मासकाम के 'HOD' की पोस्ट फटाक से पाए हैं!
नेचर के वो अच्छे हैं,
दिल के भी वो सच्चे हैं,
स्टूडेंट सारे लगते उनको,
जैसे अपने ही बच्चे हैं !
यहाँ बोझ बहुत है काम का उनपर
फिर भी M P S V S को, पटरी पर ले आये है!
गंगा की इस धरती पर
नवाबों के नगर से पधारे हैं !
रूल्स एंड रेगुलेशन में,
देखना चाहें सभी को वो,
खुशियों के संग नॉलेज का सागर भी लेकर आये हैं !
शब्द नहीं है पास मेरे,
आगे कुछ भी लिखने को,
ये मुझसे कहकर कलम मेरी,
स्याही को पानी करती जाये!
बात सही है कलम की मेरी,
अभी मै इक अदना सा परिदा हूँ !
क्या लिखू उस हस्ती के बारे में,
जान लूँ पहले औकात भी अपनी!
कलम मेरी चल चल कर भी रुकती जाए,
आगे कुछ भी लिखने में,
ना अपनी वो सामर्थ बताये!
लेकर अपनी कलम से वादा,
रोका मैंने लिखना ज्यादा,
जब मैं हो जाऊं विशाल परिंदा ,
तब तुम मेरे पास ही रहना,
क्योकी कब्र से मै ना लिख पाऊंगा,
बाहर तो मई आ ही जाऊँगा !
इस हस्ती को लिखने की खातिर,
[ 19 मई को लिखी, गई ये लाइने महाराणा प्रताप स्कूल फॉर वोकशनल स्टडीज के 'HOD' डॉ . इन्द्रेश मिश्रा को सादर समर्पित ]
dhnyawad rizwan ..itna behtreen likhne k liye
ReplyDeleteaapki meharbani h....
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