Saturday 25 January 2014

26 जनवरी


 अमर रहे गणतंत्र हमारा....


देश के जुझारू क्रांतिकारियों, देशभक्ति से ओतप्रोत लोगों की अथाह मेहनत व बलिदान के बाद भारत 15 अगस्त सन् 1947 को आजाद हो सका। आजादी के बाद देश को सुचारू ढंग से चलाने के लिए संविधान निर्माण की जरूरत महसूस की गई। संविधान निर्माण के लिए 211 विशेषज्ञों की समिति का गठन किया गया, और इस समिति का अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर को बनाया गया। संविधान निर्माण में दो साल ग्यारह महीने और 18 दिनों का वक्त लगा।
 
भारतीय संविधान दुनिया में सबसे बड़ा लिखित संविधान है। इसके निर्माण के बाद कई संशोधन भी किए गए। संविधान में भारतीयों के 6 मूल अधिकारों को भी सम्मिलित किया गया है, इनमें समानता का अधिकार, स्वंतत्रता का अधिकार, शोषण के विरोध में आवाज उठाने का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक-शैक्षणिक अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार प्रमुख हैं।
देश के आजादी के बाद आज ही के दिन 26 जनवरी सन् 195० को अधिकारिक तौर पर संविधान को लागू किया गया। तब से 26 जनवरी को पूरे भारतवासी हर्षोल्लास के साथ गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। इस दिन पूरे भारत में राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया है। इस बार देश 65वें गणतंत्र दिवस खुशियां मना रहा है।

देश-दुनिया में 26 जनवरी

26 जनवरी हिंदुस्तान की आजादी से पहले भी देश के लिए एक अहम दिन था। इस दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में सन् 193० को पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया था। इस दिन को स्वराज दिवस के तौर पर मनाए जाने की घोषणा और इस दिन को स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर याद किए जाने की घोषण की गई।
26 जनवरी 195० को संविधान के लागू होने के साथ सबसे पहले डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाउस के दरबार हाल में भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली और राष्ट्रीय ध्वज फहराया।
26 जनवरी 1788 को आस्ट्रिेलिया ब्रिटेन का उपनिवेश बना।
26 जनवरी 19०5 को दुनिया का सबसे बड़ा हीरा, क्यूलियन दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया में मिला। इसका वजन 31०6 कैरेट था।
26 जनवरी 1924- सेंट पीट्सबर्ग का नाम बदलकर लेनिनग्राद कर दिया गया।
26 जनवरी 193०- भारत में पहली बार स्वराज दिवस मनाया गया।
26 जनवरी 1931 सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार से बातचीत के लिए महात्मा गांधी रिहा किए गए।

26 जनवरी वर्ष 1937 में गठित भारतीय संघीय न्यायालय का नाम सर्वोच्च न्यायालय कर दिया गया
26 जनवरी 195०-भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित हुआ और भारत का संविधान लागू हुआ। साथ ही उत्तर प्रदेश के सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ के शेरों को राष्ट्रीय प्रतीक की मान्यता मिली।
26 जनवरी 1972- युध्द में शहीद सैनिकों की याद में दिल्ली के इंडिया गेट पर अमर जवान योति स्थापित।
26 जनवरी 1981- पूर्वोत्तर भारत में हवाई यातायात सुगम बनाने को ध्यान में रखते हुए हवाई सेवा वायुदूत.. शुरू।
26 जनवरी 1982- पर्यटकों को शाही रेल यात्रा का आनंद दिलाने के लिए भारतीय रेल ने पैलेस आन व्हील्स सेवा शुरू की।




 

Thursday 23 January 2014

'नेताजी'

एक था जुझारू 'नेता’


यूं तो देश ने कई महान रणबांकुरों को जन्म दिया। लेकिन इन रणबांकुरों में से एक था जुझारू , लगनशील, कभी न हार मानने वाला दयावाल सुभाष चंद्र बोस। नेता जी सुभाष चंद्र का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक खुशहाल बंगाली परिवार में हुआ था। बोस के पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और मां का नाम 'प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। सुभाष अपेन 14 भाई-बहनों में से नौवीं संतान थे।

अव्वल दर्जे के छात्र

नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में प्रा’ की। आगे की पढ़ाई के लिए सुभाष को कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला करवाया गया। सुभाष चंद्र शुरू से ही कुशाग्र बुद्धि के समझदार और अद्बितीय प्रतिभा के धनी थ्ो। शिक्षा के प्रति अधिक लगाव को देखकर उनके पिता ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में एडमिशन करवाया। वहां के परीक्षाफल में सुभाष सभी बच्चों में श्रेष्ठ आए।
 

जझारू व्यक्तित्व

सुभाष अपने समय के प्रतिभा संपन्न छात्रों की श्रेणी में गिने जाते थ्ो। सुभाष का मानना था कि अगर आपन्ो किसी कार्य की शुरूआत की है तो उसे खत्म करने से पहले सांस मत लो। बोस की भारतीय प्रशासनिक सेवा में रूचि को देखकर परिवार ने बोस को इंग्लैंड के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी भेज दिया। यूं तो अंग्रेजी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन होता था, लेकिन सुभाष के जुझारू व्यक्तित्व ने इस भ्रांति को भी तोड़ दिया। सुभाष के अथक प्रयासों के तहत वे सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थ्ो।

दयावान चरित्र

सुभाषचंद्र बचपन से ही बेहद दयावान थ्ो। उनसे लोंगों की बेबसी और दुख देखा नहीं जाता था। सुभाष के घर से उनके कॉलेज की दूरी 3 किलोमीटर थी। जो पैसे उन्हें खर्च के लिए मिलते थे उनमें उनका बस का किराया भी शामिल था। उस बुढ़िया की मदद हो सके, इसीलिए वह पैदल कॉलेज जाने लगे और किराए के बचे हुए पैसे वह बुढ़िया को देने लगे। साथ ही वह अपने दोपहर का खाना भी उस बुढ़िया को दे दिया करते थ्ो।
सुभाष का मानना था कि यदि हमारे समाज में एक भी व्यक्ति ऐसा है जो अपनी बेसिक जरूरतों को पूरा नहीं सकता तो मुझे सुखी जीवन जीने का कोई अधिकार नहीं है।

राजनीति में कदम

उन दिनों गांधीजी ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था। देशबंधु चितरंजनदास इस आंदोलन का बंगाल में नेतृत्व कर रहे थे। स्वतंत्रता की अलख लिए सुभाष इस आंदोलन में शामिल हो गए। उसके बाद सन् 1922 में दासबाबू की स्वराज पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर कोलकाता महापालिका का चुनाव जीत लिया। दासबाबू कोलकाता के महापौर बने और सुभाष को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया गया। बहुत जल्द ही सुभाष देश के एक महत्वपूर्ण युवा नेता बन गए।
कारावास बना दूसरा घर
पूरी तरह से सक्रिय राजनीति में आने से पहले नेताजी ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया। वह कई साल तक यूरोप में रहे। उसी दौरान आस्ट्रियन युवती से विवाह भी रचाया। अपने जीवनकाल में सुभाष को पहली बार 16 जुलाई 1921 को जन भावना भड़काने के आरोप में जेल भ्ोजा गया। इसके बाद तो कारावास जैस्ो सुभाष का दूसरा घर बन गया। वह अपने जीवन काल में देश की खातिर तकरीबन 11 बार जेल गए।
 

आजाद फौज का गठन

अपन्ो उठापठक भरे राजनीतिक जीवन में लोगों ने सुभाष को नया नाम दिया नेताजी। सुभाष ने सशक्त क्रांति द्बारा भारत को अंगेजों के चंगुल से स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आजाद हिंद फौज की स्थापना की। नेताजी अपनी आजाद हिद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुंचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, ’’तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’’ दिया।
18 अगस्त 1945 को टोक्यो जाते समय ताइवान के पास नेताजी की मौत हवाई दुर्घटना में हो गई, लेकिन आजतक उनका शव नहीं मिल सका। नेताजी की मौत के कारणों पर आज भी विवाद बना हुआ है।




 

Tuesday 14 January 2014

फकीरों का सेनापति


उड़िया साहित्य का सेनापति

ओड़िसा आधुनिक साहित्य में फकीर मोहन सेनापति 'कथा-सम्राट्’ के रूप में आज भी प्रसिद्ध हैं। भारतीय साहित्य खासकर कहानी एवं उपन्यास रचना में उनकी विशिष्ट पहचान रही है।
फकीर मोहन सेनापति का जन्म ओडिèशा के बालेश्वर जिले के मल्लिकाशपुर गांव में, 13 जनवरी 1843 में हुआ था। इनकी लेखनी से भारतीय साहित्य के क्षेत्र में एक विशेष क्रांति आई और एक नए युग का उदय हुआ।
बचपन में ही उनके पिता-माता के आकस्मिक निधन के बाद इनका लालन-पालन इनकी दादी ने किया बचपने में इनका नाम ब्रजमोहन था। भोजन की तलाश के लिए फकीर का चोला भी पहनना पड़ा और गांव-गांव भिक्षा मांग कर गुजारा करते। हालांकि इस बीच उन्होनें गांव की ही पाठशाला से शुरुआती शिक्षा भी प्रा’ की। फकीरी चोले के कारण इन्हें फकीर मोहन के नाम से पुकारा जाने लगा। यूं तो फकीर मोहन का बचपन काफी गुरबत में बीता। लेकिन इस बीच उन्होंने स्कूल जाना बंद नहीं किया और अपने ज्ञान को निरंतर प्रयासो से बढ़ाते रहे।

'हार’ से इंकार

फकीर मोहन बचपन से ही बेहद तेज और कुशाग्र बुद्धि के थ्ो। वे किसी भी कार्य को अधूरा नहीं छोड़ते थ्ो, फिर वह चाहें कितना ही कठिन क्यों न हो। उनके समकालीन लेखकों ने उनके बारे में लिखा है कि वह कभी न हार मानने वाले व्यक्ति थ्ो। उन्हें ओड़िया भाषा में बेहद दिलचस्पी थी। गांव की पाठशाला में पढ़कर उन्होंने व्यक्तिगत रूप से अध्ययन जारी रखा और ओड़िया साहित्य को नवजीवन देने की ओर निरंतर कदम बढ़ाते गए। अपनी चेष्टा और दृढ़ मनोबल से उन्होंने कई भाषाओं और ग्रंथों का अध्ययन कर अधिक ज्ञान प्राप्त किया। फकीर मोहन की प्रतिभा के कारण उन्हें बालेश्वर मिशन स्कूल में प्रधान शिक्षक के तौर पर नियुक्त किया गया। वे धीरे-धीरे अपनी भाषा में पकड़ मजबूत करते हुए साहित्य में नाम कमाने लगे।

 

महान अनुवादक

अंग्रेजी शासन के समय बालेश्वर के जिलाधीश बड़े साहित्यप्रेमी थे। उनको पढ़ाने के लिए संस्कृत, बंगाली और ओड़िया भाषाओं के एक ज्ञानी पंडित की आवश्यकता होने पर फकीर मोहन ने उन्हें ज्ञान प्रदान किया। भाषाओं के ज्ञान की महत्वाकांक्षा ने फकीर मोहन को एक महान साहित्यकार बनाकर प्रतिष्ठित किया। महामुनि व्यास-कृत संस्कृत 'महाभारत’ ग्रन्थ को ओड़िआ में अनुवाद करने के कारण फकीरमोहन 'सेनापति व्यासकवि’ नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होनें रामायण, गीता, उपनिषद जैसे ग्रंथों का भी ओड़िआनुवाद किया है। वे एक कहानीकार, उपन्यासकार, कवि एवं अनुवादक के रूप में लोकप्रिय रहे हैं ।

शब्दों का शिखर

फकीरमोहन प्रथम ओड़िआ साहित्यकार थ्ो, जिनकी कहानियों और उपन्यासों में उस समय प्रचलित कुरीतियों जैसे अंधविश्वास, कुसंस्कार, दुर्बलों के प्रति धनियों का अन्याय-अत्याचार, बालाविवाह चरित्रों को प्रमुखता से दर्शाया गया है। उनकी लिखी कहानियों में 'रेवती’, 'पैटेंट मेडिसिन, 'डाक-मुंशी’, 'सभ्य जमींदार’ आज भी लोकप्रिय हैं। उनकी पहली कहानी 'रेवती’ थी। इसमें फकीर मोहन ने तत्कालीन समाज में नारी-शिक्षा और उनके उत्थान जैसे विषयों को उजागर करती है। 'पैटेंट मेडिसिन’ कहानी के नायक मद्यप स्वामी चंद्रमणिबाबू को सही रास्ते में लाने के लिए पत्नी ने झाडू का इस्तेमाल किया। वहीं 'डाक-मुंशी’ में एक अंग्रेजी-पढ़े युवक और वृद्ध-बीमार ग्रामीण पिता के पारिवारिक रिश्तों को दर्शाती कहानी है। इसके अलावा भी फकीर मोहन सेनापति ने शब्दों का विशाल शिखर तय किया और चोटी पर विराजमान हुए।
 

एक जैसे प्रेमचंद और मोहन

हिंदी साहित्य में जो स्थान महान कथ सम्राद मुंशी प्रेमचंद का है, वही स्थान ओड़िया साहित्य में फकीर मोहन सेनापति का भी माना जाता है। इनकी कहानियों के चरित्र और स्तिथियां लगभग एक समान ही मिलती हैं। दोना ही कथासम्राटों का जीवन लगभग एक जैसा ही बीता। दोनों गांव और गरीब परिवार में जन्मे थे। दुख-जञ्जाल संघर्षों से भरा था दोनों का जीवन। किसानों की दुर्दशा दूर करने में दोनों की लेखनी हमेश आगे रही। प्रेमचंद का किसान 'होरी’ और फकीर मोहन का 'भगिआ’, इन दोनों में अनेक समानताएं दिखाई पड़ती हैं। भारतीय साहित्य जगत में फकीरमोहन एवं प्रेमचंद हमेशा के लिए अमर हैं।


मोहन के जीवन-काल में अनेक जंजाल और संघर्ष आए। परंतु वे अविचलित होकर सब झेल गए। सबल आशावादी होकर उन्होंने अपना जीवन निर्वाह किया। बालेश्वर में उनका गृह-उद्यान शांति-कानन आज भी साहित्यप्रेमियों के लिए किसी पवित्र स्थल से कम नहीं है।

कालजयी रचनाएं

  देश के प्रतिष्ठित अख़बार में प्रकाशित हो चुका लेख
उनके उपन्यासों में ‘छमाण आठ गुण्ठ’, ‘मामुँ’, ‘प्रायश्चित्त’, 'लछमा’, आदि प्रमुख हैं । प्रसिद्ध उपन्यास ‘छ माण आठ गुण्ठ’ ओड़िआ सिनेमा के रूप में लोकप्रिय बन चुका है । नारी-पात्रों के मार्मिक चित्रण करने में भी फकीरमोहन की निपुणता प्रशंसनीय है । 'रेवती', 'राण्डिपुअ अनन्ता' प्रमुख कुछ कहानियाँ भी दूरदर्शन में प्रसारित हुई हैं । उनकी रचनाओं में विषयवस्तु, चरित्रचित्रण, भावनात्मक विश्लेषण एवं वर्णन-चातुरी अत्यन्त आकर्षणीय हैं । भाव और भाषा का उत्तम समन्वय परिलक्षित होता है ।

कवि के रूप में उन्होंने 'अबसर-बासरे', 'बौद्धावतार काव्य' आदि लिखे, जिसमें कवि की भावात्मकता एवं कलात्मकता का रम्य रूप दृश्यमान होता है । 'उत्कलभ्रमणं' काव्य में हास्य-व्यंग्य वर्णन सहित ओड़िशा के तत्‍कालीन साहित्य-साधकों की बहुत उत्साहभरी प्रशंसा की है । 'आत्मजीवनचरित' में उन्होंने अपने संघर्षमय जीवन की विशद अवतारणा की है । 'संवादबाहिनी' और 'बोधदायिनी' पत्रिकाओं के प्रकाशन की दिशा में ओड़िआ सांस्कृतिक संग्राम के एक प्रवीण सेनापति रहे ।
वास्तव में फकीरमोहन थे एक युगप्रवर्त्तक, समाज-संस्कारक, जनजीवन के यथार्थ चित्रकार, नवीनता के वार्त्तावह और कथासाहित्य के उन्नायक ।

आधुनिक ओड़िआ कथासाहित्य के जनक फकीरमोहन सेनापति के जीवन और रचनाओं के बारे में अब तक बहुत शोधग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं । फकीरमोहन के महनीय नाम के सम्मानार्थ बालेश्वर में प्रतिष्ठित हैं 'फकीरमोहन स्वयंशासित महाविद्यालय' एवं 'फकीरमोहन विश्वविद्यालय है




Saturday 11 January 2014

कॉलेज की प्रेमकहानी

कॉलेज के धरातल पर उछलती नए जमाने की प्रेमकहानी

                                                     साधना अग्रवाल/रिजवान खान


मूवी : यारियां

प्रोड्यूसर : भूषण कुमार, कृष्ण कुमार

डाइरेक्टर : दिव्या खोसला कुमार

कास्ट : हिमांशु कोहली, सेराह सिंह, देव शर्मा, रकुल प्रीत सिंह, एवलिन शर्मा, गुलान ग्रोवर, दीप्ति नवल

म्यूजिक : प्रीतम, मिथुन, हनी सिंह, अनुपम अमोद

लिरिक्स : इरशाद कामिल, अमिताभ भट्टाचार्य, मिथुन, हनी सिंह

मूवी ड्यूरेशन : 145 मिनट

रेटिंग : 2 स्टार

 इन दिनों फिल्म इंडस्ट्री पर फीमेल आर्टिस्ट का जलवा छाया हुआ। हो भी क्यूं न आखिर उनका भी हक बनता है, और उनमें टैलेंट है तो इसमें कोई शक नहीं की वो किसी से पीछे रहें। इसी कड़ी में म्यूजिक इंडस्ट्री के फेमस सितारे भूषण कुमार की पत्नी दिव्या खोसला कुमार ने डाइरेक्शन में हाथ आजमाने की काबिले-तारीफ कोशिश की है। उनकी पहली फिल्म 'यारियां’ देश के तमाम सिंगल थिएटर्स और मल्टीप्लेक्स में कब्जा किए हुए है। दिव्या ने अपनी इस फिल्म में सभी नए किरदारों को लिया है। निर्देशक और कलाकारों के लिए यह पहली फिल्म है। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है कि यह फे्रंडशिप पर आधारित फिल्म है। हालांकि इस तरह की पहले भी कई फिल्में आ चुकी हैं। लेकिन यह अन्य फिल्मों की अपेक्षा समथिंग डिफरेंट है।

कहानी

 इसकी कहानी सिक्किम के एक बोर्डिंग कॉलेज में पढèने वाले पांच दोस्तों की यारियां को सामने लाती है। चूंकि कॉलेज लाइफ जिंदगी की सबसे मजेदार लाइफ होती है। दोस्ती और प्यार के बीच जिंदगी इन्हें हर दिन कुछ न कुछ सिखाती है। कालेज के पिं्रसिपल यानी गुलान ग्रोवर अपने कालेज को टूटने से बचाने के लिए इन बिगड़ैल चार दोस्तों को चुनते हैं ताकि ये आस्ट्रेलिया के स्टूडेंटस के साथ कॉम्पटीशन में हिस्सा लें। इन चारों की मदद के लिए सलोनी के यानी रकुल प्रीत भी इनके ग्रुप में शामिल होती है। लक्ष्य यानी हिमांशु कोहली, नील यानी देव शर्मा, जैनी यानी सेराह सिंह और जेनेट यानी एवलिन शर्मा और सलोनी आस्टेàलिया जाते हैं और वहां मुकाबला करते हैं लेकिन पहले दौर में आस्टेàलिया के स्टूडेंट आगे हो जाते हैं। इस दौरान लक्ष्य अपने बचपन के दोस्त देवू को भी खो देता है। आगे का मुकाबला भारत में होता है, जहां लक्ष्य अंतिम मुकाबला जीत कर अपने कालेज को बचा लेता है। बीच में लक्ष्य और सलोनी के प्यार को दर्शाया गया है। लक्ष्य जिसे पहले समझ नहीं पाता लेकिन बाद में उसे प्यार का अहसास होता है। यह फिल्म अलग-अलग किरदारों,उनके रिश्तों, दोस्तों की समस्याएं, मौजमस्ती और उनकी गलतियों के बारे में है। यह उनके अच्छे और बुरे समय की यारियां की कहानी है।

अभिनय

 इस फिल्म के सभी किरदार नए हैं लेकिन उन्होंने अपने अभिनय से यह साबित कर दिया है कि पहली फिल्म में भी शानदार ढंग एक्टिंग की जा सकती है। फिल्म के नायक हिमांशु कोहली ने अपने किरदार को अच्छे तरीके से निभाया है। वहीं रकुल भी ठीक लगी हैं। जबकि सहकलाकारों ने भी उम्दा प्रदर्शन की कोशिश की है।

गीत-संगीत

 इस फिल्म को बेहतरीन बनाने में इसके गीत-संगीत का बहुत बड़èा योगदान है क्योंकि इसके सभी गाने बहुत अच्छे हैं। अल्लाह वारियां टूटी यारियां गाना सूफी और पारंपरिक का मिश्रण है। वहीं 'पानी-पानी’ और 'पाजामा पार्टी’ आज के युवा वर्ग की पार्टियों के हिसाब से बिल्कुल फिट बैठता है। 'मेरी मां’ गाना मां को समर्पित उम्दा गाना है जो सीधे दिल को छूता है। इस दर्द-ए-दिल की सिफारिश अब कर दे कोई यहां/मिल जाए इसे वो बारिश जो भिगा दे पूरी तरह युवा वर्ग में खासा पसंद किया जा रहा है। मुझे इश्क से रहना था दूर प्यार की मुश्किलों को बयां करता है। अपने गीत-संगीत की वजह से भी यह एक बढिèया फिल्म कही जा सकती है।
 इस फिल्म में निर्देशक ने आस्टेàलिया में भारतीय स्टूडेंट के साथ हो रहे बुरे व्यवहार को भी दिखाने की कोशिश की है। यारियां युवाओं के हर पहले कदम की कहानी है - पहला प्यार, पहली दोस्ती, पहली चुनौती, पहला गुस्सा आदि। इस फिल्म में जहां एक ओर सिक्किम की खूबसूरती को दिखाया गया है वहीं मोटर साइकिल रेस और साइकिल रेस के दृश्य भी अच्छे लगे हैं।




Tuesday 7 January 2014

अम्मी की खातिर






















 

अम्मी की खातिर 

आकाश समेटने चला हू
तब भी तो तू नहीं मानती
मै नहीं चाहता
ऐसी छत
जिसमें ढका हो तेरा आंगन या सपने
कैसे भूल सकता हूं
सजदे में झुका तेरा सिर
आंगन में
सुलगती हुई अगरबत्ती
और नैनों से पिघलता हिमखंड

आँखें सूजती हैं मेरी भी
बस पिघलती नहीं
बंद भी नहीं होतीं
शायद सपने आड़े आते हैं
या तेरा वजूद
यह सच है या झूठ समझ से परे है

मक्के की रोटी और चवन्नी तेरी
रोकती है मुझे
विलीन होने से
जो तूने दी थी उस दिन
जब तेरा सिर सजदे में और आंखें हिमखंड हो रहीं थी

इक साया चलता है साथ
महसूस करता हूं उसे
जो छोड़ गया तेरी कलाई
और मेरी बांह
जीने के लिए या शायद जूझने के लिए
मढ़ गया अपने सपने
तेरे सिर
जो अब मेरे सिर पर तांडव करते हैं
तू चिंता न कर
अब वक्त हो गया है
सिर के शांत होने का
और सपनों के मुकम्मल होने का
अब हिमखंड रुकेगा
बहेगा फिजाओं में सिर्फ तेरे वजूद का नारा !!

Thursday 2 January 2014

नया महाभारत

धर्म केे मानसपटल पर चलती कहानी

फिल्म : महाभारत
निर्माता : जयंतीलाल गदा, कुाल गदा, धवल गदा
निर्देशक : अमान खान
अभिनय : अमिताभ बच्चन, सन्नी देओल, जैकी श्रॉफ, अनिल कपूर, मनोज वाजपेयी, अजय देवगन, अनुपम खेर, विद्या वालन
संगीत : राजेन्द्र

अवधि : 125 मिनट

रेटिंग : 3. 1/2 स्टार



 वेद व्यास द्बारा लिखित महाभारत एक पौराणिक ग्रंथ है,जिसे 5वां वेद भी कहा जाता है। लगभग तीन दाक पहले बी आर चौपड़ा ने जब छोटे पर्दे के लिए महाभारत सीरियल बनाया था, तब इसे देखने के लिए लोग बेसब्री से इंतजार करते थे, यहां तक कि सारी सड़कें वीरान नजर आती थीं। सदियों पहले की महाभारत की कहानी को निर्देाक अमान खान ने बड़ी कुालता पूर्वक दिखाया है। क्योंकि 18 दिनों तक चलने वाली इस लड़ाई को मात्र 125 मिनट में समेटना एक चुनौती भरा काम है।
 इस फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि यह बच्चों को ध्यान में रखकर तो बनाई ही गई है लेकिन बड़े भी इसे बड़े चाव से देखेंगे। पिछले दिनो आई फिल्में-कृा3, धूम3 स्टंट फिल्में थी लेकिन यह एक माइथोलॉजिकल फिल्म है जो हर किसी को कुछ न कुछ संदेा अवय देती है।

कहानी

 वैसे तो हम सभी महाभारत की कथा से परिचित हैं लेकिन इस फिल्म की शुरूआत होती है दो बच्चे एक सिक्के के लिए झगड़ा करते हैं। तभी एक आदमी आता है और उनको समझाता है कि ईष्याã-द्बेष से कुछ नहीं होता बल्कि विनाा ही होता है। वह उनको कहानी सुनाता है। कहानी बैकग्राउंड में जाती है और आरंभ होती है महाभारत की कथा। कैसे भीष्म पितामह हस्तिनापुर के सिंहासन की रक्षा करने की प्रतिज्ञा लेते हैं। कैसे पांडु पुत्र युधिष्टर का सिंहासन पर बैठना दुर्योधन को अच्छा नहीं लगता और इस आग में घी डालने का काम करते हैं मामा शकुनि। पांडवों और कौरवों के अपने-अपने अहं है। बीच में पिसती है द्रोपदी। 18 दिनों तक चलने वाले इस युद्घ में कृष्ण अर्जुन को सत्य और न्याय के इस धर्मयुद्घ में आगे बढèने और अपने कत्र्तव्य पालन का उपदेा देते हैं।

 अभिनय

 चूंकि यह भारत की सबसे मंहगी मल्टी स्टारर थ्रीडी एनीमेटेड फिल्म है, जिसमें भीष्म पितामह के किरदार को आवाज दी है अमिताभ बच्चन ने। इसी तरह अजय देवगन ;अर्जुनद्घ, मनोज वाजपेयी ;युधिष्टरद्घ, सनी देओल ;भीमद्घ, जैकी श्रॉफ ;दुर्योधनद्घ,अनुपम खेर ;शकुनिद्घ और विद्या वालन ;द्रौपदीद्घ के किरदारों को अपनी-अपनी आवाज ही नहीं देते हैं बल्कि इन किरदारों को निभाते भी हैं। बड़ी बात यह भी है कि यह कोई कार्टून फिल्म नहीं लगती बल्कि असली कहानी लगती है। एक साथ इतने सारे कलाकारों ने किसी एक ही फिल्म में अपनी आवाज अभी तक संभवत: नहीं दी है, इसलिए भी उन सबको एक मंच पर लाना भी निर्देाक के लिए कम मुकिल भरा नहीं होगा।

गीत-संगीत

 इस फिल्म का बैकग्रांउड संगीत काफी प्रभावित करता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह एक साफ-सुथरी, रोचक और मनोरंजक प्रधान फिल्म है।





 

मुल्क