Tuesday 31 December 2013

बचा लो इन्हें .....

                            देश के प्रतिष्ठित अख़बार में प्रकाशित हो चुका लेख


विलुप्त हो रहे प्रकृति के प्रहरी

प्रकृति के प्रहरी माने जाने वाले जीव आज मनुष्य की गलतियों का खामियाजा अपने अस्तित्व को गंवाकर भुगत रहे हैं। दुनियाभर में फैली खूबसूरत और खतरनाक जीवों की विभिन्न प्रजातियों का जीवन संकट में है। तमाम शोधों में पाया गया है कि इनके विलु’ होने का कारण ग्लोबल वार्मिंग, बदलती जीवनश्ौली, कीटनाशक, दवाइयों व केमिकल्स का प्रयोग इनके जीवन को प्रभावित कर रहा है। 5 अक्टूबर 1948 को स्थापित की गई आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑन नेचर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्तनपायी जीवों की 397 प्रजातियां, पक्षियों की 1232, सरीसृपों की 46०, मछलियों की 2546 और कीट-पतंगों की 59, 353 प्रजातियां पाई जाती हैं। इसके अलावा भारत में तकरीबन 18,664 तरह के पेड़-पौधों की शरण स्थली माना गया है।
लेकिन अब इन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। मौजूदा समय में देश में 84 राष्ट्रीय उद्यान और 447 अभ्यारण्य जीवों को संरक्षित करने के लिए बनाउ गए हैं। जानते हैं कुछ प्रमुख विलुप्त जीवों के बारे में।

बाघ - 

भारत का राष्ट्रीय पशु है। इसकी आठ प्रजातियों में रॉयल बंगाल टाइगर, देश के पश्चिमी हिस्से में पाया जाने वाला सबसे खतरनाक जीव माना जाता है। किसी समय अपनी चहलकदमी से पूरा जंगल हिलाने वाले इस वन्य जीव का अस्तित्व हिल चुका है। इस खूबसूरत जीव का जीवन खतरे में है। भारत में यह सबसे ज्यादा संकटग्रस्त प्रजातियों में गिना जाता है। देश में अब केवल 1411 बाघ ही बचे हैं। हालांकि अब इनकी संख्या में इजाफा हुआ है।

एशियाई शेर - 

एशियाई शेर प्रमुख रूप से गुजरात के गिर वनों में पाए जाते हैं। लेकिन अब इनकी संख्या में लगातार कमी हो रही है। गिर वन में अब करीब 411 शेर बचे हैं। पर्यावरण के विष्ौला होने व जल प्रदूषण और शिकार की वजह से यह खूबसूरत जीव अपने अस्तित्व को लेकर संकट में है।
गिद्ध- यह प्रमुख रूप से मृत-पशु के मांस पर निर्भर रहने वाला जीव है। इस जीव को प्रकृति का सफाईकमीã भी कहा जाता है। इसके विलुप्त होने का प्रमुख कारण पशुओं में प्रयोग की जाने वाली कई तरह की दवाओं को माना जा रहा है। देश में इनकी संख्या न के बराबर है। इस जीव को पूर्ण रूप से लुप्त प्राय जीवों की श्रेणी में रखा गया है।

वेस्टर्न ट्रैगोपन- 

यह रंगबिरंगी और खूबसूरती पक्षी हिमालय के ठंडे और जंगली इलाकों में पाया जाता है। यह तीतर की दुर्लभ प्रजाति है, जिसका जीवन समाप्ति की ओर है। इसके लुप्त होने का कारण जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है।
स्नो लेपर्ड- हिमालयन तेंदुआ यह अत्यंत चंचल और फु र्तीला, बिल्ली की प्रजाति का प्राणी है। यह हिमालय की ऊचाईयों में ठंडे-जंगली इलाकों में पाया जाता है। इसके अंगों की कीमत अतंर्राष्ट्रीय बाजार में करोणों होने के कारण इसका चोरी छिपे शिकार किया जाता है, जिस कारण यह भी विलुप्त जीवों की श्रेणी में शामिल है।

रेड पांडा - 

यह अत्यंत खूबसूरत स्तनपायी प्राणी पूर्वी हिमालय के जंगलों में पाया जाता है। जंगलों के लगातार कटने के कारण इसके निवास क्ष्ोत्र की कमी के कारण यह अपने जीवन को लेकर संकट में है।
सुनहरा लंगूर। देश में यंू तो बंदरों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं। इन्हीं में से एक है सुनहरा लंगूर। इसका निवास क्ष्ोत्र ब्रह्मपुत्र नदी के आसपास स्थित वन हैं। वनों के कटाव के चलते इनकी संख्या तेजी से घट रही है।
इंडियन एलीफैंट- भारतीय हाथी को राजाओं की सवारी माना गया है। इसलिए यह राष्ट्रीय विरासत पशुओं की श्रेणी में सबसे आगे है। हाथी दांत के लिये चोरी छिपे शिकार और निवास क्ष्ोत्र के नष्ट होने के कारण यह जीव अपने जीवन को लेकर संकटग्रस्त।

इंडियन वन हार्न रीनो- 

एक सींग वाला गेंडा अपनी प्रजातियों में सबसे हिंसक माना जाता है। इसका निवास क्ष्ोत्र गंगा के मैदानी-जंगली इलाके हैं। हालांकि अब यह सिर्फ चिड़ियाघरों में ही देखे जाते हैं। एक सींग की वजह से इसके अत्याधिक शिकार और प्राकृतिक परिवर्तन के कारण ये समाप्ति की ओर हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में अब सिर्फ 21०० गैंडे ही बचे हैं।

स्वैंप डीर- 

यह हिरण प्रमुख रूप से घने व दलदली इलाकों में रहने के कारण प्रसिद्ध है। यह प्रमुख तौर से भारत और नेपाल में पाया जाता है। बदलते पर्यावरण और घटते निवास क्ष्ोत्रों की वजह से इसका जीवन संकट में है।
ओलिव राइडल टर्टल- यह अपनी प्रजाति का अनोखा और सबसे छोटा क छुआ है। यह भारत के पूर्वी तटों प्रमुख रूप से ओड़िशा तट पर भारी संख्या में पाए जाते हैं और प्रजनन करते हैं। प्रजनन स्थलों की संख्या में कमी और समुद्री जल के प्रदूषति होने के कारण इनकी आबादी खत्म हो रही है।

इसके अलावा आर्इयूसीएन की रेड लिस्ट में कई और जीव प्रजातियों को शामिल किया गया है। ब्लैक नेक्ड क्रेन, डोडो, यात्री कबूतर, टाइरानोसारस, कैरेबियन मॉन्क सील, वन कछुए, ब्राजील के मरगैनसर, घडिèयाल, नीला व्हेल, विशालकाय पांडा, बर्फीला तेंदुआ, क्राउंड सालिटरी ईगल, ब्लू-बिल्ड डक, सॉलिटरी ईगल, स्माल-क्लाड औटर, मेंड वुल्फ, चित्तीदार मैना, गौरैया आदि प्रमुख हैं।




Friday 27 December 2013

दिल मे समाये ग़ालिब


जाग रहा है गजलकार


हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश प दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमां, लेकिन फिर भी कम निकले

हजारों-लाखों श्ोर लिखने और इससे भी ज्यादा दिलों पर काबिज रहने वाले मिर्जा गालिब उर्फ असदउल्ला खां का जन्म उनके ननिहाल आगरा में 27 दिसंबर, 1797 ई. को हुआ था। इनके पिता फौजी में नौकरी करते थ्ो। जब ये पांच साल के थे, तभी पिता का देहांत हो गया था। पिता के बाद चाचा नसरुल्ला बेग खां ने इनकी देखरेख का जिम्मा संभाला। नसरुल्ला बेग आगरा के सूबेदार थे, पर जब लॉर्ड लेक ने मराठों को हराकर आगरा पर अधिकार कर लिया तब पद भी छूट गया। हालांकि बाद में दो परगना लॉर्ड लेक द्बारा इन्हें दे दिए गए।

प्रारंभिक शिक्षा

गालिब की प्रारंभिक शिक्षा के बारे मे कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन गालिब के अनुसार उन्होने ११ वर्ष की अवस्था से ही उर्दू एवं फारसी मे गद्य तथा पद्य लिखने आरंभ कर दिया था। उन्होने अधिकतर फारसी और उर्दू मे पारंपरिक भक्ति और सौंदर्य रस पर रचनाएं लिखी जो गजल मे लिखी हुई है। उन्होंने फारसी और उर्दू दोनो में गीत काव्य की रोमांटिक शैली में लिखा जिसे गजल के तौर पर जाना जाता है।

बालविवाह

गालिब बचपन से ही पढ़ने-लिखने में होनहार थ्ो। उस समय बाल विवाह का प्रचलन था। इसके चलते गालिब का 13 वर्ष की आयु में उमराव बेगम से विवाह कर दिया गया। विवाह के बाद वह दिल्ली आ गए, जहां उनकी तमाम उम्र बीती।

 प्रतिभा के धनी

गालिब बचपन से ही मेहनती और होनहार थ्ो। उसी समय मुल्ला अब्दुस्समद ईरान से घूमते-फिरते आगरा आए और गालिब के यहां डेरा जमाया। वह ईरान के एक प्रतिष्ठित और वैभव संपन्न व्यक्ति थे। फारसी और अरबी भाषा का उन्हें बहुत अच्छा ज्ञान था। उस समय मिर्जा 14 वर्ष के थे और फारसी में उन्होंने अपनी योग्यता प्रा
प्त कर ली थी। अब्दुस्समद गालिब की प्रतिभा से चकित थ्ो। उन्होंने गालिब को दो वर्ष तक फारसी भाषा और काव्य की बारीकियों का ज्ञान प्रदान किया। उन्होंने अपनी सारी विद्याओं में गालिब को पारंगत कर दिया। उनका मानना था कि मेहनत से कोई भी व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है।

संगत का असर

गालिब में प्रेरणा जगाने का कार्य शिक्षा से भी ज्यादा उस वातावरण ने किया, जो इनके इर्द-गिदã था। जिस मुहल्ले में वह रहते थे, उसे गुलाबखाना कहा जाता था। जो उस जमाने में फारसी भाषा की शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। वहां एक-से-एक विद्बान रहते थ्ो। उन सबकी संगत का असर गालिब पर भी पड़ा। 24-25 वर्ष की उम्र में गालिब पर प्यार का रंग चढ़ गया। जो इनके बचपन की शौकिया श्ोरो-शायरी को विस्तृत कर परवान चढ़ा गया।
प्रतिष्ठित अख़बार में प्रकाशित हो चुका लेख

गुरबत में कटे दिन

विवाह के बाद गालिब की आर्थिक कठिनाइयां बढ़ती ही गईं। आगरा, ननिहाल में इनके दिन आराम व रईसीयत से बीतते थे। 1822 ई. में ब्रिटिश सरकार एवं अलवर दरबार की स्वीकृति से नवाब अहमदबख्श खां ने अपनी जायदाद का बंटवारा किया जिसमें फीरोजपुर की गद्दी पर उनके बड़े लड़के शम्सुद्दीन अहमद खां बैठे और लोहारू की जागीरें उनके दोनों छोटे बेटों को मिली। इस बंटवारे से गालिब भी प्रभावित हुए। शम्सुद्दीन द्बारा उनकी पेंशन अटका दी गई।

 दिल में समाई दिल्ली

गालिब के ससुर इलाहीबख्श खां न केवल वैभवशाली, धर्मनिष्ठ व अच्छे कवि भी थे। विवाह के दो-तीन वर्ष बाद ही गालिब स्थायी रूप से दिल्ली आ गए और उनके जीवन का अधिकांश भाग दिल्ली में ही गुजरा। बाद के समय में गालिब शहंशाह बहादुर शाह जफर द्बतीय के यहां रहने लगे। उन्हें बादशाह ने अपने बड़े पुत्र फखरुद्दीन का शिक्षक भी नियुक्त कर दिया।

शाही खिताब

सन् 185० मे शहंशाह बहादुर शाह जफर द्बतीय ने मिर्जा गालिब को ’’दबीर-उल-मुल्क’’ और ’’नज्म-उद-दौला’’ के खिताब से नवाजा। बाद मे उन्हे ’’मिर्जा नोशा’’ के खिताब भी मिला।




मिर्ज़ा ग़ालिब


जाग रहा है गजलकार

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमां, लेकिन फिर भी कम निकले

हजारों-लाखों शेर लिखने और इससे भी ज्यादा दिलों पर काबिज रहने वाले मिर्जा गालिब उर्फ असदउल्ला खां का जन्म उनके ननिहाल आगरा में 27 दिसंबर, 1797 ई. को हुआ था। इनके पिता फौजी में नौकरी करते थ्ो। जब ये पांच साल के थे, तभी पिता का देहांत हो गया था। पिता के बाद चाचा नसरुल्ला बेग खां ने इनकी देखरेख का जिम्मा संभाला। नसरुल्ला बेग आगरा के सूबेदार थे, पर जब लॉर्ड लेक ने मराठों को हराकर आगरा पर अधिकार कर लिया तब पद भी छूट गया। हालांकि बाद में दो परगना लॉर्ड लेक द्बारा इन्हें दे दिए गए।

हॉट डेस्टीनेशन न्यूजीलैंड

स्टडी का हॉट डेस्टीनेशन न्यूजीलैंड

अब्रॉड स्टडी के मामले में भारतीय छात्रों का मिजाज अब धीरे धीरे बदलता जा रहा है। पहले ज्यादातर छात्र अमेरिका की ओर रुख करते थे, लेकिन अब न्यूजीलैंड भी भारतीय छात्रों का पसंदीदा स्टडी डेस्टिनेशन बनता जा रहा है। इस खूबसूरत देश में विदेशी छात्रों के लिए पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था है। यहां के सरकारी पॉलिटेक्निक कॉलेज में टूरिज्म, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, हॉस्पिटैलिटी, नîसग आदि से जुड़े सर्टिफिकेट व डिप्लोमा प्रोग्राम चलाए जाते हैं। खासबात यह है कि इनकी फीस भी अधिक नहीं होती है।
यह फीस एक वर्षीय डिप्लोमा प्रोग्राम के लिए बिल्कुल ठीक बैठती है। एक दूसरा आसान रास्ता सरकारी अनुदान प्राप्त पॉलिटेक्निक कॉलेज वेलिगटन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और क्राइस्टचर्च पॉलिटेक्निक ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के रूप में हैं। इसके अलावा, कुछ अच्छे प्राइवेट संस्थान भी यहां हंै, जिससे आप वोकेशनल कोर्स कर सकते हैं। नैटकोल भी एक ऐसी ही संस्था है, जो मल्टीमीडिया एवं एनिमेशन में एक जाना पहचान नाम है।
यदि आप न्यूजीलैंड से वोकेशनल कोर्स करना चाहते हैं, तो हम आपको कुछ ऐसे ही इंस्टीट्यूट के बारे में बता रहा है, जिनकी अपनी एक अलग खासियत है।


Saturday 21 December 2013

क्रांतिकारी सोहन

मुफलिसी में जन्मा क्रांतिकारी


बचपन तो वही होता है जो कंचे और अंटियों को जेबों में भरकर सो जाए, बचपन यानी जो पतंगों को बस्ते में छुपाकर लाए, बचपन मतलब जो मिट्टी को सानकर लड्डू बनाए। बचपन का तो मतलब ही यही होता है जो बड़ों की हर चीज को छुपकर आजमाए। ऐसा बचपन तो कुछ को ही मिलता है। इस सपनीले बचपन से इतर बचपन गुजरा अमृतसर की सरजमीं पर पैदा हुए महान क्रांतिकारी और संपादक सोहन सिंह का।


गुरबत भरा बचपन

सोहन सिंह बचपन से ही क्रांतिकारी स्वाभाव के थ्ो। उनमें देशभक्ति और जीवटता कूट-कूट कर भरी हुई थी। सोहन का जन्म 187० ई. में अमृतसर जिले के एक किसान करम सिंह के यहां हुआ था। एक वर्ष उम्र में ही सोहन के पिता का देहांत हो गया। मुफलिसी के उस दौर में मां रानी कौर ने उनका पालन-पोषण किया। सोहन सिंह बेहद मेहनती, कभी हार न मानने वाले व कई भाषाओं के ज्ञाता थ्ो। बचपन से उन्हें धार्मिक शिक्षा दी गई।

 

बाल विवाह

उस समय देश में बाल विवाह जैसी प्रथाएं प्रचलित थीं। इस प्रथा का शिकार सोहन सिह को भी बनना पड़ा और उनकी दस वर्ष उम्र में ही बिशन कौर के साथ विवाह कर दिया गया। बिशन कौर लाहौर के एक जमींदार कुशल सिह की पुत्री थीं। सोहन सिह ने सोलह वर्ष की उम्र में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। वे उर्दू और फारसी में दक्ष थे।


बुरी संगत का असर

कहा जाता है बुरी संगति का असर बुरा ही होता है। और यही हुआ सोहन सिंह के साथ। युवा होने पर सोहन सिह बुरे लोगों की संगत में पड़ गए। उन्होंने अपनी संपूर्ण पैतृक संपत्ति शराब पीने और अन्य कार्यों में गवां दी।
दरिद्रता के दिनों में उनके सभी साथियों ने साथ छोड़ दिया। विद्धानों का कहना है कि जब तक आपके पास धन है तब तक ही आप के दोस्त आपके साथ रहते हैं और धन समा’ होते ही वो भी आपका साथ छोड़ देते हैं। कुछ समय बाद सोहन का संपर्क बाबा केशवसिह से हुआ। उनसे मिलने के बाद ध्यान और योग के माध्यम से शराब व अन्य नश्ो की चीजों को पूरी तरह से छोड़ दिया।


जीविका की खोज
नेशनल दुनिया में प्रकाशित हो चुका लेख

शुरू से ही स्वाभिमानी सोहन ने अपनी आजीविका की खोज में और देश के विकास में योगदान देने की प्रेरणा लिए सन् 19०7 में अमेरिका जा पहुंचे। उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय व अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक सोहन के कानों तक भी पहुंच चुकी थी। वहां उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 2०० पंजाब निवासी वहां पहले से ही काम कर रहे थे। कम वेतन और विदेशियों द्बारा अपमान किए जाने से तिलमिलाए सोहन सिंह ने बगावत कर दी। उस बगावत के बाद सोहन का नाम बाबा सोहन सिंह भकना पड़ गया।


क्रांतिकारी संस्था का निर्माण

उस समय देश को आजाद कराने के लिए देश के रणबांकुरों में आजादी की चिंगारी सुलग चुकी थी। उन्होंने 'पैसिफिक कोस्ट हिन्दी एसोसिएशन' की स्थापना की। बाबा सोहन सिह उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने।

अखबार का संचालन

उस समय देश में लोगों का जागरूक करने का कोई कारगर साधन उपलब्ध नहीं था। अंग्रेजों की काली करतूतों को उजागर करने के लिए 'गदर' नाम के अखबार का प्रकाशन और संपादन किया। गदर की सफलता के बाद 'ऐलाने जंग, 'नया जमाना, जैसे प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी '.गदर पार्टी' कर दिया गया। '.गदर पार्टी, के तहत बाबा सोहन सिह ने क्रांतिकारियों को एकत्र करने व हथियारों को भारत भेजने की योजना में बढ़-चढ़कर भाग लिया।


आजीवन कारावास

क्रांतिकारी गतिविधियों में जुड़े होने और प्रथम लाहौर षड़यंत्र में शामिल होने की वजह से 13 अक्टूबर, 1914 को कलकत्ता से उन्हें गिरफ्तार कर लाहौर जेल भ्ोज दिया गया।
बाबा सोहन सिह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और उन्हें अंडमान की जेल भेज दिया गया। वहां से वे कोयंबटूर और भखदा जेल भेजे गए। उस समय यहां महात्मा गांधी भी बंद थे। फिर वे लाहौर जेल ले जाए गए। इस दौरान उन्होंने एक लंबे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया।
और आज के ही दिन यानी 2० दिसंबर, 1968 को महान क्रांतिकारी बाबा सोहन सिह भकना का देहांत हो गया।

Friday 20 December 2013

शार्ट कोर्सेस

शॉर्ट में छुपा लांग फ्यूचर

मॉडर्न होते परिवेश में वक्त की शार्टेज सभी के पास है। शायद इसी कमी को भांप कर आज के युवा जल्द ही आत्मनिर्भर होने के जतन करने में लगे हैं। और जो ऐसा नहीं कर रहे वो खुद को मॉर्डन होते इस समाज में पीछे कर रहे हैं। आज का युवा जागरूक हो रहा है। अब वे कॉलेज के साथ-साथ ऐसे कोर्स ढूंढते नजर आते हैं जिन्हें क्वालीफाई कर वे आसानी से पैसे कमा सकें। ऐसे ही कुछ नए शार्ट कोर्सेस आजकल चलन में हैं जिनमें वेब डिजाइनिंग, फोटोग्राफी, कंप्यूटर डिप्लोमा, वीडियो एडिटिंग और रेडियो जॉकी प्रमुख हैं। इनकी स्टडी ड्यूरेशन छह माह से एक साल तक है।
इस तरह के शॉर्ट कोर्सेस करने का फायदा यह है कि आपमें अलग तरह के कार्य को सुगमता पूर्वक कार्य करने की कला का विकास होता है और आप खुद को सैटिस्फाई भी कर पाते हैं। इसके साथ ही आप इस क्षेत्र में भी आसानी से अपने करिअर की राहें तलाश सकते हैं।


क्रांतिकारी संपादक

मुफलिसी में जन्मा क्रांतिकारी


बचपन तो वही होता है जो कंचे और अंटियों को जेबों में भरकर सो जाए, बचपन यानी जो पतंगों को बस्ते में छुपाकर लाए, बचपन मतलब जो मिट्टी को सानकर लड्डू बनाए। बचपन का तो मतलब ही यही होता है जो बड़ों की हर चीज को छुपकर आजमाए। ऐसा बचपन तो कुछ को ही मिलता है। इस सपनीले बचपन से इतर बचपन गुजरा अमृतसर की सरजमीं पर पैदा हुए महान क्रांतिकारी और संपादक सोहन सिंह का।


गुरबत भरा बचपन

सोहन सिंह बचपन से ही क्रांतिकारी स्वाभाव के थ्ो। उनमें देशभक्ति और जीवटता कूट-कूट कर भरी हुई थी। सोहन का जन्म 187० ई. में अमृतसर जिले के एक किसान करम सिंह के यहां हुआ था। एक वर्ष उम्र में ही सोहन के पिता का देहांत हो गया। मुफलिसी के उस दौर में मां रानी कौर ने उनका पालन-पोषण किया। सोहन सिंह बेहद मेहनती, कभी हार न मानने वाले व कई भाषाओं के ज्ञाता थ्ो। बचपन से उन्हें धार्मिक शिक्षा दी गई।

बाल विवाह

उस समय देश में बाल विवाह जैसी प्रथाएं प्रचलित थीं। इस प्रथा का शिकार सोहन सिह को भी बनना पड़ा और उनकी दस वर्ष उम्र में ही बिशन कौर के साथ विवाह कर दिया गया। बिशन कौर लाहौर के एक जमींदार कुशल सिह की पुत्री थीं। सोहन सिह ने सोलह वर्ष की उम्र में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। वे उर्दू और फारसी में दक्ष थे।


बुरी संगत का असर

कहा जाता है बुरी संगति का असर बुरा ही होता है। और यही हुआ सोहन सिंह के साथ। युवा होने पर सोहन सिह बुरे लोगों की संगत में पड़ गए। उन्होंने अपनी संपूर्ण पैतृक संपत्ति शराब पीने और अन्य कार्यों में गवां दी।
दरिद्रता के दिनों में उनके सभी साथियों ने साथ छोड़ दिया। विद्धानों का कहना है कि जब तक आपके पास धन है तब तक ही आप के दोस्त आपके साथ रहते हैं और धन समा’ होते ही वो भी आपका साथ छोड़ देते हैं। कुछ समय बाद सोहन का संपर्क बाबा केशवसिह से हुआ। उनसे मिलने के बाद ध्यान और योग के माध्यम से शराब व अन्य नश्ो की चीजों को पूरी तरह से छोड़ दिया।


जीविका की खोज

शुरू से ही स्वाभिमानी सोहन ने अपनी आजीविका की खोज में और देश के विकास में योगदान देने की प्रेरणा लिए सन् 19०7 में अमेरिका जा पहुंचे। उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय व अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक सोहन के कानों तक भी पहुंच चुकी थी। वहां उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 2०० पंजाब निवासी वहां पहले से ही काम कर रहे थे। कम वेतन और विदेशियों द्बारा अपमान किए जाने से तिलमिलाए सोहन सिंह ने बगावत कर दी। उस बगावत के बाद सोहन का नाम बाबा सोहन सिंह भकना पड़ गया।


क्रांतिकारी संस्था का निर्माण

उस समय देश को आजाद कराने के लिए देश के रणबांकुरों में आजादी की चिंगारी सुलग चुकी थी। उन्होंने 'पैसिफिक कोस्ट हिन्दी एसोसिएशन' की स्थापना की। बाबा सोहन सिह उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने।

अखबार का संचालन

उस समय देश में लोगों का जागरूक करने का कोई कारगर साधन उपलब्ध नहीं था। अंग्रेजों की काली करतूतों को उजागर करने के लिए 'गदर' नाम के अखबार का प्रकाशन और संपादन किया। गदर की सफलता के बाद 'ऐलाने जंग, 'नया जमाना, जैसे प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी '.गदर पार्टी' कर दिया गया। '.गदर पार्टी, के तहत बाबा सोहन सिह ने क्रांतिकारियों को एकत्र करने व हथियारों को भारत भेजने की योजना में बढ़-चढ़कर भाग लिया।


आजीवन कारावास

क्रांतिकारी गतिविधियों में जुड़े होने और प्रथम लाहौर षड़यंत्र में शामिल होने की वजह से 13 अक्टूबर, 1914 को कलकत्ता से उन्हें गिरफ्तार कर लाहौर जेल भ्ोज दिया गया।
बाबा सोहन सिह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और उन्हें अंडमान की जेल भेज दिया गया। वहां से वे कोयंबटूर और भखदा जेल भेजे गए। उस समय यहां महात्मा गांधी भी बंद थे। फिर वे लाहौर जेल ले जाए गए। इस दौरान उन्होंने एक लंबे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया।
और आज के ही दिन यानी 2० दिसंबर, 1968 को महान क्रांतिकारी बाबा सोहन सिह भकना का देहांत हो गया।




Sunday 15 December 2013

सिंगापुर से शिक्षा

सिंगापुर से सीखें कला के रंग


विदेश में हायर एजूकेशन कंप्लीट करने का सपना लगभग हर टैलेंटेड स्टूडेंट का होता है, लेकिन ये सपने कुछ के ही पूरे हो पाते हैं, क्योंकि जानकारी के अभाव में वह सही टाइम पर अपने भविष्य को लेकर संजोए गए सपने को पूरा करने के लिए इंपार्टेंट डाक्यूमेंट और प्रासेस का फालो नहीं कर पाते, जिस कारण उनके सपनों का आधार भी कमजोर हो जाता है। अगर आपका सपना भी है फारेन में एजूकेशन कंप्लीट करने का तो इसके लिए कमर कस लीजिए। आइए जानते हैं कैसे पाए सिंगापुर में हायर एजूकेशन।
सिगापुर गवर्नमेंट यहां की एजूकेशन सिस्टम को 'ग्लोबल बनाने के लिए सभी जरूरी प्रयास कर रही है। सिगापुर सिर्फ बिजनेस के लिहाज से ही नहीं, बल्कि एजुकेशन के मामले में भी दुनिया की बेस्ट कंट्री में गिना जाने लगा है। इकोनामी के स्टàांग होने के साथ ही यहां की एजूकेशन क्वालिटी और स्टडी सिस्टम भी बेहद मजबूत है। यहां का एंवायरमेंट भी भारतीय छात्रों के लिए काफी फैमिलियर है। यही रीजन है कि यहां आने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।

मूल्यांकन

निवेश से पहले मूल्यांकन जरूरी

हर कार्य की शुरुआत करने से पहले जरूरी होता है सही तरीके से उसकी प्लानिंग करना और उसके बाद उसका मूल्यांकन करना। अगर आप घर खरीदने जा रहे हैं तो यह बेहद जरूरी हो जाता है। मकान खरीदने से पहले आवश्यक है कि आप कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर गौर फरमाएं। जैसे मकान की लोकेेशन सही जगह है या नहीं। सिक्योरिटी, लिफ्ट, इंडीविजुअल कमरों की लंबाई और चौड़ाई, पार्किंग और सबसे जरूरी आपका अपार्टमेंट लीगल है या नहीं, आदि का विश्ोष ख्याल रखना होता है।


मुल्क