Tuesday 24 September 2013

वो कॉलेज के दिन



वो कॉलेज के दिन और एप्रिशिऐशन का चस्का



आजकल मेरे कॉलेज का माहौल बड़ा ही खुशनुमा है। यूं भी मौसम केंचुली छोड़ रहा है। मतलब मौसम न गर्मी का है और न ही सर्दी का। कैंपस में गार्डनर ने तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूलों के गमले लाइन से सजा रखे हैं। यहां मौजूद वॉटरफॉल के आसपास लाइन से खड़े पेड़ों की पत्तियां रोज ओस की बूंदो से नहाई मिलती हैं और मुस्काते हुए अपनी ओर रिझाने का पूरा प्रयास करती हुई जान पड़ती हैं। यहां सबकुछ बड़ा ही प्लीजेंट है। और हो भी क्यूं न? हमारे ग्रुप ने एक खूबसूरत एक्टीविटी जो चला रखी है। हार्ट-टू-हार्ट एप्रिशिएशन की।
इस एक्टीविटी के तहत फ्रेसर्स यानी जूनियर्स से फेंडली बिहैव करना, उन्हें एप्रिशिएट करना और उन्हें उनके अपने स्कूल ज्ौसा एटमॉफियर अवेलेबल करवाना है। ताकि उनके अंदर भरे गए सीनियर्स की कठोरता व रैगिंग के भूत को ईजली भगाया जा सके। जिससे हम एक डरविहीन और संकोचरहित और जिंदादिल पढ़ाई के माहौल को जिंदा कर सकें। वहीं कुछ सीनियर्स यानी मेरे बैचमेट्स को डर है कि कहीं जूनियर हमारी उदारता का फायदा न उठाएं और सीनियस- जूनियर के बीच के दायरे को भूलकर इनडिसिप्लिंड या बेलगाम न हो जाएं। खैर इन सब कांफ्लिक्ट और शंषय के बीच हार्ट-टू-हार्ट एप्रिशिएशन एक्टिविटी पुरजोर तरीके से लागू हो चुकी है। हमसभी अपने सीनियर होने का फर्ज बखूबी अदा करने की हर पल कोशिश कर रहे हैं।
बहरहाल मॉर्निंग विश्ोज की म्यूजिकल ध्वनि के साथ जब जोरदार मगर पूरी तरह से इनडिसिप्लिंड आवाज सुनाई देती है तो पता चल जाता है कि अंडरग्रेजुएट के फ्रेश बैच ने कॉलेज कॉरीडोर में इंट्री ले ली है। इनकी कैजुअल-फार्मल एक्टीविटीज से कैंपस गुलजार हो चुका है। हमें पता है स्कू ली जीवन से नए-नए आजाद हुए परिंदे रोके न रुकेंगे, पूरे कैंपस में फुदकेंगे, उछलेंगे और हर कोना छान मारेंगे, नए अड्डे ढूूढेंगे, बैचमेट व टीर्चस के उल्टे-पुल्टे नामकरण करेंगे। और हां सीनियर्स से बचने-कन्नी काटने की व्यर्थ कोशिश्ों भी करेंगे। इसके इतर इनके दिमाग में अपनी बॉडी इमेज के प्रति कई निगेटिविटीज भी होंगी, जैसे मेरी हाइट कुछ ज्यादा ही कम है, नाक कुछ लंबी ज्यादा है और वेट तो बहुत ही ज्यादा है। साथ ही कुछ उलझनें भी होंगी मसलन सब्जेक्ट इतने टफ क्यूं हैं, टीचर्स सिर्फ होशियार बच्चों पर ही ज्यादा ध्यान क्यूं देते हैं? पहले-पहले टेस्ट में मार्क्स कैस्ो आएंगे और हमारा करिअर कैसा होगा।
इन सबसे अलग बर्निंग इश्यू होगा 'ओह माई गॉड’ मेरे पास कुछ अच्छा पहनने के लिए नहीं है, या फिर मेरी पसंद आजकल किसी और को भी पसंद आने लगी है। कुछ भी हो इन सब के बीच मस्ती तो फुलऑन रहेगी।
मुझे खूब अच्छे से याद है। जब नए-नए हम कॉलेज में दाखिल हुए थ्ो। हमें हुक्म मिला था कि 'तेरे नाम’ वाली जुल्फों को कटाकर 'आनंद’ वाले राजेश खन्ना की हेयर स्टाइल एडॉप्ट कर लें उसके साथ ही शरीर पर डेली प्रेश की हुई सफेद शर्ट व काली पैंट पहनी जाए, पैरों में लेदर के ब्लैक पॉलिश किए हुए शूज हों। कुलमिलाकर मजमून यह था कि शटरडे को भी फुल्ली मेंटेन व ड्रेस्डअप होकर रेगुलर क्लासेस अटेंड करने आना था। कितना बोरिंग व तुगलकी फरमान लगा था उस समय हम सबको। लेकिन आज मालूम पड़ता है कि वह कोई तुगलकी फरमान नहीं बल्कि हमें नेक व जेंटलमैन बनाने की इक हसीन कोशिश थी। और भी कई हुक्म थ्ो जिन्हें यहां श्ोयर करना मुनासिब नहीं समझता।
छात्र जीवन की बात हो रही हो और हमें गुरुजनों की याद न आए तो लानत है हम पर। तो यह लानत न लेत्ो हुए हम अपने गुरुजनों को लपेटे में ले ही लेते हैं। यार एक बात समझ नहीं आती टीचर्स प्रजाति पता नहीं छात्रों से चाहती क्या है? आखिर इन टीचर्स को डील कैसे किया जाए? एक असाइनमेंट खत्म नहीं होता कि दूसरा थमा देते हैं। अभी दूसरा अधूरा ही होता कि तीसरा दे देते और वह अभी शुरू भी न हो पाता कि तभी टेस्ट लेने का बिगुल बजा देते और हद तो तब हो जाती जब प्रैक्टिकल व प्रजेंटेशन का बोझ भी थोप देते। पता नहीं कौन सी खुन्नस रखते हैं?
स्टूडेंट्स के मन में टीचर्स के लिए अक्सर ही उपरोक्त बातें बार-बार कुलांचें मारती रहती हैं। वहीं टीचर्स इन सबसे बेफिक्र। कभी- कभी उन्हें एप्रिशिएट करने के बजाए डीमोरालाइज कर देते हैं। जो कि निसंदेह बर्बर है। अगर टीचर्स युवा अंतर्मन में झाँक कर उनका स्ट्रेस समझकर, अपने मन की गांठे खोल कर सब्जेक्ट के माध्यम से बांडिंग करें तो जरूर आईडियल स्टूडेंट्स ही पाएंगे। साथ ही उनके अच्छे काम के लिए उन्हें एप्रिशिएट करने की भी जरूरत होती है।
अकसर देखा गया है कि हम तारीफ करने के मामले में बड़े ही कंजूस होते हैं और किसी की तारीफ करने से भी बचते हैं। इससे भी मजेदार बात ये है कि हम अपनी तारीफ,बड़ाई अच्छाई सुनना तो चाहते हैं पर दूसरों की करने से कतराते हैं। हम भूल जाते हैं कि तारीफ दूर पहाड़ से पुकारे गए 'आई लव यू’ की तरह है, जो हमारे पास ईको होकर और भी जोर से लौट आती है। ऐसा माना जाता है कि एप्रिशिएशन से लोग बेहतर फील करते हैं। एप्रिशिएशन में इतनी ताकत होती है कि निगेटिव चींजे भी पॉजिटिव हो जाती है।
तो क्या सोच रहे हैं? आप भी तय कीजिए कि आप हर रोज किसी न किसी को एप्रिशिएट जरूर करेंगे और कोई न हो तो आप खुद को ही एप्रिशिएट कर लेंगे। जिस तरह औरों की तारीफ उनको मोटीवेट करती है उसी तरह खुद की तारीफ भी हमारा मोरल बूस्ट करती है। और हां किसी को एप्रिशिएट करने के लिए किसी भारी-भरकम रिसोर्सेज जुटाने की जरूरत नहीं होती है सिर्फ छोटे- छोटे शब्द या फिर आपकी मुस्कान भी आपके इमोशंस को कन्वे करने के लिए काफी है।
बस अपना दिल खोलिए और देखिए सामने वाला कैस्ो फूला नहीं समाता। कहा तो ये भी जाता है कि लोगों में तारीफ की भूख खाने से भी ज्यादा होती है। ये एक ऐसी कला है जो आपके लिए फ्रें ड्स और फॉलोवर्स बनाती है और लाईफ को बनाती है जस्नेबहार।।

 

 

 

कॉलेज की मखमली यादों की इन लाइनों को मैने साल 2०12 के नवंबर महीने की सरमायी सर्दी की एक सुबह कानपुर के महाराणा प्रताप कॉलेज की कैफेटेरिया के बगल में बने वॉटरफ ॉल के पुल पर ब्ौठकर पूरा किया था। और आज आप सभी से शेयर कर रहा हूं।

कॉलेज के वो दिन कितने हसीन और कौतूहल से लबालब भरे थ्ो। आज कॉलेज से निकलकर वो दिन, वो मस्ती-बेफिक्री और खूबसूरत पलों को बहुत मिस कर रहा हूं। लव यू एमपीएसवीएस।।

 


2 comments:

  1. yaar tum to sach me bahut achha likhane lage ho yaar matlab kamaal ki imagination ki waha ho aur ho-bahu live kyaa baat hai maan gaye ustaad

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  2. govind bhai ye sab khuda ka raham h, aur aap jaise dosto ki duaye. hamesh se achha likhne ki koshish krta raha hu...jo aaj bhi jari h.....!
    thanx for lovely comment....!!

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