Wednesday 17 June 2015

किताबों में लिखे शब्द काली स्याही भर नहीं

मेरे अब तक के जीवन के आधार मेरे पिता रहे हैं वरना मैं कब की टूट कर बिखर चुकी होती। मेरा बचपन एरच में बीता, मेरे तीन भाई हैं। मेरे पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के बावजूद उन्होंने मुझे पढ़ाया। मेरे सपने पूरे करने की आजादी दी।

इंटर तक की शिक्षा गांव में पूरी की, आगे की पढ़ाई के लिए मैंने पापा से गुजारिश की, जिसे उन्होंने काफी मान-मनौव्वल के बाद स्वीकार करते हुए मेरा एडमीशन झांसी में कराया। झांसी में मौसी के घर रहकर मैंने बीएसएसी की पढ़ाई शुरू की। परीक्षा के दौरान दो पेपर देने के बाद ही मुझ पर मौसी व उनके घरवालों ने गलत आरोप ल
गाए और मेरे घर फोन कर दिया, जिस पर पापा रात के दो बजे मौसी के यहां पहुंचे। अगले दिन सुबह मेरा तीसरा पेपर था। पापा ने आगे न पढ़ने की बात कहते हुए किसी तरह पेपर देने के लिए जाने दिया। मैं पेपर के दौरान सोचती रही कि अब मेरे सपने अधूरे ही रह जाएंगे। पेपर देकर वापस आई। किसी ने मेरी नहीं सुनी। लेकिन अगर आप सच्चे हैं तो भगवान आपकी मदद करता है। इसी तरह मेरे दूर की चाची की बहन जो पारीछा में रहती हैं, जिनसें मैं कभी पहले नहीं मिली थी, मेरे लिए भगवान बन गईं, उन्होंने मुझे अपने यहां रखकर बीएससी फर्स्ट ईयर की पढ़ाई पूरी कराई।

मेरी गलती न होने की बात पता चलने पर पापा ने झांसी में किराए पर कमरा दिलाते हुए दादी के साथ रहने और पढ़ाई पूरी करने को कहा। झांसी में रहने के दौरान पापा को गांव के व अन्य लोगों ने काफी भला-बुरा कहा। बोले कि बेटी की पढ़ाई में पैसा बर्बाद कर रहा। कुछ लोगों ने मुझ पर गलत आरोप लगाए, लेकिन मेरे पापा ने किसी की बात नहीं सुनी। मेरे शिक्षकों ने भी मेरा साथ दिया। इससे मेरा मन मजबूत हुआ। इस बीच बीएससी सेकेंड ईयर पूरा कर लिया और कंप्यूटर सीखने लगी, पापा ने पढ़ाई की लगन देख मुझे लैपटॉप दिलाया। दादा ने पेंशन के पैसे मेरी पढ़ाई के लिए दिए। उनके कांपते हाथों से पैसे लेना आज भी मुझे रुला देता है। लैपटॉप मिलने से पढ़ाई का मेरा छोटा आंगन बड़ा हो गया। इस बीच बीएससी पूरी कर ली। पापा ने हौसला बढ़ाया तो बी-लिब किया, अभी एमलिब कर रही हूं। बीटीसी का फॉर्म भी डाला है, लेकिन अब तक कॉलेज न मिलने से मायूस हूं। कई सारे फॉर्म भरे हैं, मेहनत करती रहूंगी, कभी न कभी तो सफलता मिलेगी ही। असफलता के बारे सोचकर मैं पीछे नहीं हट सकती।

वर्तमान में चंद्रशेखर आजाद इंस्टीट्यट ऑफ साइंस टेक्नोलॉजी से एमलिब कर रही हूं। मेरा सपना है कि टीचर या लाइब्रेरियन बनकर लोगों को शिक्षित क रूं और उन्हें बता सकूं कि  किताबों में लिखे शब्द बस काली स्याही भर नहीं हैं। कुछ महीने पहले आईआईएमआर के झांसी सेंटर में प्रवेश लेना चाहा, लेकिन उसकी फीस अधिक होने से मन मसोस कर रह गई। झांसी में रहने का कोई ठिकाना नहीं रहा। कई ऐसी घटनाएं हुईं जिनसे घबराकर पापा ने घर से ही पढ़ाई करने को कहा है। लेकिन गांव से आगे बढ़ने के दरवाजे सीमित हो गए हैं। फिर भी मेरा प्रयास अंत तक जारी रहेगा।

मेरे घरवालों को मेरी शादी की चिंता सताने लगी है। सबको मेरी नौकरी लगने का इंतजार है। पापा सोचते हैं कि मेरी नौकरी के बाद उन पर शादी के खर्च का बोझ कम हो जाएगा, साथ ही मेरा अच्छे परिवार में रिश्ता होगा। मैं चाहती हूं कि मेरी जहां भी शादी हो, बस वो लोग पढ़े- लिखे हों, मुझे आगे पढ़ने का मौका दें, मैं अपनी शिक्षा से अन्य लोगों को शिक्षित करना चाहती हूं। मैं किसी भी कीमत में हार नहीं मानूंगी। मेरे घरवालों को मुझसे बहुत उम्मीदें हैं मैं उनकी उम्मीदों को पूरा करना चाहती हूं और मुझ पर गलत आरोप लगाने वाले और बेटियों को गलत समझने वाले लोगों के मुंह बंद करना चाहती हूं।

मैं सिर्फ अपने लिए पढ़कर नौकरी नहीं हासिल करना चाहती, बल्कि मैं उन सभी मां- बाप को दिखाना चाहती हूं जो समझते हैं कि बेटियां सिर्फ पराया धन हैं, उन्हें उच्च शिक्षा दिलाना बेकार है। मेरी पढ़ाई में सहयोग करने वाले किसी भी शख्स का मैं चेहरा नहीं भूल सकती। मैं सफल होकर उन सबका शुक्रिया अदा करूंगी और हर पहलू पर उनका साथ दूंगी। करिअर के मुकाम तक अभी नहीं पहुंच सकी हूं, इसके लिए संघर्ष जारी रहेगा।

मेरी सफलता की कहानी-
पूजा सोनी, एरच, झांसी उत्‍तर प्रदेश्‍ा
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नोट- अमर उजाला के बेटी ही बचाएगी अभियान के लिए पूजा साोनी द्वारा कागज पर लिख कर भेजी गई आत्मकथा को लेख्‍ाक ने बेहतर शब्द देकर उसे निख्‍ाारने की कोशिश की है जिसे अमर उजाला ने 22 अप्रैल के झांसी संस्‍करण्‍ा में प्रकाशित कर प्रोत्साहित किया है।
साभ्‍ाार- अमर उजाला

Sunday 24 May 2015

तेरे गुम होने का दर्द

क्या आपका अभी तक कुछ गुम हुआ है? फॉर एग्जांपल, दिल, पैसे, मोबाइल, मार्कशीट या रूम, अलमारी, ऑफिस, ड्रॉर की चाबी। और इनमें से किसके गुम होने का सबसे ज्यादा अफसोस हुआ या होता है?
यही सवाल मैनें अपने एक मित्र महोदय से किया। आंसर के तौर पर वे तपाक से बोले दिल गुम हुआ है, जो आज तक नहीं मि
ला। मैंने टेढ़ी निगाह से महोदय को घूरा और बोला अमां मियां जब दिल गुम हो चुका है तो तुम्हारे शरीर में जान क्यों बाकी है? खून पंप होना बंद क्यों नहीं हुआ? तुम मरे क्यों नहीं? अब मित्र महोदय की बोलती बंद, सें‌टियाने लगे।

मैं जान गया, दिल कहीं गुम नहीं होता, हम जबरदस्ती खुद को उसके गुम होने का अहसास कराते हैं, लेकिन आखिर तक वह अहसास हमें होता नहीं। क्योंकि वो सच नहीं होता।

मेरे एक और मित्र महोदय हैं, मैनें भी उनसे यही सवाल दागा। वे काफी रोनी सूरत में बोले भाईजान काफी दिन पहले मेरे पचास हजार रुपए गुम हुए हैं, जो आज तक नहीं मिले। महोदय के हाथ में एक लाल कलर की चमकीली बैग थी। मैंने पूछा इसमें क्या है? तो काफी ना-नुकु र के बाद बताया कि उसमें कुछ-एक लाख रुपए हैं। मैनें कहा, तो फिर गुम कहां हुए वो तो आपके पास ही हैं। बस दुगुने होने के लिए आपसे विदा हुए थ्ो।
कुछ देर मन मशक्कत करता रहा कि इतने में हमारे गंवइले चचा भिटा गए। अब मैनंे उनसे भी यही सवाल ठोंक दिया। वे तो जैसे ताव में आ गए, सांप की भांति फुंफकारते हुए बोले, अरे ससुरा हमरा मोबाइल गुम हुआ है। उसमें ससुर उस लौंडे का नंबर सेव किये रहे हम, जो हमरी बिटेना का मिस काल करके परेशान करत रहा। मैंने मन ही मन सोचा कि इनकी बिटेना तो कल ही गांव की बाजार वाली गली में पड़ोसी लौंडे से बतिया रही थी। खबर है दोनों का चक्कर भी चलता है।
मुझे सही जवाब मिलने की जगह, लोगों के गम की अलग-अलग वजहें मिलीं।
दरअसल कौन सी वस्तु के गुम होने से आपको दुख-अफसोस होगा। यह पूरी तरह आपकी कंडीशंस पर और उस वस्तु की इंपार्टेंस पर डिपेंड करता है।
कुछ ऐसे समझिए 'जरूरी कुछ भी नहीं और जरूरी सबकुछ है।’
कल शाम की ही बात है। आफिस से वापस आते समय रास्ते में कहीं मेरा चाबी का गुच्छा जेब को बिना इत्तिला किए या यूं मान लें कि उससे सांठ-गांठ साध कहीं सरक लिया। गुच्छा खुद तो गया ही अपने साथ आफिस ड्रॉर, रूम और अलमारी की चाबियों को भी बरगला ले गया।
अब मुझे अफसोस के साथ ग्लानि, तकलीफ और बेचैनी हो रही है। यह बेचैनी कब तक रहेगी? शायद आज रात तक, सुबह तक या पूरे दिन तक। लेकिन एक समय खत्म हो ही जाएगी। क्योंकि समय ही सब विपत्तियों और सुखों का जिम्मेदार होता है, और यह ‌िककिसी के लिए भ्‍ाी नहीं रुकता।

तेरे गुम होने का दर्द


तेरे गुम होने का दर्द


क्या आपका अभी तक कुछ गुम हुआ है? फॉर एग्जांपल, दिल, पैसे, मोबाइल, मार्कशीट या रूम, अलमारी, ऑफिस, ड्रॉर की चाबी। और इनमें से किसके गुम होने का सबसे ज्यादा अफसोस हुआ या होता है?
यही सवाल मैनें अपने एक मित्र महोदय से किया। आंसर के तौर पर वे तपाक से बोले दिल गुम हुआ है, जो आज तक नहीं मि
ला। मैंने टेढ़ी निगाह से महोदय को घूरा और बोला अमां मियां जब दिल गुम हो चुका है तो तुम्हारे शरीर में जान क्यों बाकी है? खून पंप होना बंद क्यों नहीं हुआ? तुम मरे क्यों नहीं? अब मित्र महोदय की बोलती बंद, सें‌टियाने लगे।

मैं जान गया, दिल कहीं गुम नहीं होता, हम जबरदस्ती खुद को उसके गुम होने का अहसास कराते हैं, लेकिन आखिर तक वह अहसास हमें होता नहीं। क्योंकि वो सच नहीं होता।

मेरे एक और मित्र महोदय हैं, मैनें भी उनसे यही सवाल दागा। वे काफी रोनी सूरत में बोले भाईजान काफी दिन पहले मेरे पचास हजार रुपए गुम हुए हैं, जो आज तक नहीं मिले। महोदय के हाथ में एक लाल कलर की चमकीली बैग थी। मैंने पूछा इसमें क्या है? तो काफी ना-नुकु र के बाद बताया कि उसमें कुछ-एक लाख रुपए हैं। मैनें कहा, तो फिर गुम कहां हुए वो तो आपके पास ही हैं। बस दुगुने होने के लिए आपसे विदा हुए थ्ो।
कुछ देर मन मशक्कत करता रहा कि इतने में हमारे गंवइले चचा भिटा गए। अब मैनंे उनसे भी यही सवाल ठोंक दिया। वे तो जैसे ताव में आ गए, सांप की भांति फुंफकारते हुए बोले, अरे ससुरा हमरा मोबाइल गुम हुआ है। उसमें ससुर उस लौंडे का नंबर सेव किये रहे हम, जो हमरी बिटेना का मिस काल करके परेशान करत रहा। मैंने मन ही मन सोचा कि इनकी बिटेना तो कल ही गांव की बाजार वाली गली में पड़ोसी लौंडे से बतिया रही थी। खबर है दोनों का चक्कर भी चलता है।
मुझे सही जवाब मिलने की जगह, लोगों के गम की अलग-अलग वजहें मिलीं।
दरअसल कौन सी वस्तु के गुम होने से आपको दुख-अफसोस होगा। यह पूरी तरह आपकी कंडीशंस पर और उस वस्तु की इंपार्टेंस पर डिपेंड करता है।
कुछ ऐसे समझिए 'जरूरी कुछ भी नहीं और जरूरी सबकुछ है।’
कल शाम की ही बात है। आफिस से वापस आते समय रास्ते में कहीं मेरा चाबी का गुच्छा जेब को बिना इत्तिला किए या यूं मान लें कि उससे सांठ-गांठ साध कहीं सरक लिया। गुच्छा खुद तो गया ही अपने साथ आफिस ड्रॉर, रूम और अलमारी की चाबियों को भी बरगला ले गया।
अब मुझे अफसोस के साथ ग्लानि, तकलीफ और बेचैनी हो रही है। यह बेचैनी कब तक रहेगी? शायद आज रात तक, सुबह तक या पूरे दिन तक। लेकिन एक समय खत्म हो ही जाएगी। क्योंकि समय ही सब विपत्तियों और सुखों का जिम्मेदार होता है, और यह ‌िककिसी के लिए भ्‍ाी नहीं रुकता।

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