केंचुली बदलता देश
आजकल मौसम अपनी केंचुली बदल रहा है
मैने सुन रखा है
बदलाव हमेशा कुछ न कुछ
अजीब हरकत करता है
क्या यह भी कुछ करेगा
यूं भी देश की रवानी
अपने वजूद
की पताका थामने को आतुर है
गर्म माहौल विदाई मांग रहा है
और सर्द हड्डियों में जगह
बनाने की कोशिश में है
सुना है देश की
हड्डियां शिला से भी मजबूत हैं
अगर यह सच है
तो फिर मैं सर्द क्यूं हो रहा हूं
काका से सुन रखा है
मर्द को दर्द नहीं होता
लेकिन सर्द को इससे क्या
देश भी तो मर्द है
फिर वह क्यूं सिसकियां लेता है
रात के साए में
उन वीरान सड़कों पर
जहां कभी भी आबरु लुट जाने का
संशय बरकरार रहता है
अब मेरा मन भी
मौसम की सुन रहा है
केंचुली बदलना चाहता है
क्यूंकि सर्द तो बेदर्द है
देश की शिला रूपी हड्डियों को
सर्द की मार से
रोकने के लिए
मेरे अकेले से सर्द शायद ही रुक जाए
रुक गई तो मैं सफल
नहीं तो तुम सफल
मुझे पता है तुम आओगे नहीं
भौंकोगे वहीं से
मीलों उछलोगे, फिर भी उछलोगे नहीं
आखिर तुम बेदर्द हो न
पर सर्द तो तुम्हारे वजूद को भी जर्द कर देगी
तब तो आओगे न
क्यूंकि इसबार सर्द नहीं मानने वाली !!
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