Sunday 13 October 2013

बापू हमारे आंखों के प्यारे

एक मोहन जो बना महात्मा


सत्याग्रह, अहिसा और सादगी को मूल मंत्र मानने वाले महात्मा गांधी जी का आज जन्म दिन है। उन्होने देश के लिए बलिदान दिया। उनके आदर्शों से प्रभावित होकर रबिद्रनाथ टैगोर ने पहली बार उन्हें महात्मा के नाम से संबोधित किया। गांधी जी ने अपना जीवन सत्य की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया था। अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने स्वयं अपनी गलतियों पर प्रयोग करना प्रांरभ किया। अपने अनुभवों को उन्होंने अपनी आत्मकथा 'माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ’ में संकलित किया था।

शुरूआती जीवन और शिक्षा

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्तूबर सन 1869 को पोरबंदर (गुजरात) के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे। मोहनदास की मां पुतलीबाई का स्वभाव धार्मिक प्रवत्ति का था। गांधीजी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई। वह गणित विषय में बेहद कमजोर व शर्मील और एकांतप्रिय स्वाभाव के मगर गंभीर व्यक्ति त्व के पुरुष थ्ो।

नकल से घृणा

एक बार विद्यालय में घटी एक घटना ने यह संदेश अवश्य दे डाला कि निकट भविष्य में यह छात्र आगे जरूर जाएगा। घटना के अनुसार उस दिन स्कूल निरीक्षक विद्यालय में निरीक्षण के लिए आए हुए थे। कक्षा में उन्होंने छात्रों की 'स्पेलिग टेस्ट लेनी शुरू की। मोहनदास शब्द की स्पेलिग गलत लिख रहे थे, इसे कक्षाध्यापक ने संकेत से मोहनदास को कहा कि वह अपने पड़ोसी छात्र की स्लेट से नकल कर सही शब्द लिखें। उन्होंने नकल करने से इंकार कर दिया। क्योंकि वह को जीवन की प्रगति में बाधक मानते थ्ो।

पश्चाताप गलतियों की माफी है

वैसे तो मोहनदास आज्ञाकारी थे, पर उनकी दृष्टी में जो अनुचित था, उसे वे उचित नहीं मानते थे। बचपन में मोहनदास बुरी संगत के कारण अवगुणों में डूब गए। धूम्रपान और चोरी करने का भी अपराध किया। लेकिन बाद में गलती को स्वीकार करते हुए उन्होंने सारी बुरी आदतों से किनारा कर लिया। उनका मानना था कि अगर सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते।

बाल विवाह प्रगति में अवरोध

तेरह वर्ष की आयु में मोहनदास का विवाह कस्तूरबा से कर दिया गया। उस उम्र के लड़के के लिए शादी का अर्थ नए वत्र, फेरे लेना और साथ में खेलने तक ही सीमित था। लेकिन जल्द ही उन पर काम का प्रभाव पड़ा। शायद इसी कारण उनके मन में बाल-विवाह के प्रति कठोर विचारों का जन्म हुआ। उन्होनें बाल-विवाह को भारत की एक भीषण बुराई मानते थे। उनका मानना था कि बचपन में ही विवाह किए जाने से जीवन के प्रगति का पथ अवरोधों से भर जाता है। बाल विवाह भारत में रोकना बेहद जरूरी है।

मेरी देह देश की और देश मेरी देह का

गांधीजी ने हमेशा दूसरों के लिए ही संघर्ष किया। मानो उनका जीवन देश और देशवासियों के लिए ही बना था । इसी देश और उसके नागरिकों के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया। वे स्वयं को सेवक और लोगों का मित्र मानते थे। यह महामानव कभी किसी धर्म विशेष से नहीं बंधा शायद इसीलिए हर धर्म के लोग उनका आदर करते थे ।
वे जीवनभर सत्य और अहिसा के मार्ग पर चलते रहे। उनका मानना था कि कोई व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता। कर्म के आधार पर ही व्यक्ति महान बनता है। उन्होंने सत्य, प्रेम और अंहिसा के मार्ग पर चलकर यह संदेश दिया कि आदर्श जीवन ही व्यक्ति को महान बनाता है ।
मोहनदास से महात्मा और महात्मा से बापू बने उस शख्स ने यह सिद्ध कर दिखाया कि दृढ़ निश्चय, सच्ची लगन और अथक प्रयास से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।




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