Friday 1 August 2014

कई हजार ईसा पूर्व पैदा हुये अजूबे

विश्व के प्राचीन अजूबे


दुनिया बहुत सुन्दर है। प्रकृति ने अपने रंग से इस दुनियां को बहुत ही रंगीन बनाया है। समुद्र, पहाड़ और जमीन के मिलन से प्रकृति ने कुछ ऐसा नजारा हमारे लिए तैयार किया है जिसकी कल्पना करना इंसान के लिए कभी-कभी सपने जैसा हो जाता है। दुनिया में प्रकृति ने इतना रंग घोला है कि इंसान में भी इसे और सुन्दर बनाने की ललक पैदा हो गई। कभी अपनी याद के लिए तो कभी कला को समर्पण करने के लिए तो कभी किसी अन्य वजह से इंसान ने ऐसी कई रचनाएं की हैं जिनसे यह दुनिया और भी खूबसूरत बन गई है।
संसार में यूं तो इंसान द्बारा बनाई गई हजारों ऐसी कृतियां हैं जिन्हें देख आप अंचभे में पड़ जाएंगे लेकिन दुनिया के सात अजूबों की बात ही अलग है। अपनी शिल्प कला, वास्तु कला और भवन निर्माण कला के लिए दुनिया के सात अजूबे हमेशा चर्चा का विषय बने रहते हैं। आज बात कुछ प्राचीन एवं कई हजार ईसा पूर्व बूढ़े हो चुके अजूबों के बारे में।

 

मिस्र के पिरामिड 

मिस्र के पिरामिड दुनिया के प्राचीन सात अजूबों में एकमात्र सुरक्षित मिस्र के पिरामिडों का निर्माण आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व हुआ था। वास्तव में, ये पिरामिड मिस्र के शासकों के मकबरे हैं। सबसे बड़ा पिरामिड काहिरा से कुछ दूर गीजा कस्बे में स्थित है। यह राजा पैरोखूफू और उसकी रानी का मकबरा है। 481 फुट ऊंचे इस मकबरे के वर्गाकार आधार की प्रत्येक दीवार की लंबाई 75० फुट के लगभग है। इसमें बीस लाख से अधिक शिलाखंड हैं। माना जाता है कि दो हजार से भी अधिक मजदूरों ने बीस वर्षो तक कार्य करके इसे तैयार किया था।

मासोलस का मकबरा

संसार का तीसरा अजूबा हेलीकारनासस के शासक मासोलस का मकबरा था, जिसका निर्माण उसकी पत्नी ने करवाया था. यह लगभग सौ फुट ऊंचा था और उसके ऊपर घोड़े जुते रथ पर राजा-रानी की मूर्तियां थीं। निर्माण के कुछ ही दिनों बाद सकिदर महान के आक्रमण के कारण यह मकबरा ध्वस्त हो गया। राजा-रानी की मूर्तियां आज भी ब्रिटिश संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

देवी डायना का मंदिर

विश्व का चौथा अजूबा एफसेस में देवी डायना का मंदिर था। आठ फुट ऊंचे खम्भों पर टिके छत वाले इस मंदिर का निर्माण ईसा से साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व टर्की में हुआ था। इस समय यह मंदिर बहुत पवित्र माना जाता था। लोग इसमें अपना धन एवं कीमती वस्तुएं रखकर निश्चिंत हो जाते थे। 262 ई. में गोथ्स ने इस मंदिर को जला डाला था।

हीजियोस की कांस्य प्रतिमा

दुनिया का पांचवां अजूबा हीजियोस की कांस्य प्रतिमा थी। जो लगभग सौ फुट ऊंची थी। यह रोड्स द्बीप में थी। इसका निर्माण ईसा से 28० वर्ष पूर्व हुआ था। निर्माण के 56 वर्ष बाद यह प्रतिमा भूकंप में नष्ट हो गयी। जीयस देवता की मूर्ति संसार का छठा अजूबा ओलम्पिया में स्थित जीयस देवता की मूर्ति थी। इसे प्रसिद्ध शिल्पकार फीडिसस ने ईसा से साढ़े चार सौर वर्ष पूर्व बनाया था। चालीस फुट ऊंची इस मूर्ति के कपड़े सोने के थे। शरीर हाथी दांत का बना था। मूर्ति की आंखें कीमती हीरों से बनी थीं। इस मंदिर को ईसाइयों ने नष्ट कर दिया था।

फैरोह का प्रकाश स्तंभ 

दुनिया का सातवां अजूबा सकिदरिया के बंदरगाह के पास एक द्बीप पर बना फैरों का प्रकाश स्तम्भ था। सफेद संगमरमर से बना यह प्रकाश स्तंभ छह सौ फुट ऊंचा था। इसका निर्माण ईसा से 283 वर्ष पूर्व हुआ था। यह प्रकाश स्तंभ डेढ़ हजार वर्षों तक ठीक हालत में रहा, उसके बाद भूकंप में नष्ट हो गया।





 

Sunday 13 April 2014

दुनिया का सबसे बड़ा होटल

दस हजार कमरों वाला दुनिया का सबसे बड़ा होटल

यूं तो पूरे विश्व में कई अजब-गजब इमारतें हैं, लेकिन जर्मनी में बाल्टिक सागर के आइलैंड में स्थित होटल प्रोरा अपने आप में एक अजूबा है। इस होटल में तकरीबन दस हजार कमरे हैं। इतने कमरों वाला होटल पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। आपको आश्चर्य होगा कि दुनिया का सबसे विशाल होटल पिछले 7० सालों से वीरान पड़ा है।
जर्मनी के नाजी शासन ने इस विशाल होटल दा प्रोरा का निर्माण 1936 से 1939 के बीच में करवाया था। इसे बनाने में 9,००० लेबरफोर्स को तीन साल लगे थे।
 
होटल प्रोरा में एक समान 8 बिल्डिंग बनाई गई हैं और हर बिल्डिंग की लंबाई 4.5 किलोमीटर है। यह बिल्डिंग समुद्र से बमुश्किल 15० मीटर दूर है। इसमें चार एक जैसे रिसॉर्ट थे, सभी में सिनेमा, फेस्टिवल हॉल और स्वीमिग पूल भी थे।
जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर का यह प्लान बहुत महत्वाकांक्षी था। वह एक घुमावदार सी रिसॉर्ट बनाना चाहता था, जो विश्व में सबसे विशाल हो। इस होटल के हर कमरे में दो बेड, एक अलमारी और एक सिक बनाया गया है। हर फ्लोर में टॉयलेट्स, शॉवर और सामूहिक बॉथरूम बनाए गए थे। बिल्डिंग के मध्य में यह व्यवस्था की गई थी कि युद्धकाल में इसे अस्पताल में बदला जा सके।
 
हिटलर का यह महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पूरा होता, इससे पहले ही द्बितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया। विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद पूर्वी जर्मनी के विस्थापितों को इस होटल में रखा गया था। इसके बाद जर्मनी ने इसका उपयोग एक मिलिट्री पोस्ट के लिए किया।
आज भी यह बिल्डिंग काफी खूबसूरत लेकिन वीरान है। हालांकि इसके कुछ ब्लॉकों को छोड़कर बाकी खंडहर हो गए हैं। 


2०11 में इसके एक ब्लॉक में 4०० बिस्तरों वाला अस्पताल बनाया गया। अभी होटल प्रोरा को 3०० बिस्तरों वाले एक हॉलीडे रिसॉर्ट में बदलने की तैयारी चल रही है। इसमें नए सिरे से टेनिस कोर्ट, स्वीमिग पूल और शॉपिग सेंटर और हर वो चीज बनाई जानी प्रस्तावित है, जिससे यह अद्भुत स्थलों में शुमार हो सके।
 

Saturday 12 April 2014

मुहब्बत


डिब्बे का दर्द

तुम्हारे जाने के बाद से ही
खुद को डिब्बा बना लिया

उस डिब्बे में रखकर यादें सारी
मैंने खुद को डुबो लिया

अधूरा खत लगता है सब
इसकी स्याही खुद को बना दिया

बारिश में चलता हूं जब-जब
तुझमें तब-तब खुद को घुला दिया

बूंदे तो पसंद थी बेपनाह तुझे
मैने बारिश में घर बना लिया

जहां छोड़ा था तुमने उस दिन
अब वहां से हिलना ही छोड़ दिया

तुम तो जमी रही पत्थर बनके
पत्थर में लोगों ने मुझे भी घुसा दिया

आते हैं लोग फूल डालने कब्र पे तुम्हारी
भूलकर मेरी कब्र पे डालना शुरू किया

 

Tuesday 8 April 2014

बेल का खेल


बेल का अजब खेल

बेल का पेड़ विश्व के कई हिस्सों में पाया जाता है। भारत में इस वृक्ष का पीपल, नीम, आम और पलाश वृक्षों के समान ही बहुत अधिक सम्मान है। हिंदू धर्म में बेल का वृक्ष भगवान शिव की अराधना का मुख्य अंग है। बेल की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शर्बत बड़ा ही लाभकारी होता है। इसके फल व पत्तियों मंे टैनिन, आयरन, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम जैसे रसायन पाए जाते हैं।
मान्यता है कि शिव को बेल-पत्र चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। बिल्व के पेड़ का भी विशिष्ट धार्मिक महत्व है। कहते हैं कि इस पेड़ को सींचने से सब तीर्थों का फल और शिवलोक की प्राप्ति होती है।
बेल का वृक्ष यूं तो पूरे भारत में पाया जाता है लेकिन विशेष रूप से हिमालय की तराई, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में चार हजार फीट की ऊंचाई तक यह पाया जाता है। मध्य व दक्षिण भारत में बेल वृक्ष जंगल के रूप में फैले हुए हैं और बड़ी संख्या में उगते हैं। यह भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसकी खेती भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्बीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्बीपसमूह में भी की जाती है।
 
यह पंद्रह से तीस फुट ऊं चा होता है। इसका कड़ा और चिकना फल कवच कच्ची अवस्था में हरे रंग और पकने पर सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। कवच तोड़ने पर पीले रंग का सुगंधित मीठा गूदा निकलता है, जो खाने और शर्बत बनाने के काम आता है।

आयुर्वेद में बेल वृक्ष को कई प्रकार से लाभकारी बताया गया है। इसके पत्तों, फलों को औषधि के रूप में बहुत प्रयोग किया जाता है। बेल की जड़ों की छाल का काढ़ा मलेरिया व अन्य बुखारों में हितकर होता है। अजीर्ण में बेल की पत्तियों का रस काली मिर्च और सेंधा नमक में मिलाकर पीने से आराम मिलता है। अतिसार के पतले दस्तों में ठंडे पानी से इसका चूर्ण लेने पर आराम होता है। आंखें दुखने पर बेल के पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूंद आंखों में टपकाने से समस्या से निजात मिलती है। शरीर की त्वचा के जलने पर बेल के चूर्ण को गरम कर तेल में मिलाकर जले अंग पर लगाने से आराम मिलता है।
 

Sunday 6 April 2014

याद शहर का मीठा खत


 

तुमसे मिलने की आस में


बात ज्यादा पुरानी नहीं है। कानपुर में बाकी सब की तरह मैं भी पड़ाई और सलीके से जिंदगी जीना सीख रहा हूं। जब भी फु र्सत मिलती है तो यहां की रंगीनियों को करीब से देखने का मौका नहीं छोड़ता। दोस्तों के साथ कम अकसर अकेला ही बड़ा चौराहा पर स्थित जेड स्क्वायर मॉल और कभी-कभी रेव थ्री पहुंच जाता हूं।

दरअसल यहां की चकाचौंध में वेस्टर्न कल्चर के साथ देसी तड़का भी लगा रहता है, जिसमें खुद को खो देने की पूरी कोशिश करता हूं, लेकिन सच तो ये है कि अब यहां अकेले आना अच्छा नहीं लगता। अकसर यहां आकर खाली पड़ी रिलेक्सिंग चेयर्स पर बैठ जाया करता हूं। आज भी बैठा हूं और खुद को लोगों की नजरों में बिजी दिखाने के लिए मोबाइल की स्क्रीन को बेवजह बार-बार खोल-बंद कर रहा हूं।

...हेलो डियर.र.र...
आवाज ठीक मेरे सामने से आई थी। मैनें चौंककर मोबाइल से सिर उठाते हुए देखा कि सामने करीब पचपन-साठ साल के सफे द फ्रेंच कट दाढ़ी चेहरे पर समेटे सज्जन खड़े थे । मुझे उन्हें पहचानने में देर न लगी। वह सज्जन कोई और नहीं बल्कि कानपुर फिल्म सोसाइटी के चेयरमैन और वहीं के फेमस डिग्री कॉलेज के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ. एस.पी. सिंह थे ।

मैनें कौतूहलवश व सकुचाते हुए डॉ. सिंह को इवनिंग विश किया। उन्होंने जवाब देते हुए, इस तरह अकेले बैठने का कारण जानना चाहा और दोस्तों के बिना मॉल में आने की वजह जानने में जिज्ञासा दिखाई। दोस्तों के होने न होने पर सवाल दाग दिया। मैनें 'होते तो साथ आते’ चार अक्षरों का घालमेल जवाब देते हुए खुद को चुप कर लिया।

थोड़ी देर कुछ सोचते हुए उन्होंने सच्चे दोस्तों की परिभाषा बताई और जिंदगीे में कम से कम पांच दोस्तों का होना अनिवार्य बताकर, छाती के बराबर अंदर की ओर खुलने वाली कोट की जेब में हाथ डालकर दो पेज का एक पेपर निकाल कर मेरे हाथ में थमा दिया।
वह दो पेज का पेपर एकदम कड़क और बेहद सलीके से मोड़ा व रखा गया मालूम हो रहा था। वह दो पेज का पेपर काली स्याही के सुनहरे अक्षरों से सना था। वह बेहद जबरदस्त था और उसमें लिखे शब्दों का कोई जोड़ नहीं था। ये मुझे उसे पढ़ने के बाद पता चला।

क्या था डॉ. सिंह के उन दो पेजों के पेपर में??
नीचे विस्तृत तौर पर उल्लेख कर रहा हूं।

डॉ. सिंह द्बारा दिए गए उस दो पेज के पेपर को 'यादों का आर्इना’, 'निस्वार्थ दोस्ती की कहानी’, 'रिश्तों की सुगबुगाहट’ कह लूं या फिर उसे 'मीठा खत’ कहूं, मेरे लिए डिसाइड करना मुश्किल हो रहा था।
खैर 'मीठा खत’ कुछ इस प्रकार था।

दिन बीत रहे हैं यादों में, फिर वो बीते दिन फिल्म के फ्लैशबैक की तरह सामने आ रहे हैं। जब हम वाकई साथ थ्ो। जेबें खाली होने के बाद भी साथ फिल्में देखने का मौका और पैसा जुटा लेते थ्ो। आज जेबों में उतने पैसे पड़े रहते हैं, जितने उस समय कल्पना में भी नहीं थे   ।

पर समय? साथ? बीते दिनों के धुंधलकों में कही खो गए हैं। कुछ सवाल हैं, जो अपना जवाब चाहते हैं, पर कारणों की कसौटी पर कुछ भी ऐसा नहीं कि जो समझा कर उसे शांत कर सकूं। इन्हीं बातों की वजह से आज सालों बाद तुम्हें कुछ लिखने का फैसला किया है।

मोबाइल के की-पैड और कंप्यूटर के की-बोर्ड पर नाचती अंगुलियों में वो मजा नहीं आता जो 25 पैसे के उस पोस्ट कार्ड में था। पर अब समय बदल चुका है, और तुम भी।
तब लिखना इतना मुश्किल भी नहीं था, लाइफ में इतने कांप्लीकेशन नहीं थे !
आज भी पानी बरस रहा है। पानी की बूंदों की टप-टप वो दिन याद दिला रही है, जब हम बस के गेट पर लटक कर भीगते हुए सारे शहर का चक्कर लगाते थे । वो समोसे याद हैं, महाराणा कॉलेज के गेट के ठीक सामने वाले? आज फिर मन हो रहा है, खाने का। मगर अब बस का गेट नहीं है और हम भीग भी नहीं सकते, बीमार होने का डर है ना। सुना है वहां अब समोसे भी वैसे नहीं रह गए, ठीक हमारी दोस्ती की तरह।

वो स्कूल की दीवारें हमें कभी मिलने से नहीं रोक पाईं, मैं हमेशा तुम्हारे साथ बंक मारकर वहीं पहुंच जाता, जहां साइकिलें हमारा इंतजार करती थीं और फिर शहर का कोई भी सिनेमा हाल हमारी पहुंच से दूर नहीं होता था।
दोस्ती के रिश्तों की वो गर्मी कहां गई ? जब जाड़े में बगैर स्वेटर पहने तुमसे मिलने निकल पड़ता था। कितनी दीवारें फांद लेते थे हम। आज दूसरों के द्बारा झूठ बोलकर बनाई गई नफरत की दीवारें नहीं लांघ पा रहे हैं।


जिंदगी ने हमारे पैदा होते ही ज्यादातर रिश्ते हमें बने-बनाए दिए और उसमें अपनी च्वाइस का कोई मतलब था ही नहीं। तुमसे हुई एक दोस्ती ही ऐसी थी, जिसे मैनें खुद बनाया था। फिर दोस्ती की नहीं जाती, वो तो बस हो जाती है।

कॉलेज और हमारी पढ़ाई का मिजाज बदला, लेकिन हम नहीं बदले, जो बदल जाएं वो हम कहां। तब किसी ने कहा था, रिश्ते हमेशा एक जैसे नहीं रहते, तब कैसे हमने मजाक उड़ाया था उसका। ये नहीं जानते थे कि जिंदगी की राहों में दौड़ते-दौड़ते कब हम अपना मजाक खुद बना बैठेंगे।

तुम हमेशा कहते थे कि जिंदगी जब सिखाती है, अच्छा ही सिखाती है। जिंदगी ने सिखाया तो, पर बड़ी देर से। कंप्टीशन की इस रेस में कब हम एक-दूसरे के ही कंप्टीटर बन गए पता ही नहीं चला। आज ऑफिस का टारगेट सोते-जागते कानों में गूंजता रहता है। साल दर साल पूरा भी होता है, लेकिन एक-दूसरे से मिलने की हसरत कहां गुम हो गई इसकी तलाश है।

इतने पुराने रिलेशन में कुछ शेयर करने जैसा था ही नहीं, सबकुछ इतना स्वाभाविक था कि न मुझे कुछ बोलना पड़ता न तुम्हें कुछ समझना। पर दोस्त जीवन में सबकुछ पा लेने की चाह में हम कब अजनबी बन गए पता ही नहीं चला। तुमने तो अपने आपको साइलेंस के परदे में लपेट लिया और मेरी बोलती बंद हो गई।

अगले हफ्ते एक अच्छी फिल्म रिलीज होने वाली है, उसके टिकिट बुक कर रहा हूं। तुम्हारा इंतजार करूंगा। मुझे उम्मीद है तुम जरूर आओगे, मुझसे मिलने और एक बार फिर पुराने-हसीन लम्हों को याद करने और उन्हें अमलीजामा पहनाने।

तुम्हारा मुकुल श्रीवास्तव.............।।


कंकालों का घर

कंकालों का घर रूपकुंड झील

आप एडवेंचर ट्रैकिग के शौकीन है तो रूपकुंड झील आपके लिए एक बेहतरीन जगह है। रूपकुंड झील हिमालय के ग्लेशियरों के गर्मियों में पिघलने से उत्तराखंड के पहाड़ों में बनने वाली छोटी सी झील है।
यह झील 5०29 मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ है, जिसके चारों और ऊंचे-ऊंचे बर्फ के ग्लेशियर हैं। यहां तक पहंुचने का रास्ता बेहद दुर्गम है इसलिए यह जगह एडवेंचर ट्रैकिग करने वालों की पसंदीदा है। यह झील यहां पर मिलने वाले नरकंकालों के कारण काफी चर्चित है। यहां पर गर्मियों में बर्फ पिघलने के साथ ही कहीं पर भी नरकंकाल दिखाई देना आम बात है। यहां तक कि झील के अंदर देखने पर भी तलहटी में भी नरकंकाल पड़े दिखाई दे जाते हैं। यहां पर सबसे पहला नरकंकाल 1942 में रेंजर एच.के. मड़वाल द्बारा खोजा गया था। तब से अब तक यहां पर सैकड़ों नरकंकाल मिल चुके हैं। जिसमंे हर उम्र व लिग के कंकाल शामिल हैं। यहां पर नेशनल जियोग्राफिक टीम द्बारा भी एक अभियान चलाया गया था जिसमे उन्हें 3० से ज्यादा नरकंकाल मिले थे।
इस जगह पर इतने सारे नरकंकाल आए कैसे? इसके बारे में अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं। 1942 में हुए एक रिसर्च से हड्डियों के इस राज पर थोड़ी रोशनी पड़ सकती है। रिसर्च के अनुसार ट्रैकर्स का एक ग्रुप यहां हुई ओलावृष्टि में फंस गया जिसमें सभी की अचानक और दर्दनाक मौत हो गई। हड्डियों के एक्सरे और अन्य टेस्ट में पाया गया कि हड्डियों में दरारें पड़ी हुई थीं जिससे पता चलता है कि कम से कम क्रिकेट की बॉल की साइज के बराबर ओले रहे होंगे। वहां कम से कम 35 किमी. तक कोई गांव नहीं था और सिर छुपाने की कोई जगह भी नहीं थी। आंकड़ों के आधार पर माना जा सकता है कि यह घटना 85० ईसवीं के आस पास की रही होगी।
एक दूसरी किंवदंती के मुताबिक तिब्बत में 1841 में हुए युद्ध के दौरान सैनिकों का एक समूह इस मुश्किल रास्ते से गुजर रहा था। लेकिन वे रास्ता भटक गए और खो गए और कभी मिले नहीं। हालांकि यह एक फिल्मी प्लॉट जैसा लगता है पर यहां मिलने वाली हड्डियों के बारे में यह कथा भी खूब प्रचलित है।
अगर स्थानीय लोगों के मानंे तो उनके अनुसार एक बार राजा 'जसधावल’ नंदा देवी की तीर्थ यात्रा पर निकला। उसको संतान की प्राप्ति होने वाली थी इसलिए वह देवी के दर्शन करना चाहता था। स्थानीय पंडितों ने राजा को इतने भव्य समारोह के साथ देवी दर्शन जाने को मना किया। जैसा कि तय था इस तरह के जोर-शोर और दिखावे वाले समारोह से देवी नाराज हो गईं और सबको मौत के घाट उतार दिया। राजा, उसकी रानी और आने वाली संतान को सभी के साथ खत्म कर दिया गया। मिले अवशेषों में कुछ चूड़ियां और अन्य गहने मिले जिससे पता चलता है कि समूह में महिलाएं भी मौजूद थीं। तो अगर आप सुपरनेचुरल और देवी-देवताओं में विश्वास करते हैं तो इस कहानी को मान सकते हैं। अपने साथ किसी स्थानीय व्यक्ति को ले जाइए और रात के समय यह कहानी उनसे सुनिए। आपके रोंगटे जरूर खड़े हो जाएंगे।


Friday 4 April 2014

बहुत हो गई बेपरवाही


लाइफ का फंडा तो बदलना पड़ेगा बॉस


एक बिदास और स्मार्ट युवा लाइफ का यही फंडा है। खाओ, पियो और मौज करो। लेकिन जब इसी उम्र में चर्बी चढ़ने लगती है। सेक्सुअल डिसीज के आँकड़े बढ़ने लगते हैं और जब टेंशन के मारे युवा नशे के शिकार होने लगते हैं, तो फिक्र होना लाजिमी है। सो, बी केयरफुल, हेल्थ इज वेल्थ या यूं कहें कि जियो जी भर के मगर सलीके से।
ऐसा नहीं है कि यह उम्र लापरवाह होती है। अगर ऐसा होता तो सिक्स पैक एब और जीरो फिगर की चाह में युवा जिम में मशक्कत नहीं कर रहा होता। सभी युवाओं की इच्छा होती है वह सुंदर दिखें, सेहतमंद रहें लेकिन साथ ही उत्साह, जोश और मस्ती भी तो इसी उम्र का असर है। वह कहां-कहां से बचें और कितना बचें? उम्र की सारी खुशियां बटोरते हुए भी हेल्थ और ब्यूटी पाई जा सकती है। बस इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

 

लाइफ को समझें

युवाओं को पेरेंटस का रोकना-टोकना बुरा लगता है। लेकिन थोड़ा सा समझें कि वे इस उम्र से गुजर चुके हैं और उन्हें हमसे ज्यादा दुनियादारी का तजुर्बा है। ठीक है, उनका जमाना और था, हमारा जमाना और है। पर सेहत की बात तो हर वक्त उतनी ही सही और सटीक होती है, जितनी हमारे शरीर के लिए जरूरी है। हमें उनका कहा बुरा लगता है तो खुद सोचें कि क्या हम यूँ ही इस दुनिया से चले जाएँगे बिना अपने सपनों को साकार किए? नहीं ना? तो फिर सुबह जल्दी उठनाए मॉîनग वॉक पर जाना, जिम जाना या जंक फूड न खाना जैसी बातें हमें बुरी क्यों लगती हैं?
अगर हमें सपने पूरे करने हैं तो लंबे समय तक जीना होगा और जीने के लिए हेल्दी रहना होगा और हेल्दी रहने के लिए बस इन्हीं छोटी-छोटी बातों का पालन करना होगा। समझ गए ना ? तो जियो जी भर के मगर सही तरीके और सलीके से। अगर आपको पेरेंटस की रोक-टोक पसंद नहीं तो अपने नियम खुद बना लें आखिर सेहत भी तो आपकी है।

खुद करें चुनाव

यंगएज में उतावलापन, गुस्सा, तनाव, जोश सभी में नजर आता है। लेकिन हमें यह तय करना है कि हमें इतना गुस्सा क्यों आता है, किस बात पर आता है और किस पर सबसे ज्यादा आता है ? जब इनके जवाब खोज लें तो फिर यह तय करें कि आपके मन पर कौन राज करता है?
इसे कुछ यूँ समझें कि अगर कोई व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति आपको गुस्सा दिला रही है तो इसका मतलब है अपने मन पर आपने किसी और को डॉमेनेट करने की परमीशन दे रखी है। वो जब चाहे आपको गुस्सा दिला देता है। किस बात पर कितना गुस्सा करना है, यह कोई और नहीं, बल्कि आप खुद तय करें। अपने मन के राजा आप खुद बनें। इससे कम से कम दस बीमारियों से आप दूर रहेंगे। ऐसा मेडिकल साइंस कहता है।

टाइम-टेबल फिक्स करें

खाना, नहाना और सोना अगर जीवन में सिर्फ इन तीन बातों का भी आपने समय डिसाइड कर लिया तो समझो आपकी आधी लाइफ सुधर गई। समय पर खाने से शरीर का मेटॉबॉलिज्म सुधरता है। समय पर नहाने से शरीर का एक सही चक्र बनता है, जो सारे दिन फ्रेशनेश देता है। समय पर सोने से ब्रेन एक्टिव और हेल्दी रहता है। ब्रेन को पर्याप्त आराम मिलेगा तो आपकी डिसीजन मैकिग पॉवर स्ट्रांग होगी। अच्छी नींद, अच्छा खाना और अच्छे से नहाना ये बस सेहत के लिए ही नहीं सुंदरता के लिए भी जरूरी है।

गलतियों से बचें

इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिससे गलतियाँ नहीं होतीं। लेकिन एक ही गलती को बार-बार करना गलत है और इससे भी ज्यादा गलत एक गलती को उम्र भर के लिए अपराध मान लेना है। हर समय पश्चाताप की आग में जलना सही नहीं है, जिस दिन आपको यह एहसास हो कि आप गलत थे, बस वही दिन आपका नया दिन है।
पुरानी सब बातों, गलतियों और भूलों के लिए खुद को माफ करो। कहते हैं, जो एक बार गिरता है, वह संभल कर चलना सीख जाता है। इसलिए सब बातों पर धूल-मिट्टी डालो और आगे बढ़ जाओ। दुनिया आपको आपकी गलतियों के लिए माफ करे ना करे। आप खुद को माफ करें और जरूरत पड़ने पर खुद को ही सजा भी दें। लेकिन खुद पर दया न करें न ही खुद पर अत्याचार करें। यह दोनों बातें ही हेल्थ को नुकसान पहुँचाती हैं।

Monday 31 March 2014

कल्पवृक्ष....

आदिवासियों का कल्पवृक्ष

साल वृक्ष एक अर्ध-पर्णपाती और कई सालों तक जीवित रहने वाला वृक्ष है। इस वृक्ष की उपयोगिता प्रमुख रूप से इसकी लकड़ियां हैं, जो अपनी मजबूती के लिए प्रसिद्ध हैं। साल वृक्ष के बीज, जो वर्षा के आरंभ काल में पक जाते हैं। कहा जाता है कि पूर्व समय में अकाल पड़ने पर आदिवासी इसी वृक्ष के फल खाकर जीवित रहते थ्ो। विशेषकर अकाल के समय अनेक जगहों पर भोजन के रूप में काम आते थे। इसीलिए आदिवासियों के लिए यह वृक्ष किसी 'कल्प वृक्ष’ से कम नहीं माना जाता। यूं तो इसका फल ही इतना मीठा होता है कि चीनी खाने के समान स्वाद मालूम होता है वहीं इसकी टहनी से निकलने वाले रस से प्यास भी बुझाने के काम आता है।
यह वृक्ष भारत के कई हिस्सों में पाया जाता है। भारत, बर्मा तथा श्रीलंका में इसकी कुल मिलाकर नौ प्रजातियां हैं, जिनमें 'शोरिया रोबस्टा’ प्रमुख है। हिमालय की तलहटी से लेकर तीन से चार हजार फुट की ऊंचाई तक और उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार तथा असम के जंगलों में यह प्रमुखता से उगता है। इस वृक्ष का विशेष और मुख्य लक्षण यह है कि ये अपने आपको विभिन्न प्राकृतिक मौसमों के अनुकूल बना लेता है।
 
भरी गर्मी में घने जंगलों में जब कंठ सूखने लगे और पीने का पानी न हो तो साल वृक्ष की टहनी से बूंद-बूंद टपकने वाले रस को दोने में एकत्र कर ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। यह परंपरागत तरीका वर्षों से आदिवासी अपनाए हुए हैं। जंगलों में कोसा, सालबीज, धूप, तेंदूपत्ता आदि के संग्रह के लिए पहुंचने वाले ग्रामीण आमतौर पर पानी साथ लेकर नहीं जाते। ये लोग जंगल में पहुंचते ही साल वृक्ष के पत्ते का दोना तैयार करते हैं। इसके बाद पत्तों से लदी साल की टहनी काटकर उल्टा लटका देते हैं। कटी हुई टहनी का रस बूंद-बूंद टपकता है, जिससे दोना भर जाता है और ग्रामीण अपनी प्यास बुझा लेते हैं। इसीलिए साल वृक्ष के रस का उपयोग सदियों से किया जा रहा है। साल वृक्ष मानव के लिए बहुत ही लाभदायक है, इससे प्राप्त पत्ते, फल, लकड़ी, धूप, दातून यहां तक पानी भी संग्रहित किया जाता है।
 
साल वृक्षों की जड़ों के आस-पास कई तरह की सब्जियां पनप जाती हैं। जिसमें मशरूम प्रमुख है। साल वृक्ष के पत्तों से दोने में उतरा रस एक प्रकार से पूर्ण भोजन है, जिसे शर्करा भोजन कहा जा सकता है। इसमें प्रोटीन को छोड़ कर शेष सभी तत्व होते हैं। यह रस जमीन से वृक्ष द्बारा तत्व युक्त जल है। इसके सेवन से शरीर को तरलता मिलती है। कोई हानि नहीं होती है।
 

Sunday 30 March 2014

पानी में शहर


समंदर की लहरों पर तैरता इक शहर

क्या आपने कभी ऐसे घर की कल्पना की है जो कि पानी के ऊपर हो? शायद नहीं, पर दुनिया में एक ऐसी बस्ती है जो कि पानी के ऊपर बसी है। इस बस्ती में रहने वाले लोगों की संख्या पूरी 7००० है। यह दुनिया की एक मात्र समुद्र पर तैरती हुई बस्ती है जो चाइना में स्थित। इस बस्ती में रहने वाले समुद्री मछुवार हैं जिन्हें टांका कहा जाता है।
 
चीन में कई सदियों पहले टांका कम्युनिटी के लोग वहां के शासकों के उत्पीड़न से इतने नाराज हुए कि उन्होंने समुद्र पर ही रहना तय किया था। करीब 7०० ईसवी से लेकर आज तक ये लोग न तो धरती पर रहने को तैयार हैं और न ही आधुनिक जीवन अपनाने को।
 
चीन के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में करीब 7००० मछुआरों के परिवार समंदर में तैरती अपने परंपरागत नावों के मकानों में रह रहे हैं। ये घर समुद्र पर तैर रहे हैं। इन विचित्र घरों की एक पूरी बस्ती है। समुद्री मछुआरों की यह बस्ती फुजियान राज्य के दक्षिण-पूर्व की निगडे सिटी के पास समुद्र में तैर रही है। टांका लोग नावों से बनाए घरों में रह रहे हैं इसलिए उन्हें 'जिप्सीज ऑफ द सी’ कहा जाता है। 

चीन में 7०० ईसवी में तांग राजवंश का शासन था। उस समय टांका जनजाति समूह के लोग युद्ध से बचने के लिए समुद्र में अपनी नावों में रहने लगे थे। तभी से इन्हें 'जिप्सीज ऑन द सी’ कहा जाने लगा और वह कभी-कभार ही जमीन पर आते हैं। इस जनजाति के लोगों का पूरा जीवन पानी के घरों और मछलियों के शिकार में ही बीत जाता है। ये जमीन पर जाने से बचने के लिए न केवल फ्लोटिग घर बल्कि बड़े-बड़े प्लेट फार्म भी लकड़ी से तैयार कर लिए हैं।
 
चीन में कम्युनिस्ट शासन की स्थापना होने तक ये लोग न तो किनारे पर आते थे और न ही समुद्री किनारों पर बसे लोगों के साथ वैवाहिक रिश्ते बनाते थे। वे अपनी बोटों पर ही शादियां भी करते हैं। हाल के दिनों में स्थानीय सरकार के प्रोत्साहन के बाद टांका समूह के कुछ लोग समुद्र किनारे बनाए गए घरों में रहने लगे हैं लेकिन अधिकांश लोग तैरते हुए घरों में रह रहे हैं।
 

Tuesday 25 March 2014

इलेक्शन कैम्पेन....


चुनावी महासमर में नई पारी


इस बार के लोकसभा चुनावों में नए उम्मीदवारों का बोलबाला भी कम नहीं होगा। कई नए उम्मीदवार तो जनता के लिए भी नए ही हैं और उनका करिअर ग्राफ भी राजनीति के सबक को ज्यादा गहरा नहीं दिखाता। फिर भी वे अपनी लोकप्रियता के बल पर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की ओर से पसंदीदा लोकसभा सीटों से चुनावी महासमर में अपनी किस्मत आजमाने के लिए कूद पड़े हैं। जानते हैं ऐसे ही लोकप्रिय कुछ लोगों के बारे में जो पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले हैं।

किरण खेर
14 जून को चंडीगढ़ के एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लेने वाली किरन खेर को लोग एक शसक्त अभिनेत्री के तौर पर जानते हैं। किरन खेर हिंदी सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता अनुपम खेर की पत्नी व नवोदित अभिनेता पुत्र सिकंदर खेर की मां हैं। देवदास, कभी अलविदा ना कहना, रंग दे बसंती, करन अर्जुन जैसी अवार्ड विनिंग फिल्मों में दमदार अभिनय करने वाली किरन खेर हाल ही में संपन्न हुए टीवी रियलिटी शो इंडियाज गाट टैलेंट की जज भी रह चुकी हैं। अपने एक्टिंग करिअर से खुश किरन खेर आगामी लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की ओर से संसदीय क्ष्ोत्र चंडीगढ़ से चुनाव लड़ेंगी। इसी सीट से अभिनेत्री गुल पनाग भी आम आदमी पार्टी की ओर से खड़ी हो रही हैं। साथ ही कांग्रेस के कद्दावर नेताओं की श्रेणी में आने वाले पवन बंसल के भी इसी सीट से चुनाव लड़ने से यहां की चुनावी फाइट काफी रोमांचक हो चुकी है।
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रवि किशन शुक्ला

भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार कहे जाने वाले रवि किशन को कौन नहीं जानता। अपने अभिनय कौशल का लोहा मनवाने वाले रवि किशन शुरुआती दौर से ही मुखर और स्पष्टवक्ता रहे हैं। रवि किशन शुक्ला को भोजपुरी और हिंदी सिनेमा में रवि किशन के नाम से जाना जाता है। रविकिशन ने अपने करिअर की शुरुआत छोटे पर्दे से की थी। अपनी मेहनत के बल पर अपने करिअर के छोटे पर्दे को बड़ा कर हिंदी सिनेमा में कदम रखा।
करिअर के विभिन्न पड़ावों को पार करते हुए रविकिशन ने अब कांग्रेस की ओर से उत्तर प्रदेश के जौनपुर लोकसभा सीट से अपने राजनीतिक करिअर की शुरुआत करेंगे।
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डॉ. कुमार विश्वास

हिंदी के एक अग्रणी कवि तथा सामाजिक के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले डॉ. कुमार विश्वास का जन्म 1० फरवरी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में हुआ था। कुमार विश्वास अपनी प्रेमरस से ओतप्रोत कविताओं के कारण युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं। चार भाईयों और एक बहन में सबसे छोटे कुमार विश्वास शुरुआत से ही साहित्य के शौकीन रहे। साहित्य के क्षेत्र में आगे बढèने के ख्याल से उन्होंने ग्रेजुएशन और हिंदी लिट्रेचर में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री गोल्ड मेडल के साथ प्रा’ की। पीएडी करने के बाद कुमार विश्वास आजकल आम आदमी पार्टी के कद्दावर कार्यकताã और शीर्ष नेता के तौर पर जाने जाते हैं। आम आदमी पार्टी की ओर से वह राहुल गांधी के चुनाव क्ष्ोत्र अमेठी से ताल ठोकेंगे। अब देखना होगा कि कुमार विश्वास का राजनीतिक करिअर कितनी सीमाओं लांघ पाएगा या फिर उठने से पहले ही दम तोड़ देगा।
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आशीष खेतान

व्यवसायी, व्यूरोक्रेट्स, अभिनेताओं और खेल जगत की हस्तियों के साथ ही मीडिया इंडस्ट्री के कद्दावर जर्नलिस्ट आशीष खेतान अपनी किस्मत का ताला खोलने की फिराक में हैं। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की सूची में आशीष खेतान का नाम सबसे ऊपर रखा है। गुलाल डॉट काम के डायरेक्टर आशीष खेतान खोजी पत्रकारिता के लिए जाने जाते हैं। खोजी पत्रकार आशीष खेतान को नई दिल्ली सीट से पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है।
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चिराग पासवान

लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया रामविलास पासवान के बेटे और पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान बिहार की जमुई लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे। चिराग पासवान बॉलीवुड की फिल्म 'मिले ना मिले हम’ से अपने करिअर की शुरुआत की थी। बॉलीवुड में काम करने के अलावा चिराग लोक जनशक्ति पार्टी के लिए एक राजनीतिज्ञ के तौर पर कार्य भी करते हैं। चिराग पासवान मानते हैं कि 'अभिनय भले ही हमेशा से मेरा सपना रहा हो लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं राजनीति से दूर चला जाऊंगा। मैं अपने आपको आधा राजनीतिज्ञ तो मानता ही हूं क्योंकि मैंने अपने पिता के साथ प्रचार अभियानों में बहुत काम किया है।’

नगमा

हिंदी, तमिल व भोजपुरी सिनेमा में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवा चुकी नगमा को नंदिता मोरारजी और नम्रता सदाना जान के नाम से भी जाना जाता है। नगमा का जन्म 25 दिसंबर को मुंबई में हुआ था। 199० के दशक में नगमा का करिअर अपने चरम पर था। नगमा की मां जाति से मुससमान थी और पिता हिंदू थ्ो। नगमा ने अपने करिअर में भारत के लगभग सभी भाषाओं में फिल्में की हैं। नगमा के अनुसार उन्होंने हिंदी, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयालम, बंगाली, भोजपुरी, पंजाबी, और मराठी जैसी भारतीय भाषाओं में काम किया है।
नगमा की सफलता इस बात से ही झलकती है कि उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार व तमिल की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरष्कार प्रदान किया जा चुका है।
अपने अभिनय करिअर के बाद अब नगमा मेरठ सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगी। नगमा के अनुसार वह केवल सेलीब्रिटी के बल पर चुनाव लड़ने नही आई हैं बल्कि अपने काम के बल पर चुनाव लड़ने आई हैं। मैं पिछले दस साल से पार्टी के लिए काम कर रही हूं। उन्होंने कहा कि जिस तरह हम फिल्मों में काम करते हैं उसी तरह हम राजनीति मैं भी बेहतर काम करके दिखलाएंगे।

कमाल खान

खुद को एसआरके की तर्ज पर केआरके कहलवाना पसंद करने वाले कमाल खान इस बार समाजवादी पार्टी की ओर से नार्थ वेस्ट मुंबई से चुनाव लड़ेंगे। यहां पर शिवसेना युवा और तेजतर्रार नेता गजानन कीर्तिकर ताल ठोकते नजर आएंगे। इस सीट को शिवसेना का गढ़ माना जाता रहा है। जबकि कांग्रेस ने भी इस संसदीय क्ष्ोत्र से कर्मठ नेता गुरुदास कामत को म्ौदान में उतारा है। इसलिए कमाल खान को यहां से कड़ी टक्कर मिलने के आसार साफ नजर आते हैं।
कमाल खान हम्ोशा गलत कारणों से ज्यादा चर्चा में रहते हैं। उनकी बदमिजाजी के किस्से अकसर सामने आते रहते हैं। 25 अप्रैल को पटियाला में जन्में कमाल खान ने अपने करिअर की शुरुआत एक गायक के तौर पर की थी। अपनी शुरीली आवाज के दम पर वर्ष 2०1० में सिंगिंग रियलिटी शो गा सा रे गा मा पा जीता।
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गाला जयदेव

पिछले 3० सालों से कार्पोरेट जगत में अपना लोहा मनवाने वाले गाला जयदेव चित्तूर जिले के रहने वाले हैं। कार्पोरेट जगत म्ों गाला जयदेव के नाम से चर्चित जयदेव ने इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है। अमारा राजा बैट्रीज समूह के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक गाला जयदेव तेलगू देशम पार्टी की ओर से गुंटूर लोकसभी सीट से उम्मीदवार होंगे।

मोहम्मद कैफ
क्रिकेट के मैदान में चीते सी चपलता और अपने अभूतपूर्व कौशल के लिए प्रसिद्ध मोहम्मद कैफ सभी के लिए चिरपरिचित नाम है। राजनीति के पिच पर उत्तर प्रदेश के फूलपुर संसदीय क्ष्ोत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर शुरुआत कर रहे मोहम्मद कैफ कहते हैं कि जिस तरह से वह क्रिकेट के मैदान में विरोधियों के हौसले पस्त कर देते हैं। ठीक उसी तरह राजनीति की पिच पर वह सभी को पराजित कर देंगे। हालांकि कौन किसको पराजित कर पाएगा ये तो चुनाव के नतीजों के बाद ही पता चल पाएगा।
उत्तर प्रदेश के अंतराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी मोहम्मद कैफ के अनुसार राजनीति उनके कैरियर की दूसरी इनिग होगी जिसे वह उतनी ही गंभीरता से खेलेंगे जितनी गंभीरता से उन्होंने क्रिकेट खेली है।

नंदन नीलेकणि

इन्फोसिस के सह अध्यक्ष और संस्थापक सदस्यों में से एक नंदन नीलेकणि का नाम उद्योगपतियों में ससम्मान लिया जाता है। यूनिक आडेंटिफिकेशन यानी आधार कार्ड प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे नंदन नीलेकणि का जन्म 2 जून को बंगलुरु में हुआ था। भारत सरकार द्बारा 2००6 में नीलेकणि को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। आईटी और कार्पोरेट जगत का चेहरा माने जाने वाले नीलेकणि कांग्रेस की ओर से बंगलुरु साउथ सीट से चुनाव मैदाने में होंगे।
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बाईचुंग भूटिया

भारतीय अंतर्राष्टीàय फुटबॉल खिलाड़ी बाईचुंग भूटिया को भारतीय फुटबाल जगत में धूमकेतु की भांति माना जाता है। भूटियाय का जन्म 15 दिसंबर को सिक्किम के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। छोटी उम्र से ही वाईचुंग को फुटबॉल खेलना पसंद था। 16 वर्ष की उम्र में अपने अभूतपूर्व प्रदर्शन से संतोष टाफी के संभावितों में शामिल होने वाले पहले फुटबॉलर बने। अपने अभूतपूर्व कौशल व भारतीय फुटबाल को दिए गए योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया। अपने खेल करिअर से सन्यास लेने के बाद अब भूटिया दार्जिलिंग लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार होंगे।





Sunday 23 March 2014

प्यार...शहीदे आजम का


उसे बंदूक से प्यार था
उसमें भरे तांबे के छर्रों से प्यार था
कट्टे के ठट्ठे से प्यार था
उसकी वफा पे एतबार था

अहले वतन से प्यार था
हरियाले खेतों-सूखे खलिहानों से प्यार था
सोंधी मिट्टी से दुलार था
स्कूल की छुट्टी से प्यार था

उसे इज्जत से प्यार था
सितारे हिंद से करार था
उसे गैरोंे से प्यार था
अपनों से दिलेबहार था

उसे अमन की खुशबू से प्यार था
उड़ते खयालों से प्यार था
उसे हर उस शख्स से प्यार था
जिसमें अमन की बिसात थी

उसे उससे प्यार था
जिससे लोग डरते थे
कांपते-भागते थे, थरथराते थे
उसे तो देश पे मिटने का शौक था

उस शहीदे आजम को
मेरा सलाम जिसे
खुद की मौत से कम
हमारी जिंदगी से ज्यादा प्यार था

 

पेड़ जो लेता है जान

धरती का सबसे जहरीला पेड़

मेंचीनील  को दुनिया का सबसे जहरीला पेड़ माना जाता है। यह कैरेबियन सागर के आस-पास और बाहमास में पाया जाता है। इस पेड़ को दुनिया के सबसे जहरीले वृक्ष के रूप में गिनीज ऑफ वर्ल्ड रिकॉड्र्स में शामिल किया गया है। लोगों को इन पेड़ों से दूर रखने के लिए इन पर चेतावनी बोर्ड लगाए जाते हैं। इसको मेंचीनील नाम इसके सेब जैसे छोटे फलों के कारण मिला है। माना जाता है कि क्रिस्टोफर कोलंबस ने मेंचीनील के सेब जैसे फल को 'मौत का छोटा सेब’ नाम दिया था। इसकी ऊंचाई काफी होती है। यह दिखने में काफी चमकदार होता है। इसकी पत्तियां अंडाकार होती हैं।
 
वनस्पति विज्ञानियों के मुताबिक इस पेड़ का सबसे विषैला भाग इसके फल होते हैं। यदि इसके फल के रस कि एक बूंद भी त्वचा पर गिर जाए तो त्वचा वहां से फट जाती है और बहुत जलन होती है। यहां तक कि इसके फलों को जलाने से निकलने वाले धुएं से इनसान अंधा हो सकता है और यदि कोई एक पूरा फल खा ले तो उसकी तत्काल मौत भी हो सकती है। इतना ही नहीं यदि आप बरसात में इस पेड èके नीचे खड़े हो जाएं तो आपके पूरे शरीर में खुजली और जलन हो शुरू हो जाएगी।
 
रेडियोलॉजिस्ट निकोला एच स्ट्रिकलैंड ने मेंचीनील के बारे में बताया है कि टोबैगो के कैरेबियन द्बीप के बीच पर उन्हें एक गोलाकार फल पड़ा मिला था। यह एक काफी लंबे पेड़ से गिरा था। इसमें सिल्वर कलर की तिरछी लाइनें थीं। उन्होंने इसे जरा सा खाया। कुछ पलों के बाद विचित्र ढंग का स्वाद महसूस हुआ और भारी जलन के साथ काटने जैसी संवेदना होने लगी और गला बुरी तरह अकड़ने लगा। तुरंत इलाज के 8 घंटे बाद सूजन कम हुई। विश्व के सबसे जहरीले पेड़ मेंचीनील के बारे में कहा जाता है कि स्पेन का जुआन पोंस डी लियोन ने 1521 में सोने के बड़े भंडार वाले इलाके की खोज की। सोने के लालच में यहां के लोगों ने जुआन को इसी पेड़ के जहरीले तीर से मौत के घाट उतार दिया था।
 

Saturday 22 March 2014

महाशतक....

क्रिकेट की पिच पर करिअर का महाशतक


भारतीय लोगों के दिलों में अगर किसी खेल को लेकर जुनून है तो वह है क्रिकेट। हालांकि ऐसा भी नहीं कि बाकि के खेलों में लोगों को रूचि नहीं है। लेकिप क्रिकेट को इस देश में खासी अहमिहत दी जाती है। क्रिकेट का रोमांच इन दिनों चरम पर है। ट्वेंटी-2० के मैच तो इन दिनों चल ही रहे हैं, आने वाले दिनों में ट्वेंटी-2० वर्ल्ड कप का जुनून बाकी है। आज क्रिकेट के मुरीदों में सिर्फ स्कूल या कॉलेज के बच्चे ही नहीं, बल्कि अंकल-आंटी, दादा-दादी के अलावा, सड़क के किनारे रेहड़ी-पटरी लगाने वाले लोग भी हैं। क्रिकेट के लिए इसी जुनून और प्यार की वजह से देश का हर युवा इसका हिस्सा बनना चाहता है। अगर करिअर के लिहाज से इस स्पोर्ट्स को देखा जाए तो तो यह सबसे आगे है। इस क्ष्ोत्र में युवाओं के लिए पैसा और शोहरत दोनो ही है। अगर आप में भी क्रिकेट को लेकर दीवानगी तो आप भी इस खेल का हिस्सा बन सकते हैं।

अंपायर का निर्णायक रोल

क्रिकेट मैदान पर केवल ऐसे दो लोग होते हैं जिनके इशारे पर खेल का संचालन होता है। इन दोनों लोगों को अंपायर कहा जाता है। जो लोग क्रिकेट अंपायर बनने की इच्छा रखते हैं, उन्हें इसके लिए क्रिकेट एसोसिएशन द्बारा आयोजित लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है। इसके बाद मौखिक व प्रैक्टिकल परीक्षा होती है। इन तीनों चरणों को पार करने के बाद एसोसिएशन आपको स्कूल और कॉलेज लेवल के मैचों में अंपायरिग का मौका देती है।
अंपायरिग के लिए अगला चरण रणजी ट्रॉफी के मैच होते हैं। जिसके लिए आपको रणजी ट्रॉफी की परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है। यदि किसी अंपायर ने आधिकारिक तौर पर निर्धारित संख्या के मैचों में अंपायरिग कर ली है और उसे 5-1० साल का अनुभव है, तो वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंपायरिग के बारे में सोच सकता है। इसके लिए उसे ऑल इंडिया अंपायर एग्जाम को उत्तीर्ण करना होता है।

कमेंटेटर का रोचक प्रेजेंटेशन

आप जब भी क्रिकेट सुनते या देखते हैं तो कमेंटेटर के हर जबरदस्त बॉल और झन्नाटेदार शॉट पर निकलने वाले कमेंट क्रिकेट देखने का रोमांच बढ़ा देते हैं। अगर आपके पास क्रिकेट की अच्छी जानकारी है और साथ ही किसी घटना को रोचक ढंग से बखान करने की क्षमता भी तो क्रिकेट कमेंटेटर का काम सबसे ज्यादा सटिक है। इसके लिए आपको क्रिकेट के बारे में इस तरह बखान करना होता है कि लोग उसे रोचकता पूर्वक सुन सकें और समझ भी सकें।
इस क्षेत्र में करिअर सवांरने के लिए आप ऑल इंडिया रेडियो क्रिकेट कमेंट्री के लिए प्रतिवर्ष एक परीक्षा आयोजित करता है। इसके लिए आपको ऑल इंडिया रेडियो में आवेदन करना होगा, जहां क्रिकेटरों का एक पैनल घरेलू क्रिकेट मैचों के दौरान कमेंट्री करते हुए आपके परफॉर्मेंस को जज करता है। आप चाहें तो टेलीविजन कमेंटेटेर भी बन सकते हैं। लेकिन इसकी राहें थोड़ी कठिन अवश्य हैं, लेकिन असंभव नहीं। देश में कई स्पोर्ट चैनल कमेंटेटर्स के लिए कॉटेंस्ट आयोजित करते हैं, जो करिअर की शुरुआत के लिए काफी अहम हो सकता है। इसमें प्रोफेशनल डिग्री पाने के लिए आप मुंबई के जेवियर्स इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेशन में दाखिला ले सकते हैं। यह कॉलेज अनाउंसिग, ब्रॉडकास्टिंग में शॉर्ट टर्म कोर्स कराता है।

स्पोर्ट्स इवेंट मैनेजमेंट

क्रिकेट में हर साल एक देश की टीम दूसरे देश में खेलने के लिए रवाना होती है। ऐसे में खिलाड़ियों, उनके इंडोर्समेंट्स का प्रबंधन करना होता है। इसके लिए खिलाड़ियों के बारे में कॉसेप्ट बनाना, टेलीविजन कार्यक्रमों की स्क्रिप्टिग करना और खेल संबंधी इवेंट्स को आयोजित करना शामिल है। कई प्रशिक्षण संस्थान इस कोर्स को संचालित करते हैं। देश के कई सरकारी और निजी संस्थान इस क्ष्ोत्र में करिअर सवांरने के लिए कोर्स का संचालन करते हैं।

फोटोजर्नलिस्ट

इन सबके अलावा अगर आपको क्रिकेट का अच्छा ज्ञान है, तो आप स्पोर्ट्स जर्नलिज्म में करिअर बना सकते हैं। इस पेशे में जर्नलिज्म की डिग्री आपके लिए मददगार हो सकती है। डिग्री के लिए देश में कई संस्थान हैं, जो स्पोर्ट्स जर्नलिज्म का प्रशिक्षण के साथ-साथ डिग्री प्रदान करते हैं। इसके अलावा, अगर आपकी दिलचस्पी फोटोजर्नलिस्ट बनने की है, तो फोटोजर्नलिज्म का कोर्स भी कर सकते हैं।
इसके अलावा भी क्रिकेट से जुड़े कई क्ष्ोत्र हैं जिनमें आप अपना सुनहरा भविष्य सवांर सकते हैं। इस क्ष्ोत्र में आने के लिए आप स्पोटर््स साइकोलॉजिस्ट के तौर अपनी सेवाएं दे सकते हैं। साथ ही अगर आपको लिखने और फाटो खीचने का अच्छा एक्सपीरिएंस है तो आप फोटोजर्नलिस्ट के तौर पर भी इस फील्ड से जुड़े रह सकते हैं।


Thursday 20 March 2014

चुनावी स्याही.....


तेरा रंग ऐसा चढ़ गया...

आजकल देश में चुनावी माहौल है और अगले ही महीने से मतदान शुरू हो जाएगा। आपने अकसर देखा होगा कि वोट डालने के बाद लोगों के बाएं हाथ की अंगुली में स्याही का निशान दिखाई देता है, जो कई दिनों तक नहीं मिटता। दरअसल यह निशान ही इस बात का सूचक होता है कि आपने अपने मत का प्रयोग कर लिया है। क्या आपको पता है इस चुनावी स्याही को कहां व कैसे बनाया जाता है?
पहली बार न मिटने वाली स्याही का इस्तेमाल तीसरे आम चुनाव में 1962 में हुआ था। इसके निर्माण की कहानी भी काफी रोचक है। 


इस स्याही का फार्मूला भी पेप्सी के फार्मूले की तरह ही गुप्त रखा गया है। यह फार्मूला दिल्ली स्थित नेशनल फिजिकल लैब द्बारा तैयार किया गया है। इसका मुख्य रसायन सिल्वर नाइट्रेट है जोकि पांच से 25 फीसदी तक होता है। बैंगनी रंग का यह रसायन प्रकाश में आते ही अपना रंग बदल देता है व इसे किसी भी तरह से मिटाया नहीं जा सकता है।
 

जिस कंपनी में यह तैयार किया जाता है वह मैसूर के राजा नलवाडी कृष्णराज वाडियार द्बारा 77 साल पहले स्थापित की गई थी। आजादी के बाद राज्य सरकार ने उसका राष्ट्रीयकरण कर दिया। हालांकि महाराजा के परिवार का इस कंपनी में एक फीसदी के करीब हिस्सा है। यह स्याही छोटी-छोटी बोतलों या फायल में उपलब्ध कराई जाती है। इस कंपनी के 77 कर्मचारियों ने इसका उत्पादन शुरू कर दिया है। इसकी 1० मिलीलीटर की बोतल की कीमत 183 रुपए है जिससे 7०० लोगों की उंगलियों पर निशान लगाए जा सकते हैं।
 

इस स्याही को देश में होने वाले चुनाव के लिए ही नहीं बल्कि मालदीव, मलेशिया, कंबोडिया, अफगानिस्तान, मिस्र, दक्षिण अफ्रीका में भी इस स्याही की सप्लाई की जाती है। जहां भारत में बाएं हाथ की दूसरी उंगली के नाखून पर इसका निशान लगाया जाता है वहीं, कंबोडिया व मालदीव में इस स्याही में उंगली डुबानी पड़ती है। बुरंडी व बुर्कीना फासो में इसे हाथ पर ब्रश से लगाया जाता है। जबकि अफगानिस्तान में इसे पेन के माध्यम से लगाया जाता है।
 

गौरैया...

 चिट्ठी न कोई सन्देश कहा तुम चले गए

घरों को अपनी चीं..चीं से चहकने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। कभी इस खूबसूरत छोटी चिड़िया का हमारे घरों में बसेरा हुआ करता था। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफी कम कर दी है।
गौरैया एक हल्के भूरे व सफेद रंग की छोटी चिड़िया है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंखों के साथ इसकी चोंच व पैर पीले होते हैं। नर गौरैया की पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होती है। 14 से 16 से.मी. लंबी यह चिड़िया मनुष्य के बनाए हुए घरों के आसपास रहना पसंद करती है। शहरों, कस्बों, गांवों और खेतों के आसपास यह बहुतायत में पाई जाती है। नर गौरैया के सिर का ऊपरी भाग, नीचे का भाग भूरे रंग का होता है। जबकि गला चोंच और आंखों पर काला रंग होता है। नर गौरैया को चिड़ा और मादा को चिड़ी भी कहते हैं।
हर वर्ष 2० मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। इसके पीछे लुप्त हो रही गौरैया को बचाने का संकल्प छुपा हुआ है। दिल्ली जैसे महानगरों में तो गौरैया इस कदर दुर्लभ हो गई है कि ढूंढे से भी ये पक्षी नहीं मिलता है। इसलिए वर्ष 2०12 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य-पक्षी घोषित कर दिया है। मनुष्य की बदलती जीवन-शैली ने गौरैया के आवास, भोजन वाले स्थानों को नष्ट कर दिया इसी वजह से गौरैया ही नहीं, अन्य जीव-जंतु बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। बिजली के तारों का फैलता जाल, फोन व उनके टॉवर इन नन्हे जीवों को नष्ट करने में अहम भूमिका अदा कर रहें हैं। यदि जल्द ही गौरैया को बचाने के ठोस कदम न उठाए गए तो यह पक्षी पूर्ण रूप से विलु’ हो जाएगा।
पक्षी विज्ञानियों के मुताबिक गौरैया की आबादी में 6० से 8० फीसदी तक की कमी आई है। यदि इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले। ब्रिटेन की 'रॉयल सोसायटी प्रोटेक्शन ऑफ बर्डस’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को 'रेड लिस्ट’ में शामिल किया है।


Sunday 16 March 2014

ख्वाबों का सच

दिन के ख्वाबों का सच

सपने हम सब देखते हैं। सपने अकसर रात में ही आते हैं लेकिन कुछ लोग दिन में भी सपने देखते हैं। आमतौर पर सुबह उठने के बाद ब्रश करते समय, नहाते समय, काम करते हुए हम कई बार सपनों की दुनिया में खो जाते हैं। इसी को कहते हैं दिन में ख्वाबों में रहना। लेकिन क्या होता है दिन के सपनों का सच? क्या यह हमारे स्वाभाव को, दैनिक क्रियाओं और हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं?
एक सर्वे के अनुसार लगभग हर व्यक्ति दिन में सपने देखता है और अधिकतर बार हम हमारे समय का 5०% हिस्सा इसमें ही बिता देते हैं। ऐसा सबसे अधिक बार ब्रश करते समय होता है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि दिन में सपने देखना हमें उदासीनता की तरफ ले जाता है, लेकिन हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर्स के अनुसार अच्छी बातों के सपने देखने से उसका सकारात्मक असर भी होता है लेकिन उसकी दर काफी कम है। इसलिए दावे के साथ यह कह पाना कि दिन में सपने देखना हानिकारक ही है, सही नहीं है। रिसर्च बताती है कि दिन में सपने देखने के दौरान दिमाग कई ऐसी बातों और संबंधों के बारे में सोचता है, जिन पर सामान्य परिस्थितियों में ध्यान नहीं जाता। इस दौरान इनसान का ध्यान अपने आसपास के हालात से परे जाकर अजीबोगरीब चीजों पर लगता है। ऐसे में उन चीजों की भी कल्पना कर ली जाती है, जो वास्तव में होती भी नहीं हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार दिन में ख्वाब देखने वाले लोग समस्याओं को ज्यादा तेजी से सुलझाने की क्षमता रखते हैं। एक शोध के मुताबिक जब दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है तो वह समस्या को सुलझाने के लिए अधिक तेजी से काम करता है। 'प्रोसीडिग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में प्रकाशित की गई रिपोर्ट के मुताबिक दिवास्वप्न के दौरान मस्तिष्क के अंदरुनी हिस्से का डीफॉल्ट नेटवर्क ज्यादा सक्रिय हो जाता है जो चीजों के बारे में तेजी से सोचने और समस्या के त्वरित निदान में ज्यादा सक्षम होता है। शोध के मुताबिक लोग अपने जीवन का एक-तिहाई हिस्सा दिन में ख्वाब देखते हुए बिताते हैं।

महिला दिवस

क्यों मनाते हैं महिला दिवस

संसार के रचयिता भगवान ब्रह्मा के बाद इसके सृजन में यदि किसी का योगदान है तो वह नारी का है। अपने जीवन को दांव पर लगाकर एक जीव को जन्म देने का साहस ईश्वर ने केवल नारी को प्रदान किया है। फिर भी इस संसार में उसकी अवहेलना होती रही है। महिलाओं के हक की खातिर हर वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विश्वभर में मनाया जाता है।
इस दिन संपूर्ण विश्व की महिलाएं जात-पात, भाषा, राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। आज की नारी ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी सीख लिया है। आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक-दूसरे की दुश्मन नहीं बल्कि सहयोगी हैं।
इतिहास के अनुसार आम महिलाओं द्बारा समान अधिकार की यह लड़ाई प्राचीन ग्रीस की 'लीसिसट्राटा’ नाम की महिला ने फ्रें च क्रांति के दौरान युद्ध समाप्ति की मांग रखते हुए आंदोलन की शुरुआत की। फारसी महिलाओं के समूह ने वरसेल्स में इस दिन एक मोर्चा निकाला। इसका उद्देश्य युद्ध के कारण महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार को रोकना था।
पहली बार सन् 19०9 में सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका द्बारा पूरे अमेरिका में 28 फरवरी को महिला दिवस मनाया गया था। 191० में सोशलिस्ट इंटरनेशनल द्बारा कोपेनहेगन में महिला दिवस की स्थापना हुई। 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैली निकाली। इस रैली में मताधिकार, सरकारी नौकरी में भेदभाव खत्म करने जैसे मुद्दों की मांग उठी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान रूसी महिलाओं द्बारा पहली बार शांति की स्थापना के लिए फरवरी
माह के अंतिम रविवार को महिला दिवस
मनाया गया। जो आगे चलकर 8 मार्च हो गया।
'महिला दिवस’ अब लगभग सभी विकसित और विकासशील देशों में मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक तरक्की दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए।


 

Friday 14 March 2014

किरायेदार या मालिक

किराएदार रख रहे हैं या पंगेबाज

मेट्रों शहरों में निरंतर परिवार छोटे होेते जा रहे हैं जबकि घर बड़े। इन में कोई रहने वाला तक नहीं होता। ऐसी स्थित में घर को किराए पर दे दिया जाता है। घर किराए पर देना जहां किराएदार के लिए आशियाने की तलाश पूरी करता है तो वहीं मकान मालिक के लिए यह कमाई का जरिया भी बनता है। हालांकि घर किराए पर देना तो सरल होता है लेकिन कभी-कभी किराएदार से इसे खाली कराना बेहद मुश्किल। इसलिए घर किराए पर देने से पहले सारे जरूरी पहलुओं पर गौर कर लेना चाहिए।

बैकग्राउंड वेरिफिकेशन

घर रेंट पर देने से पहले किराएदार का बैकग्राउंड व उससे जुड़ी सारी जानकारी व डाक्यूमेंट्स की जांच कर लेनी चाहिए। इसके तहत आप किराएदार से रेफरेंस सिर्टफिकेट भी मांग सकते हैं। साथ पर्मानेंट एड्रेस व कांटेक्ट नंबर लेना भी जरूरी है। क्योंकि यह वक्त आने पर आपके बहुत काम आ सकता है। साथ ही इस कड़ी में किराएदार द्बारा उपलब्ध कराए गए डॉक्युमेंट्स को अच्छी तरह से चेक कर लें।
इस सबके बावजूद इस कड़ी का एक और महत्वपूर्ण बिंदु है, जिसके अनुसार पुलिस से भी वेरिफिकेशन करवाना जरूरी है। ध्यान रहे किरायेदार से मकान खाली करवाने में लोकल पुलिस आपका सहयोग तभी कर सकती है जब वह किरायेदार किसी संदिग्ध या गैरकानूनी गतिविधि से जुड़ा हो या कोर्ट के आदेश होने पर ही।

डाक्यूमेंटेशन भी जरूरी

अगर आप कुछ महीनों के लिए प्रॉपर्टी किराये पर दे रहे हैं तो पुलिस वेरिफिकेशन फॉर्म के साथ किराएदार की फोटो, उसके डॉक्यूमेंट्स की कॉपी जैसे पैन कार्ड, लीज अग्रीमेंट और एड्रेस प्रूफ नजदीकी पुलिस स्टेशन में जमा करवाने जरूरी होते हैं। साथ ही 11 महीनों से अधिक के लिए प्रॉपर्टी किराए पर देने पर आपको लीज अग्रीमेंट देना पड़ता है। इस दस्तावेज में एग्रीमेंट की अवधि, खाली न करने पर किराएदार पर लगने वाला जुर्माना आदि जानकारियां दी जाती हैं।

नियम-कानून

मकान मालिक और किराएदार के बीच के संबंध किराएदारी कानूनों के तहत होते हैं। इन कानूनों में प्रावधान हैं कि मकान मालिक कब-कब मकान खाली करवा सकता है। सामान्य रूप से किराएदार शर्तों का पालन करता है। मकान मालिक को स्वयं अथवा अपने परिवार के किसी सदस्य के लिए मकान की जरूरत नहीं है तो वह किराएदार से मकान खाली नहीं करवा सकता है। लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है कि किराएदार से मकान मालिक मकान खाली न करवा सकता हो।

समय पर किराया अदा न करना

अवधि पूरी होने के साथ-साथ किराया न देने या अवैध गतिविधयों में लि’ होने के आधार पर किराएदार को मकान छोड़ने के लिए कह सकते हैं। आपकी प्रॉपर्टी के किसी हिस्से में बिना आपकी मर्जी के बदलाव करने पर भी किरायेदार को घर छोड़ने के लिए कहा जा सकता है। अगर किरायेदार ज्यादा ही अड़ियल हो तो उसके सभी डॉक्यूमेंट्स लेकर इन मामलों के निपटारे के लिए अथॉरिटी की शरण में जा सकते हैं।

कोर्ट की भूमिका

अगर कोई भी पक्ष स्टेट अथॉरिटी के फैसले से असंतुष्ट हो तो वह सिविल कोर्ट की शरण में जा सकता है। कितने समय में फैसला हो जाएगा, इन मामलों में यह कहना बहुत मुश्किल है। सिविल कोर्ट से भी निराशा हाथ लगने पर हाई कोर्ट में अपील की जा सकती है। इतना जरूर ख्याल रखें कि बल के प्रयोग से मकान खाली करवाने की कोशिश आपके ही केस को कमजोर कर सकती है क्योंकि यह गैर-कानूनी है। इसलिए ऐसा कोई कदम न उठाएं।
एक याचिका की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कि यदि मकान मालिक को मकान की आवश्यकता है तो किराएदार को उसे खाली करना ही पड़ेगा। किराएदार यह तय नहीं कर सकता कि जो हिस्सा मकान मालिक के पास है वह उसके रहने के लिए पर्याप्त है।

मकान मालिक निम्न कारणों से मकान खाली कराने का अधिकारी होता है-


  • -यदि किराएदार ने पिछले चार से छह माह से किराया अदा नहीं किया हो।
  • - किराएदार ने जानबूझ कर मकान को नुकसान पहुंचाया हो।
  • - किराएदार ने मकान मालिक की लिखित स्वीकृति के बिना मकान या उस के किसी भाग का कब्जा किसी अन्य व्यक्ति को सौंप दिया हो।
  • - यदि किराएदार मकान मालिक के हक से इनकार कर दिया हो।
  • - किराएदार मकान का उपयोग किराए पर लिए गए उद्देश्य के अलावा अन्य कार्य के लिए कर रहा हो।
  • - यदि किराएदार को मकान किराए पर किसी नियोजन के कारण दिया गया हो और किरायेदार का वह नियोजन समाप्त हो गया हो।
  • - किराएदार ने जिस प्रयोजन के लिए मकान किराये पर लिया हो पिछले छह माह से उस प्रयोजन के लिए काम में न ले रहा हो।






पब्लिश होने के बाद..............

प्रतिष्ठित अखबार मे प्रकाशित

बदलती आकृतियां


कोहरे में आकृतियां बन रही हैं
छिप रही हैं बदमाशियां
कब तक छिपेंगी
कहना मुश्किल
शायद तब तक
जब तक लहू गर्म न हो

सर्द सम्मोहन शुरु हो चुका है
किसी जादूगर के
बोले गए मंत्र के समान
जिसके बाद सब बदल जाता है
कुछ वैसा नहीं रहता
जैसा कुछ देर
पहले छोड़ा गया था

शोर में सन्नाटा छा रहा है
ठीक वैसे ही
जैसे मृत्यु के बाद सिसकियों में
या जैसे शिशु के
जन्म पाने की बाद की खुशी में
अब सर्द का दर्द भी बढ़ चला है
चिरकाल तक
हड्डियों में बसने के लिए.....
 
...............................
 

उसके शब्दों का तिरस्कार


उस दिन उसने उससे
कहा था
कुछ बेशकीमती शब्दों के साथ
फिर भी नहीं समझा वह
सोचता रहा, टालता रहा
वक्त के साथ
वो बेईमान, नासमझ
उसकी बातें

सुईयां घूमती रहीं
बसंत बीतते रहे
फिर वो भी दिन आया जब
नासमझ समझदार बनने
की फिराक में
चल पड़ा रेतीले आसमान की ओर
उसके कहे हुए बेशकीमती
शब्दों को ढूंढने

देर तो बहुत हो चुकी थी
फिर भी कुछ सुईयां अभी भी
कांपती हथेलियों
पर कटाक-कटाक कर रहीं थीं
लेकिन शब्द तो विलीन हो चुके थे
उस नील गगन में
जहां वो आजकल
अपने शब्दों के साथ विश्राम कर रही है ।।

Wednesday 12 March 2014

उस यात्रा का रहस्य....

नानी और उनका घर


वो अकेला ऐसा घर होता था, जहां कुछ भी उल्टा करो सब सीधा हो जाता था। उस घर को ही तो नानी का घर कहा जाता है। कई साल गुजर गए वहां गए हुए। बचपन में बिताए गए उन लम्हों की बारिश आज भी मन के आंगन को बिना इजाजत लिए भिगोकर चली जाती है।
 
कानपुर शहर से तकरीबन चालीस किलोमीटर दूर नेशनल हाइवे के साथ सटा हुआ बसा है मेरा ननिहाल। वहां एक कस्बे के अनुसार सारी मूलभूत जरूरते पूरी होने के सारे संसाधन मौजूद हैं। और मेरे लिए तो शायद हर वो जरूरत जो कहीं और पूरी नहीं हो सकती यहां पूरी हो जाती है।
काफी अरसा गुजर चुका है, जब मैं आखिरी बार वहां गया था। उसदिन सन्नाटा शायद जून के धड़धड़ाते हवारे पर भारी पड़ रहा था। बस भी ऐसी चाल में थी जैसे उसकी यह आखिरी यात्रा हो। बस पर व यात्रियों पर गर्मी और लू के थपेड़ों का असर साफ दिख रहा था।
 
अम्मी का चेहरा इससे पहले मैनें कभी ऐसा नहीं देखा था। पहली बार ऐसा था जब नानी के यहां जाते वक्त जैसे वो मुझे जबरदस्ती लाद के ले जा रहीं थीं। हालांकि मैं तो उन पर बोझ नहीं था मैं तो पापा की गोद को सिंहासन समझ अपने राज्य का स्वतंत्र संचालन कर रहा था। जहां सब मेरे हुक्म का पालन करते थे। तभी बस में शोरगुल शुरु हो गया। मेरा सिंहासन हिल चुका था। पापा और अन्य यात्री बस से उतर कर बाहर खड़े थे।
 
दरअसल एक बिल्ली बस के रास्ते आ अपने जीवन की लीला समा’ कर चुकी थी। या शायद बस ने उसको अपनी चपेट में लिया था। सही-सही कहना थोड़ा मुश्किल है। कुछ देर बाद बस अपने रास्ते पर फिर दौड़ चुकी थी साथ में यात्रियों की तमाम अनहोनी से जुड़ी घटनाओं का दौर लेकर।
इन सब चीजों का असर अम्मी पर बिल्कुल भी नहीं समझ आ रहा था। उनके चेहरे पर अजीब सी बेचैनी और शिकन की रेखाओं के सिवा मुझे कुछ नहीं दिख रहा था। आज मुझसे ज्यादा जल्दी शायद उन्हें नानी के घर पहुंचने की थी। लेकिन ऐसा क्यूं? इस पर मेरा मासूम मन नहीं जा पा रहा था।
 
बस धीरे-धीरे अपनी गति से गतिमान हो रही थी। अब बस का माहौल बेहद शांत लेकिन तनावपूर्ण लग रहा था। आमतौर पर यात्रा के दौरान मैं सो जाया करता था। लेकिन उस दिन आंखों ने नींद पर विजय प्रा’ कर ली थी। शायद अम्मी-पापा के तनाव का असर मेरे ऊपर भी हावी हो चुका था।
बस अब अपने थोभड़े को खोल चुकी थी, जिसकी पों-पों की आवाज सुन दूसरे वाहन रास्ता दे रहे थे। बस की पों-पों तेज हो गई थी वहीं उसकी रफ्तार धीमी। दरअसल भीड़-भाड़ और उस कस्बे की सीमा की शुरुआत हो चुकी थी। जहां मेरे नानी का यानी मेरा सबसे प्यारा घर है।
 
अम्मी अब और अधीर हो रहीं थीं। बस ने अपने पैर स्टैंड पर जमा दिए थे और यात्रियों के पैर खुल चुके थे रास्तों पर दौड़ने के लिए। आज अम्मी इतनी हड़बड़ी में क्यूं हैं? झुंझलाते हुए मैने पापा से शिकायती लहजे में पूछा था। लेकिन पापा के कानों में शायद मेरी आवाज नहीं पहुंच पा रही थी। वो सिर्फ रिक्श्ो को आवाज देने में व्यस्त थे।
 
करीब पांच मिनट बाद हम नानी के दरवाजे पर पहुंच चुके थे। वहां लोगों का जमावड़ा था। माहौल बिल्कुल शांत और बेचैन करने वाला था। ज्यादातर मुझे सफेद लिबाजों में लिपटे लोग ही नजर आ रहे थे। ऐसा सन्नाटा मैनें आज से पहले कभी नहीं महसूस किया। तभी भीड़ से चीरती, कांपती सिसकियां मेरे कानों में किसी अजीज के इस दुनिया से रुखसत होने का संदेशा पहुंचा रहीं थीं। अब अम्मी की अधीरता, चेहरे की शिकन, मन की बेचैनी, पापा की जल्दबाजी और परेशानी का राज मेरी समझ में आ चुका था।

 

Tuesday 11 March 2014

प्रोपर्टी संसार

घर पाने के लिए गलतियों से बचना जरूरी


एक खूबसूरत घर खरीदने का सपना लगभग हर किसी का होता है। छोटे पूंजी वाले लोगों के लिए घर खरीदना थोड़ा मश्किल होता है। अगर आप घर खरीदने के लिए होम लोन के लिए एप्लाई कर रहे हैं, तो जरूरी है कि उसको पास कराने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए। वैसे भी कम पूंजी वाले लोगों के लिए घर खरीदने में होम लोन बेहद मददगार साबित होते हैं। लेकिन कुछ गलतियों की वजह से कई लोग इन्हें हासिल करने में नाकामयाब रहते हैं। जानते हैं ऐसी ही कुछ गलतियों के बारे में।

लोन प्रोवाइडर के बारे में कम जानकारी

ज्यादातर केस में देखा जाता है कि लोन लेना वाले व्यक्ति को लोन प्रोवाइडर एजेंसीज या संस्थान के बारे में पूरी और सही जानकारी नहीं होती। वे सिर्फ एडवर्टीजमेंट्स में किए गए लुभावने वायदों व आकर्षक ब्याज दरों के प्रस्ताव या अपने दोस्तों व फैमिली वालों की बातों में आकर फैसला कर लेते हैं। जो बाद में उनके लिए घातक साबित होता है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि आप पूरी तरह से रिसर्च करें। रिसर्च के लिए आप इंटरनेट की हेल्प से ले सकते हैं। यहां पर आपको इंट्रेस्ट रेट, होम लोन ऑफर्स के बारे में पूरी इंफार्मेशन मिल जाएगी।

एग्रीमेंट में लापरवाही करना

घर खरीदने की जल्दबाजी में हम अकसर प्रापर्टी या लोन से संबधित दस्तावेजों पर गौर नहीं करते जो बाद में हमारे लिए परेशानी का सबब बनती हैं। हम सब को बचपन से बताया जाता है कि कहीं भी साइन करने से पहले वहां लिखे रूल्स एंड रेगुलेशंस को इत्मीनान से क्रॉस चेक कर लेना चाहिए। एग्रीमेंट के डाक्यूमेंट्स में कोई ऐसा नियम या शर्त हो सकती है जो आपको बिल्कुल मंजूर न हो। इसे पढ़ कर क्लियर हो जाएगा कि आप किस परिस्थिति में पैर रखने जा रहे हैं। यदि आपको किसी शर्त पर आपत्ति है तो उसके बारे में बैंक के साथ बात की जा सकती है। और उसे सुलझाया जा सकता है।

कंप्लीट इंफार्मेशन का न होना

अकसर यह बात सामने आती है कि बायर को घर खरीदने से रिलेटेड ज्यादा जानकारी नहीं होती है। जो उनके और घर के बीच रोढ़ा साबित होती है। इसलिए घर खरीदने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले आपको अपने लेवल पर सही तरीके से खोज करनी चाहिए। किसी और के प्रदान की गई सूचना पर भरोसा करना आपके लिए नुकसानदायक साबित होता है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि अगर आप अपनी मनपसंद प्रापर्टी पाना चाहते हैं तो रिसर्च प्रक्रिया बेहद जरूरी है। इस प्रक्रिया के तहत सबसे पहले उन प्रोजेक्ट्स या एरियाज को प्वाइंट आउट करें जो आपके लिए सही और कंफर्टेबल हों।
होम लोन की बात हो तो ध्यान रखें कि आप होम लोन के बारे में कंप्लीट इंफार्मेशन हासिल करें। जिस तरह से आप बाजार में खरीदारी के वक्त विभिन्न दुकानों पर घूम कर अपनी पसंद तथा जरूरत की चीज की तलाश करते हैं ठीक उसी तरह से आपको उपयुक्त होम लोन की खरीदारी करनी चाहिए।

मंथली किस्तों का क्लियरेंस

कई बार लोग लोन लेने के वक्त मंथली किस्तों का अमाउंट जल्दी भरने के लिए ज्यादा करवा लेते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि वे अपनी मंथली इनकम का 4० से 45 पर्सेंट मंथली किस्त के रूप में अदा कर सकते हैं। हालांकि वे उन खर्चों का ध्यान रखना भूल जाते हैं जो अचानक करने पड़ सकते हैं। इस तरह के गलत आकलन की वजह से आप अपनी क्षमता से अधिक लोन ले लेते हैं। जो बाद में आप पर बोझ बन जाता है। इसलिए यह बेहर जरूरी पहलू है कि आप अपनी मासिक किस्तों के अमाउंट पर ध्यान दें। अगर ऐसा नहीं होता है तो खूबसूरत घर के मालिक बनने का ख्वाब आर्थिक समस्या की वजह से बुरा साबित हो सकता है।

अपनी क्रैडिट रिपोर्ट प्राप्त नहीं करना

बैंक या हाऊसिग फाइनांस कार्पोरेशन के साथ होम लोन संबंधी बातचीत करने से पहले आपको अपनी क्रैडिट रिपोर्ट को किसी तरह की गलती या गड़बड़ के लिए जरूर जांच लेना चाहिए। यदि आपको कोई गलती या गड़बड़ दिखाई दे तो उसे तुरंत चुनौती दें क्योंकि इससे आपका क्रैडिट स्कोर प्रभावित होता है। नकारात्मक क्रैडिट रिपोर्ट आपके लोन लेने की क्षमता पर बेहद बुरा प्रभाव डालती है। अच्छी क्रैडिट रिपोर्ट से आप अधिक लोन लेने के योग्य हो सकते हैं।

एप्लीकेशन में गलत डाटा देना

ज्यादातर होम लोने के एप्लाई करने के लिए हम पहली बार ही जाते हैं। जिस वजह से हमें इस प्रासेस के बारे में सही जानकारी नहीं होती। लोन एप्लीकेशन भरते समय आमतौर पर हम एप्लीकेशन में पूछे गए सवाल के बारे में जानकारी न होने पर उसे खाली छोड़ देते हैं या अनुमान के अनुसार उसमें डाटा फिल कर देते हैं। यह करना हमारे लिए घातक साबित होता है। एप्लीकेशन भरते समय की गई थोड़ी सी भी चूक आपके होम लोन पाने के ख्वाब को मटियामेट कर सकती है। इससे बचने के लिए या तो किसी से परामर्श लें या जानकारी न होने की स्थित में स्वयं बैक या लोन प्रोवाइडर एजेंट या संस्थान जाकर पूरी प्रक्रिया को समझकर ही एप्लीकेशन फार्म को फिलअप करें। ध्यान रहे कि अगर आपके क्रेडिट कार्ड पर अमाउंट बकाया है या पहले से आपने कोई लोन ले रखा है तो यह आपकी होम लोन क्षमता को प्रभावित करेगा। इसलिए एप्लीकेशन में सही डाटा प्रोवाइड करना जरूरी है।

इंश्योरेंस न लेना

इंश्योरेंस किसी भी अनहोनी घटना के वक्त परिवार को बचाने के लिए बेहद मददगार साबित होते हैं। ऐसी किसी भी सिचुएशन से बचने के लिए फैमिली को सिक्योरिटी प्रोवाइड करने के लिए होम लोन का इंश्योरेंस करवाना आवश्यक है। लोन लेने वाले की मृत्यु की स्थिति में लोन की बाकी सारी राशि को बीमा कंपनी अदा कर देती है। इसी प्रकार किसी क्रिटिकल बीमारी पॉलिसी के तहत लोन लेने वाले की आय में किसी गंभीर रोग की वजह से कमी आने पर भी बीमा कं पनी एक तय समय तक किस्तों की अदाएगी करती है।


 

Saturday 8 March 2014

चालबाज दुनिया में 'मास्टरनी’

'महा-मास्टरनी'

उसे दुनियादारी नहीं पता थी

मौत का मर्सिया पढ़ना उसे नहीं आता था
लेकिन वक्त ने उसको
सिखा दिया सबकुछ
वह भी जो उसे आता था
और वह भी जिससे उसका साबका न था
उन दिनों उस पर वो सब गुजरा
जो उसे कभी कुबूल न था

ये जालिम वक्त
शिला के भी टुकड़े कर देता है
और पानी के वजूद को भी मटमैला
लेकिन अब
वक्त की धार में पैनापन
शायद ज्यादा था
या था ही नहीं
यहां अब सबकुछ उल्टा चल रहा था
दुनिया की नजरों में
लेकिन ये तब उल्टा नहीं था
जब यह उसके साथ घटित हो रहा था

अब मजबूती ने मुट्ठी को
कसकर भींच रखा था
क्योंकि वक्त तो उल्टे का था ना
अब सबके साथ उल्टा होगा सिर्फ उसके सिवा
क्योंकि
वक्त टुकड़ों का गठजोड़ कर चुका था
अब तो वह
चुड़ैल हो चुकी थी
अब हर वो शब्द उसके लिए था
जिन्हें प्रबुद्ध समाज के लोग
अपनी जुबां पर कम
लेकिन दिमाग में हमेशा रखते हैं

मेरी नजरों में तो वह महा-मास्टरनी थी
क्योंकि उसने उन सबको पछाड़ा था
जो खुद को
मालिक समझ बैठे थे
दुनियाभर की 'नारी जाति’ का ।।


 

Wednesday 5 March 2014

दो कवितायें.....

शब्द सागर


शब्दों के सागर में नाव डाल रखी है
दुम दबाए बैठना
सिखाया गया नहीं कभी
अब हाथ पैर तो मारने ही हैं
क्योंकि रुकना इस समंदर में
मौत को आमंत्रण होगा

अब चीर कर नीर को
आगे बढ़ना है
हों झंझावात चाहे जितने
इसीलिए शब्दों के शिखर
की तलाश जारी है
इस जहां में
सिरमौर बनने की खातिर
................................................ 

यात्रा

दुनिया को समझने की फिराक में
निकला हूं
पहुंचूंगा कहां कुछ पता नहीं
रास्ता तो शायद मिल भी जाए
लेकिन क्या मंजिल सिमटेगी हथेलियों में

कोशिशों के पुलिंदे साथ हैं
क्या उस पुलिंदे में चाभी छुपी है
उस खास दरवाजे की
जिसे सब खोलने में लगे हैं
पक्का यकीं है मुझे
तुम सब भी
मिलोगे  
उसी खास दरवाजे के पास



Sunday 2 March 2014

चलते चलते...(लघु संस्मरण)


'बरेली’ यात्रा और 'मैं’

यात्रा की शुरूआत हमेशा कौतूहल, उत्सुकता और रोमांच के साथ होती है। लेकिन इसका अंत थकान, नीरसता और उदासी के साथ होता है। इस मसले पर मेरे साथ कुछ उलटा था। 

कल ही यूपी के खूबसूरत और दिलफेंक शहर 'बरेली' की यात्रा पर जाना हुआ।
कभी-कभी आपको पता नहीं होता कि अगले पल आपके साथ क्या होने वाला है। और जब पता ही नहीं होगा तो न कोई प्लानिंग होगी न ही कोई आईडिया।
ठीक ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। मसला कुछ यूं था कि बरेली जाने का फरमान अचानक मेरे पास आ पहुंचा। अब फरमान था सो जाना भी जरूरी। लेकिन रेल रिजर्वेशन/टिकट का कुèछ अता-पता नहीं, जैसे-तैसे नोएडा स्थित पीजी से निकलकर मेट्रो के जरिए दिल्ली रेलवे स्टेशन तक पहुंचा। पहुचने पर पता चला कि ट्रेन प्लेटफार्म पर रेंग चुकी है।
अब मेरा क्या था...जाना कैंसिल...अरे नहीं। ...मैनें ट्रैक पर दौड़ लगा दी, दौड़ा ही था कि टीटी महाशय ने टांग अड़ा दी...अरे वो गिराने वाली टांग नहीं, टिकिट चेक करने वाली टांग। लेकिन मैं तो मैं था, कहां रुकने वाला। लेकिन अफसोस कि रुकना पड़ा, टीटी की खातिर... नहीं...दरअसल आगे रास्ता ही बंद था।
अब टीटी मेरे सामने और मैं उसके सामने। मामला गंभीर हो रहा था। लेकिन इतना गंभीर हो जाएगा पता नहीं था। टीटी के बिहैवियर से मैं स्तब्ध था।
कुछ ही लम्हों बाद ट्रैक पर मेरे दोनों पैर एक-दूसरे को पछाड़ने की कश्मकश में लगे हुए थे। अगले पल कोच का हैंडल मेरे हाथ में था और शरीर कोच में....
.... लेकिन मन उस टीटी के पास ही छूट चुका था...।

 

Thursday 27 February 2014

नदियां

धरती की नसें हैं नदियां


हमेशा से ही कहा और माना जाता रहा है कि जल ही जीवन है और जल के बिना जीवन जीना बेहद मुश्किल है। दुनियाभर में जल का प्रमुख श्रोत या तो समुद्र हैं या फिर नदियां। नदियां मानव जीवन और पर्यावरण को संरक्षित करने में सहायक साबित होती हैं। मगर अफसोस अब नदियों का जलस्तर मनुष्य की गलतियों की वजह से निरंतर घटता जा रहा है कई नदियों का तो अस्तित्व भी खतरे में है। आइए जानते हैं दुनियाभर की कुछ सबसे विशाल और लंबी नदियों के बारे में।

नील नदी

दुनिया की सबसे लंबी नदी का खिताब इसी को मिला है। यह पूर्वी अफ्रीका से उत्तर और फिर मेडिटेरियन तक 6,65० किलोमीटर के दायरे में फैली हुई है। नील की दो बड़ी सहायक नदियां हैं- व्हाइट नील और ब्लू नील। मिस्र की प्राचीन सभ्यता के विकास में नील नदी की बहुत बड़ी भूमिका मानी जाती है। नील नदी को इसीलिए 'मिस्र का वरदान’ भी कहा जाता है।

अमेजन

करीब 6,4०० किलोमीटर लंबी अमेजन नील नदी के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबी नदी है। यह नील से थोड़ी-सी छोटी है। हालांकि विशेषज्ञ दोनों नदियों की ठीक-ठीक लंबाई से सहमत नहीं। हां, इतना निश्चित है कि पानी की अधिकता से यह दुनिया की सबसे लंबी नदी है। अटलांटिक महासागर में गिरने से पहले अमेजन और इसकी सहायक नदियां पेरू, बोल्विया, वेनेजुएला, कोलंबिया, इक्वाडोर और ब्राजील से गुजरती हैं। अमेजन नदी में मछलियों की 3,००० से ज्यादा प्रजातियां पायी जाती हैं।
यांग्त्सीक्यांग
यह चीन की सबसे लंबी और दुनिया की तीसरी सबसे लंबी नदी है। यह करीब 6,3०० किलोमीटर लंबी है। विश्ोषज्ञों के अनुसार इसका उद्गम तिब्बती पठार के पूर्वी हिस्से में स्थित ग्लेशियर हैं। यांग्तजी नदी पर बनाया गया बांध 'थ्री गोज्रेज डैम’ दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर स्टेशन है। यह नदी दुनिया का सबसे व्यस्त जलमार्ग भी मानी जाती है।

डैन्यूब

यह यूरोप की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है। यह इस महाद्बीप की वोल्गा नदी के बाद दूसरी सबसे लंबी नदी है। यह नदी लंबे समय तक रोमन साम्राज्य की प्रहरी रही। आज यह 1० यूरोपीय देशों की सीमा बनाती है। यह जर्मनी के ब्लैक फॉरेस्ट से निकलती है और 2,85० किलोमीटर के सफर के बाद ब्लैक सी में मिलती है।

गंगा

गंगा हमारे देश की सबसे पवित्र नदी मानी जाती है। पुराणों में इस नदी को देवी का स्थान दिया गया है, भारत में इसकी पूजा की जाती है। गंगा का उद्गम स्थल पश्चिमी हिमालय माने जाते हैं। यह 2,51० किलोमीटर लंबी है। यह नदी पश्चिम बंगाल के सुंदरवन डेल्टा में गिरती है। इसके हुगली नदी के नाम से भी जाना जाता है। गंगा का प्राचीन काल से ही धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रहा है। गंगा के महत्व को देखते ही इसे 'राष्ट्रीय नदी’ घोषित किया गया है।


मेकांग

यह दुनिया की 12वीं सबसे लंबी नदी है जिसकी लंबाई 435० किलोमीटर है। तिब्बत के पठार से निकली यह नदी चीन के युयान प्रांत से होती हुई म्यांमार, लाओस, कंबोडिया और थाईलैंड से होकर गुजरती है। विश्ोषज्ञों के मुताबिक इस नदी में सबसे खतरनाक और जहरीले सांप पाए जाते है।

जांबेजी

अफ्रीका में यह चौथी सबसे लंबी नदी है जिसकी लंबाई 3,45० किलोमीटर है. यह नदी उत्तर-पश्चिम जांबिया के वेटलैंड से निकलती है और अंगोला से होती हुई नामीबिया, बोत्सवाना, जांबिया, जिंबांब्वे और मोजांबिक होती हुई हिद महासागर में मिलती है। माना जाता है कि साल में दो बार इस नदी के पानी का स्वाद बदलता है। जांबेजी नदी की शानदार विशेषता विक्टोरिया प्रपात है।

वोल्गा

यह यूरोप की सबसे लंबी और रूस की सबसे महत्वपूर्ण नदियों में से एक है। रूस के सबसे बड़े 2० शहरों में से 11 वोल्गा के ड्रेनेज बेसिन में स्थित हैं, जिनमें राजधानी मास्को भी शामिल है। यह मात्र 225 मीटर की ऊंचाई पर वाल्दे हिल्स से निकलती है और 3,645 किलोमीटर लंबा सफर तय करते हुए कैस्पियन सागर में गिरती है।

मिसीसिपी

करीब 3,73० किलोमीटर लंबी मिसीसिपी अमेरिका और उत्तरी अमेरिका की सबसे लंबी नदी है। यह इतास्का नामक झील से निकलती है और मैक्सिको की खाड़ी में खत्म होती है। इसके जल की धारा काफी तेज और ठंडी होती है।

सेपिक

यह न्यू गिनी आइसलैंड की सबसे लंबी नदी है। इसका उद्गम पापुआ न्यू गिनी के पहाड़ों में है। अन्य बड़ी नदियों की तरह इसका कोई डेल्टा नहीं है और यह सीधे समुद्र की तरफ बहती है। इस नदी की कुल लंबाई 1,128 किलोमीटर है।



 

Tuesday 25 February 2014

समयचक्र

वक्त का पहिया

रुक जाओ कहां जा रहे हो तुम

तुम्हें फिक्र नहीं पीछे चल रहे

इस विषैले वातावरण की

जिसमें तुम घुलने वाले हो

बात को समझो

समझ गए तो वा..वा

नहीं तो जा..जा

यही होगा बाद में


जहां तुम जा रहे हो शायद वहां

तुम्हें वो न मिल पाए

जिसे तुमने छोड़ दिया था

गवां दिया था

बर्बाद कर दिया था

उस मौजपन में

जब वह तुम्हारे पास था


अब वह कहां मिलने वाला

क्योंकि वह तो कब का गुजर चुका है

वह वापस नहीं लौटता

यही तो सब कहते हैं

उसके जाने के बाद

बिदा होने के बाद


इसलिए तुम वापस लौट आओ

मान भी जाओ

कम से कम

अब जो तुम्हारे पास है

उसे तो मत गंवाओ

पछतावा होगा

माथा पीटोगे

जब पता चलेगा कि

वो तो समय था

और समय कभी वापस नहीं लौटता.......!!


 

 

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