आज हर किसी को अपने ब्राइट फ्यूचर की चिंता सताती है। भविष्य में उनके पास पैसे रहेंगे या नहीं इस बात का डर लगभग हर व्यक्ति को होता है। इसलिए वहां जरूरत होती हैं इंश्योरेंस की। आज हर क्ष्ोत्र में हर किसी वस्तु का इश्योरेंस किया जा रहा है। क्योंकि हर व्यक्ति खुद को सिक्योर रखना चाहता है। इसी वजह से आज इंश्योरेंस का प्रोफेशन हर पल प्रगति कर रहा है। इस क्षेत्र में ट्रेंड प्रोफेशनल्स की बहुत मांग है।
Thursday, 31 October 2013
केंचुली बदलता देश
केंचुली बदलता देश
आजकल मौसम अपनी केंचुली बदल रहा है
मैने सुन रखा है
बदलाव हमेशा कुछ न कुछ
अजीब हरकत करता है
क्या यह भी कुछ करेगा
यूं भी देश की रवानी
अपने वजूद
की पताका थामने को आतुर है
गर्म माहौल विदाई मांग रहा है
और सर्द हड्डियों में जगह
बनाने की कोशिश में है
सुना है देश की
हड्डियां शिला से भी मजबूत हैं
अगर यह सच है
तो फिर मैं सर्द क्यूं हो रहा हूं
काका से सुन रखा है
मर्द को दर्द नहीं होता
लेकिन सर्द को इससे क्या
देश भी तो मर्द है
फिर वह क्यूं सिसकियां लेता है
रात के साए में
उन वीरान सड़कों पर
जहां कभी भी आबरु लुट जाने का
संशय बरकरार रहता है
अब मेरा मन भी
मौसम की सुन रहा है
केंचुली बदलना चाहता है
क्यूंकि सर्द तो बेदर्द है
देश की शिला रूपी हड्डियों को
सर्द की मार से
रोकने के लिए
मेरे अकेले से सर्द शायद ही रुक जाए
रुक गई तो मैं सफल
नहीं तो तुम सफल
मुझे पता है तुम आओगे नहीं
भौंकोगे वहीं से
मीलों उछलोगे, फिर भी उछलोगे नहीं
आखिर तुम बेदर्द हो न
पर सर्द तो तुम्हारे वजूद को भी जर्द कर देगी
तब तो आओगे न
क्यूंकि इसबार सर्द नहीं मानने वाली !!
Saturday, 26 October 2013
राइट योर ओन कैरियर

राईटिंग कई तरह की हो सकती है। यह क्रिएटिव या डायरेक्ट राइटिग भी हो सकती है। सच पूछिए, तो लिखने की कला हर किसी में नहीं होती है। और जिनमें लिखने की जिज्ञासा है या वे लिखने में हुनरमंद हैं, तो आज उनके लिए जॉब की कोई कमी भी नहीं है, क्योंकि आज कॉपी राइटिग, क्रिएटिव राइटिग, टेक्निकल राइटिग के क्षेत्र में लिखने में हुनरमंद लोगों की खूब डिमांड है।
Friday, 25 October 2013
गांव नगर हो जाएगा
गांव-नगर
हम न जाने कब बच्चे से बड़े हो गए
मीठे दोस्तों के संग
गवांरपन में
कब सीधे हो गए
उन टेड़ी गलियों में
कुछ पता ही नहीं चला
जहां लुक्की-लइया, चोर-पुलिस
और दुनिया के सबसे मजे वाले खेल खेलते थे
कितना कुछ बदल गया है न
मुहल्ले की उस मठिया को छोड़कर
जहां प्रसाद लेते कम
और देते ज्यादा थे
इसी चक्कर में
देह को लाल होने में देर न लगी थी उस दिन
आज भी
पीठ पर पड़ी छुलछुली की
उन बरतों को महसूस कर रहा हूं
कल ही सरकारी मुलाजिम आया था
बोला अब गांव, गांव नहीं रहेगा
बनेगा नगर
बेहोश होना चाहता था
उसी पल
टूट कर बिखरना चाहता था
गांव वाले खुश थे
उन्हें विलासिता दिख रही थी
और मुझे विनाश
अब यहां भी
छेड़खानी होगी
हो सकता है बलात्कार भी हो जाए
अब तो अलमारियों में रिश्ते
सिसकियां भरेंगे
लाज चारों पायों पर
खड़ी हो नाचेगी
नगरों-शहरों का यही तो परिचय
हर जगह पाया है मैने
चउरा अब चारदीवारी में बदल जाएगा
खेत अपार्टमेंट की शक्लें
चड़ा लेंगे
डगर सड़क बन जाएगी
छोरी को लौंडिया बनते देर नहीं लगेगी
और उसके बाद
तो न जाने क्या-क्या
अब गांव नगर नहीं शहर बन जाएगा !!!!
Sunday, 13 October 2013
बापू हमारे आंखों के प्यारे
एक मोहन जो बना महात्मा
सत्याग्रह, अहिसा और सादगी को मूल मंत्र मानने वाले महात्मा गांधी जी का आज जन्म दिन है। उन्होने देश के लिए बलिदान दिया। उनके आदर्शों से प्रभावित होकर रबिद्रनाथ टैगोर ने पहली बार उन्हें महात्मा के नाम से संबोधित किया। गांधी जी ने अपना जीवन सत्य की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया था। अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने स्वयं अपनी गलतियों पर प्रयोग करना प्रांरभ किया। अपने अनुभवों को उन्होंने अपनी आत्मकथा 'माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ’ में संकलित किया था।
शुरूआती जीवन और शिक्षा
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्तूबर सन 1869 को पोरबंदर (गुजरात) के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे। मोहनदास की मां पुतलीबाई का स्वभाव धार्मिक प्रवत्ति का था। गांधीजी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई। वह गणित विषय में बेहद कमजोर व शर्मील और एकांतप्रिय स्वाभाव के मगर गंभीर व्यक्ति त्व के पुरुष थ्ो।नकल से घृणा
एक बार विद्यालय में घटी एक घटना ने यह संदेश अवश्य दे डाला कि निकट भविष्य में यह छात्र आगे जरूर जाएगा। घटना के अनुसार उस दिन स्कूल निरीक्षक विद्यालय में निरीक्षण के लिए आए हुए थे। कक्षा में उन्होंने छात्रों की 'स्पेलिग टेस्ट लेनी शुरू की। मोहनदास शब्द की स्पेलिग गलत लिख रहे थे, इसे कक्षाध्यापक ने संकेत से मोहनदास को कहा कि वह अपने पड़ोसी छात्र की स्लेट से नकल कर सही शब्द लिखें। उन्होंने नकल करने से इंकार कर दिया। क्योंकि वह को जीवन की प्रगति में बाधक मानते थ्ो।पश्चाताप गलतियों की माफी है
वैसे तो मोहनदास आज्ञाकारी थे, पर उनकी दृष्टी में जो अनुचित था, उसे वे उचित नहीं मानते थे। बचपन में मोहनदास बुरी संगत के कारण अवगुणों में डूब गए। धूम्रपान और चोरी करने का भी अपराध किया। लेकिन बाद में गलती को स्वीकार करते हुए उन्होंने सारी बुरी आदतों से किनारा कर लिया। उनका मानना था कि अगर सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते।बाल विवाह प्रगति में अवरोध
तेरह वर्ष की आयु में मोहनदास का विवाह कस्तूरबा से कर दिया गया। उस उम्र के लड़के के लिए शादी का अर्थ नए वत्र, फेरे लेना और साथ में खेलने तक ही सीमित था। लेकिन जल्द ही उन पर काम का प्रभाव पड़ा। शायद इसी कारण उनके मन में बाल-विवाह के प्रति कठोर विचारों का जन्म हुआ। उन्होनें बाल-विवाह को भारत की एक भीषण बुराई मानते थे। उनका मानना था कि बचपन में ही विवाह किए जाने से जीवन के प्रगति का पथ अवरोधों से भर जाता है। बाल विवाह भारत में रोकना बेहद जरूरी है।मेरी देह देश की और देश मेरी देह का
गांधीजी ने हमेशा दूसरों के लिए ही संघर्ष किया। मानो उनका जीवन देश और देशवासियों के लिए ही बना था । इसी देश और उसके नागरिकों के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया। वे स्वयं को सेवक और लोगों का मित्र मानते थे। यह महामानव कभी किसी धर्म विशेष से नहीं बंधा शायद इसीलिए हर धर्म के लोग उनका आदर करते थे ।वे जीवनभर सत्य और अहिसा के मार्ग पर चलते रहे। उनका मानना था कि कोई व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता। कर्म के आधार पर ही व्यक्ति महान बनता है। उन्होंने सत्य, प्रेम और अंहिसा के मार्ग पर चलकर यह संदेश दिया कि आदर्श जीवन ही व्यक्ति को महान बनाता है ।
मोहनदास से महात्मा और महात्मा से बापू बने उस शख्स ने यह सिद्ध कर दिखाया कि दृढ़ निश्चय, सच्ची लगन और अथक प्रयास से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।
Saturday, 12 October 2013
अ लव स्टोरी
इंतजार कॉफी का
पार्ट वन
महाराणा कॉलेज कैंपस के सेंटर में हरियाली घास से भरे व महकते फूलों से घिरी हुई बनी कैंटीन के सेकेंड फ्लोर की साइड वाली खास सीट पर बैठा है विजेंद्र।
ठीक सामने कॉलेज का मेन गेट व डी ब्लॉक है, मतलब विजेंद्र का एग्जाम सेंटर। जब भी वह जल्दी आ जाता है तो यहां जरूर बैठता है। कभी- कभी तो सिर्फ दस मिनट के लिए ही, लेकिन आता जरूर है। यहां कोने की खास सीट पर बैठकर वह इत्मीनान से अपने एग्जाम सेंटर की इमारत को घूरता है ताकता है और दिमागी आंखों से क्लासरूम, कॉरीडोर, सीढ़ियां, स्टूडियो व लाईब्र्र्र्रेरी रूम देखता रहता है। जहां वो दोनो एक साथ हो जाते हैं। जो उन दोनो के बीच कभी नहीं होता। उन दोनो से मेरा मतलब है रमा और विजेंद्र। दो बिल्कु ल अलग तरह के विपरीत और अपरिचित से इंसान।
वह नाजुक सी दिखने वाली मगर चुलबुली लड़की, जिसे विजेंद्र हद से ज्यादा पसंद करता है। दोना एक साथ एग्जाम देते हैं, कभी- कभी अगल-बगल बैठते हैं तो कभी- कभी आगे-पीछे भी। वह दोनो फस्र्ट इयर से एक साथ एग्जाम देते आ रहे हैं।
जब पहली दफा हम दोनो ने उसे देखा था, वह सितंबर की उमस भरी मगर बारिश से भीगी दोपहर थी। पता नहीं उस दिन बारिश क्यों लगातार हो रही थी। बादल उमड़-घुमड़ कर बरस रहे थ्ो। मानो प्रेमी से बिछड़ी किसी बिरहन के बरसों के आंसू हों।
एग्जाम का पहला ही दिन था। क्लासरूम में कॉपियां बंट चुकी थी। लगभग सभी आंसरशीट पर लिखना भी शुरू कर चुके थ्ो। नम खुशबू के ताजा झोंके ने हौले से इंट्री ली थी क्लास में। मेरी और विजेंद्र की आंखें ऊपर को देखते हुए एक ही जगह पर टिकी थी। जैसे कोई दो ऐरो एक ही टारगेट पर निशाना साधे हों। दरअसल वह रमा ही थी। हम दोनो उसके भीगे हुए चेहरे की खूबसूरती को टकाटक देखे जा रहे थ्ो और वह एग्जामनर को लेट पर सफाई दे रही थी। उसके चेहरे व बालों से सरकती बूंदे मोतियों से कमतर नहीं लग रही थी। वह नाजुक भीगी-कांपती लड़की कब विजेंद्र के दिल को प्यार के नुकीले तीर से गहरे चीर गई, मुझे तो विजेंद्र के उसके साथ कॉफी पीने की चाहत बताने के बाद ही पता चल पाई।
अगर आप यह मानते हैं कि प्यार हो जाने के लिए इक छोटा सा लम्हा ही काफी होता है तो जनाब वह वही लम्हा था। जब रमा ने किसी साउथ की सुपरहिट फिल्मी स्टाइल में, नाजुक-भीगी, डरी-सहमी हिरोइन की तरह रोमांटिक इंट्री ली थी क्लासरूम में।
बस उसी पल मि. विजेंद्र का दिल श्ोयर मार्केट के सेंसेक्स की भांति धड़ाम......। मैं समझ चुका था कि यह अब उछाल तो भरेगा मगर विपक्ष से पॉजिटिव आंसर मिलने के बाद ही।
कुछ देर बाद मैने नजर आंसरशीट से उठाते हुए देखा तो मि. दिल ही दिल में अभी तक मुस्कुराए जा रहे थे। उसके चेहरे पर नमी तैर चुकी थी और आंखों में चमक के साथ खुशी साफ झलक रही थी। शायद उसे उस अनोखी अनुभूति का एहसास हो चुका था जिसे लोग इस दुनिया में जीने का मकसद समझते हैं।
जारी है..........
साथियो यह प्रेमकहानी मैने अपने कॉलेज के बेफिक्री भरे दिनों में लिखी थी। इसका ऑडियो वर्जन कॉलेज में काफी पॉपुलर हो चुका है और अब बारी है रिटेन वर्जन की। इसलिए बिना किसी तामझाम के इसे श्ोयर कर रहा हूं।
नोट- यह प्रेमकहानी सच्ची घटना पर आधारित है और इसके पात्र व लोकेशन काल्पनिक न होकर पूरी तरह सत्य हैं।
Thursday, 10 October 2013
याद शहर
याद शहर
लंबा सफर है खर्चा होगा
इक खाता रख लो
पिछली बरसात का टूटा हुआ छाता रख लो।
मोजे दो जोड़ी रख लो
स्टेशन तक जाने वाली घोड़ी रख लो।
कुएं का पानी रख लो
कहानियों वाली नानी रख लो।
बिस्तरबंद रख लो
इक छोटा सा मसंद रख लो।
पुरानी आदतें रख लो
अंदर की जेबों में याद्दाश्तें रख लो।
हल्दी रख लो
थोड़ा जल्दी रख लो।
अब्बू की सलाह रख लो
अम्मी की दुआएं रख लो।
निकलते वक्त हथ्ोली पे पैसे रखने वाली बुआ रख लो
दादी का प्यार रख लो।
आम का अचार रख लो
दादा की छड़ी रख लो
कमर पे लटकने वाली घड़ी रख लो।
टिकिट न हो तो बेटिकिट रख लो
मुसाफिरों की खिटखिट रख लो।
कानपुर की पुरवाई रख लो
तमाम रास्ते आती जम्हाई रख लो।
भुसावल के केले रख लो
कनपुरिया चाट के ठेले रख लो।
लोग मिलेंगे अजीबो-गरीब
कभी आड़े रख लो
कभी टेढ़े रख लो।
थोड़ी घबड़ाहट रख लो
करीबियों की मुस्कुराहट रख लो।
कंपू को अलविदा कहने से पहले
चमनगंजी संकरी गलियां रख लो-चौड़े चौराहे रख लो।
फूलबाग की भीड़ रख लो
ठग्गू के लड्डू रख लो।
अपनी यांदे बटोर लो
जीवन का सार समेट लो
और आखिर में खुद को जिंदा रख लो।।
इक खाता रख लो
पिछली बरसात का टूटा हुआ छाता रख लो।
मोजे दो जोड़ी रख लो
स्टेशन तक जाने वाली घोड़ी रख लो।
कुएं का पानी रख लो
कहानियों वाली नानी रख लो।
बिस्तरबंद रख लो
इक छोटा सा मसंद रख लो।
पुरानी आदतें रख लो
अंदर की जेबों में याद्दाश्तें रख लो।
हल्दी रख लो
थोड़ा जल्दी रख लो।
अब्बू की सलाह रख लो
अम्मी की दुआएं रख लो।
निकलते वक्त हथ्ोली पे पैसे रखने वाली बुआ रख लो
दादी का प्यार रख लो।
आम का अचार रख लो
दादा की छड़ी रख लो
कमर पे लटकने वाली घड़ी रख लो।
टिकिट न हो तो बेटिकिट रख लो
मुसाफिरों की खिटखिट रख लो।
कानपुर की पुरवाई रख लो
तमाम रास्ते आती जम्हाई रख लो।
भुसावल के केले रख लो
कनपुरिया चाट के ठेले रख लो।
लोग मिलेंगे अजीबो-गरीब
कभी आड़े रख लो
कभी टेढ़े रख लो।
थोड़ी घबड़ाहट रख लो
करीबियों की मुस्कुराहट रख लो।
कंपू को अलविदा कहने से पहले
चमनगंजी संकरी गलियां रख लो-चौड़े चौराहे रख लो।
फूलबाग की भीड़ रख लो
ठग्गू के लड्डू रख लो।
अपनी यांदे बटोर लो
जीवन का सार समेट लो
और आखिर में खुद को जिंदा रख लो।।
इन अल्फाजों के मालिक हेमंत चौहान हैं।
और शब्दों के बदलाव का जिम्मेवार रिजवान है।
Sunday, 6 October 2013
फेसबुक की कहानी
हकीकत
जब धरती सारी सोती है
अंबर काला होता है
तब दूर कहीं इक कमरे में
दो नैनों में उजाला होता है।।
कोई लिखने को कुछ आता है
काई कमेंट लगा के जाता है
होते हैं सब साथ यहां पर
बातें ढेरों होती हैं
अपनी उसकी सबकी यहां पर
बातों का चिठ्ठा होता है।।
जिसको देखो लगा यहां पर
अपनी जुगत भिड़ाने को
बात बनी जब नहीं दिखी तो
लगा कोसने फेसबुक को।।
बना रहा जो ऑनलाइन यहां पर
वही तो पठ्ठा होता है
जब धरती सारी सोती
और अंबर काला होता है
तब दूर कहीं इक कमरे में
दो नैनो में उजाला होता है ।।
अंबर काला होता है
तब दूर कहीं इक कमरे में
दो नैनों में उजाला होता है।।
कोई लिखने को कुछ आता है
काई कमेंट लगा के जाता है
होते हैं सब साथ यहां पर
बातें ढेरों होती हैं
अपनी उसकी सबकी यहां पर
बातों का चिठ्ठा होता है।।
जिसको देखो लगा यहां पर
अपनी जुगत भिड़ाने को
बात बनी जब नहीं दिखी तो
लगा कोसने फेसबुक को।।
बना रहा जो ऑनलाइन यहां पर
वही तो पठ्ठा होता है
जब धरती सारी सोती
और अंबर काला होता है
तब दूर कहीं इक कमरे में
दो नैनो में उजाला होता है ।।
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