Sunday, 23 September 2018

मुल्क













कोई बता दे मुल्क का ये हाल क्यूं है
हरी-भरी ज़मीं आखिर लाल क्यूं है
महंगाई पर कब तक रोयेंगे हम
सीमा पर कब तक लाल खोएंगे हम।

महंगाई की ये शक्ल अजीब सी है
बात सिर्फ तेल और रुपये की नहीं है
बदल रहा है फ़िज़ा-ओ-मंज़र मुल्क का
शहीद की मां इसबार रोई नहीं है।

देश में झूठों का नया अभ्यारण्य खुला है
रेडियो पे सुनो सरहद पे फिर सैनिक मरा है
कुछ एंकर हिन्दू-मुस्लिम में उलझा के रखे हैं
उनसे कोई पूछ ले, क्या ईमान अभी ज़िंदा है ?

- रिज़वान नूर खान

Thursday, 13 September 2018

मुर्गे की दावत


गांव के बदलते स्वरूप को आलेख रूपी छोटी-छोटी यादों को समेटे रामधारी सिंह दिवाकर की 'जहां आपनो गांव' किताब हाल ही में साहित्य संसद प्रकाशन दिल्ली से छपकर आई है। किताब में बिहार के अररिया ज़िलें के गांवों का ज़िक्र किया गया है। वहां के हालातों, मजदूरों की मुश्किलों और उनके आधुनिक होने के साथ ही गांव-देहात की अच्छी-बुरी बातों का वर्णन है।

लेखक ने किताब की दूसरी कहानी में हनीफ चाचा को केंद्र में रखा है। हनीफ बुजुर्ग हैं, उनका कोई पक्का रोजगार नहीं है। एक तरह से मजदूर ही हैं। करीब तीन बीवियां और 18 बच्चों का कुनबा है। इसके अलावा कई मुर्गियां और बकरियां हैं। परिवार की जीविका मुश्किल से चलती है। मुर्गे-बकरियों की वजह से आये-दिन पड़ोसियों से कहासुनी होती है। कई बार मारपीट और ख़ूनमखून भी हो चुका है। जबकि कई लोगों से उनकी अच्छी पटती भी है।

हनीफ चाचा का मुर्गा सुबह से नहीं मिल रहा, अब शाम हो गई है। हनीफ और बाकी लोग जानते हैं कि मुर्गा पड़ोसी बनिये ने खुंदक निकलने के लिए पकड़कर छुपा लिया है। हितैषियों के कहने पर हनीफ चाचा थाने में शिकायत करने पहुंचे हैं। दरोगा ने चाचा को सुना, तम्बाकू थूकी और लार टपकाती आंखों से इशारा कर रुपये मांगे। चाचा बनिये को पिटवाना और मुर्गे को वापस पाना चाहते हैं तो कुर्ते की जेब से 20 का नोट निकालकर दे दिया।

बनिये को थाने में दांत-डपट के बाद चार-छै डंडे पड़े तो मुर्गा लाकर दरोगा को सौंप दिया। हनीफ चाचा को अब तसल्ली है। बनिये की बेइज्जती हो गई। थाने से छोड़ने के नाम पर दरोगा और दलालों को जेबें भी गरम हो गईं। तमाशा देखने वालों का मनोरंजन हो गया। हनीफ चाचा मुर्गा लेकर जाने लगे तो दरोगा ने घुड़क दिया और उसे काट-छीलकर लाने को कहा। शाम को थाने में मुर्गे की दावत उड़ी।

इस लड़ाई में न हनीफ चाचा को कुछ हासिल हुआ और न बनिये को कुछ मिला। बल्कि दूसरे-तीसरे लोग मलाई काट गए। करीब दो दशक पुरानी इस घटना ने आज और विस्तार पा लिया है। घूसखोरी और एक-दूसरे से जलने-कुढ़ने की आदत का कैनवास पहले कहीं ज्यादा बड़ा हो गया है।

लेखक रामधारी सिंह दिवाकर कई किताबें, कहानियां लिख चुके हैं। अररिया ज़िले के नरपतगंज गांव के रहने वाले हैं। मिथिला विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष पद से रिटायर हैं। उनकी यह किताब अभी पूरी पढ़ी नहीं है। पढ़ रहा हूं पर अभी तक जितनी पढ़ी है उससे कह सकता हूं कि किताब 'जहां आपनो गांव' में संकलित संस्मरण अच्छे हैं। इसे पढ़ा जाना चाहिए।

Wednesday, 1 August 2018

ईद की सुबह और खुशी


ईद से एक दिन पहले लहलहाती नीम और खुशी

15 june 2018

रमज़ान का आज आखिरी रोजा है। इस बार 29 रोजों के बाद कल ईद होगी। आज कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। घर की छत पर फैली नीम की शाखाएं ठंडी हवा बहा रही हैं। हर पत्ती हरियाली में डूबी है। आसमान पर सुकून भरी लालिमा दिख रही है। आज का सूरज देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है, मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। खेतों की अपनी एक अलग ही रौनक है। गेहूं कटने के बाद से खेत खाली, सूखे हैं पर कितने सुंदर हैं। कुछ में चारे की कर्बी लहलहा रही है।

मोहल्ले में कितनी हलचल है। कल ईदगाह जाने की तैयारियां आज ही हो रही हैं। महक और खुशबू के कपड़े तैयार हो गए हैं। दोनों मेरी चचेरी छोटी बहने हैं। महक नाराज है, उसे आधुनिक ड्रेस पहननी थी लेकिन पारंपरिक सूट सिला दिया गया है। दानिश को फिक्र नहीं है वो तो सुबह मिलीं लीचियां पाकर ही खुश है। पड़ोस के बच्चे एकदूसरे के कपड़ों से तुलना कर रहे हैं। कुर्ता पजामा वालों पर जीन्स शर्ट वाले भारी पड़ रहे हैं। ईद की खुशियां कल सौ गुना बढ़ जाएंगी, उत्साह चरम पर होगा। अब तो आज शाम के चांद और कल के सूरज का बेसब्री से इंतज़ार है।
सभी साथियों, वरिष्ठजनों को ईद की अग्रिम बधाई।


ईद की सुबह और खुशी

16 june 2018

गांव में कितनी हलचल है। मियन टोला सौगुनी खुशियों से लबरेज़ है। फजिर की नमाज़ के बाद से लोग ईदगाह जाने की तैयारियों में जुटे हैं। ईद की सुबह बहुत ब्यस्त है। किसी के कुरते का बटन टंकना रह गया है तो कोई चौराहे पर रवी नाई के यहां दाढ़ी सेट कराने की जल्दी में है। बकरियां चराने से आज जोसेफ, शीबू, तहशीम को छुट्टी मिली है, वे सब बहुत खुश हैं। बकरियां भी आज घास-फूस नहीं खाएंगी, उनकी भी ईद है। कुनाई वाला मुलायम भूसा, सूखी खरी, चोकर और आटा मिली हुई लज़ीज़ सानी खा रही हैं। थोड़ी देर में गेहूं-बिझरा और सेवइयां भी खाएंगी। तौफीक ने भैंसिया को चारा-पानी देकर नहला भी दिया है।

कल जोहर की नमाज़ से पहले पेश ईमाम ने ईद की नमाज़ का वक्त 9:30 बजे मुकर्रर किया था। बहुत भीड़ थी मस्ज़िद में। आज तो और भी ज़्यादा होगी। दूर के गावों से नमाज़ी आएंगे। जो जल्दी पहुंचेगा वो आगे की सफ़ में नमाज़ अता करेगा। हालांकि, बच्चे चाहे कितनी भी जल्दी पहुंचें उन्हें पीछे की सफ में ही खड़ा होना पड़ेगा। जुल्फिकार, आरिफ, मुबीश और नफीश ने अपनी मोटरसाइकिलें धुल कर साफ कर ली हैं। वे चमचमा रही हैं।

दानिश अभी अभी नहाकर गया है। मेरे खानदान का सबसे छोटा चिराग है, चाचा का एकलौता बेटा है। हालांकि, उससे बढ़ा फैजल था, लेकिन 2013 में आए जापानी बुखार ने उसे लील लिया। लाख कोशिशों के बावजूद हम उसे बचा न सके। खुदा से चच्ची का रोज-रोज का बिलखना देखा न गया और दानिश की शक्ल देकर अल्लाह ने फैजल को वापिस भेज दिया। अभी एक साल उम्र है दानिश की, वो मोटर के ठंडे पानी से नहाता है। नल का पानी उसे रास नहीं आता। तड़के से ही अपने बड़े पापा यानी मेरे पापा के पास भाग आता है, उन्हीं के साथ नहाता है और चाय पीता है। आज बहुत खुश है। तेजी में गया है नए कपड़े पहनकर अभी आएगा दिखाने।

बौवन शकील को ढूंढ़ रहा है। उसे फातिहा दिलानी है। शकील दीनी-तालीम के मामले में मुहल्ले के सबसे जानकार हैं। अफसोस कि उनका हफ़िज़ा मुकम्मल न हो सका। पर मोहल्ले के वही हाफिज वही मौलाना हैं। आज वे बहुत ब्यस्त हैं। एक घर से फ़ातिहा देकर निकलते हैं दूसरा उन्हें पकड़ ले जाता है। इस जल्दी में उत्साह ज़बरदस्त है। खुशी सौगुनी है।

मस्जिद के बाहर और अंदर खड़े नीम के घने वृक्षों की छाया। नीचे पक्का फर्श है, जिस पर खूबसूरत कालीन और दरी बिछी हुई है। नमाजियों की कई सफ हैं। नमाजियों की सफें एक के पीछे एक काफी दूर तक चली गई हैं, पक्की फर्श के नीचे तक, जहां कुछ बिछा भी नहीं है। नए आने वाले आकर पीछे की कतार में खड़े हो जाते हैं। आगे जगह नहीं है। यहां कोई धन और पद नहीं देखता। इस्लाम की निगाह में सब बराबर हैं। मस्जिद और मदरसा कमेटी के कुछ लोगों के पास भीड़ जमा है। वे लोग गोलाकार बैठे हुए हैं बीच में रसीद, बैग, पंपलेट और सालाना कैलेंडर रखे हैं। खजांची की दो बैग रुपयों से भर चुकी हैं। अभी बहुत नोट उनकी पालथी में बिखरे हैं। यह सब रकम फितरे की है। लोग जल्दी फितरा जमा कर सुन्नतें पढ़ना चाह रहे हैं। माइक पर मौलाना साहब नमाज के वक्त की याद दिलाकर लोगों को जल्दी वजू करने और सफ सीधी करने का ऐलान कर रहे हैं। फितरा जमा किए बिना ईद की नमाज मुकम्मल नहीं होती है। 


लोगों ने वजू किया और पिछली पंक्ति में खड़े हो गये। कितना सुंदर संचालन है, कितनी सुन्दर व्यवस्था। पेश ईमाम ने नीयत का तरीका नमाजियों को बताया, तकबीर पढ़ी गई। लाखों सिर एक साथ सिजदे में झुक जाते हैं, फिर सब-के-सब एक साथ खड़े हो जाते हैं, एक साथ झुकते हैं और एक साथ घुटनों के बल बैठ जाते हैं। नमाज पूरी होने तक कई बार यह दोहराया जाता है। यह नजारा ठीक वैसे ही है जैसे बिजली की लाखों बत्तियां एक साथ जलें और एक साथ बुझ जाएं। यह क्रम नमाज के खत्म होने तक जारी रहता है। कितना अद्भुत नजारा है, जिसकी सामूहिक क्रियाऐं विस्तार और अनन्तता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानन्द से भर देती हैं, मानो इंसानियत का एक धागा इन सभी रूहों को एक लड़ी में पिरोए हुए है। इस बार 29 रोजों के बाद ईद आई है। किसी ने 30 रोज़े भी रखे हैं। नमाज़ के बाद फिर अगले रमज़ान का इंतज़ार होगा।

दुआ है, ये ईद आपके जीवन में अनंत खुशियां देकर जाए। देश में अमन-चैन कायम रहे। सभी साथियों, वरिष्ठजनों को ईद की तहेदिल से मुबारकबाद।

Tuesday, 31 July 2018

बकरी और अबरार का दर्द

बकरियां बुरी तरह डरी हुई हैं। अभी रात के दो बज रहे हैं। उनके शोर से घर के सभी लोग जग गए हैं। मुहल्ले में भी जनसर हो गई। पहले बड़ी वाली बकरी ही चिल्ला रही थी, धीरे धीरे पांचों बकरियां शोर करने लगीं। मैं इस्माइल के घर में हूं। उसके घर के बरोठे का ये नजारा वाकई में सबके लिए चौकाने वाला है। लेकिन कोई समझ कुछ नहीं पा रहा है। उसके अब्बा (बाबा) जग तो गए हैं लेकिन मच्छरदानी से बाहर नहीं निकलना चाहते। दरअसल बरोठे में जहां बकरियां बंधीं हैं वहां मच्छर कुछ ज्यादा हैं। वे चारपाई से ही सबको हांक रहे हैं, सब अपने-अपने घर जाओ, भीड़ मत बढ़ाओ। बकरियां अपने आप चुप हो जाएंगी। उनकी ऐसी बेरुखी से कुछ लोग जा चुके हैं, कुछ जा रहे हैं।


बकरियों का यूं चिल्लाना अबरार से सहन नहीं हो रहा। इससे पहले उसने अपनी बकरियों को यूं सहमते नहीं देखा। वही तो है जो बकरियों को खेतों में चराने ले जाता है। वह आठ साल का है। बकरियां उसे बहुत प्यारी हैं। एकतरह से बकरियां उसकी दोस्त हैं। स्कूल से आते ही कडुए तेल से चुपड़ी और बुकनू लगी रोटी ले वह उन्हें चराने चल देता है। मुहल्ले के लोग उसे नन्हा बरेदी कहते हैं। ग्रामीण इलाकों में बकरियां पालने वाले को बरेदी कहा जाता है। बकरियां अभी भी सहज नहीं हुई हैं। अबरार सुबक रहा है। उसने सभी बकरियों के नाम रखे हैं। जो सफेद-काली है उसे चितकबरी, जो लाल-काली है उसे लालमनी और छोटी वाली बकरी को वह छुनिया बुलाता है। इसी तरह बाकी बकरियों के भी नाम रखे हैं। छुनिया बाकी बकरियों की तरह नहीं चिल्ला रही बस बीच-बीच म्हे कर देती है। पर इस म्हे में दर्द बहुत है। छुनिया गर्भ से है, कुछ ही महीनों में वह भी मां का सुख भोगेगी। अबरार की सुबकन मुझसे नहीं देखी जा रही। बाकी लोग भी द्रवित हैं।

सुनातर या बरजतिया देख लिया होगा तभी चिल्ला रही हैं, अभी चुप हो जाएंगी, सोओ जाके सब लोग बतंघड़ न बनाओ, मंझली चच्ची गुस्से में सबसे बोलीं और दांत में दुपट्टा दबाके सोने चली गईं। सुनातर और बरजतिया सापों को कहा जाता है। सुनातर को सुनाई नहीं देता और बरजतिया काफी बड़ा होता है, तेज भागता है। गांवों में अक्सर ये सांप देखे जाते हैं, लेकिन वे बिरले ही लोगों को काटते हैं। वे चूहों के शिकार के लिए घरों में आ जाते हैं। ज्यादातर भूसा वाली कुठरिया में लकड़ी या कंडों के बीच छिप जाते हैं।

इस बीच राजू चाचा बोले चिटकान्हा हुई सकत है। धत्त झटिहा सार, भाग हेन ते बड़ा आओ बतावन चिटकान्हा हुई सकत है। अब्बा के अईसे गरियाने से राजू चाचा सकपका गए और धीरे से वहां से खिसक लिए। अब्बा मुहल्ले भर के अब्बा हैं, वे सब पे अपना हक जताते हैं। इसलिए उन्हें ज्यादातर लोग अब्बा ही कहते हैं। अब्बा का पारा गरम देख सब बगलें झांकने लगे और जाने को हुए कि तभी हवा का तेज झोंका आया और किवाड़े के बगल में ताक पर जल रहे चराग को बुझा गया। अब बरोठे में घुप्प अंधेरा हो गया। बकरियां जो थोड़ा सा चुप हुईं थीं अब फिर से चिल्लाने लगीं। अब्बा पहले से ही गुस्साए थे अंधियारा होने पर और तेजी से चिल्लाए, चराग कौन जलाएगा।

रहमान आंगन की तरफ भागा और चारपाई में बिछे बिस्तर में माचिस टटोलने लगा। चूल्हे के पास देख जा के वहीं रखी है माचिस, अम्मा ने जोर से कहा। रहमान ने चूल्हे के पास, पखिया और खाना रखने वाली दीवार में बनी टीपारी में
माचिस ढूंढी पर न मिली। बाहर जा मेरे बिस्तर में सिरहाने रखे कुर्ते में माचिस है ले के आ, अब्बा ने गरजते हुए कहा। रहमान ने कुर्ते से माचिस निकाल ली। उसने साथ में बालक बंडल से चार ठो बीड़ी भी निकालकर जेब में छिपा लीं। रहमान 15 बरस का है। गांव के अधिकांश किशोरवय लड़के बीड़ी और स्वागत तम्बाकू खाने लगे हैं। कुछ वक्त पहले गांव के भोला और महेश अपने पापा की बीड़ी चुराकर फूंकते पकड़े गए थे तो बहुत मार पड़ी थी। तब से सब नशा-पत्ती से दूर थे। लेकिन अब के छिटांक-छिटांक भर के लड़के चौधरी और पॉवर गुटखा भी खाते हैं, लेकिन छिप-छिपाकर। दांत लाल हो गए हैं, उन्हें साफ करने के लिए एक-एक घंटे तक नीम की दातून घिसते हैं। ज्यादातर नदिया किनारे बीड़ी पीने जाते हैं। कई सुबह शौच से पहले बीड़ी पीते हैं। बीड़ी नहीं मिलती तो उनका पेट साफ नहीं होता है। गांव के ज्यादातर मर्द नदी किनारे खुले में शौच करने जाते हैं। युवाओं की संख्या इनमें ज्यादा है। किसी-किसी के घर में ही शौचालय है।

अब्बा ने झिड़कते हुए रहमान के हाथ से माचिस छीनी और चराग जलाया। अभी एक मिनट भी न हुआ था कि चराग मद्धम होते हुए बुझने लगा। उन्होंने चराग हिलाया तो उसमें तेल खत्म हो गया था। अब वे फिर चिल्लाये, कोई काम ढंग से नहीं हो पाता है। न जाने का करेंगे सब। अब्बा और चिल्लाते इससे पहले ही अम्मा बोल पड़ीं- मिट्टी का तेल खत्म हो गया है। अबकी महीने में कोटेदार ने दुई लीटर तेल ही दिया था। एक चराग आप छपरा तरे रखते हो, दूसरा चूल्हे के पास रहता है जो बाद में रहमान और अबरार पढ़ने के लिए उठा ले जाते हैं और तीसरा बरोठे में बकरियों के पास जलता है, तीन ही चराग तो हैं घर में। इतना कहते-कहते अम्मा झुंझला गईं और आंगन में बिछी चारपाई पर जाके धम्म से बैठ गईं। ये सुनकर अब्बा का चेहरा और तमतमा गया। बोले-पब्लिक के लिए साला आता 5 लीटर तेल है पर मिलता 3 लीटर ही है, उसमें भी किसी-किसी महीने तो कोटेदार तेल गोल कर जाता है। अबकी तो दुई लीटर ही दिया हरामखोर ने। राशन के भी यही हाल हैं। मनमर्जी चल रही है सबकी। सब खुदै को अधिकारी और नेता समझते हैं। अईसे ही रहा तो अबकी साली सरकार बदलीही जाएगी।
अब्बा चराग जलाओ, रहमान ने धीरे से कहा। अब्बा ने रहमान के लाये चराग को जलाया।

बकरियां अब पहले से थोड़ा शांत थीं पर पूरी तरह नहीं। एक चुप होती तो दूसरी चिल्लाने लगती। मैं आंगन में पड़ी चारपाई में जा के पसर गया। सुबह के चार बजे गए थे। आसमान का कालापन कम हो रहा था। तारे अब कम गाढ़े दिख रहे थे। शंकर जी के मंदिर की घंटियां भी बजनी शुरू हो गईं थीं। आरती का समय हो गया था। मैं कब सो गया पता ही नहीं चला।
सुबह आंख खुली तो मैं उठा और बरोठे में गया जहां बकरियां बंधीं थीं, वहां एक भी बकरी नहीं थी। कोने में ढेर सारी राख फैली थी। मैं आंगन में फिर लौटा और चच्ची के कमरे की तरफ आवाज लगाई, पर कोई नहीं बोला। पास गया तो देखा दरवाजे पर कुंडी लगी हुई थी। पूरे घर में सन्नाटा पसरा था। मैं चारपाई में फिर बैठ गया। तभी बाहर से जोर-जोर से आवाजें आने लगीं तो बाहर की तरफ भागा और सीधे बाहर चउरा पर पहुंच गया। वहां लोगों की भीड़ लगी थी। रहमान, अब्बा, अम्मा, राजू चाचा और गांव भर के लोग जुट थे। एक किनारे अबरार बैठे रो रहा था उसके पास ही खून बिखरा पड़ा था। पास पहुंचा तो मैं अवाक रह गया। मुझे देख अबरार मुझसे चिपट गया और जोर-जोर से रोने लगा। पास में ही उसकी सबसे प्यारी बकरी छुनिया मरी पड़ी थी। उसके मुंह से झाग निकला हुआ था। बगल में उसका भ्रूण भी पड़ा था। राजू चाचा ने बताया किसी ने अब्बा से दुश्मनी निकालने के लिए रात में छुनिया के पेट में लात-घूंसे चलाये और कोई देख पाए इससे पहले ही भाग निकला। बाहर रास्ते की तरफ सो रहे चम्पू ने रात में बरोठे से निकल भागकर जाते एक आदमी को देखा था पर अंधेरा होने की वजह से वह पहचान नहीं पाया। चम्पू ने भी मुझसे इस बात की तस्दीक की। डॉक्टर साहब बता गए थे कि छुनिया को घास में मिलाकर जहर भी खिलाया गया।

घर वाले, मुहल्ले वाले सब गुस्से में हैं। हमारी तो किसी से दुश्मनी भी नहीं, कोई बेजुबानों से कैसे रंजिश निकाल सकता है, अम्मा रो रोकर कह रही हैं। अब्बा उन्हें ढांढस बंधा रहे हैं। बाकी बकरियां सदमे में हैं। किसी ने घास तक नहीं खाई है, वे पागुर तक नहीं कर रहीं हैं। घनघोर शोक में हैं वो। अबरार अभी भी मुझसे लिपटा हुआ है, उसके आंसुओं से मेरे पेट के पास की शर्ट गीली हो चुकी है। बाकी बची बकरियों और अबरार का दर्द एक है। उसे कोई नहीं समझ पाएगा। ये पीड़ा असहनीय है। पुलिस मामले की पड़ताल करने के लिए एक हजार रुपये मांग रही है। चउरे का माहौल शोकाकुल है। आज घर में खाना नहीं बनेगा।

नोट- ये कहानी सत्य घटना से प्रेरित है। इसे काल्पनिक समझने की चेस्टा न करें।

Monday, 30 July 2018

मौत के मकां















मौत के मकां, खूब हैं यहां
देख लो देख लो खूब गौर से
आ रहे लोग यहां दूर दूर से
न है किसी को पता न किसी को खबर
कितनी रेत डाली है कितनी छोड़ी डगर
बिल्डर ने सारे नियम तोड़ डाले हैं
सीमेंट सरिया हल्की डाली, कच्चे ईंट डाले हैं
हम गए हम गए तुम भी पहुंच गए
बातों में आके बिल्डर को नोट दे दिए
सोच न सके कुछ भी सोच न सके
हमने एक लिया प्लॉट तुमने दो लिये

प्लॉट के नाम पे फ्लैट दे दिया
बुरे फंसे बुरे फंसे हमको ठग लिया
मन मसोसकर फिर रहने चले गए
मकां सजा दिए पूजा भी कर दिए
रह रहे थे हम तो खूब शान से
अपने अपने घर में जो आलीशान थे
फिर नज़र लगी किसी कि दिन काला हो गया
जोर का शोर हुआ और गुबार छा गया
चारों ओर चारों ओर हर कोई रो पड़ा
आलीशां आलीशां मकां मेरा ढह गया

मौत आई मौत आई रूह कांप गई
गृहस्थी उजड़ गई ज़िन्दगी बिखर गई
भीड़ आई लोग आए जमघट भी लग गया
देखते देखते सपना वो थम गया
कुछ मरे कुछ दबे कुछ मिले भी नहीं
देखिए आज तो रोशनी भी काली हो गई
सब बिलख बिलख गये मुलाज़िम आ गया
पांच पांच लाख का ऐलान कर गया
मौत सस्ती देख के दिल ये रो गया
हाय हाय हाय क्या से क्या हो गया
जान गई माल गया वज़ूद भी चला गया
वो देखो वो देखो बिल्डर तो हंस रहा।

- रिज़वान नूर खान

Wednesday, 18 July 2018

रो रहीं बुंदेलखंड की ऐतिहासिक धरोहरें

झांसी स्थित राजा रघुनाथ राव का महल।

बुंदेलखंड के पांच जिलों में मौजूद 51 ऐतिहासिक स्मारकों के रखरखाव की स्थिति बदतर है। इन स्मारकों की सुरक्षा, देखभाल और संरक्षण के लिए
सरकार प्रतिवर्ष मात्र डेढ लाख रुपये इस मद में जारी करती है। इनके रखरखाव के लिए मात्र तीन कर्मचारी तैनात हैं। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये कर्मचारी किस तरह अलग अलग जिलों में स्थापित ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण करते होंगे।

रानी लक्ष्मीबाई की नगरी झांसी में सर्वाधिक धरोहरें हैं। इसके बाद चित्रकूट, ललितपुर, बांदा और जालौन में हैं। इस वर्ष पर्यटन मंत्रालय ने 51 स्मारकों की संख्या में बढ़ोत्तरी की है। ऐतिहासिक धरोंहरों-स्मारकों की सूची में इस बार 20 नाम और जोड़े गए हैं। यह एक तरह से अच्छा है लेकिन इनके संरक्षण के लिए मंत्रालय बजट बढ़ाना भूल गया है। अभी तक 51 स्मारकों के लिए ही यह रकम ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही थी। अब स्मारकों की संख्या बढ़ाए जाने से हालात और बद्तर हो जाएंगे।
झांसी स्थित रघुनाथ राव महल के अंदर की तस्वीर।

जानकार बताते हैं कि पर्यटन की ओर केंद्र और राज्य सरकार झुकाव ज्यादा है नहीं। यही वजह है कि स्मरकों की संख्या में इजाफा जरूर किया गया लेकिन राशि नहीं बढ़ाई गई। पुरातत्व विभाग के जिम्मे यह स्मारक लगातार अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं। स्मारकों का सौंदर्यीकरण लंबे समय से नहीं किया गया है। ये जर्जर और खंडहर में तब्दील होते जा रहे हैं। यहां लोगों ने कब्जा कर निर्माण करा लिए हैं तो दीवारों की इंटें घिसती जा रही हैं। वहीं, दीवारों और छतों पर की गई शानदार नक्काशी मिटती जा रही है। झाड़-झंखार और गंदगी से परिसर पूरी तरह पटे हुए हैं।

वीरांगना लक्ष्मीबाई की नगरी झांसी में झांसी किला, रानीमहल, रघुनाथ राव महल और झोकनबाग सिमेट्री प्रमुख हैं। इन स्मारकों का निर्माण बुंदेलों और अग्रेजों के शासनकाल में किया गया है। राज्य पुरातत्व विभाग ने रानी महल  और झोकनबाग सिमेट्री को केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने 1964 और 1978 में अपने संरक्षण में लिया था। इसके अलावा रघुनाथ राव महल को सन 2002 में संरक्षित धरोंहरों की सूची में शामिल किया गया। गौरवमयी यादें समेटे ये धरोहरें अतिक्रमण और गंदगी के चलते अस्तित्व खोती जा रही हैं। पुरातत्व  विभाग नगर निगम के पाले में गेंद डाल खुद को पाक साफ बताता है जबकि नगर निगम पुरातत्व अधिकारियों को इसके लिए जिम्मेदार मानता है।

वीरांगना लक्ष्मीबाई के रानी महल की पहली मंजिल का द्रश्य।
झांसी में पुरातत्व विभाग के अधिकारी एके दुबे बताते हैं कि लोगों के प्रदर्शन और मांग और विभाग के बार बार प्रस्ताव भेजने के बाद इस बार रघुनाथ राव महल के लिए शासन से 50 हजार रुपये अलग से जारी किए गए हैं। वे बताते हैं कि इस राशि की मदद से महल के चारों ओर कटीले तारों की फेसिंग कराएंगे ताकि अराजक तत्वों का आनाजाना बंद हो जाए। लेकिन रानी महल समेत अन्य स्मारकों के लिए कोई बजट अलग से जारी नहीं करना सरकार के उदासीन रवैये को जाहिर करता है।

डेढ़ लाख की रकम से सिर्फ झांसी जनपद के स्मारकों का संरक्षण ही नहीं हो पाता है तो ललितपुर, चित्रकूट, बांदा और जालौन के ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण का क्या होगा। वर्तमान में कई स्मारक खंडहर में तब्दील हो चुके हैं तो कई जमींदोज होने की कगार पर पहुंच चुके हैं। पर्यटन और पुरातत्व विभाग जिला प्रशासन और नगर निगम पर अपनी जिम्मेदारी डाल रहा है जबकि ये दोनों पर्यटन और पुरातत्व विभाग को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार बताते हैं। कुछ भी हो अगर इन स्मारकों के लिए जल्द और धनराशि जारी नहीं की गई तो आने वाले कुछ वर्षों में हम इन्हें सिर्फ किताबों में ही पढ़ सकेंगे। 

Monday, 16 July 2018

दुनिया की सबसे खतरनाक जेल ग्यातारामा


हाल ही बागपत जेल में कुख्यात माफिया मुन्ना बजरंगी की ताबड़तोड़ गोलियां मारकर हत्या कर दी गई। इससे पहले भी ऐसे कई मामले हो चुके हैं। जेल में हत्या हो जाना कोई नई बात नहीं है। दुनिया भर में ऐसा होता आया है। हालांकि, ऐसे मामलों के लिए मानवाधिकार आयोग और कानून बेहद सख्त है। अफ्रीका की रवांडा में रोज करीब दस कैदियों की हत्या कर दी जाती है। हालात ऐसे हैं कि मानवाधिकार आयोग और वैश्विक संगठन में ऐसा होने से नहीं रोक पा रहे हैं।

अपराधियों को दंड देने के लिए जेल में बंद करने की प्रथा जमाने पुरानी है। यूं तो दुनिया में बहुत सी जेलें ऐसी हैं जिन्हें खतरनाक माना जाता है। किन, अफ्रीका के रवांडा प्रांत के किगाली में स्थित ग्यातारामा जेल को दुनिया का नरक कहा जाता है। यहां हर दिन मौत तांडव करती है। जानकारों के मुताबिक यहां जो भी कैदी गया जिंदा अपने घर नहीं लौट सका। इस जेल मौत का रोज का आना जाना रहता है।

माना जाता है कि ग्यातारामा जेल बनने से पहले किगाली इलाके में दो जातियों के बीच वर्चस्व को लेकर लड़ाई शुरू हुई जो बाद में भयंकर हो गई। दोनों समुदायों के लोग एक-दूसरे के लोगों को मारने-काटने लगे। कई सालों तक यही हालात बने रहे। सरकार ने गृहयुद्ध के हालात काबू करने के लिए सेना को मैदान में उतार दिया। सेना ने दोनों समुदायों के खूंखार हत्यारों को कैद कर लिया। इन्हें बंद करने के लिए ग्यातारामा जेल का निर्माण कराया गया। जेल में भी दोनो समुदायों के लोग एक-दूसरे की हत्या से बाज नहीं आए। जो सिलसिला अभी भी जारी है।

जेल का माहौल इतना खतरनाक है कि यहां के कैदी अपने साथियों को ही मारकर खा जाते हैं। इसीलिए इस जेल को धरती का नरक भी कहा जाता है। क्षमता से अधिक कैदी होने के कारण यहां रात में सोने के लिए भी मारकाट करनी पड़ती है। एक हजार कैदी रखने की क्षमता वाली इस जेल में सात हजार कैदियों को बंद किया गया है। ऐसे में रात के समय बैरक में पैर रखने और खड़े रहने तक की जगह नहीं बचती है। नींद उसी को मिल पाती है जो सामने वाले को मार डालता है।


ऐसे हालात में यहां के कैदी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। रोजमर्रा की चीजें पाने के लिए यहां मौत का खेल खेला जाता है। आंकड़ों के मुताबिक इस जेल में हर रोज कम से कम दस कैदियों की मौत होती है। इनमें से ज्यादातर की हत्या की गई होती है। यहां कैदियों से जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जाता है। यहां आने वाला कैदी कभी जिंदा वापस नहीं लौटता। इन हालातों को सुधारने के लिए वैश्विक मानवाधिकार आयोग और अन्य संगठन लगातार काम कर रहे हैं लेकिन स्थितियों में सुधार नहीं हो सका है। फिर भी यहां के कैदियों में जेल से रिहा होने की उम्मीद बाकी है।

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