Saturday 22 December 2012

पाती ! मौत की


रिजवान .................रिजवान ...............!
आनंद यार तूने क्या रिजवान को कहीं  देखा है ? पता नहीं कहाँ चला गया ! सतेन्द्र आनंद से पूँछ रहा था , तब तक मैं उसके बुलाने की आवाज सुनकर होस्टल की  छत से नींचे आ पहुंचा था ! क्या हुआ सतेन्द्र क्यूँ गला फाड़ रहे  हो ? मैंने सतेन्द्र से पास आकर पूंछा ! यार ये अजीब सा , अजीब तरह की चमकीली पन्नी से ढका हुआ कार्ड डाकिया तेरे लिए छोड़ कर गया है ! चिंतित भाव में सतेन्द्र ने बताया था मुझे !
      मैं भी कार्ड की पन्नी पर लिखे शब्द , और उसकी बात सुनकर सन्न रह गया , और कार्ड खोलते हुए सोंचने लगा , आखिर होस्टल में भेजने की क्या जरुरत थी , घर भेजना चाहिए था ! वैसे भी मैं इस तरह के भोज और भीड़ में शामिल होना मुनासिब नहीं समझता था ! चिंता और जल्दबाजी के कारण कार्ड के ऊपर लिपटी पन्नी मुझसे नहीं खुल रही थी ! तभी आनंद ने कार्ड मेरे हाथ से लगभग खींचते हुए एक ही  झटके में फाड़ कर खोल दिया था , और उसके अन्दर लिखे शब्दों को अपनी जबान देने लगा , उसके द्वारा बोल जा रहा एक एक शब्द मेरे ऊपर बज्रपात कर रहा था ! और अंत में सबसे नीचे , प्रेषक के नाम में ' अमित अग्निहोत्री ' उसने पड़ा था !
     ओ नो .............कहते हुए , बालो को नोचकर मैं नीचे बैठ चुका था !
      अगले पल मैं ट्रेन पकड़ने के लिए रेलवे स्टेशन पर था , साथ में सतेन्द्र और आनंद भी , जो मुझे छोड़ने आये थे और बार बार ' भोलाराम' के बारे में सवाल करते और मेरे इस तरह अचानक जाने का कारण पूछते जाते थे !
      
   दरअसल मैं जिस गाँव का हूँ , वह बहुत छोटा सा गाँव था , मतलब अभी भी है ! लेकिन थोडा विकसित और बड़ा ! मेरे बचपन में न वहां बिजली थी, न नदी का पुल, और न ही समुचित सड़कें ! जैसा की हर किसी के बचपन में होता है , मेरे भी दो गहरे दोस्त थे !  मैं , मेरे मित्र अमित अग्निहोत्री  और भोलाराम कठेरिया !
     तीनो  साथ स्कूल आते  जाते  थे ! प्राइमरी पाठशाला गाँव से करीब चार पांच किलोमीटर दूर थी , और हमें नदी पार करके जाना होता था ! कभी कभी जब स्कूल जाने का मन न होता तो , नदी में कपडे भिगोते, मिटटी लगाते  और घर आकर चिकनाई की वजह से पानी में रपट कर भीगने का बहाना बना देते !
     स्कूल में तीनो एक साथ , आसपास ही बैठते थे! खाली वक्त में नदी नहाते , सीपियाँ खोजते और भरी दोपहरी में तेज अंधड़ आता तो कच्चे आम बीनने बगीचे में दौड़ पड़ते , खजूर झोरते और आने वाले दिनों में जामुन के बगीचों में धावा  बोलने का प्लान बनाते !
     भोलाराम हम दोनों से निचली जाति  का था , और उसका परिवार बहुत ही गरीब था ! इन असमानताओं के बावजूद हम पड़ने में काफी तेज थे , और अक्सर हम तीनो में कम्पटीशन  रहता , कि कौन फर्स्ट आयेगा ? कभी अमित फर्स्ट आता , कभी भोलाराम  तो कभी मैं !
     मैनें महाराणा से पढाई के दौरान काफी अरसा कानपुर में रहने ,ठिकाने की जद्दोजहद में बिताया ! एग्जाम दिए, प्रैक्टिकल किये और  पास भी किये ! इस बीच कहानियां , लेख , कवितायेँ लिझता रहा , और आज तक अभी सीख रहा हूँ , पड़ रहा हूँ और लगातार कुछ न कुछ लिख रहा हूँ !
     मेरे बचपन के दोस्त अमित अग्निहोत्री अब गाँव के बहुत बड़े ब्यवसायी बन चुके हैं , खेतों में काम आने वाली लगभग हर तरह की मशीनों के मालिक भी हैं !
     वहीँ भोलाराम की कहानी हम दोनों से बहुत जुदा थी , उसने दंसवीं के बाद पड़ाई छोड़ दी थी! होनहार  स्टूडेंट होने के बावजूद वह हिंदुस्तान के लाखों ड्रॉपआउट स्टूडेंट के आंकड़ो में शामिल हो गया था ,  इस सबके पीछे का कारण उसकी निर्धनता ही थी ! हमारे द्वारा मदद की पेशकश करने के बावजूद उसने मदद लेने से मना कर, अपने खुद्दार होने का  आभास  करा दिया  था !  
     उसने नौकरी के लिए भागदौड़ की , इश्तिहार  देखे , फारम भरे ! अन्तता वो होमगार्ड में हो गया , उसकी अंग्रेजी  अच्छी थी , मगर वहां उसकी नौकरी नहीं चल पाई , जबकि इसी नौकरी के दौरान उसे बेस्ट कैडेट का नेशनल अवार्ड भी मिला ! कुछ साल वह नौकरी के लिए भटकता रहा , बाद में उसे हमारे मित्र अमित अग्निहोत्री के सहयोग से टोल टैक्स में नौकरी मिल गयी ! मगर वह प्रतिभाशाली होने के साथ साथ ईमानदार भी था , लिहाजा वहां भी न चल पाया , और कुछ समय बाद वहां से भी नौकरी से हाँथ धोना पड़ा !
    
     तब से ...........   आज उसके इस दुनिया से रुखसत होने की खबर आई !

      ट्रेन के कानफोडू हार्न ने स्टेशन छोड़ने का एलान कर दिया था , अभी भी वह तेरहवीं भोज का कार्ड मेरे हाथ से चिपका हुआ था ! आनंद और सतेन्द्र समझ चुके थे , कि इतनी कम उम्र में अपने लंगोटिया यार के इस तरह छोड़कर चले जाने से मुझ पर क्या बीत रही थी ! मेरा दिमाग उन बचपन की उन मीठी, भोली,बचकानी यादों में बार बार जा रहा था , और दिल जैसे मुंह के रास्ते बाहर आने को तड़प रहा था ! ट्रेन स्टेशन छोड़ रही थी , और मैं भी सतेन्द्र व आनंद का साथ , ताकि भोलाराम की पुण्यात्मा की शांति के लिए गाँव पहुंचू और पूजन भोज में शामिल होकर उसे मेरे सपनों में न आने की गुजारिश करूँ , साथ ही स्वर्ग में सलामत रहने की भी !!

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