Wednesday, 27 June 2018

बाबा जयशंकर की पंचायत


मन्दाकिनी के तट पर रमणीक भवन में स्कन्द और गणेश अपने-अपने वाहनों पर टहल रहे हैं। नारद भगवान् ने अपनी वीणा को कलह-राग में बजाते-बजाते उस कानन को पवित्र किया, अभिवादन के उपरान्त स्कन्द, गणेश और नारद में वार्ता होने लगी।

नारद-(स्कन्द से) आप बुद्धि-स्वामी गणेश के साथ रहते हैं, यह अच्छी बात है, (फिर गणेश से) और देव-सेनापति कुमार के साथ घूमते हैं, इससे (तोंद दिखाकर) आपका भी कल्याण ही है।

गणेश-क्या आप मुझे स्थूल समझकर ऐसा कह रहे हैं? आप नहीं जानते, हमने इसीलिए मूषक-वाहन रखा है, जिसमें देव-समाज में वाहन न होने की निन्दा कोई न करे, और नहीं तो बेचारा 'मूस' चलेगा कितना? मैं तो चल-फिर कर काम चला लेता हूँ। देखिये, जब जननी ने द्वारपाल का कार्यमुझे सौंप रखा था, तब मैंने कितना पराक्रम दिखाया था, प्रमथ गणों को अपनी पद-मर्यादा हमारे सोंटे की चोट से भूल जाना पड़ा। 

स्कन्द-बस रहने दो, यदि हम तुम्हें अपने साथ न टहलाते, तो भारत के आलसियों की तरह तुम भी हो जाते। गणेश-(हँसकर) ह-ह-ह-ह, नारदजी! देखते हैं न आप? लड़ाके लोगों से बुद्धि उतनी ही समीप रहतीहै, जितनी की हिमालय से दक्षिणी समुद्र!

स्कन्द-और यह भी सुना है।-ढोल के भीतर पोल! गणेश-अच्छा तो नारद ही इस बात का निर्णय करेंगे कि कौन बड़ा है। नारद-भाई, मैं तो नहीं निर्णय करूँगा; पर, आप लोगों के लिए एक पंचायत करवा दूँगा, जिसमें आप ही निर्णय हो जायगा। इतना कहकर नारदजी चलते बने।

वटवृक्ष-तल सुखासीन शंकर के सामने नारद हाथ जोड़कर खड़े हैं। दयानिधि शंकर ने हँसकर पूछा-क्यों वत्स नारद! आज अपना कुछ नित्य कार्य किया या नहीं?'' नारद ने विनीत होकर कहा-नाथ, वह कौन कार्य है?'' जननी ने हँसकर कहा-वही कलह-कार्य।नारद-माता! आप भी ऐसा कहेंगी, तो नारद हो चुके; यह तो लोग समझते ही नहीं कि यह महामाया ही की माया है, बस, हमारा नाम कलह-प्रिय रख दिया है। महामाया सुनकर हँसने लगीं।
शंकर-(हँसकर)-कहो, आज का क्या समाचार है? 
नारद-और क्या, अभी तो आप यों ही मुझे कलहकारी समझे हुए बैठे हैं, मैं कुछ कहूँगा, तो कहेंगे कि बस तुम्हीं ने सब किया है। मैं जाता तो हूँ झगड़ा छुड़ाने, पर, लोग मुझी को कहते हैं।
शंकर-नहीं, नहीं, तुम निर्भय होकर कहो।
नारद-आज कुमार से और गणेशजी से डण्डेबाजी हो चुकी थी। मैंने कहा-आप लोग ठहर जाइए, मैं पंचायत करके आप लोगों का कलह दूर कर दूँगा। इस पर वे लोग मान गये हैं। अब आप शीघ्र उन लोगों के पञ्च बनकर उनका निबटारा कीजिए।
शंकर-यहाँ तक! अच्छा, झगड़ा किस बात का है?
नारद-यही कि देवसेना-पति होने से कुमार अपने को बड़ा समझते हैं, और (जननी की ओर देखकर) बुद्धिमान होने से गणेश अपने को बड़ा समझते हैं।
जननी-हाँ-हाँ, ठीक ही तो है, गणेश बड़ा बुद्धिमान है।
शंकर ने देखा कि यह तो यहाँ भी कलह उत्पन्न किया चाहता है, इसलिए वे बोले-वत्स! तुम इसमें अपने पिता को ही पञ्च मानो, कारण कि जिसको हम बड़ा कहेंगे, दूसरा समझेगा कि पिता नेहमारा अनादर किया है-अस्तु, तुम शीघ्र ही इसका आयोजन करके दोनों को शान्त करो। नारद ने देखा कि, यहाँ दाल नहीं गलती, तो जगत्पिता के चरण-रज लेकर बिदा हुए।
नारद अपने पिता ब्रह्मा के पास पहुँचे। उन्होंने सब हाल सुनकर कहा-वत्स! तुझे क्या पड़ी रहती है, जो तू लड़ाई-झगड़ों में अग्रगामी बना रहता है, और व्यर्थ अपवाद सुनता है?
नारद-पिता! आप तो केवल संसार को बनाना जानते हैं, यह नहीं जानते कि संसार में कार्य किस प्रकार से चलता है। यदि दो-चार को लड़ाओ न, और उनका निबटारा न करो, तो फिर कौन पूछताहै? देखिए, इसी से देव-समाज में नारद-नारद हो रहा है, और किसी भी अपने पुत्र की आपने देव-समाज में इतनी चर्चा सुनी है?
ब्रह्मा-तो क्या तुझे प्रसिद्धि का यही मार्ग मिला है?
नारद-मुझे तो इसमें सुख मिलता है- ''येन केन प्रकारेण प्रसिद्ध: पुरुषो भवेत् ।''
ब्रह्मा-अब तो शंकर की आज्ञा हुई है, जैसे-तैसे इसको करना ही होगा, किन्तु हम देखते हैं कि गणेशजी जननी को प्रिय हैं; अतएव यदि उनकी कुछ भी निचाई होगी, तो जननी दूसरी बात समझेंगी! अस्तु! अब कोई ऐसा उपाय करना होगा कि जिसमें बुद्धि से जो जीते, वही विजयी हो।अच्छा, अब सबको शंकर के समीप इकठ्ठा करो। नारद यह सुनकर प्रणाम करके चले।
विशाल वटवृक्षतले सब देवताओं से सुशोभित शंकर विराजमान हैं। पंचायत जम रही है। ब्रह्माजी कुछ सोचकर बोले-गणेशजी और कुमार में इस बात का झगड़ा हुआ है कि कौन बड़ा है? अस्तु, हम यह कहते हैं कि जो इन लोगों में से समग्र विश्व की परिक्रमा करके पहले आवेगा, वही बड़ा होगा। स्कन्द ने सोचा-चलो अच्छी भई, गणेश स्वयं तुन्दिल हैं-मूषक-वाहन पर कहाँ तक दौड़ेंगे, और मोर पर मैं शीघ्र ही पृथ्वी की परिक्रमा कर आऊँगा। फिर वह मोर पर सवार होकर दौड़े। गणेश ने सोचा कि भव और भवानी ही तो पिता-माता हैं, अब उनसे बढक़र कौन विश्व होगा। अस्तु, यह विचारकर शीघ्र ही जगज्जनक, जननी की परिक्रमा करके बैठ गये।

जब कुमार जल्दी-जल्दी घूमकर आये, तो देखा, तुन्दिलजी अपने स्थान पर बैठे हैं। ब्रह्मा ने कहा-देखो, गणेशजी आपके पहले घूमकर आ गये हैं! स्कन्द ने क्रोधित होकर कहा-सो कैसे? मैंने तो पथ में इन्हें कहीं नहीं देखा!
ब्रह्मा ने कहा-क्या मार्ग में मूषक का पद-चिह्न आपको कहीं नहीं दिखाई पड़ा था?

स्कन्द ने कहा-हाँ, पद-चिह्न तो देखा था।
ब्रह्मा ने कहा-उन्होंने विश्वरूप जगज्जनक, जननी ही की परिक्रमा कर ली है। सो भी तुम्हारे पहले ही।
स्कन्द लज्जित होकर चुप हो रहे।

Sunday, 10 June 2018

बुंदेलखंड का सूखा

बुंदेलखंड हमेशा से कम बारिश वाला इलाका रहा है, लेकिन 2002 से लगातार सूखे ने मर्ज़ को तकरीबन लाइलाज बना दिया है.यह जमीनी बताती है कि बुंदेलखंड को ईमानदार कोशिशों की ज़रूरत है. साफ-सुथरी सरकारी मशीनरी अगर आम लोगों को साथ लेकर कोशिश करे तो सूखता जा रहा बुंदेलखंड शायद फिर जी उठे।


दिल्ली के पास वैशाली में तकरीबन नियमित रूप से एक रिक्शेवालेचेतराम से मेरी मुलाकात होती है जो अमूमन सफ़ेद कमीज़ और पाजामे में होता है। वही चेतराम मुझे एक रोज़ अपने घर के असबाब के साथ सड़क पर खड़ा मिल गया। उसकी झुग्गी उजाड़ दी गई थी। आनंद विहार, दिल्ली की सरहद है और एक सड़क इस केंद्रशासित प्रदेश को उत्तर प्रदेश से अलग करती है। इसी सड़क से थोड़ा और आगे जाएंगे तो वैशाली और इंदिरापुरम जैसी पॉशकॉलोनियां हैं।

वैशाली में, जहां मैं रहता हूं, आसपास अभी अनगिनत खाली प्लॉट हैं, जिनपर न जाने कितने लोग झुग्गियां बनाकर रहते हैं। वहां महागुनमेट्रो और शॉप्रिक्स जैसे चमचमाते मॉल्स हैं, जहां की दुनिया में पॉपकॉर्न जैसी चीज़ें मक्खन के साथ खाई जाती हैं, उससे थोड़ा आगे ही करोड़ों की कीमत वाले खाली प्लॉट्स पर झुग्गियों में न जाने कितनी ज़िंदगियां अपने अरबों-खरबों के सपनों को जीने लिए जाने कहां-कहां से आती हैं।

चेतराम भी उन्हीं में से एक हैं, जो उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से पलायन करने को मजबूर हुए हैं। बिरादरी से दलित चेतराम पेट पालने के चक्कर में घर छोड़कर यहां किसी और की ज़मीन पर रहते हैं, जहां उनकी झुग्गी अवैध और गंदी बस्ती के रूप में गिनी जाती है।

ऐसी ही किसी गिनती को कम करने के लिए गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण ने सभी खाली प्लॉटवालों को अपने प्लॉट पर निर्माण कार्य शुरू कराने का आदेश दिया, ऐसा न करने पर आवंटन रद्द कर दिया जाता। इसीलिए, चेतराम की झुग्गी उजाड़ दी गई। झुग्गी ही नहीं उजड़ी, उनका घर और उनकी दुनिया भी उजड़ गई। अब चेतराम और उसके गांव के उसके ही जैसे लोग, मकनपुर गांव में रहते हैं। वहां भी वो किसी खाली ज़मीन पर ही रहते हैं, जहां रोज़मर्रा की दिक्कतें हैं। पानी की, शौच की, सफ़ाई की, हर क़िस्म की दिक़्क़त।

चेतराम, बुंदेलखंड के अपने गांव गन्हौली से निकले तो अपने पीछे सात बीघा ज़मीन छोड़कर आए थे। वे बड़े शान से बताते हैं कि उनका इलाका बेमिसाल राजाओं का इलाक़ा रहा है। राजा परमार देव का ज़िक्र करते हुए चेतराम कहते हैं-बड़े लड़इयामहुबे वाले, इनकी मार सही न जाए। ठीक है कि इतिहास में महोबे के वीरों की मार बहुत भारी थी और उन्हें हराना कठिन था लेकिन आज की तारीख़ में पानी ने सबको त्रस्त करके रख दिया है।

चेतराम के इलाक़े में एक के बाद कई एक बरसों तक नियमति बारिश नहीं होने से खेती फ़ायदे का सौदा नहीं रह गया। सात बीघा ज़मीन को बटाई पर लगाकर, काम की तलाश में चेतराम सपरिवार दिल्ली आ गए। बटाई वाली ज़मीन से कुछ मिलता नहीं। दिल्ली में वे ख़ून-पसीना बहाते हुए रिक्शा चलाते हैं। लेकिन उनकी आंखों में गांव वापस जाने का सपना और उम्मीद भी ज़िंदा है।

केन नदी के किनारे ज़िंदगी उम्मीद के सहारे आगे बढ़ती है। शायद इसी ने ज़िंदा रखा था, गढ़ा गांव के प्रह्लाद सिंह को। बड़ी-बड़ी शानदार मूंछों वाले प्रह्लाद सिंह ने अपनी जवानी में किसी का क़त्ल कर दिया था। क़त्ल का जुर्म अदालत में साबित हो गया, 1962 में बांदा ज़िला अदालत ने उन्हें सज़ा-ए-मौत सुनाई। लेकिन, प्रह्लाद सिंह को राष्ट्रपति से जीवनदान मिला और उनकी सज़ा आजीवन कारावास में बदल दी गई।

प्रह्लाद सिंह ने दस साल जेल में काटे थे कि सन बहत्तर में नेकचलनी की वजह से उन्हें वक़्त से पहले रिहा कर दिया गया। प्रह्लाद, गांव लौटे तो नई उम्मीद के साथ ज़िंदगी को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिश की। गृहस्थी की गाड़ी चल निकली। अभी एक दशक पहले तक सब कुछ ठीक-ठाक था। लेकिन परिवार बड़ा हुआ तो प्रह्लाद सिंह और उनके भाई ने मिलकर ट्रैक्टर के लिए बैंक से कर्ज़ ले लिया। इसी कर्ज़ ने उनके परिवार को बरबाद कर दिया।

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