Monday 15 August 2016

500 अंग्रेज सैनिकों को मारने वाले वीर बुद्धा

500 अंग्रेज सैनिकों को एक साथ मारने वाले वीर बुद्धा की कहानी...

वो विकलांग था
ग़ज़्ज़ब वफादार था
राजा की गद्दी का चौकीदार था
चिरगांव की सेना का सिपहसालार था

उसे अंग्रेजों से खुन्नस थी
पर जंग में भिड़ने की मन्नत थी
झांसी से बड़ी मुहब्बत थी
पर किस्मत अभी न सवरनी थी

होते करते दिन गुजरे
राजा की सेवा में फिकरे
कालपी से अंग्रेज पधारे
मूर्खों ने राजा के प्रिय मोर मारे

वो ये सब देख न पाया
अंग्रेजों को लताड़ लताड़ सुनाया
फिर रानी का उसको हुक्म आया
अंग्रेजों को मार के उसने बढ़या खाना पाया

खोकर अपने साथियों को
आग बबूला हो बदला लेने को
अंग्रेज अफसर बोले राजा को
माफ़ी के एवज में दो आधा राज्य हमको

सुनकर इतना राजा ने दुत्कार लगाई
उसे बुलाकर सभा में जोरदार हुंकार लगाई
गुस्से में बोले राजन अंग्रेजन की मति मारी गई
उठाओ खड़क तलवार तुरंत उनपे करो चढाई

राजा का जो आदेश मिला
ले सेना अपनी राज्य से चला
एमपी की पहाड़ी पर लंगर डाला
तभी अचानक तम्बू पर इक भाला गिरा

छिड़ा युद्ध चल गईं तलवारें
धड़ से अलग हो सिर गिरने लगे सारे
अंग्रेजन की हवा निकल गई भाग सारे
लाशन से भर गए झाँसी के नदिया नारे

वफादार बुद्धा नाम था उसका
राज्य में उसकी देशभक्ति का बजता था डंका
चिरगांव की मिटटी से पैदा मिटटी में दुबका
आज भी वो सबकी यादों सांसों में बसता ।।
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यह कहानी है चिरगांव नरेश राजा राव बखत सिंह के वफादार चौकीदार विकलांग बुद्धा की। आज भी झाँसी जनपद के लोग बुद्धा की वीरता को याद करते हैं। लोग बताते हैं की राजमहल छोड़ते वक्त चिरगांव नरेश ने बुद्धा को साथ चलने के लिए कहा। लेकिन वह राजा पर बोझ नहीं बनना चाहता था। इसलिए जाने से इनकार कर दिया। अंग्रेज महल में प्रवेश कर गए तो चौकीदार को बंधक बनाकर राजा और खजाने के बारे में जानकारी ली। बुद्धा ने पांच सौ अंग्रेज सैनिकों को गुमराह कर महल के अंदर बिछी बाऊद के पास खड़ा कराया और खुद की परवाह न करते हुए मौका पाकर आग लगा दी। इस कांड में वफादार बुद्धा ने राजा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। पांच सौ सैनिकों के भस्म होने की सूचना पाकर अंग्रेज अफसर पस्त हो गए।

- रिज़वान।
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Sunday 14 August 2016

अंग्रेजों को भारी पड़ा राजा का मोर मारना

अंग्रेजों के खिलाफ दिया 'न देंगे पाई न देंगे भाई' का नारा

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अंग्रेजों  ने युद्ध्‍ा के बाद चिरगांव नरेश्‍ा राजा बख्‍ात सिंह के राजमहल काो ध्‍वस्‍त कर ‌दिया। ख्‍ांडहर पड़ा महल। 
अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए और उनकी नीतियों के विरोध का बिगुल 1840 में ही बुंदेलख्‍ांड के चिरगांव राज्‍य नरेश राव बख्‍ात ‌सिंह ने कर दिया था। (अब यह झांसी जनपद ‌की तहसील ‌चिरगांव के नाम से जानी जाती है ) कालपी से छुट्टियां मनाने निकले अंग्रेजों को राजा की मोर का शिकार करना महंगा पड़ गया। राजा की सेना के प्रमुख वफादार सैनिक ने रानी का आदेश मिलते ही मोर को मारने वाले अंग्रेजों के सामने ही उनके सैनिक को गोलियों से भून दिया। इससे बौखलाए अंग्रेजों ने माफी स्वरूप राजा से आधा राज्य कंपनी को देने की फरमान सुनाया। अंग्रेजों की इस धमकी का जवाब राजा ने उनकी सैनिक टुकड़ी का अंतकर दिया। इसके बाद अंग्रेजों के साथ शुरू हुई मारकाट आज तक जनपद के लोग नहीं भूले हैं।



चिरगांव के पूर्व ब्लॉक प्रमुख रामनाथ मुखिया की पुस्तक ‘बुंदेलखंड के प्रथम क्रांतिकारी राव बखत सिंह’ में राजा और अंग्रेजों के मध्य हुए युद्ध का खूबसूरती से वर्णन किया गया है। घटना 1840 की है बड़ा दिन यानि 25 दिसंबर था। अवकाश के चलते अंग्रेज अफसर कुछ सैनिकों को लेकर कालपी से पिकनिक मनाने झांसी आ रहे थे। रास्ते में चिरगांव में आम के बगीचे में अफसर रुककर आराम करने लगे। इसी बीच अफसरों ने दो मोर को नाचते देखा तो मोहित हो गए। एक सैनिक ने राजा राव बखत सिंह की पली मोरों में से एक को मार दिया। मोर मरने की जानकारी होने पर राजा की सेना के प्रमुख बलदेव प्रसाद श्रीमाली भागकर पहुंचे और मोर मारने वाले अंग्रेजों से कड़े शब्दों में नाराजगी जताई। बलदेव प्रसाद के नाराजगी भरे स्वर को देखते हुए एक अंग्रेज सैनिक ने उस पर कोड़े बरसा दिए। अंग्रेजों से पिटकर वह सीधे राजमहल पहुंचे। लेकिन राजा के न मिलने पर उन्होंने मोर मारने तथा उनके साथ किये गए दुर्व्यवहार का पूरा वर्णन रानी को सुनाया।

बलदेव प्रसाद श्रीमाली के पोते श्री प्रकाश नारायण सिंह कहते हैं ‌कि अंग्रेज सैनिक द्वारा मोर मारने की सूचना पाकर रानी आग बबूला हो उठीं, उन्होंने तुरंत बलदेव से बोलीं कि तुमने बुंदेलों के नाम को ही डुबो दिया, अब जाओ और मोर मारने वाले सैनिक को मारकर आओ। रानी के शब्द सुनकर उनका खून खौल उठा, वह सीधे गए और अपनी एक ब्रिटिश सैनिक को गोली मार दी। यह देखकर अन्य सैनिकों में हड़कंप मचा गया। वह घबरा गए तथा अपने मृत साथी के शव को घोड़े पर रखकर सीधे कालपी पहुंचे तथा अफसरों को पूरा हाल सुनाया।

बिटिश सैनिक की मौत से आहत अंग्रेज अफसरों ने चिरगांव नरेश राव बखत सिंह को पत्र भेजा, जिसमें लिखा था कि तुमने मेरे एक बेकसूर सैनिक को मार दिया है, इसके दंड स्वरूप आधा राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी को देना होगा और अपने प्राणों की रक्षा के लिए क्षमादान मांग लो। बुंदेला शासक को यह बात नागवार गुजरी। उन्होंने दरबार लगाया और मंत्री नन्नाई पांडेय ने अंग्रेजी हुकूमत का पत्र पढ़कर सुनाया तो सभी क्रोधित हो उठे। सभा में मौजूद लोगों ने कहा कि हम बुंदेली झुुकना नहीं, मरना सीखे हैं। यह बात जैसे ही कालपी पहुंची तो अंग्रेज अफसर बौखला गए। उन्होंने चिरगांव राज्य को ध्वस्त करने के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी। इधर, राव साहब भी समझ गए कि अंग्रेज अब किसी भी समय हमला कर सकते हैं दोनों ओर से तैयारियां होने लगीं।

15 अप्रैल 1841 को अंग्रेजों की एक टुकड़ी ने मध्य प्रदेश के बिछोंदना की पहाड़ी पर डेरा डाल लिया, जैसे ही गुप्तचरों ने यह खबर राव साहब को सुनाई तो रात में ही चिरगांव की फौज ने उन पर हमला कर दिया। इस प्रकार युद्ध लगातार चार दिन तक चले युद्ध में राव साहब के पुत्र छत्रसाल समेत बड़ी संख्या में सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की। ऐसी हालत में चिरगांव नरेश ने तत्काल सभा बुलाई तथा निर्णय लिया गया कि अब चिरगांव छोड़ना जरूरी है। क्योंकि किला भी ध्वस्त हो गया है, वे अपनी रानी, पुत्र वधू तथा पौत्र को लेकर महल से निकल गए। अंत के कई दिनों तक राव साहब छिपते रहे बाद में हमीरपुर जनपद के पनवाड़ी के जंगल में हुई मुठभेड़ में कई ब्रिटिश सैनिकों को मारने के बाद वह वीरगति को प्राप्त हुए। आज भी उनकी समाधि पनवाड़ी में बनी हुई है।

वफादार विकलांग चौकीदार ने मारे थे पांच सौ अंग्रेज सैनिक
राजमहल छोड़ते वक्त चिरगांव नरेश राव बखत सिंह ने अपने वफादार विकलांग चौकीदार बुद्धा को साथ चलने के लिए कहा। लेकिन वह राजा पर बोझ नहीं बनना चाहता था। इसलिए जाने से इनकार कर दिया। अंग्रेजों महल में प्रवेश कर गए तो चौकीदार को बंधक बनाकर राजा और खजाने के बारे में जानकारी ली। बुद्धा ने पांच सौ अंग्रेज सैनिकों को गुमराह कर महल के अंदर बिछी बाऊद के पास खड़ा कराया और खुद की परवाह न करते हुए मौका पाकर आग लगा दी। इस कांड में वफादार बुद्धा ने राजा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। पांच सौ सैनिकों के भस्म होने की सूचना पाकर अंग्रेज अफसर पस्त हो गए।

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