Tuesday 8 April 2014

बेल का खेल


बेल का अजब खेल

बेल का पेड़ विश्व के कई हिस्सों में पाया जाता है। भारत में इस वृक्ष का पीपल, नीम, आम और पलाश वृक्षों के समान ही बहुत अधिक सम्मान है। हिंदू धर्म में बेल का वृक्ष भगवान शिव की अराधना का मुख्य अंग है। बेल की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल का शर्बत बड़ा ही लाभकारी होता है। इसके फल व पत्तियों मंे टैनिन, आयरन, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नेशियम जैसे रसायन पाए जाते हैं।
मान्यता है कि शिव को बेल-पत्र चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। बिल्व के पेड़ का भी विशिष्ट धार्मिक महत्व है। कहते हैं कि इस पेड़ को सींचने से सब तीर्थों का फल और शिवलोक की प्राप्ति होती है।
बेल का वृक्ष यूं तो पूरे भारत में पाया जाता है लेकिन विशेष रूप से हिमालय की तराई, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में चार हजार फीट की ऊंचाई तक यह पाया जाता है। मध्य व दक्षिण भारत में बेल वृक्ष जंगल के रूप में फैले हुए हैं और बड़ी संख्या में उगते हैं। यह भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसकी खेती भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्बीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्बीपसमूह में भी की जाती है।
 
यह पंद्रह से तीस फुट ऊं चा होता है। इसका कड़ा और चिकना फल कवच कच्ची अवस्था में हरे रंग और पकने पर सुनहरे पीले रंग का हो जाता है। कवच तोड़ने पर पीले रंग का सुगंधित मीठा गूदा निकलता है, जो खाने और शर्बत बनाने के काम आता है।

आयुर्वेद में बेल वृक्ष को कई प्रकार से लाभकारी बताया गया है। इसके पत्तों, फलों को औषधि के रूप में बहुत प्रयोग किया जाता है। बेल की जड़ों की छाल का काढ़ा मलेरिया व अन्य बुखारों में हितकर होता है। अजीर्ण में बेल की पत्तियों का रस काली मिर्च और सेंधा नमक में मिलाकर पीने से आराम मिलता है। अतिसार के पतले दस्तों में ठंडे पानी से इसका चूर्ण लेने पर आराम होता है। आंखें दुखने पर बेल के पत्तों का रस, स्वच्छ पतले वस्त्र से छानकर एक-दो बूंद आंखों में टपकाने से समस्या से निजात मिलती है। शरीर की त्वचा के जलने पर बेल के चूर्ण को गरम कर तेल में मिलाकर जले अंग पर लगाने से आराम मिलता है।
 

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