Wednesday 18 July 2018

रो रहीं बुंदेलखंड की ऐतिहासिक धरोहरें

झांसी स्थित राजा रघुनाथ राव का महल।

बुंदेलखंड के पांच जिलों में मौजूद 51 ऐतिहासिक स्मारकों के रखरखाव की स्थिति बदतर है। इन स्मारकों की सुरक्षा, देखभाल और संरक्षण के लिए
सरकार प्रतिवर्ष मात्र डेढ लाख रुपये इस मद में जारी करती है। इनके रखरखाव के लिए मात्र तीन कर्मचारी तैनात हैं। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये कर्मचारी किस तरह अलग अलग जिलों में स्थापित ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण करते होंगे।

रानी लक्ष्मीबाई की नगरी झांसी में सर्वाधिक धरोहरें हैं। इसके बाद चित्रकूट, ललितपुर, बांदा और जालौन में हैं। इस वर्ष पर्यटन मंत्रालय ने 51 स्मारकों की संख्या में बढ़ोत्तरी की है। ऐतिहासिक धरोंहरों-स्मारकों की सूची में इस बार 20 नाम और जोड़े गए हैं। यह एक तरह से अच्छा है लेकिन इनके संरक्षण के लिए मंत्रालय बजट बढ़ाना भूल गया है। अभी तक 51 स्मारकों के लिए ही यह रकम ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही थी। अब स्मारकों की संख्या बढ़ाए जाने से हालात और बद्तर हो जाएंगे।
झांसी स्थित रघुनाथ राव महल के अंदर की तस्वीर।

जानकार बताते हैं कि पर्यटन की ओर केंद्र और राज्य सरकार झुकाव ज्यादा है नहीं। यही वजह है कि स्मरकों की संख्या में इजाफा जरूर किया गया लेकिन राशि नहीं बढ़ाई गई। पुरातत्व विभाग के जिम्मे यह स्मारक लगातार अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। स्मारकों का सौंदर्यीकरण लंबे समय से नहीं किया गया है। ये जर्जर और खंडहर में तब्दील होते जा रहे हैं। यहां लोगों ने कब्जा कर निर्माण करा लिए हैं तो दीवारों की इंटें घिसती जा रही हैं। वहीं, दीवारों और छतों पर की गई शानदार नक्काशी मिटती जा रही है। झाड़-झंखार और गंदगी से परिसर पूरी तरह पटे हुए हैं।

वीरांगना लक्ष्मीबाई की नगरी झांसी में झांसी किला, रानीमहल, रघुनाथ राव महल और झोकनबाग सिमेट्री प्रमुख हैं। इन स्मारकों का निर्माण बुंदेलों और अग्रेजों के शासनकाल में किया गया है। राज्य पुरातत्व विभाग ने रानी महल  और झोकनबाग सिमेट्री को केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने 1964 और 1978 में अपने संरक्षण में लिया था। इसके अलावा रघुनाथ राव महल को सन 2002 में संरक्षित धरोंहरों की सूची में शामिल किया गया। गौरवमयी यादें समेटे ये धरोहरें अतिक्रमण और गंदगी के चलते अस्तित्व खोती जा रही हैं। पुरातत्व  विभाग नगर निगम के पाले में गेंद डाल खुद को पाक साफ बताता है जबकि नगर निगम पुरातत्व अधिकारियों को इसके लिए जिम्मेदार मानता है।

वीरांगना लक्ष्मीबाई के रानी महल की पहली मंजिल का द्रश्य।
झांसी में पुरातत्व विभाग के अधिकारी एके दुबे बताते हैं कि लोगों के प्रदर्शन और मांग और विभाग के बार बार प्रस्ताव भेजने के बाद इस बार रघुनाथ राव महल के लिए शासन से 50 हजार रुपये अलग से जारी किए गए हैं। वे बताते हैं कि इस राशि की मदद से महल के चारों ओर कटीले तारों की फेसिंग कराएंगे ताकि अराजक तत्वों का आनाजाना बंद हो जाए। लेकिन रानी महल समेत अन्य स्मारकों के लिए कोई बजट अलग से जारी नहीं करना सरकार के उदासीन रवैये को जाहिर करता है।

डेढ़ लाख की रकम से सिर्फ झांसी जनपद के स्मारकों का संरक्षण ही नहीं हो पाता है तो ललितपुर, चित्रकूट, बांदा और जालौन के ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण का क्या होगा। वर्तमान में कई स्मारक खंडहर में तब्दील हो चुके हैं तो कई जमींदोज होने की कगार पर पहुंच चुके हैं। पर्यटन और पुरातत्व विभाग जिला प्रशासन और नगर निगम पर अपनी जिम्मेदारी डाल रहा है जबकि ये दोनों पर्यटन और पुरातत्व विभाग को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार बताते हैं। कुछ भी हो अगर इन स्मारकों के लिए जल्द और धनराशि जारी नहीं की गई तो आने वाले कुछ वर्षों में हम इन्हें सिर्फ किताबों में ही पढ़ सकेंगे। 

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