Saturday 12 October 2013

अ लव स्टोरी


इंतजार कॉफी का

पार्ट वन

 

महाराणा कॉलेज कैंपस के सेंटर में हरियाली घास से भरे व महकते फूलों से घिरी हुई बनी कैंटीन के सेकेंड फ्लोर की साइड वाली खास सीट पर बैठा है विजेंद्र।

ठीक सामने कॉलेज का मेन गेट व डी ब्लॉक है, मतलब विजेंद्र का एग्जाम सेंटर। जब भी वह जल्दी आ जाता है तो यहां जरूर बैठता है। कभी- कभी तो सिर्फ दस मिनट के लिए ही, लेकिन आता जरूर है। यहां कोने की खास सीट पर बैठकर वह इत्मीनान से अपने एग्जाम सेंटर की इमारत को घूरता है ताकता है और दिमागी आंखों से क्लासरूम, कॉरीडोर, सीढ़ियां, स्टूडियो व लाईब्र्र्र्रेरी रूम देखता रहता है। जहां वो दोनो एक साथ हो जाते हैं। जो उन दोनो के बीच कभी नहीं होता। उन दोनो से मेरा मतलब है रमा और विजेंद्र। दो बिल्कु ल अलग तरह के विपरीत और अपरिचित से इंसान।

वह नाजुक सी दिखने वाली मगर चुलबुली लड़की, जिसे विजेंद्र हद से ज्यादा पसंद करता है। दोना एक साथ एग्जाम देते हैं, कभी- कभी अगल-बगल बैठते हैं तो कभी- कभी आगे-पीछे भी। वह दोनो फस्र्ट इयर से एक साथ एग्जाम देते आ रहे हैं।
जब पहली दफा हम दोनो ने उसे देखा था, वह सितंबर की उमस भरी मगर बारिश से भीगी दोपहर थी। पता नहीं उस दिन बारिश क्यों लगातार हो रही थी। बादल उमड़-घुमड़ कर बरस रहे थ्ो। मानो प्रेमी से बिछड़ी किसी बिरहन के बरसों के आंसू हों।

एग्जाम का पहला ही दिन था। क्लासरूम में कॉपियां बंट चुकी थी। लगभग सभी आंसरशीट पर लिखना भी शुरू कर चुके थ्ो। नम खुशबू के ताजा झोंके ने हौले से इंट्री ली थी क्लास में। मेरी और विजेंद्र की आंखें ऊपर को देखते हुए एक ही जगह पर टिकी थी। जैसे कोई दो ऐरो एक ही टारगेट पर निशाना साधे हों। दरअसल वह रमा ही थी। हम दोनो उसके भीगे हुए चेहरे की खूबसूरती को टकाटक देखे जा रहे थ्ो और वह एग्जामनर को लेट पर सफाई दे रही थी। उसके चेहरे व बालों से सरकती बूंदे मोतियों से कमतर नहीं लग रही थी। वह नाजुक भीगी-कांपती लड़की कब विजेंद्र के दिल को प्यार के नुकीले तीर से गहरे चीर गई, मुझे तो विजेंद्र के उसके साथ कॉफी पीने की चाहत बताने के बाद ही पता चल पाई।

अगर आप यह मानते हैं कि प्यार हो जाने के लिए इक छोटा सा लम्हा ही काफी होता है तो जनाब वह वही लम्हा था। जब रमा ने किसी साउथ की सुपरहिट फिल्मी स्टाइल में, नाजुक-भीगी, डरी-सहमी हिरोइन की तरह रोमांटिक इंट्री ली थी क्लासरूम में।

बस उसी पल मि. विजेंद्र का दिल श्ोयर मार्केट के सेंसेक्स की भांति धड़ाम......। मैं समझ चुका था कि यह अब उछाल तो भरेगा मगर विपक्ष से पॉजिटिव आंसर मिलने के बाद ही।
कुछ देर बाद मैने नजर आंसरशीट से उठाते हुए देखा तो मि. दिल ही दिल में अभी तक मुस्कुराए जा रहे थे। उसके चेहरे पर नमी तैर चुकी थी और आंखों में चमक के साथ खुशी साफ झलक रही थी। शायद उसे उस अनोखी अनुभूति का एहसास हो चुका था जिसे लोग इस दुनिया में जीने का मकसद समझते हैं।
                                 
                                                                                                                   जारी है..........

साथियो यह प्रेमकहानी मैने अपने कॉलेज के बेफिक्री भरे दिनों में लिखी थी। इसका ऑडियो वर्जन कॉलेज में काफी पॉपुलर हो चुका है और अब बारी है रिटेन वर्जन की। इसलिए बिना किसी तामझाम के इसे श्ोयर कर रहा हूं।

नोट- यह प्रेमकहानी सच्ची घटना पर आधारित है और इसके पात्र व लोकेशन काल्पनिक न होकर पूरी तरह सत्य हैं।



 

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