Friday 25 October 2013

गांव नगर हो जाएगा


 गांव-नगर 

हम न जाने कब बच्चे से बड़े हो गए
मीठे दोस्तों के संग
गवांरपन में
कब सीधे हो गए
उन टेड़ी गलियों में
कुछ पता ही नहीं चला
जहां लुक्की-लइया, चोर-पुलिस
और दुनिया के सबसे मजे वाले खेल खेलते थे

कितना कुछ बदल गया है न
मुहल्ले की उस मठिया को छोड़कर
जहां प्रसाद लेते कम
और देते ज्यादा थे
इसी चक्कर में
देह को लाल होने में देर न लगी थी उस दिन
आज भी
पीठ पर पड़ी छुलछुली की
उन बरतों को महसूस कर रहा हूं

कल ही सरकारी मुलाजिम आया था
बोला अब गांव, गांव नहीं रहेगा
बनेगा नगर
बेहोश होना चाहता था
उसी पल
टूट कर बिखरना चाहता था
गांव वाले खुश थे
उन्हें विलासिता दिख रही थी
और मुझे विनाश
अब यहां भी
छेड़खानी होगी
हो सकता है बलात्कार भी हो जाए

अब तो अलमारियों में रिश्ते
सिसकियां भरेंगे
लाज चारों पायों पर
खड़ी हो नाचेगी
नगरों-शहरों का यही तो परिचय
हर जगह पाया है मैने

चउरा अब चारदीवारी में बदल जाएगा
खेत अपार्टमेंट की शक्लें
चड़ा लेंगे
डगर सड़क बन जाएगी
छोरी को लौंडिया बनते देर नहीं लगेगी
और उसके बाद
तो न जाने क्या-क्या
अब गांव नगर नहीं शहर बन जाएगा !!!!


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