Saturday 21 December 2013

क्रांतिकारी सोहन

मुफलिसी में जन्मा क्रांतिकारी


बचपन तो वही होता है जो कंचे और अंटियों को जेबों में भरकर सो जाए, बचपन यानी जो पतंगों को बस्ते में छुपाकर लाए, बचपन मतलब जो मिट्टी को सानकर लड्डू बनाए। बचपन का तो मतलब ही यही होता है जो बड़ों की हर चीज को छुपकर आजमाए। ऐसा बचपन तो कुछ को ही मिलता है। इस सपनीले बचपन से इतर बचपन गुजरा अमृतसर की सरजमीं पर पैदा हुए महान क्रांतिकारी और संपादक सोहन सिंह का।


गुरबत भरा बचपन

सोहन सिंह बचपन से ही क्रांतिकारी स्वाभाव के थ्ो। उनमें देशभक्ति और जीवटता कूट-कूट कर भरी हुई थी। सोहन का जन्म 187० ई. में अमृतसर जिले के एक किसान करम सिंह के यहां हुआ था। एक वर्ष उम्र में ही सोहन के पिता का देहांत हो गया। मुफलिसी के उस दौर में मां रानी कौर ने उनका पालन-पोषण किया। सोहन सिंह बेहद मेहनती, कभी हार न मानने वाले व कई भाषाओं के ज्ञाता थ्ो। बचपन से उन्हें धार्मिक शिक्षा दी गई।

 

बाल विवाह

उस समय देश में बाल विवाह जैसी प्रथाएं प्रचलित थीं। इस प्रथा का शिकार सोहन सिह को भी बनना पड़ा और उनकी दस वर्ष उम्र में ही बिशन कौर के साथ विवाह कर दिया गया। बिशन कौर लाहौर के एक जमींदार कुशल सिह की पुत्री थीं। सोहन सिह ने सोलह वर्ष की उम्र में अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की। वे उर्दू और फारसी में दक्ष थे।


बुरी संगत का असर

कहा जाता है बुरी संगति का असर बुरा ही होता है। और यही हुआ सोहन सिंह के साथ। युवा होने पर सोहन सिह बुरे लोगों की संगत में पड़ गए। उन्होंने अपनी संपूर्ण पैतृक संपत्ति शराब पीने और अन्य कार्यों में गवां दी।
दरिद्रता के दिनों में उनके सभी साथियों ने साथ छोड़ दिया। विद्धानों का कहना है कि जब तक आपके पास धन है तब तक ही आप के दोस्त आपके साथ रहते हैं और धन समा’ होते ही वो भी आपका साथ छोड़ देते हैं। कुछ समय बाद सोहन का संपर्क बाबा केशवसिह से हुआ। उनसे मिलने के बाद ध्यान और योग के माध्यम से शराब व अन्य नश्ो की चीजों को पूरी तरह से छोड़ दिया।


जीविका की खोज
नेशनल दुनिया में प्रकाशित हो चुका लेख

शुरू से ही स्वाभिमानी सोहन ने अपनी आजीविका की खोज में और देश के विकास में योगदान देने की प्रेरणा लिए सन् 19०7 में अमेरिका जा पहुंचे। उनके भारत छोड़ने से पहले ही लाला लाजपतराय व अन्य देशभक्त राष्ट्रीय आंदोलन आंरभ कर चुके थे। इसकी भनक सोहन के कानों तक भी पहुंच चुकी थी। वहां उन्हें एक मिल में काम मिल गया। लगभग 2०० पंजाब निवासी वहां पहले से ही काम कर रहे थे। कम वेतन और विदेशियों द्बारा अपमान किए जाने से तिलमिलाए सोहन सिंह ने बगावत कर दी। उस बगावत के बाद सोहन का नाम बाबा सोहन सिंह भकना पड़ गया।


क्रांतिकारी संस्था का निर्माण

उस समय देश को आजाद कराने के लिए देश के रणबांकुरों में आजादी की चिंगारी सुलग चुकी थी। उन्होंने 'पैसिफिक कोस्ट हिन्दी एसोसिएशन' की स्थापना की। बाबा सोहन सिह उसके अधयक्ष और लाला हरदयाल मंत्री बने।

अखबार का संचालन

उस समय देश में लोगों का जागरूक करने का कोई कारगर साधन उपलब्ध नहीं था। अंग्रेजों की काली करतूतों को उजागर करने के लिए 'गदर' नाम के अखबार का प्रकाशन और संपादन किया। गदर की सफलता के बाद 'ऐलाने जंग, 'नया जमाना, जैसे प्रकाशन भी किए गए। आगे चलकर संस्था का नाम भी '.गदर पार्टी' कर दिया गया। '.गदर पार्टी, के तहत बाबा सोहन सिह ने क्रांतिकारियों को एकत्र करने व हथियारों को भारत भेजने की योजना में बढ़-चढ़कर भाग लिया।


आजीवन कारावास

क्रांतिकारी गतिविधियों में जुड़े होने और प्रथम लाहौर षड़यंत्र में शामिल होने की वजह से 13 अक्टूबर, 1914 को कलकत्ता से उन्हें गिरफ्तार कर लाहौर जेल भ्ोज दिया गया।
बाबा सोहन सिह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और उन्हें अंडमान की जेल भेज दिया गया। वहां से वे कोयंबटूर और भखदा जेल भेजे गए। उस समय यहां महात्मा गांधी भी बंद थे। फिर वे लाहौर जेल ले जाए गए। इस दौरान उन्होंने एक लंबे समय तक यातनापूर्ण जीवन व्यतीत किया।
और आज के ही दिन यानी 2० दिसंबर, 1968 को महान क्रांतिकारी बाबा सोहन सिह भकना का देहांत हो गया।

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