Wednesday 1 August 2018

ईद की सुबह और खुशी


ईद से एक दिन पहले लहलहाती नीम और खुशी

15 june 2018

रमज़ान का आज आखिरी रोजा है। इस बार 29 रोजों के बाद कल ईद होगी। आज कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। घर की छत पर फैली नीम की शाखाएं ठंडी हवा बहा रही हैं। हर पत्ती हरियाली में डूबी है। आसमान पर सुकून भरी लालिमा दिख रही है। आज का सूरज देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। खेतों की अपनी एक अलग ही रौनक है। गेहूं कटने के बाद से खेत खाली, सूखे हैं पर कितने सुंदर हैं। कुछ में चारे की कर्बी लहलहा रही है।

मोहल्ले में कितनी हलचल है। कल ईदगाह जाने की तैयारियां आज ही हो रही हैं। महक और खुशबू के कपड़े तैयार हो गए हैं। दोनों मेरी चचेरी छोटी बहने हैं। महक नाराज है, उसे आधुनिक ड्रेस पहननी थी लेकिन पारंपरिक सूट सिला दिया गया है। दानिश को फिक्र नहीं है वो तो सुबह मिलीं लीचियां पाकर ही खुश है। पड़ोस के बच्चे एकदूसरे के कपड़ों से तुलना कर रहे हैं। कुर्ता पजामा वालों पर जीन्स शर्ट वाले भारी पड़ रहे हैं। ईद की खुशियां कल सौ गुना बढ़ जाएंगी, उत्साह चरम पर होगा। अब तो आज शाम के चांद और कल के सूरज का बेसब्री से इंतज़ार है।
सभी साथियों, वरिष्ठजनों को ईद की अग्रिम बधाई।


ईद की सुबह और खुशी

16 june 2018

गांव में कितनी हलचल है। मियन टोला सौगुनी खुशियों से लबरेज़ है। फजिर की नमाज़ के बाद से लोग ईदगाह जाने की तैयारियों में जुटे हैं। ईद की सुबह बहुत ब्यस्त है। किसी के कुरते का बटन टंकना रह गया है तो कोई चौराहे पर रवी नाई के यहां दाढ़ी सेट कराने की जल्दी में है। बकरियां चराने से आज जोसेफ, शीबू, तहशीम को छुट्टी मिली है, वे सब बहुत खुश हैं। बकरियां भी आज घास-फूस नहीं खाएंगी, उनकी भी ईद है। कुनाई वाला मुलायम भूसा, सूखी खरी, चोकर और आटा मिली हुई लज़ीज़ सानी खा रही हैं। थोड़ी देर में गेहूं-बिझरा और सेवइयां भी खाएंगी। तौफीक ने भैंसिया को चारा-पानी देकर नहला भी दिया है।

कल जोहर की नमाज़ से पहले पेश ईमाम ने ईद की नमाज़ का वक्त 9:30 बजे मुकर्रर किया था। बहुत भीड़ थी मस्ज़िद में। आज तो और भी ज़्यादा होगी। दूर के गावों से नमाज़ी आएंगे। जो जल्दी पहुंचेगा वो आगे की सफ़ में नमाज़ अता करेगा। हालांकि, बच्चे चाहे कितनी भी जल्दी पहुंचें उन्हें पीछे की सफ में ही खड़ा होना पड़ेगा। जुल्फिकार, आरिफ, मुबीश और नफीश ने अपनी मोटरसाइकिलें धुल कर साफ कर ली हैं। वे चमचमा रही हैं।

दानिश अभी अभी नहाकर गया है। मेरे खानदान का सबसे छोटा चिराग है, चाचा का एकलौता बेटा है। हालांकि, उससे बढ़ा फैजल था, लेकिन 2013 में आए जापानी बुखार ने उसे लील लिया। लाख कोशिशों के बावजूद हम उसे बचा न सके। खुदा से चच्ची का रोज-रोज का बिलखना देखा न गया और दानिश की शक्ल देकर अल्लाह ने फैजल को वापिस भेज दिया। अभी एक साल उम्र है दानिश की, वो मोटर के ठंडे पानी से नहाता है। नल का पानी उसे रास नहीं आता। तड़के से ही अपने बड़े पापा यानी मेरे पापा के पास भाग आता है, उन्हीं के साथ नहाता है और चाय पीता है। आज बहुत खुश है। तेजी में गया है नए कपड़े पहनकर अभी आएगा दिखाने।

बौवन शकील को ढूंढ़ रहा है। उसे फातिहा दिलानी है। शकील दीनी-तालीम के मामले में मुहल्ले के सबसे जानकार हैं। अफसोस कि उनका हफ़िज़ा मुकम्मल न हो सका। पर मोहल्ले के वही हाफिज वही मौलाना हैं। आज वे बहुत ब्यस्त हैं। एक घर से फ़ातिहा देकर निकलते हैं दूसरा उन्हें पकड़ ले जाता है। इस जल्दी में उत्साह ज़बरदस्त है। खुशी सौगुनी है।

मस्जिद के बाहर और अंदर खड़े नीम के घने वृक्षों की छाया। नीचे पक्का फर्श है, जिस पर खूबसूरत कालीन और दरी बिछी हुई है। नमाजियों की कई सफ हैं। नमाजियों की सफें एक के पीछे एक काफी दूर तक चली गई हैं, पक्की फर्श के नीचे तक, जहां कुछ बिछा भी नहीं है। नए आने वाले आकर पीछे की कतार में खड़े हो जाते हैं। आगे जगह नहीं है। यहां कोई धन और पद नहीं देखता। इस्लाम की निगाह में सब बराबर हैं। मस्जिद और मदरसा कमेटी के कुछ लोगों के पास भीड़ जमा है। वे लोग गोलाकार बैठे हुए हैं बीच में रसीद, बैग, पंपलेट और सालाना कैलेंडर रखे हैं। खजांची की दो बैग रुपयों से भर चुकी हैं। अभी बहुत नोट उनकी पालथी में बिखरे हैं। यह सब रकम फितरे की है। लोग जल्दी फितरा जमा कर सुन्नतें पढ़ना चाह रहे हैं। माइक पर मौलाना साहब नमाज के वक्त की याद दिलाकर लोगों को जल्दी वजू करने और सफ सीधी करने का ऐलान कर रहे हैं। फितरा जमा किए बिना ईद की नमाज मुकम्मल नहीं होती है। 


लोगों ने वजू किया और पिछली पंक्ति में खड़े हो गये। कितना सुंदर संचालन है, कितनी सुन्दर व्यवस्था। पेश ईमाम ने नीयत का तरीका नमाजियों को बताया, तकबीर पढ़ी गई। लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सब-के-सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हैं और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं। नमाज पूरी होने तक कई बार यह दोहराया जाता है। यह नजारा ठीक वैसे ही है जैसे बिजली की लाखों बत्तियां एक साथ जलें और एक साथ बुझ जाएं। यह क्रम नमाज के खत्म होने तक जारी रहता है। कितना अद्भुत नजारा है, जिसकी सामूहिक क्रियाऐं विस्तार और अनन्तता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानन्द से भर देती हैं, मानो इंसानियत का एक धागा इन सभी रूहों को एक लड़ी में पिरोए हुए है। इस बार 29 रोजों के बाद ईद आई है। किसी ने 30 रोज़े भी रखे हैं। नमाज़ के बाद फिर अगले रमज़ान का इंतज़ार होगा।

दुआ है, ये ईद आपके जीवन में अनंत खुशियां देकर जाए। देश में अमन-चैन कायम रहे। सभी साथियों, वरिष्ठजनों को ईद की तहेदिल से मुबारकबाद।

No comments:

Post a Comment

मुल्क