार को अलविदा कह दिया।





 

Tuesday 24 September 2013

वो कॉलेज के दिन



वो कॉलेज के दिन और एप्रिशिऐशन का चस्का



आजकल मेरे कॉलेज का माहौल बड़ा ही खुशनुमा है। यूं भी मौसम केंचुली छोड़ रहा है। मतलब मौसम न गर्मी का है और न ही सर्दी का। कैंपस में गार्डनर ने तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूलों के गमले लाइन से सजा रखे हैं। यहां मौजूद वॉटरफॉल के आसपास लाइन से खड़े पेड़ों की पत्तियां रोज ओस की बूंदो से नहाई मिलती हैं और मुस्काते हुए अपनी ओर रिझाने का पूरा प्रयास करती हुई जान पड़ती हैं। यहां सबकुछ बड़ा ही प्लीजेंट है। और हो भी क्यूं न? हमारे ग्रुप ने एक खूबसूरत एक्टीविटी जो चला रखी है। हार्ट-टू-हार्ट एप्रिशिएशन की।
इस एक्टीविटी के तहत फ्रेसर्स यानी जूनियर्स से फेंडली बिहैव करना, उन्हें एप्रिशिएट करना और उन्हें उनके अपने स्कूल ज्ौसा एटमॉफियर अवेलेबल करवाना है। ताकि उनके अंदर भरे गए सीनियर्स की कठोरता व रैगिंग के भूत को ईजली भगाया जा सके। जिससे हम एक डरविहीन और संकोचरहित और जिंदादिल पढ़ाई के माहौल को जिंदा कर सकें। वहीं कुछ सीनियर्स यानी मेरे बैचमेट्स को डर है कि कहीं जूनियर हमारी उदारता का फायदा न उठाएं और सीनियस- जूनियर के बीच के दायरे को भूलकर इनडिसिप्लिंड या बेलगाम न हो जाएं। खैर इन सब कांफ्लिक्ट और शंषय के बीच हार्ट-टू-हार्ट एप्रिशिएशन एक्टिविटी पुरजोर तरीके से लागू हो चुकी है। हमसभी अपने सीनियर होने का फर्ज बखूबी अदा करने की हर पल कोशिश कर रहे हैं।
बहरहाल मॉर्निंग विश्ोज की म्यूजिकल ध्वनि के साथ जब जोरदार मगर पूरी तरह से इनडिसिप्लिंड आवाज सुनाई देती है तो पता चल जाता है कि अंडरग्रेजुएट के फ्रेश बैच ने कॉलेज कॉरीडोर में इंट्री ले ली है। इनकी कैजुअल-फार्मल एक्टीविटीज से कैंपस गुलजार हो चुका है। हमें पता है स्कू ली जीवन से नए-नए आजाद हुए परिंदे रोके न रुकेंगे, पूरे कैंपस में फुदकेंगे, उछलेंगे और हर कोना छान मारेंगे, नए अड्डे ढूूढेंगे, बैचमेट व टीर्चस के उल्टे-पुल्टे नामकरण करेंगे। और हां सीनियर्स से बचने-कन्नी काटने की व्यर्थ कोशिश्ों भी करेंगे। इसके इतर इनके दिमाग में अपनी बॉडी इमेज के प्रति कई निगेटिविटीज भी होंगी, जैसे मेरी हाइट कुछ ज्यादा ही कम है, नाक कुछ लंबी ज्यादा है और वेट तो बहुत ही ज्यादा है। साथ ही कुछ उलझनें भी होंगी मसलन सब्जेक्ट इतने टफ क्यूं हैं, टीचर्स सिर्फ होशियार बच्चों पर ही ज्यादा ध्यान क्यूं देते हैं? पहले-पहले टेस्ट में मार्क्स कैस्ो आएंगे और हमारा करिअर कैसा होगा।
इन सबसे अलग बर्निंग इश्यू होगा 'ओह माई गॉड’ मेरे पास कुछ अच्छा पहनने के लिए नहीं है, या फिर मेरी पसंद आजकल किसी और को भी पसंद आने लगी है। कुछ भी हो इन सब के बीच मस्ती तो फुलऑन रहेगी।
मुझे खूब अच्छे से याद है। जब नए-नए हम कॉलेज में दाखिल हुए थ्ो। हमें हुक्म मिला था कि 'तेरे नाम’ वाली जुल्फों को कटाकर 'आनंद’ वाले राजेश खन्ना की हेयर स्टाइल एडॉप्ट कर लें उसके साथ ही शरीर पर डेली प्रेश की हुई सफेद शर्ट व काली पैंट पहनी जाए, पैरों में लेदर के ब्लैक पॉलिश किए हुए शूज हों। कुलमिलाकर मजमून यह था कि शटरडे को भी फुल्ली मेंटेन व ड्रेस्डअप होकर रेगुलर क्लासेस अटेंड करने आना था। कितना बोरिंग व तुगलकी फरमान लगा था उस समय हम सबको। लेकिन आज मालूम पड़ता है कि वह कोई तुगलकी फरमान नहीं बल्कि हमें नेक व जेंटलमैन बनाने की इक हसीन कोशिश थी। और भी कई हुक्म थ्ो जिन्हें यहां श्ोयर करना मुनासिब नहीं समझता।
छात्र जीवन की बात हो रही हो और हमें गुरुजनों की याद न आए तो लानत है हम पर। तो यह लानत न लेत्ो हुए हम अपने गुरुजनों को लपेटे में ले ही लेते हैं। यार एक बात समझ नहीं आती टीचर्स प्रजाति पता नहीं छात्रों से चाहती क्या है? आखिर इन टीचर्स को डील कैसे किया जाए? एक असाइनमेंट खत्म नहीं होता कि दूसरा थमा देते हैं। अभी दूसरा अधूरा ही होता कि तीसरा दे देते और वह अभी शुरू भी न हो पाता कि तभी टेस्ट लेने का बिगुल बजा देते और हद तो तब हो जाती जब प्रैक्टिकल व प्रजेंटेशन का बोझ भी थोप देते। पता नहीं कौन सी खुन्नस रखते हैं?
स्टूडेंट्स के मन में टीचर्स के लिए अक्सर ही उपरोक्त बातें बार-बार कुलांचें मारती रहती हैं। वहीं टीचर्स इन सबसे बेफिक्र। कभी- कभी उन्हें एप्रिशिएट करने के बजाए डीमोरालाइज कर देते हैं। जो कि निसंदेह बर्बर है। अगर टीचर्स युवा अंतर्मन में झाँक कर उनका स्ट्रेस समझकर, अपने मन की गांठे खोल कर सब्जेक्ट के माध्यम से बांडिंग करें तो जरूर आईडियल स्टूडेंट्स ही पाएंगे। साथ ही उनके अच्छे काम के लिए उन्हें एप्रिशिएट करने की भी जरूरत होती है।
अकसर देखा गया है कि हम तारीफ करने के मामले में बड़े ही कंजूस होते हैं और किसी की तारीफ करने से भी बचते हैं। इससे भी मजेदार बात ये है कि हम अपनी तारीफ,बड़ाई अच्छाई सुनना तो चाहते हैं पर दूसरों की करने से कतराते हैं। हम भूल जाते हैं कि तारीफ दूर पहाड़ से पुकारे गए 'आई लव यू’ की तरह है, जो हमारे पास ईको होकर और भी जोर से लौट आती है। ऐसा माना जाता है कि एप्रिशिएशन से लोग बेहतर फील करते हैं। एप्रिशिएशन में इतनी ताकत होती है कि निगेटिव चींजे भी पॉजिटिव हो जाती है।
तो क्या सोच रहे हैं? आप भी तय कीजिए कि आप हर रोज किसी न किसी को एप्रिशिएट जरूर करेंगे और कोई न हो तो आप खुद को ही एप्रिशिएट कर लेंगे। जिस तरह औरों की तारीफ उनको मोटीवेट करती है उसी तरह खुद की तारीफ भी हमारा मोरल बूस्ट करती है। और हां किसी को एप्रिशिएट करने के लिए किसी भारी-भरकम रिसोर्सेज जुटाने की जरूरत नहीं होती है सिर्फ छोटे- छोटे शब्द या फिर आपकी मुस्कान भी आपके इमोशंस को कन्वे करने के लिए काफी है।
बस अपना दिल खोलिए और देखिए सामने वाला कैस्ो फूला नहीं समाता। कहा तो ये भी जाता है कि लोगों में तारीफ की भूख खाने से भी ज्यादा होती है। ये एक ऐसी कला है जो आपके लिए फ्रें ड्स और फॉलोवर्स बनाती है और लाईफ को बनाती है जस्नेबहार।।

 

 

 

कॉलेज की मखमली यादों की इन लाइनों को मैने साल 2०12 के नवंबर महीने की सरमायी सर्दी की एक सुबह कानपुर के महाराणा प्रताप कॉलेज की कैफेटेरिया के बगल में बने वॉटरफ ॉल के पुल पर ब्ौठकर पूरा किया था। और आज आप सभी से शेयर कर रहा हूं।

कॉलेज के वो दिन कितने हसीन और कौतूहल से लबालब भरे थ्ो। आज कॉलेज से निकलकर वो दिन, वो मस्ती-बेफिक्री और खूबसूरत पलों को बहुत मिस कर रहा हूं। लव यू एमपीएसवीएस।।

 


Saturday 21 September 2013

आओ तुम भी डिजिटल हो जाओ


डिजिटल हैबिट्स का दीवाना यंगिस्तान

आजकल युवाओं को गैजेट मनिया नाम का रोग लग चुका है। गैजेट मनिया मतलब नई टेक्नोलाजी के गैजेट्स के प्रयोग के प्रति हद से ज्यादा पागलपन। भावी युवा पीढ़ी रोज-रोज नई तकनीकी से रूबरू हो रही है। युवा आज पहले से ज्यादा टेक सेवी होता जा रहा है। इसका कारण सिर्फ कम समय में अपनी रोजाना बढ़ रही महत्वाकांछाओं को पूरा करने की मानसिकता भर है। टीसीएस सर्वे 2०12-13 के अनुसार भारत की माडर्न युवा पीढèी अपनी पहले की पीढèी को काफी पीछे छोड़ते हुये फेसबुक और ट्वीटर, याहू, जीमेल, गूगल प्लस जैसे सोशल नेटवर्क्स को संचार साधन के रूप में उपयोग कर रही है।

14 भारतीय शहरों के लगभग 17,5०० हाईस्कूल विद्यार्थियों पर किए गए टीसीएस सर्वे यह साफ करता है कि स्मार्ट डिवाइसेज एवं ऑनलाइन एक्सेस के अभूतपूर्व स्तर ने इस पीढèी को बहुत अधिक संपर्कशील बना दिया है। इससे इनके एक-दूसरे से किए जाने वाले संचार के तरीकों में बड़ा बदलाव हो रहा है, साथ ही साथ इससे इनके शैक्षणिक एवं सामाजिक जीवन दोनो में कायापलट होने लगा है।

स्कूल से सामाजिकता की ओर बढèते कदम
चार में से लगभग तीन विद्यार्थी इंटरनेट को एक्सेस करने का मुख्य कारण स्कूल से संबंधित कार्यों को बताते हैं। इसके बाद वे इसका उपयोग अपने मित्रों के साथ चैटिंग करने/संपर्क करने के लिये करते हैं। जबकि 62 प्रतिशत ईमेल को प्राथमिकता देते हैं।

नेट के प्रयोग में बढ़ोत्तरी
लगभग 84 प्रतिशत विद्यार्थी अब घर से इंटरनेट का प्रयोग करने लगे हैं। ऑनलाइन एक्सेस प्वाइंट के रूप में साइबर कैफे के इस्तेमाल में चौंकाने वाली गिरावट देखी गयी है। माडर्न होते यूथ के लिये अपने साथियों से संपर्क करने का पहला और पसंदीदा तरीका फेसबुक जैसा सामाजिक नेटवर्क है। 92 प्रतिशत युवा इस सामाजिक मंच को प्राथमिकता देते हैं।

स्पीड को इंपार्टेंस
हाइस्कूल स्तर के प्रत्येक 1० विद्यार्थियों में से लगभग 7 के पास मोबाइल फोन है, तथा लगभग 2० प्रतिशत विद्यार्थी मोबाइल फोंस का इस्तेमाल इंटरनेट को एक्सेस करने के लिये करते हैं।
लेकिन अब टैबलेट भी पीछे नहीं है इसका इस्तेमाल भी बढ़ा है। लगभग 19 प्रतिशत युवा इस नए डिवाइस का इस्तेमाल सिर्फ फास्ट स्पीड के कारण कर रहे हैं।

कालिग के बजाय चैटिंग
भारत की शहरी युवा पीढèी वायस काल के विकल्प के रूप में अब टेक्स्टिंग और चैटिंग को अपनाने लगी है। लगभग 74 प्रतिशत युवा अधिकांश संपकरें के लिये फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, जबकि 54 प्रतिशत इसके लिये एसएमएस का इस्तेमाल करते हैं। जबकि वायस काल्स के मामले में सिर्फ 44 प्रतिशत युवा ही इस्तेमाल करते हैं।

टैबलेट्स की दीवानगी
माडर्न युवा पीढèी टैबलेट्स का प्रयोग करने में आगे है। इस पीढèी में इस गैजट का इस्तेमाल तेजी से बढè रहा है। इस वर्ष देश में 38 प्रतिशत युवा इस डिवाइस के यूजर बने हैं।

ब्रांड की डिमांड
इस पीढèी में ब्रांड के प्रति आकर्षण पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ा है। शीर्ष मोबाइल/टैबलेट ब्रांड्स मेट्रो और मिनी मेट्रो दोनो शहरों के युवाओं की इच्छा के दायरे में आने लगे हैं। जहां सैमसंग (48.28 प्रतिशत), नोकिया (46.46 प्रतिशत), एप्पल (39.56 प्रतिशत) एवं एचटीसी (36.54 प्रतिशत) में प्रयोग किया जा रहा है।
आईटी में करिअर बनाने की होड़
यह पीढèी अब पहले से कहीं अधिक जागरूक है। वह अपने भविष्य की नौकरियों के प्रति बहुत स्पष्ट विचार रखती है। युवा पीढèी में आज भी आईटी एक पसंदीदा करिअर है। इसके बाद इंजीनियरिंग एवं मेडिकल का स्थान है। जबकि मीडिया/मनोरंजन शहरी युवाओं के पसंदीदा करिअर के रु प में उभरा है।

इंपार्टेंट फैक्ट्स
देश के 7० प्रतिशत विद्यार्थी स्मार्ट फोंस के मालिक
चार में से तीन छात्र इंटरनेट का उपयोग स्कूल से संबंधित कार्य के लिये करते हैं
84 प्रतिशत युवा घर से इंटरनेट को एक्सेस करते हैं
5० प्रतिशत से अधिक युवा एंड्राएड-पॅवर स्मार्ट डिवाइस का उपयोग करने लगे हैं

विश्ोषज्ञों की राय
टीसीएस के निदेशक श्री एन. चंद्रशेखरन के अनुसार 'वर्तमान समय में शहरी स्कूली विद्यार्थी स्मार्ट डिवाइसेज की उपलब्धता के साथ ऑनलाइन एक्सेस का लाभ उठाने लगे हैं। यह बहुत ही संपर्कशील पीढèी है, जो इंटरनेट की पावर का इस्तेमाल शिक्षा के साथ ही साथ सामाजिक नेटवर्क्स के साथ जुड़ने एवं सही ग्रुप्स को डेवलेप कर रही है। इससे इस पीढèी के लिये दिलचस्प कॅरियर निमार्ण के रास्ते खुल रहे हैं।




 

Tuesday 17 September 2013

डिजिटल हुआ यंगिस्तान


आजकल युवाओं को गैजेट मनिया नाम का रोग लग चुका है। गैजेट मनिया मतलब नई टेक्नोलाजी के गैजेट्स के प्रयोग के प्रति हद से ज्यादा पागलपन। भावी युवा पीढ़ी रोज-रोज नई तकनीकी से रूबरू हो रही है। युवा आज पहले से ज्यादा टेक सेवी होता जा रहा है। इसका कारण सिर्फ कम समय में अपनी रोजाना बढ़ रही महत्वाकांछाओं को पूरा करने की मानसिकता भर है। टीसीएस सर्वे 2०12-13 के अनुसार भारत की माडर्न युवा पीढèी अपनी पहले की पीढèी को काफी पीछे छोड़ते हुये फेसबुक और ट्वीटर, याहू, जीमेल, गूगल प्लस जैसे सोशल नेटवर्क्स को संचार साधन के रूप में उपयोग कर रही है।
14 भारतीय शहरों के लगभग 17,5०० हाईस्कूल विद्यार्थियों पर किए गए टीसीएस सर्वे यह साफ करता है कि स्मार्ट डिवाइसेज एवं ऑनलाइन एक्सेस के अभूतपूर्व स्तर ने इस पीढèी को बहुत अधिक संपर्कशील बना दिया है। इससे इनके एक-दूसरे से किए जाने वाले संचार के तरीकों में बड़ा बदलाव हो रहा है, साथ ही साथ इससे इनके शैक्षणिक एवं सामाजिक जीवन दोनो में कायापलट होने लगा है।

 

Friday 13 September 2013

दैत्याकार शिकारी डायनासोर






डायनासोर हमेशा से ही मानव जाति के लिए जिज्ञासा और कौतूहल का विषय रहे हैं। इनके अस्तित्व को जीव विज्ञानियों ने कभी नकारा नहीं है। समय-समय पर वैज्ञानिकों को मिले इनके जीवाश्म धरती पर इनके अस्तित्व को पुख्ता करते हंै। डायनासोर देखने में बेहद खूंखार, बड़े से बड़े जीव को भी अपने पंजों में दबाकर उड़ने की ताकत रखने वाले दैत्याकार डायनासोर की कल्पना आज भी हमारे शरीर में सिहरन पैदा कर देती है।
डायनासोर का मतलब होता है दैत्याकार छिपकली। ये छिपकली और मगरमच्छ कुल के जीव थे। करीब 25 करोड़ वर्ष पूर्व जिसे जुरासिक काल कहा जाता है। 6 करोड़ वर्ष पूर्व क्रेटेशियस काल के बीच पृथ्वी पर इनका ही साम्राज्य माना जाता था। उस काल में इनकी कई प्रजातियां पृथ्वी पर पाई जाती थीं। इनकी कुछ ऐसी प्रजातियां भी थीं, जो पक्षियों के समान उड़ती थीं। ये सभी डायनासोर सरिसृप समूह के जीव थे। इनमें कुछ छोटे डायनासोर थ्ो जिनकी लंबाई 4 से 5 फीट थी। तो कुछ विशालकाय 5० से 6० फीट लंबे थे।


Thursday 8 August 2013

इक हसीन मुलाकात





फिल्म 'रब्बा मैं क्या करु की नायिका ताहिरा कोचर से खास बातचीत:


सबसे पहले अपने बारे में बताएं?

 

-मैं दिल्ली की ही रहने वाली हूं। मेरी शिक्षा दिल्ली में ही हुई। ब्रिटिश स्कूल से स्कूली पढ़ाई की। बिजनेस पीआर और एडवरटाइंिजग में डिप्लोमा हासिल किया। स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद मॉडलिंग करनी शुरू कर दी थी। मैं 'फेमिना मिस इंडिया 2०1०’ की टॉप 2० फाइनालिस्टों मंे थी। पर अभिनय करना तो मेरा बचपन का सपना रहा है। माधुरी दीक्षित मेरी आदर्श हैं। अब फिल्म 'रब्बा मैं क्या करूं’ में अभिनय करने से मेरा बचपन का सपना पूरा हुआ है।

फिल्म''रब्बा मैं क्या करूं’’में अभिनय करने का मौका कैसे मिला?


-'फेमिना मिस इंडिया 2०1०’की टॉप 2० फाइनलिस्ट चुने जाने के बाद से मेरे पास फिल्मों के ऑफर आने लगे थे। पर मैं अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी। इसलिए मैंने उन ऑफर पर ध्यान नहीं दिया। मेरे पास दो तीन बार फिल्म 'रब्बा मैं क्या करूं’ के सहायक निर्देशक का भी फोन आया, पर मंैने उन्हें मना कर दिया था। क्योंकि उस वक्त मेरा पूरा ध्यान पढ़ाई पर था। लेकिन एक दिन फिल्म के निर्देशक अमृत सागर खुद दिल्ली आए। उन्होंने मुझे फोन किया। पता नहीं क्यों मैं उनको मना नहीं कर पायी और मैं ऑडीशन देने पहुंच गयी। यह ऑडीशन दिल्ली मंे ही हुआ था और मुझे फिल्म 'रब्बा मैं क्या करुं ’ की नायिका बना दिया गया।

अभिनय की कोई ट्रेनिंग ली?


-नहीं, शूटिंग से पहले सिर्फ दस दिन का वर्कशॉप किया। स्कूल दिनांे में डांस व अभिनय करती रही हूं।

फिल्म के अपने पात्र को लेकर क्या कहेंगी?


-मैंने इसमें भावुक लड़की ·ेहा मल्होत्रा का पात्र निभाया है, जो कि साहिल की बचपन की पे्रमिका है। उसके óिए रिश्ते बहुत मायने रखते हैं।
लेकिन अभिनय कैरियर की शुरूआत नवोदित अभिनेता आकाश चोपड़ा के साथ करते हुए रिस्क नहीं लगा?
-कैसी रिस्क इस फिल्म में आकाश चोपड़ा के अलावा अरशद वारसी, राज बब्बर, परेश रावó, शक्ति कपूर जैसे महारथी कलाकार हैं। पहली ही फिल्म में इतने महारथी कलाकारों के साथ काम करना बहुत बड़ी अहमियत रखता है। मुझे इन सभी कलाकारों से बहुत कुछ सीखने को मिला।

फिल्म में काम करने के अनुभव कैसे रहे?


-ईमानदारी की बात है कि मेरे अनुभव बहुत अच्छे रहे। सेट पर मैं सबसे छोटी थी। सभी कलाकारों ने मेरा हौसला बढ़ाया। मुझे सलाह दी, मुझे राह दिखायी। फिल्म के निर्देशक अमृत सागर के साथ काम करते हुए मैंने बहुत कुछ सीखा। मैं तो पिछले दो साल से इस फिल्म के साथ जुड़ी हुई हूं। निजी स्तर पर अब मुझे लगता है कि मैं कितनी मैच्योर हो गयी हूं। मैंने काम, प्रोफेशनलिजम, अनुशासन सब कुछ सीख लिया है। वैसे तो आर्मी की बैकग्राउंड होने की वजह से मेरी परवरिश बहुत अनुशासित ढंग से हुई है। पर फिल्म की शूटिंग के दौरान मैंने बहुत कुछ सीखा। फिल्म 'रब्बा मैं क्या करूं’ करते हुए मैंने 'पैशन’ रखना सीखा।

भविष्य की योजना ?


-अभिनय ही करना है। कुछ फिल्मों के आफर हैं, मगर मुझे ' रब्बा क्या करुं ’ के प्रदर्शन का इंतजार है। अब मुझे हर हाल में सफल अभिनेत्री बनना ही बनना है।

 

एक स्वप्नपरी का साछात्कार




किरदार पर निर्भर करती है केमेस्ट्री: सोनम कपूर


क्या 'रांझणा’ में एक स्कूली लड़की का रोल निभाना मुश्किल रहा?


यह मुश्किल तो नहीं था पर मैं इस रोल को लेकर थोड़ी नर्वस थी। जब हम बनारस में शूटिंग कर रहे थे तो करीब दो हजार लोग शूटिंग देखने के लिए जमा हो गए थे। इस रोल में मैंने स्कूली लड़की की ड्रेस पहनी थी और दो चोटियां बनाई थीं, और सेट के आसपास बहुत सारे लोगों को देखकर मेरा नर्वस होना स्वाभाविक था।

क्या कम उम्र का नजर आने के लिए आपने कोई खास तैयारी की?


खुशकिस्मती से मैं बिना मेकअप के स्कूली लड़की ही नजर आती हूं। इस मामले में मैं अपने डैडी की तरह हूं। मैं इतना जरूर कहूंगी कि शूटिंग के वो 15-2० दिन मेरे लिए बहुत यादगार रहे।

क्या आपने इस रोल की तैयारी के लिए जया बच्चन की फिल्म 'गुXी’ को देखा था?


हां--स्कूल गर्ल के पार्ट के लिए मैंने ऐसा किया था। मुझे वो सीन बहुत पसंद आया जब गुXी स्कूल प्रेयर के लिए देर से पहुंचती है और स्कूल टीचर उसे सजा देती हैं और वे मिलेजुले भाव व्यक्त करती हैं। नटखटपन और मासूमियत का यह मेल बहुत अच्छा था।

आपको अपने स्कूल के दिन भी जरूर याद आए होंगे। आपका स्कूली जीवन कैसा था?


हमारा स्कूल दूसरे स्कूलों जैसा ही था। मेरा स्कूल ऐसा ही था जैसा इस फिल्म में मेरे कैरेक्टर जोया का है।

कोस्टार धनुष के साथ आपकी केमिस्ट्री के बड़े चर्चे हैं।


यह अच्छी बात तो है लेकिन इससे डर भी लगता है। अच्छी केमिस्ट्री इस बात पर निर्भर करती है कि आपके किरदार कैसे हैं। हमारी केमिस्ट्री इतनी अच्छी नहीं होती अगर हम लोग अलग-अलग निर्देशकों के साथ काम करते। शाहिद कपूर और करीना कपूर को ही ले लीजिए, उन्होंने कई फिल्मों में काम किया है, लेकिन फि ल्म 'जब वी मेट’ में उनकी केमस्ट्री कमाल की है। इसका श्रेय निर्देशक इम्तियाज अली को जाता है।

केमिस्ट्री अपनी एक्टिंग के जरिए भी कायम की जा सकती है।


केमिस्ट्री के बारे मंे कुछ नहीं कहा जा सकता। अभिषेक बच्चन के साथ मुझे 'दिल्ली 6’ में तो पसंद किया गया लेकिन 'प्लेयर्स’ मंे यह बात काम नहीं आई।

आपने एक ऐसी अभिनेत्री की छवि बना ली है जो डिफरेंट रोल करना चाहती है, भले ही वो कॉमर्शियल एंगल से उतने कामयाब नहीं हों। क्या यह बात सही है?


मेरे जीवन में कॉमर्शियल रेशियो के लिए कोई जगह नहीं है। मैं अलग-अलग रोल करना चाहती हूं। यह अच्छा है कि मैं अभी टाइपकास्ट नहीं हूं। फिल्मकार मुझे अलग-अलग रोल दे रहे हैं। आनंद राय सर ने भी जोया के रोल के लिए किसी और के नाम पर विचार नहीं किया।

लेकिन ऐसी भी चर्चा रही कि आप इस फिल्म के लिए उनकी पहली पसंद नहीं थीं?


यह सही नहीं है। दूसरी अभिनेत्री की पीआर मशीनरी इस तरह की बातें फैला रही हैं। मैं इस रोल के लिए शुरू से ही पहली पसंद थी। मैं जिस फिल्म के लिए ना कह देती हूं कभी उसकी चर्चा नहीं करती। मैं इस बारे में कोई चर्चा नहीं करती क्योंकि मैं अपने निर्देशक, निर्माता और साथी कलाकारों का सम्मान करती हूं।

क्या आपको 'प्लेयर्स, थैंकयू, मौसम’ जैसी फिल्में करने का अफसोस है?


मुझे किसी बात का अफसोस नहीं है। मुझे तो लगता है कि मौसम को अच्छा रिस्पांस मिला है। मेरा मानना रहा है कि मुझे ऐसी फिल्में करनी चाहिए जो मुझे अच्छी लगती हैं, न कि ऐसी फिल्में जिन्हें लोग पसंद करते हैं। आपकी फिल्म चले या नहीं चले पर यह जरूरी है कि आपको लोग याद रखें। मैं ऐसी फिल्मांे के साथ-साथ कॉमर्शियल फिल्में भी करना चाहती हूं।

तो आप दोनों तरह के सिनेमा का हिस्सा बनना चाहती हैं?


दोनों तरह के सिनेमा का हिस्सा बनना कोई आसान नहीं है। थोड़ा और अनुभव हो जाए तो मैं दोनों तरह की फिल्में कर सकती हूं।

'आयशा’ के बाद अभय देओल के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?


अभय बहुत अच्छे दोस्त हैं। वे कुछ मामलांे में मेरे डैडी से सहमत नहीं हैं, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं है। मुझे पता है कि उनके जीवन में क्या चल रहा है। इसी तरह उन्हें मेरे बारे में सब कुछ पता है। अगर मुझे उनके साथ कोई दिक्कत होती तो मैं उनके साथ काम नहीं कर पाती। मैं इस मामले में एकदम ईमानदार हूं।

क्या इस रोल के लिए आपने अपनी पर्सनल लव लाइफ से भी कुछ प्रेरणा ली है?


अभी तक तो मेरी लव लाइफ नाकाम ही रही है। लेकिन हम लोग ऐसे ही होते हैं जो पूरे जीवन में सब लोगों को प्यार बांटते चलते हैं। फिल्म में ऐसे ही जज्बात दिखाए गए हैं।





 

Wednesday 31 July 2013

एक क्लिक और दुनिया मुट्ठी में



वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी : रोमांच को करें कैमरे में कै



कहा जाता है कि एक फोटो दस हजार शब्दों के बराबर होती है। फोटोग्राफी एक कला है जिसमें विजुअल कमांड के साथ-साथ टेक्नीकल नॉलेज भी जरूरी है। फोटोग्राफी एक बेहतर क रिअर ऑप्शन साबित हो सकता है उन सभी छात्रों के लिए जिन्हे नेचर से प्यार है। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी एक ऐसी ही फील्ड है जहां एक तरफ घने जंगलों के बीच खूàंखार जानवरों को अपने कैमरे में कैद करने व उनके अलग-अलग मूवमेंट्स को दुनिया के सामने लाने का रोमांच है तो वहीं दूसरी तरफ इस क्ष्ोत्र में खतरे भी कम नहीं हैं।
आज सरकार व सामाजिक संगठनों द्बारा वन्य जीवों के जीवन को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों की वजह से यह क्ष्ोत्र रोजगार की दृष्टि से नये रास्ते खोलने वाला साबित हुआ है। अगर आपकी तमन्ना भी है खतरनाक जानवरों को पास से देखने की और दुनिया को दिखाने की तो आपके लिए यह निसंदेह बेहतर करिअर ऑप्शन साबित हो सकता है।

क्रि एटीविटी व अवसरों से भरा करिअर

फोटोग्राफी के इस क्षेत्र में जानवरों, पक्षियों, जीव-जंतुओं की तस्वीरें ली जाती हैं। एक नेचर फोटोग्राफर ज्यादातर कैलेंडर, कवर, रिसर्च इत्यादि के लिए काम करता है। नेचर फोटोग्राफर के लिए रोमांटिक सनसेट, फूल, पेड़, झीलें, झरना इत्यादि जैसे कई आकर्षक टॉपिक हैं।
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी को करिअर के तौर पर चुनने से पहले वाइल्ड लाइफ के रूल्स एंड रेगुलेशंस की इंफार्मेशन होना भी बेहद जरूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है आपकी क्रिएटिविटी। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी में करिअर को स्टैब्लिश करने के लिए बहुत ज्यादा स्ट्रगल करना होता है, लेकिन इस क्ष्ोत्र में रोजगार के अवसरों की तमाम संभावनाएं मौजूद हैं। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का क्ष्ोत्र रोमांच से भरा हुआ है।
 

चुनौतियां भी कम नहीं

इस क्षेत्र में पेशेंस की बेहद जरूरत होती है, क्योंकि यहां आने के बाद आप अपने मनमुताबिक नहीं चल सकते। कई बार भयानक जंगल में रात में भी फोटोग्राफी करनी पड़ सकती है। क्योंकि कई विलु’ प्रजाति के वन्यजीव अपनी आदत के मुताबिक रात में ही बाहर निकलते हैं। इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती है खुद को अपडेट करते रहने की। आपको फोटोग्राफी के नए-नए टूल्स और लेंसों से खुद को अवेयर रखना होता है। फोटो कैप्चर करने के लिए सही एंगल का चुनाव भी बेहद जरूरी है। अच्छी फोटो के लिए इंतजार भी एक इस फील्ड में नाम कमाने को अहम हिस्सा है, जो एक दिन से लेकर सालों का हो सकता है। सफल वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है अच्छी आंख, जो प्रकृति की सुंदरता पहचान सके।
 

प्रवेश योग्यता

फोटोग्राफी एक क्रिएटिव क्ष्ोत्र है जिसमें वर्तमान में बेहतर करिअर की संभावनाएं मौजूद हैं। बारहवीं या ग्रेजुएशन करने के बाद इस क्षेत्र में प्रवेश लिया जा सकता है। फोटोग्राफी का कोर्स सरकारी और निजी स्तर पर कई संस्थान कराते हैं। एक अच्छा वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनने के लिए बेसिक फोटोग्राफी की जानकारी होना बेहद जरूरी है। हालांकि एक साधारण डिजिटल कैमरा लेकर शौकिया तौर पर शुरुआत की जा सकती है। एक-दो साल का अनुभव हो जाने के बाद डिजिटल एसएलआर खरीद कर प्रोफेशनली इस क्षेत्र में एंट्री की जा सकती है।
 

कोर्स एक रास्ते अनेक

देशी-विदेशी वाइल्ड लाइफ और नेचर मैगजीनों में वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफ्स की मांग हमेशा बनी रहती है। इसके अलावा वन्य जीवों पर काम करने वाले कई संस्थान भी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर्स को हॉयर करते हैं। नेशनल ज्योग्राफिक, डिस्कवरी और एनीमल प्लेनेट जैसे चैनल भी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर्स को फोटोग्राफ्स के लिए अप्वाइंट करते हैं।
फ्रीलांसर कॉरपोरेट, वाइल्ड लाइफ मैगजीन्स, नेचर-वाइल्ड लाइफ प्रोड्यूसर्स और टीवी चैनलों के साथ फ्रीलांस के तौर पर भी जुड़ा जा सकता है।
 

सैलरी पैकेज

अभी तक यह क्षेत्र हमारे देश में ज्यादा फेमस नहीं था तो कमाई के साधन भी सीमित थे, लेकिन ग्लोबलाइजेशन के बाद अब इस क्षेत्र में अच्छा पैसा कमाया जा सकता है। किसी संस्थान से जुड़ने पर आसानी से 1० से 2० हजार रुपए प्रतिमाह की कमाई हो सकती है। एक अनुभवी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर प्रतिमाह आसानी से एक लाख रुपए कमा सकता है। इसके अलावा कुछ सीनियर फोटोग्राफर्स भी अपने असिस्टेंट रखते हैं, जो न केवल सिखाते हैं बल्कि 1० से 12 हजार रुपए का स्टाइपेंड भी देते हैं।

कोर्स और संस्थान

किसी भी सरकारी या निजी संस्थान से फोटोग्राफी का कोर्स करने के बाद इस क्षेत्र में प्रवेश किया जा सकता है। हालांकि भारत में अभी इस क्षेत्र के लिए कोई स्पेशलाइज्ड कोर्स उपलब्ध नहीं है। फोटोग्राफी में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट दो तरह के कोर्स कराए जाते हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर डेवलेपमेंट इन एजुकेशन एंड एडवांस्ड स्टडीज, अहमदाबाद
कॉलेज ऑफ आर्ट्स, तिलक मार्ग, दिल्ली
एजेके मास कम्युनिकेशन सेंटर, जामिया मिलिया इस्लामिया, नई दिल्ली
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद,
सेंटर फॉर रिसर्च इन आर्ट ऑफ फिल्म्स ऐंड टेलीविजन नई दिल्ली
दिल्ली स्कूल ऑफ फोटोग्राफी
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फोटोग्राफी, मुंबई



 

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