लिखते पढ़ते
Saturday, 9 November 2013
दीपावली के उपलक्ष्य पर
पिछली बार की तरह इस बार भी
झालरों के बीच से चेहरा चमकेगा
अकेले ही
दूजा कोई है नहीं न
इस भरे शहर में
लोगों की भीड़ तो ज्यादा है यहां
पर दिलों की भीड़ पर कफ्र्यू सा लगा हुआ है
कोशिश में हूं दीप जलाने की
पता नहीं झालर चमकना कब बंद जाए
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